जमात-ए- इस्लामी हिन्द मुस्लिम समाज का आईना?

जमाअत ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर चिंता जताई, CAA विरोधी एक्टिविस्टों के लिए तुरंत जमानत और न्याय की मांग की

जमाते इस्लामी हिन्द आखिर सरकार को चैलेंज क्यूँ नहीं करती? अपने क़ौम की समस्याओं को अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री गृहमंत्री या राष्ट्रपती क्यूं नहीं मिलना चाहती

जमात-ए- इस्लामी हिन्द मुस्लिम समाज का आईना? 

जमाते इस्लामी हिन्द आखिर सरकार को चैलेंज क्यूँ नहीं करती? अपने क़ौम की समस्याओं को अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री गृहमंत्री या राष्ट्रपती क्यूं नहीं मिलना चाहती? पत्रकार जब ऐसे सवाल करता है तो जमात का जवाब होता है – कि हम आप लोगों के माध्यम से सरकार तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं।

 

 

जमाते इस्लामी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काम करने का तरीका में बहुत अधिक अंतर नहीं है, आरएसएस जो भी कर रही है सरकार पर अपना वर्चस्व स्थापित कर हिंदुस्तान में अपनी हुकूमत चलाने के लिए, और जमात इस्लामी जो कर रही है अपने आपको बचाने और अपनी ज़मीन बचाने के लिए। आरएसएस कम से कम अपने पत्रकारों का खाना कपड़े के साथ साथ उनके आने जाने के खर्च का भी ख्याल रखती है लेकिन जामात इस्लामी महीने अपने पत्रकारों को एक प्लेट बिरयानी खिला अपने बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश करती है। पत्रकार भी खाने के लाइन में लग कर भूखे होने का सबूत देते हैं।

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आरएसएस का लूटने का दायरा बहुत बड़ा है, लेकिन भारतीय जामात इस्लामी, और जामते उलमा, और अन्य मुस्लिम संगठन गरीबों के नाम और मदरसों के बच्चों के जीवन यापन के नाम पर चंदा इकट्ठा  करके अपने गरोह में बन्दर बांट करते हैं।

30 वर्षों की कवरेज में मैंने जो देखा और समझा कि जमात इस्लामी ने अपने चंदे के खर्चे से न तो किसी गरीब मुस्लिम बच्चे को आईएएस आईपीएस बनाते देखा और न किसी गरीब ज़रूरतमंद बच्चे जो प्रतिभाशाली है उन बच्चों उच्च शिक्षा के लिए मदद करते देखा, हां, जामात इस्लाम उन बच्चों को मदद ज़रूर करती होगी जो जमात से जुड़े हुए सदस्य होंगे या सदस्यों परिवार होंगे, वरना मेरे जैसे पत्रकार के कहने के बावजूद एक गरीब बच्चों को एक रुपये की मदद नहीं मिली।

मैंने दो बार जमात इस्लामी के आला अधिकारी सलीम इंजीनियर से निवेदन किया, एक बहुत ही गरीब परिवार जो झारखंड के रहने वाले थे वह यहीं दिल्ली में बस गये है, वह दिल्ली के एक फैक्टरी में काम करता था और वह गम्भीर बीमारी का शिकार हो गया उसके बच्चे 12 वीं कर लिया उसके आगे के शिक्षा के लिए मैंने सलीम इंजीनियर साहब से निवेदन किया लेकिन उन्हों आगे एक ऐसे लोगो के पास भेज दिया कि तीन महीने दौड़ा कर भी उसका नर्सिंग में एडमिशन नहीं लिया, तो नालत न भेजा जाय ऐसी जमात पर, इसी प्रकार एक गरीब की बच्ची के शादी के लिए कहा शरीफ लोग है किसी के आगे हाँथ नहीं फैलाया है, लड़की के बाप की मृत्यु हो चुकी है, लड़की का रिश्ता बाप ने लगया था, अपनी गरीबी में छोटी सी दुकान चला कर अपने बच्चों का गुज़र बसर करता था उसके मरने के बाद किराये की दुकान खाली करनी पड़ी तीन बेटी, बड़ी बेटी का रिश्ता तये था उनके मदद के लिये मैं आया और फिर जामात इस्लामी के इन साहबान से बिनती की लेकिन इन्होंने उसके मदद के लिए भी इंकार कर दिया। तो धितकार न दिया जाए ऐसे जमात पर जामात के सरबराह को इस बात का भी ख्याल नहीं कि उनसे बिनती करने वाला कोई अपने निजी स्वार्थ के लिए उनके पास नही आया है, वह एक पत्रकार जो जमात की वर्षों से कॉन्फ्रेंस नियमित रूप से करता आ रहा है। इस बात का भी ख्याल नहीं रहा और हर महीने कान्फ्रेन्स और इवेंट एवं अन्य कार्यक्रम का ड्रामा कर के अपना करोड़ो का इंकमटैक्स बचाने की कोशिश करते रहते हैं, वरना वक़्फ़ का भी यह विरोध न करते यदि यह वक़्फ़ की प्रोपेर्टी पर न बैठे होते तो। सरकार, ऐसे जमात को तो बन्द ही कर दे तो बेहतर होगा। सरकार को अपने समाज को इतना तो हिसाब दे ही देते हैं कि मुस्लिम समाज इनको वाहवाही करती रहे, जैसे जेल में बंद बेगुनाह मुस्लिम कैदियों की पैरवी करना, जहां जहां दंगा होता है वहां जब पूरी शांति हो जाती है तो उस जगह जा कर दंगा पीड़ितों को संतावना देना और उन्हें कम्बल कपड़ा राशन बांटते फोटो खिंचवाने ताकि मुस्लिम समाज की वाहवाही लूटी सकें। ऐसे कामो में लाखों करोड़ों का वारा न्यारा कर अपना टीए डीए बनाना और छांद के पैसे दुनियां घूमना।

इनसे चंदे का हिसाब लेने वाला है कौन और मुस्लिम समाज तो जो इन्हें चंदा दे रहा वह अपने पुण्य के लिए दे रहा है चंदा लेने वाला उस पैसे का जो करे।

और सरकार की मुस्लिम और दलित विरोधी नीतियों की बहुत हुआ तो जंतर मंतर पर जा कर प्रोटेस्ट करके विरोध जता दिया या प्रेसक्लब में जा कर प्रेसकांफ्रेन्स करके विरोध जता दिया या फिर अपने हेड क्वाटर में माहवार प्रेसकांफ्रेस करके उस बातों को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहते है जो दुनियां जानती दुनियां ने सोशल मीडिया पर देख लिया है।  आइये दीखिये इस बार माहवार पत्रकार सम्मेलन क्या कहा है नीचे पढ़े👇👇👇👇👇👇😶

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने राजनितिक दलों से बिहार चुनावों में नफरती भाषणों, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और धन या बाहुबल के गलत इस्तेमाल से बचने की अपील की।

जमाअत ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर चिंता जताई, CAA विरोधी एक्टिविस्टों के लिए तुरंत जमानत और न्याय की मांग की।

नई दिल्ली, 01 नवंबर 2025 – आज जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कांफ्रेंस में जमाअत के उपाध्यक्ष प्रो. सलीम इंजीनियर ने बिहार विधानसभा चुनावों और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर चर्चा की, जबकि एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) के सचिव नदीम खान ने CAA विरोधी एक्टिविस्टों की बिना किसी उचित ट्रायल अपनाये हिरासत में रखे जाने पर प्रकाश डाला।

प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने बिहार के लोगों से आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में हिस्सा लेने और विवेक एवं ज़िम्मेदारी के साथ अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने की अपील की।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वोट देना सिर्फ़ एक अधिकार नहीं है, बल्कि लोकतंत्र को मज़बूत बनाने और एक न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण और विकसित समाज बनाने के लिए एक पवित्र कर्तव्य है।

उन्होंने कहा, “नागरिकों को उम्मीदवारों का मूल्यांकन उनकी ईमानदारी, विज़न और गरीबी, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय जैसे असली मुद्दों को हल करने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के आधार पर करना चाहिए, न कि भावुकतापूर्ण या विघटनकारी अपीलों के झांसे में आना चाहिए।

” उन्होंने बताया कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद सभी राजनितिक दलों से नफरती भाषणों, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और धन या बाहुबल के गलत इस्तेमाल से बचने की अपील करती है।

उपाध्यक्ष ने चुनाव आयोग से यह भी अपील की कि वे मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट को सख्ती से लागू करके निष्पक्ष, स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करें।

प्रोफेसर सलीम ने आगे कहा, ” राजनीतिक जागरूकता और सामाजिक सद्भाव सन्दर्भ से बिहार का एक गौरवशाली इतिहास रहा है।

हमें विश्वास है कि बिहार के लोग ऐसे प्रतिनिधियों को चुनेंगे जो समावेशी विकास, न्याय और शांति के लिए प्रतिबद्ध हों।”

प्रोफेसर सलीम ने हाल ही में यौन हिंसा में वृद्धि पर गहरा दुख जताते हुए तीन हालिया मामलों – महाराष्ट्र में एक डॉक्टर जो पुलिस ऑफिसर पर रेप का आरोप लगाने के बाद मृत पाई गई, दिल्ली की हॉस्पिटल वर्कर जिसे आर्मी की नकली तस्वीरों से फंसाया गया, और एक MBBS स्टूडेंट जिसे ड्रग्स देकर ब्लैकमेल किया गया, की ओर इशारा किया। इससे ज़ाहिर होता है कि किस तरह पावर, डिजिटल धोखे और गलत भरोसे का महिलाओं को शोषण करने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

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उन्होंने कहा, “ये केवल चंद घटनाएं नहीं हैं।बल्कि समाज में बड़ी खराबी के लक्षण हैं। ये भारतीय महिलाओं को रोज़ाना होने वाली असुरक्षा का पैटर्न दिखाते हैं, चाहे वे कितनी भी पढ़ी-लिखी हों या कोई भी प्रोफेशन करती हों।” NCRB की ‘क्राइम इन इंडिया 2023’ रिपोर्ट का हवाला देते हुए, जिसमें महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,48,211 मामले दर्ज किए गए हैं, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि शहरी और ग्रामीण दोनों भारत महिलाओं की सुरक्षा करने में नाकाम हो रहे हैं। प्रोफेसर सलीम ने जल्द सुनवाई, पीड़ित-केंद्रित न्याय, और पुलिस, न्यायपालिका और हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए व्यापक जेंडर-सेंसिटिविटी ट्रेनिंग की मांग की।

प्रोफ़ेसर सलीम ने आगाह किया कि केवल कानून ही नैतिक संकट को ठीक नहीं कर सकते। “पुलिसिंग की नाकामी के अलावा, यह एक आध्यात्मिक और नैतिक गिरावट है।

हमें नैतिक सुधार के लिए एक बड़े जन आंदोलन के साथ-साथ कड़े कानूनों की ज़रूरत है,” उन्होंने कहा, और समाज से सम्मान, गरिमा और ईश-भय के प्रति फिर से प्रतिबद्ध होने की अपील की।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) के सचिव नदीम खान ने 2020 के दिल्ली दंगों की साज़िश केस में आरोपी CAA विरोधी एक्टिविस्टों की बिना किसी उचित ट्रायल अपनाये हिरासत में रखे जाने पर गहरी चिंता जताई। “निर्दोष छात्र और एक्टिविस्ट बिना ट्रायल के पांच साल से ज़्यादा समय से जेल में बंद हैं।

उन्होंने कहा, “यह प्रोसेस के माध्यम से सजा देने के तुल्य है, जो इस सिद्धांत के खिलाफ है कि बेल नियम है, जेल अपवाद।” उन्होंने दिल्ली पुलिस के बेल का विरोध करने की आलोचना की, जिसमें यह दावा भी शामिल था कि दंगे “सत्ता बदलने का ऑपरेशन” थे, और इसे पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया।खान ने आगाह किया कि, “WhatsApp चैट, विरोध प्रदर्शन की स्पीच और असहमति आतंकवाद नहीं हैं। लोकतांत्रिक विरोध को क्रिमिनलाइज़ करने के लिए UAPA का गलत इस्तेमाल खुद संविधान के लिए खतरा है।” उन्होंने सेलेक्टिव ज्यूडिशियल ट्रीटमेंट की ओर भी इशारा किया, और कहा कि कुछ आरोपियों को तो बेल मिल गई है, लेकिन उमर खालिद, खालिद सैफी, गुलफिशा, मीरान, शरजील इमाम और दूसरे लोग अभी भी जेल में हैं।

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जमाअत-ए-इस्लामी हिंद और APCR ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट से बेल की सुनवाई को प्राथमिकता देने की अपील की और अधिकारियों से यह पक्का करने को कहा कि न्याय पर कोई राजनीतिक असर न पड़े। खान ने आखिर में कहा, ” असहमति की आज़ादी लोकतंत्र की आत्मा है। इसे दबाने से लोकतंत्र की बुनियाद ही खतरे में पड़ जाएगी।”

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