विभाजन बिभीषिका का स्‍मरण क्‍यों ?

विभाजन बिभीषिका का स्‍मरण क्‍यों ?

 

भारत का विभाजन 20बीं सदी की विश्‍व की मुख्‍य बडी त्रासिंदयों में से एक है विश्‍व में बहुत ही कम ऐसी जन हानि तथा इतने बडे पैमाने पर पलायन देखने को मिला है इस त्रासदी के जख्‍म अभी तक पूर्ण रूप से भरे नहीं हैं लेकिन लोग बदलते हुए राष्‍टवाद के स्‍वरूप में लीन हो गए है भारत में काफी विद्वमान समस्‍याओं के बीच में श्री नरेन्‍द्र मोदी ने घोषणा की है कि स्‍वतंत्रता दिवस से पूर्व 14 अगस्‍त को विभाजन विभीषिका स्‍मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा हम 15 अगस्‍त को अंग्रेजी शासन से मुक्ति के रूप में मनाते हैं इस दिन को हम भाई चारा मजबूत करने ,आजादी के साथ समानता एवं सामाजिक न्‍याय के आधार को आगे ले जाने के लिए भी याद करते है

निसंदेह काफी सारे परिवारों ने अपने सगे संबंधियों को खोया है तथा उन्‍होंने असलियत से तालमेल बिठाने जैसा भागीरथी प्रयास भी किया है जो कठिनाईयां उन्‍होंने झेलीं उनका वर्णन बहुत सी रचनाओं /कृतियों ,विभाजन की कहानियों में महिलाओं की पीडा का उल्‍लेख मिलता है आज अचानक उस विभीषिका के जख्‍म को क्‍यों कुरेदा जा रहा है क्‍या यह अंग्रेजी सरकार के राजनैतिक खेल, जिसके कारण यह भयानक विभीषिका हुई है को कमतर आंकने का प्रयास नहीं है

इसका एक उत्‍तर बी.जे.पी. के नेता महासचिव(संगठन) द्वारा किए गए टवीट से भी मिलता है कि त्रासदी को याद करना एक प्रशंसनीय प्रयास है जो कि नेहरू के शासन के दौरान नहीं किया गया एक अन्‍य बी.जे.पी. नेता श्री हरदीप पुरी ने वक्‍तव्‍य दिया है कि विभाजन एक सबक के रूप में याद किया जाना चाहिए कि हम अतीत की गलतियों को पुनः नहीं दोहराएंगे तथा भारत सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्‍वास की नीति पर आगे बढेगा किसी का भी तुष्टिकरण नहीं होगा विशेष रूप से जब हमारे पडोस में अस्थिरता पहले से अधिक बढ गई है

इस तरह की आम सामाजिक अवधारणा मन में बिठा दी गई है कि विभाजन एवं मुस्लिमों के तुष्टिकरण नीति के लिए नेहरू दोषी थे जबकि दोनों चीजें सत्‍य से काफी परे हैं विभाजन विभीषिका अंग्रेजों की बांटों एवं राज करो की नीति का परिणाम थी जिसे डनहोंने 1857 के पश्‍चात पूरी उग्रता के साथ क्रियान्‍वयन किया उनकी इस नीति ने मुस्लिम एवं हिंदू सांप्रदायिक बलों को जन्‍म दिया विभाजन का मुख्‍य कारण अंग्रेजों की नीति थी जबकि मौलाना आजाद एवं महात्‍मा गांधी जैसे नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया था

गांधी जी के बारे में यह तथ्‍य प्रचारित किया गया कि वे ऐसे समय में भी शांत रहे जब दोनों सांप्रदयाकि पक्षों के घृणा भाषणों से सांप्रदायकि हिंसा बढ रही थी घृणा को प्रसारित करने का खेल दोनों पक्षों की ओर से हो रहा था तथा पीडित भी दोनों पक्षों से संबंधित थे जबकि पुरी के वक्‍तव्‍य में केवल मुस्लिमों के तुष्‍टीकरण की बात कही गई थी हमें यह भी देखना चाहिए कि हिंदू सांप्रदायि‍क संगठन राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ द्वारा प्रसारित हिंसा के बारे में क्‍या कहा था विभाजन विभीषिका एवं गांधी जी की हत्‍या इसी का परिणाम है उनके सभी भाषण सांप्रदायिक जहर से भरे हुए हिंदुओं की रक्षा के लिए उनको उत्‍साहित करने के लिए जहर फैलाने एवं उन्‍हें संगठित करने की आवश्‍यकता नहीं थी इसके परिणामस्‍वरूप देश को गांधी जी के अमूल्‍य प्राणों की आहूति देनी पडी थी

अभी तक गांधी जी हिंदू राष्‍टवादियों का मुख्‍य निशाना रहे हैं अब इसे नेहरू की ओर मोडा जा रहा है विभाजन के लिए कांग्रेस के नेतृत्‍व का लचर रवैया जिम्‍मेदार नहीं है बल्कि वे उस समय के हालात जों कि अंग्रेजों द्वारा पैदा किए गए थे,के आगे असहाय थे इस तथ्‍य की प्रामाणिकता के लिए सबसे ज्‍यादा लंबे समय तक कांग्रेस के अध्‍यक्ष रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद जो इस सब के खिलाफ थे के बारे में जानना चाहिए कांग्रेस की केन्‍द्रीय समिति में राजगोपालाचार्य एवं तीन अन्‍य सदस्‍य भी थे जिन्‍होंने हालात के आगे बहुत जल्‍दी आत्‍म समर्पण कर दिया था उनके सामने इस सिविल युद्व जैसे हालात से बचने एवं इस उप महादीप को बचाने के लिए अन्‍य कोई विकल्‍प नहीं था ताकि वे आधुनिक राष्‍ट्र का निर्माण कर सकें सबसे रूचिपूर्ण बात यह है कि जब लार्ड माउंटबैटिन ने उच्‍च नेतृत्‍व के समक्ष प्रस्‍ताव रखा तो सबसे पहले सरदार पटेल ने नेहरू के समक्ष लचीले रूख का प्रदर्शन किया इस सबका उल्‍ल्‍ेख मौलाना अबुल ककलाम आजाद की पुस्‍तक इंडिया विन्‍स फ्रीडम में मिलता है

जहां तक तुष्टिकरण का प्रश्‍न है पुरी जैसे साम्‍प्रदायिक तत्‍व शुरू से ही कांग्रेस को तुष्‍टीकरण के लिए कोस रहे है जब से भारतीय राष्‍टीय कांग्रेस का गठन हुआ था तथा बदरूददीन तैयव जी को इस संगठनकी कमान सौंपी गई थी

गोडसे विभाजन के लिए गांधी को जिम्‍मेदार मानते थे लेकिन गांधी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा लेकिन संप्रदायिक तत्‍वों ने इसका मजाक उडाते हुए इसे उखाड फेंका केवल पटेल ने ही आर.एस.एस. के इस खेल को समझा जिसका एक लक्ष्‍य मुस्लिम के प्रति घृणा फैलाना था तथा धार्मिक आधार पर सामाजिक विभाजन में योगदान देना था तथा बाद में इसे अखंड भारत नाम देना था इसका मतलब मुस्लिमों पर हिंदुओं की श्रेष्‍ठता को थोपना था जिसके लिए वे कभी भी तैयार नहीं थे संयोगसे हिंदू राष्‍ट की अवधारणा के जनक सावरकर वह पहले व्‍यक्त्‍िा थे जिन्‍होंने कहा था कि इस देश में दो राष्‍ट हैं एक हिंदू राष्‍ट तथा दूसरा मुस्लिम राष्‍ट

लंदन में शिक्षा ले रहे चौधरी रहमत अली ने 1930 मे मुस्लिम वाहुल्‍य राष्‍ट के लिए पाकिस्‍तान शब्‍द का उल्‍लेख किया बहुत से इतिहासकार बताते हैं कि सावरकर की दो राष्‍ट्र वाली अवधारणा ने जिन्‍हा को पाकिस्‍तान की मांग के लिए प्रेरित किया था

अतः आज मोदी का 4 अगस्‍त को एक नकारात्‍मक रूप में स्‍मरण करने के खेल के निर्णय क्‍या है इसका उददेश्‍य एक ओर तो मुस्लिमों के प्रति और अधिक घृणा पैदा करना है तथा विभाजन के लिए नेहरू को जिम्‍मेदार ठहराना है अभी हाल के आयोजन में घृणा को और अधिक पोषित किया जा रहा है एक मुस्लिम रिक्‍शा चालक को उसकी बेटी के सामने खींचा जाता है तथा मांफी मंगवाई जाती है पिटाई की जाती है तथा उससे जय श्रभ्‍ राम का नारा लगवाया जाता है दूसरी ओर जहां से देश की अभिजात वर्ग की सत्‍ता संचालित होती है से चंद दूरी पर गोली मारो सालों के काटे जाएंगे सरीके डराबने नारे लगाए जाते हैं

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