एक प्रेरणास्त्रोत कहानी – अब्दुल नासर की यात्रा – आश्रम से आईएएस तक का सफर।

एक प्रेरणास्त्रोत कहानी – अब्दुल नासर की यात्रा – आश्रम से आईएएस तक का सफर।

 

एस.ज़ेड . मलिक (पत्रकार)

5 साल की उम्र में पिता के  देहांत के बाद, अनाथालय में लालन पालन और वहाँ रह कर जीवन के उंचाईओं को छूना यह सोंच रखते हुए एक होनहार लड़का अपनी मेहनत और लगन से आईएएस अधिकारी बनजाता है। एक प्रेरणास्त्रोत कहानी – अब्दुल नासर की यात्रा – आश्रम से आईएएस तक का सफर।

मुश्किलों से डरकर नैया पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। इंसान के जीवन में अनेकों कठिनाइयां और मुश्किलें आती हैं लेकिन जो इंसान इन कठिनाइयों और मुश्किलों का डटकर सामना करता है नाम उसी का होता है। बचपन से लेकर वयस्क होने तक बच्चों के ऊपर उनके मां-बाप का साया बना रहता है जिसके कारण उन्हें बहुत सारी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता है। लेकिन मां बाप का साया साथ ना होने पर बच्चे अक्सर दुनिया के अंधकार में खो जाते हैं
आज की यह कहानी एक ऐसे शख्स की है जिसने अनाथालय में रहकर भी ऊंचाइयों को छुआ और एक IAS ऑफिसर के रूप में दुनिया के सामने आया। यह कहानी केरल के थालासेरी में एक अनाथालय से शुरू हुई जहां पिता का साया खो देने के बाद अब्दुल नासर ने 17 वर्ष तक अनाथालय में आश्रय लिया और अपनी मेहनत और लगन से आईएएस ऑफिसर बना।
5 साल की उम्र में ही अब्दुल के सर से पिता का साया उठ गया फिर भी उनकी मां ने मेहनत किया और 6 बच्चों के परिवार को संभाला। एक विधवा मां के ऊपर इन बच्चों की जिम्मेदारी आ चुकी थी इसलिए उनकी देखरेख के लिए उन्होंने थालासेर में नौकरी की। वह चाहती थी कि उनके बच्चे अच्छी पढ़ाई करके एक सफल इंसान बने। लेकिन एक विधवा मां के लिए इस काम को संतुलित करना इतना आसान नहीं था। इस स्थिति को देखते हुए कुछ शुभचिंतकों के समझाने पर उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे अब्दुल नासर को स्थानीय अनाथालय में भेज दिया।
अब्दुल 5 साल की उम्र में अनाथालय में भर्ती हुए। इस छोटी सी उम्र में सही-गलत और जीवन के संघर्ष के बारे में उन्हें नहीं पता था। अनाथालय में वह अकेले ही थे क्योंकि बड़ा भाई और चार बहने अम्मा के साथ रहते थे। परिवार चलाने के लिए अब्दुल की बहनें अम्मा के साथ बीड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम करती थी और बड़ा भाई मजदूर के रूप में काम किया करता था। इन सभी ने नासार से यही कहा कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित रखें। अब्दुल के लिए यह समय कठिनाइयों भरा था क्योंकि नए परिवेश में घुलना-मिलना और तालमेल बैठाना मुश्किल जान पड़ता था। फिर भी वह दिन भर कक्षाओं में समय देते थे। अल्लाह ताला में ही इन हाउस प्राइमरी और हाई स्कूल की कक्षाओं की सुविधा थी।
अब्दुल को अनाथालय में बिताते हुए 5 साल बीत गए थे। एक दिन एक आईएएस अधिकारी ने उस अनाथालय का दौरा किया। अधिकारी को देखकर अब्दुल बहुत प्रेरित हुए और उन्होंने आईएएस बनने का फैसला लिया। जब अब्दुल आईएएस अधिकारी से मिले तो उन्होंने यह पाया कि क्यों उन आईएएस अधिकारी के अंदर आत्मविश्वास भरा पड़ा था और वह बहुत चतुर भी थे। उनके एक इशारे को आसपास के लोग एक निर्देश की तरह पूरा करते थे। अब्दुल अधिकारी के इस छवि से बहुत प्रेरित हुए और 10 वर्षीय अब्दुल ने उस आईएएस अधिकारी के नक्शे कदम पर चलने की ठानी।
जब अब्दुल युवावस्था में पहुंचे तब उन्हें पैसे कमाने में अधिक रूचि होने लगी। उन्होंने अनाथालय से 30-40 किलोमीटर दूर कन्नूर के लिए यात्रा का मन बनाया। दरअसल कन्नौज होटल और रेस्टोरेंट में नौकरी करने वाले युवाओं के लिए बेहद आसान जगह थी। नासर ने कुछ दिनों तक वहां काम किया लेकिन जब एक दिन होटल के मालिक ने नासर को बिना किसी गलती के कारण डांट लगा दी तब उन्हें यह बात बहुत बुरी लगी। उन्होंने तुरंत ही अपना मेहनताना लिया और वापस अनाथालय के लिए रवाना हो गए। शिक्षा पूरी करने के लिए नासर उतने उत्सुक नहीं थे लेकिन उनके परिवार का फैसला अभी भी अडिग था।
अब्दुल ने बीए और एमए की डिग्री से संबंधित आवश्यक पुस्तकों को खरीदने के लिए STD बूथ ऑपरेटर, अखबार वितरक और डिलीवरी बॉय के रूप में पार्ट टाइम जॉब किया और पैसे बचाए। इस परिश्रम से शिक्षा पूरी करने के बाद 1995 में उन्हें केरल स्वास्थ्य विभाग में एक जूनियर हेल्थ इंस्पेक्टर के रूप में नौकरी मिली। इसी वर्ष अब्दुल ने रुखसाना से शादी की। उनकी पत्नी ने ही उन्हें आगे बढ़कर नागरिक सेवाओं के लिए प्रेरित किया।
अब्दुल बताते हैं कि अम्मा पहली महिला थी जिन्होंने मुझे अध्ययन के लिए प्रेरित किया। लेकिन जब मेरा दृढ़ संकल्प लड़खड़ाया तब रुखसाना दूसरी महिला थी जिन्होंने मुझे संभाला। वह जोर देकर कहती रही कि मुझे कलेक्टर बनना चाहिए और सामान्य से कुछ बेहतर करना चाहिए। उस वर्ष केरल राज्य सिविल सेवा कार्यकारी ने डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किए। अब्दुल ने भी पद के लिए आवेदन किया। हजारों आवेदन हो जाने के कारण अब्दुल ने यह सोच लिया कि मैंने अध्ययन नहीं किया है इसलिए मुझे नहीं चुना जाएगा। लेकिन किस्मत को कौन जानता है जूनियर टाइम स्केल की स्थिति में प्रशिक्षण परिवीक्षा और नियुक्ति को पूरा होने में लगभग 10 साल लग गए और वर्ष 2006 में अब्दुल नासर को डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया।
अक्टूबर 2017 में अब्दुल नासर को आईएएस के पद पर पदोन्नत किया गया। इस नियुक्ति के साथ ही उनके परिवार का वर्षों का श्रम फलीभूत हो गया। लेकिन एक दुख की बात यह रही कि जब अब्दुल ने आईएएस अधिकारी के पद को धारण किया तब इस मौके को जीवंत देखने के लिए उनकी मां नहीं रही। हमेशा से अपने बच्चों को एक सफल व्यक्ति के रूप में देखने की आस लगाए बैठे उनकी मां का 2014 देहांत हो गया था।
अब्दुल ने कहा की मां सबसे प्यार करने वाली महिला थी और यह उनका संघर्ष और दृढ़ संकल्प ही है जिसने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है। इस पद को ग्रहण करके जितनी प्रतिष्ठा मैं महसूस कर रहा हूं उससे कहीं ज्यादा गर्व मेरे परिवार वालों को है। इन सारे सफलताओं का श्रेय मेरी मां को जाता है। उनके प्रोत्साहन और परिश्रम के बिना मैं कभी भी आईएएस अधिकारी नहीं बन सकता था। अब्दुल को कोल्लम के तटीय इलाकों का कलेक्टर नियुक्त किया गया और वह इस नियुक्ती से बहुत गौरवान्वित है। लेकिन एक इच्छा हमेशा ही अधूरी रह गई कि उनकी दिवंगत मां यह देख पाती कि उनका अनाथालय में रहने वाला छोटा बेटा आज कितनी बड़ी ऊंचाई को छू रहा है।
अथक परिश्रम, अटूट मेहनत और लगन से भरपूर अनाथ आश्रम में पढ़ने वाला एक लड़का जिसने रेस्टोरेंट, STD बूथ, और न्यूज़पेपर वितरक का काम किया उसने अपने हुनर के दम पर IAS ऑफिसर की कुर्सी को हासिल किया। आज की युवा पीढ़ी के लिए यह एक उदाहरण है कि कड़ी मेहनत हमेशा ही फलीभूत होती है। साथ ही साथ अगर गंभीर से गंभीर चुनौतियों का डटकर सामना किया जाता है तो सफलताएं अवश्य मिलती हैं क्यूंकि सफलताओं का मार्ग इन्हीं चुनौतियों को पार करके मिलता है।
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