भारत की बढ़ती जनसंख्या व राजनीति।
शीर्षक ÷भारत की बढ़ती जनसंख्या व राजनीति।
लेखिका सुनीता कुमारी पूर्णिया बिहार
भारत के साथ साथ पुरे विश्व में अगर सबसे ज्यादा चिन्ताजनक बिषय की बात की जाए तो वह हैं मानव जनसंख्या वृद्धि ।जो आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या हैं।जल, वायु ,भूमि एवं प्रकृतिक संसाधन सीमित हैं एवं सीमित मात्रा में उपयोग किये जा सकते हैं परंतु ,अनियंत्रित बढ़ती जनसंख्या इस सीमित संसाधन के ऊपर अतिरिक्त बोझ डाले हुए हैं ।जिसके परिणाम स्वरूप कई और गंभीर समस्या हमारे सामने खड़ी हैं।पृथ्वी का बढ़ता तापमान, हवा में कार्बनडायआक्साइड की बढंती मात्रा,
समुद्र का बढता जलस्तर, इसके अलावा प्रदूषण भी ,एक बड़ी समस्या का रूप ले चुकी हैं । वायु प्रदूषण ,भूमि प्रदूषण ,ध्वनी प्रदूषण, जल प्रदुषण
सभी अपनी चरम सीमा पर पहुचनेवाले है ।साथ ही बढती प्राकृतिक आपदाए भी पृथ्वी पर जीव के अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं।इन सभी समस्याओं के जड़ में कुछ समान हैं तो वह हैं ,जनसंख्या वृद्धि ।अगर इसी तरह विश्व की आबादी बढती रही तो मनुष्य को अपने लिए अन्य ग्रह तलाश करनी पड़ेगी ।
भारत को आजाद हुए 74 वर्ष बीत चुके हैं, भारत की सत्ता पूर्णतः भारतवासी के हाथ में है ।सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के हाथ में है। फिर भी भारत की जनसंख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही हैं।क्यों? भारत की जो जनसंख्या आजादी के समय 33 करोड़ थी, वह जनसंख्या बढ़कर 136 करोड़ हो चुकी है ।सोचने वाली बात यह है कि, आखिरकार सत्ता में सुशोभित पार्टीयाँ, इस दिशा में कर क्या रही हैं ,अब तक कोई ठोस कदम क्यो नही उठा पा रही हैं।सरकार बदल रही हैं सत्र बदल रहे हैं पर इन समस्याओं का कोई समाधान आज तक समाधान नही हो पाया हैं।जो समस्या का समस्याओं का जड़ मूल है, सारी समस्याओं का कारण है, उस समस्या के निवारण में इतनी उदासीनता क्यों ??
भारत सरकार की आर्थिक क्षमता, बढ़ती जनसंख्या जरूरतों को पूरा करने में कहीं ना कहीं समाप्त होती जा रही है।सड़को का चौड़ीकरण, खाद्यान्नों की आपूर्ति,
नई बस्तियों के लिए सड़के,बिजली पानी की आपूर्ति में ही भारत सरकार की सारी क्षमता व्यय हो रही हैं।बढती बेरोजगारी ,मकान की की समस्या आदि जितनी भी समस्या सभी के लिए बढती जनसंख्या जिम्मेदार हैं।
इस कारण भारत विकासशील देश से विकसित देश की श्रेणी में खड़ा नहीं हो पा रहा है। और इसके लिए कहीं ना कहीं राजनीतिक पार्टियां एव पार्टी से जुड़े लोग जिम्मेदार है ।पंचवर्षीय योजनाए, दस वर्ष में व दस वर्षीय योजना बीस वर्ष में पुरी हो रही हैं।
जबतक इंसान पराए घर में या किराये के घर में रहता हैं तबतक उसे उस घर की अहमियत नही होती,न ही उस घर से विशेष लगाव होता है,किन्तु जैसे ही अपने घर में रहने लगता है ,वह स्वयं जिम्मेदार हो जाता हैं, घर की साज सजावट से लेकर घर की सुरक्षा,घर के एक एक सामान के प्रति लोग संवेदनशील हो जाते हैं।फिर क्यों भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत के नेतागण आजाद भारत को संवारने की बजाए ,सत्ता की राजनीति करते रहे। देश के विकास को दरकिनार कर मात्र सत्ता में सुशोभित रहने के लिए राजनीति करते रहे?क्या केवल सत्ता में बने रहना ही इनका एकमात्र उद्देश्य था।आजाद भारत के सपने को पूरा करने के लिए कितने ही भारतवासियो ने अपने प्राणों की आहुति दी ,पर ये नेतागण उनके बलिदान को सम्मान न दे सके।
अगर ये नेतागण सचमुच देश का भला चाहते तो आज भारत की जनसंख्या की यह स्थिति न रही होती ।भारत विकासशील देश की श्रेणी में खड़ा होता ,क्योकि भारत में संसाधन की कोई कमी नही हैं जरूरत थी तो सिर्फ उसे दिशा प्रदान करने की ,जो ये नेतागण नही कर पाए। ना ही देश संभाल पाए ,न देश की जनसंख्या को।
लोकतंत्र में जनता शासन में सहायक होती हैं।किन्तु जबतक जनता नेताओ पर अंधा विश्वास करती रहेगी ,तबतक देश का कल्याण नही हो सकता हैं।
भारत में जनसंख्या वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट का नाम भी दिया जाता रहा है। जिस तरह से भारत में जनसंख्या वृद्धि हुई है , जनसंख्या विस्फोट का नाम देना भी स्वभाविक ही लगता है ।बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत की जनसंख्या 23 करोड़ 84 लाख थी,एवं आजादी के समय यह 33 करोड़ थी। वर्तमान में यह संख्या 1 अरब 33 करोड़ है ।1901 से 2021 तक की समयावधिमें,1911 से 1921 के दशक को छोड़कर प्रत्येक दशक में ,भारत में जनसंख्या वृद्धि देखी गई है। सबसे ज्यादा जनसंख्या वृद्धि 1960 से 1980 के दशक में हुई है।वर्तमान में भारत की जनसंख्या 136 पॉइंट 64 करोड़ है जनसंख्या वृद्धि के आंकड़ों पर नजर रखने वाली इकाई वर्ल्डोमीटर के अनुसार यह आंकड़ा 2021 में 140 करोड़ हो चुका है ।वहीं अमेरिका की एक रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2019 के बीच कुल वार्षिक वृद्धि दर 1 पॉइंट 2 से बढ़कर 1 पॉइंट 36 हो गया है। चीन की जनसंख्या 141 करोड़ है और यह दुनिया का पहला जनसंख्या वाला देश है भारत भी लगभग चीन की बराबरी में आ खड़ा हुआ है।
समस्या चाहे जितनी भी बड़ी क्यों ना हो यदि उसका समाधान गलत तरीके से किया जाए तो उसका परिणाम भी गलत ही निकलता है और यही बात भारत की जनसंख्या के संबंध में रुकावट बनी है। जनसंख्या विस्फोट चाहे जिस भी कारण से रहा हो, किंतु इसे रोकने का तरीका गलत रहा है 1970 के दशक में हर चौक चौराहे पर पान दुकान एवं नेताओं के बीच भाषण का मुख्य मुद्दा जनसंख्या वृद्धि ही थी, जिसे इंदिरा गांधी की सरकार ने युद्ध स्तर पर रोकना चाहा ।कई सारे प्रयासों में एक प्रयास नसबंदी था जो, आलोचना का विषय बन गया। 1975 में आपातकाल के दौरान नागरिकों से अधिकार छीन लिए गए थे ,एवं जबरदस्ती नसबंदी अभियान चलाया गया था। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक 1 साल में ही 62 लाख पुरुषों का नसबंदी कराया गया था ,जिसमें 2000 हजार पुरुषों की जान चली गई थी। इस विनाशकारी अभियान के बाद सभी नेताओं ने और आम लोगों ने जनसंख्या मुद्दे पर बात करना बंद कर दिया ।यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चली गई । कुछ सांसद इस दिशा में आगे बढ़ते रहें परंतु कामयाब नहीं हुए ।जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी अभियान जनसंख्या नियंत्रण कानून के आगे आ खड़ा हुआ।
पुनः2020 के स्वतंत्रता संग्राम के भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने जनसंख्या विस्फोट शब्द का उच्चारण किया एवं 1970 के मुख्य मुद्दा को वापस दोहराया और कहा “समाज वह लघु वर्ग है जो अपने परिवार। को छोटा रखता है, सम्मान का हकदार है वह जो कर रहा है वह देश भक्ति का कार्य है ।”
प्रधानमंत्री के इस भाषण के तुरंत बाद बीजेपी की असम सरकार ने महिला सशक्तिकरण एवं जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू करना चाहा ।उसके बाद कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जनसंख्या कानून की पहल की जो कि, एक सराहनीय प्रयास है। परंतु दिक्कत यह है कि जहां कुछ नेता इसके पक्ष में है, वही बहुत सारे नेता इसके विपक्ष में भी हैं।उत्तर प्रदेश से पूर्व राजस्थान, मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र ,गुजरात ,उड़ीसा एवं हरियाणा ,में भी यह बिल लाया जा चुका है, पर यह कारगर नहीं हो पा रहा है ।होगा भी कैसे नेताओं की उदासीनता इस कानून के आड़े आ रही है।उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी जी ने जनसंख्या नियंत्रण कानून की पहल की, तो उनकी इस पहल में सभी नेताओं को साथ देना चाहिए, किंतु ऐसा नहीं है स्वयं नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार को जनसंख्या नियंत्रण के किसी कानून की आवश्यकता नहीं है। बिहार की बहू बेटियां बढ़ रही हैं और 2048 तक स्वतः ही बिहार की जनसंख्या नियंत्रित हो जाएगी। उनकी यह बात सुनकर बड़ा अजीब लग रहा है कि ,जहां योगी जी इतना अच्छा पहल कर रहे हैं, तो नीतीश जी को उनका साथ देना चाहिए ।लेकिन ऐसा नहीं है सभी नेता अपने-अपने व्यक्तिगत मंतव्य को जनसंख्या नियंत्रण कानून के आगे ला खड़ा कर देते हैं ।जिस कारण इस पर एक राय नहीं बन पाती है। और यह कानून अधर में लटका हुआ रहता है। बढ़ती हुई जनसंख्या से किसी नेतागण को विशेष चिंता नहीं है ,अगर होता तो निश्चय ही भारत में इतनी जनसंख्या बढ़ोतरी नहीं हुई होती। जबकि सभी जानते हैं की जनसंख्या वृद्धि पर रोक तब लगेगा जब शिक्षा के साथ-साथ ठोस जनसंख्या कानून भी लागू होगा। जो लोग इस कानून के पक्ष में काम कर रहे हैं ,जो नेता इस कानून के पक्षधर हैं उनके पक्ष में सभी नेताओं को आना होगा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और मंतव्य को छोड़कर एक मत होना होगा तभी इस जनसंख्या वृद्धि कात निराकरण हो सकेगा।
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