महिलाओं को अभी तक उनका हक नहीं दिया गया: महिला विंग, जमाअत इस्लामी हिन्द!
महिलाओं की हितैषी सरकार ने तीन तलाक़ क़ानून तो बना दिया – फिर भी महिलाएं अपने अधिकार से वंचित ?
एस. ज़ेड. मलिक
महिलाओं को अभी तक उनका हक नहीं दिया गया: महिला विंग, जमाअत इस्लामी हिन्द
नई दिल्ली, 20 नवंबर: जमाअत इस्लामी हिन्द की महिला विंग द्वारा आयोजित एक वेबिनार में प्रमुख महिला कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों के लिए एक साथ लड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने सर्वसम्मति से माना कि भारत में महिलाओं को अभी तक उनका हक नहीं दिया गया है और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त कार्रवाई की आवश्यकता है। महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी, निर्णय लेने वाली संस्थाओं और न्यायपालिका सहित सभी प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्रों में महिलाओं की कम भागीदारी, भ्रष्ट राजनेता और अधिकारी इसके कारण हैं। यह उन राजनेताओं को रास्ता दिखाने का समय है जो न केवल महिलाओं की भलाई के लिए बल्कि पूरे देश की भलाई के लिए संविधान का सम्मान नहीं करते हैं।
जमाअत इस्लामी हिन्द की महिला विंग राष्ट्रीय सचिव अतिया सिद्दीका ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कानून हैं, फिर भी समाज में हिंसा व्याप्त है। मानसिकता में बदलाव का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि समग्र प्रगति के लिए महिलाओं के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार करने की आवश्यकता है।
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा ने कहा कि भारत केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं है। यह लोगों से बना है। अगर हमें इसे महान बनाना है, तो हमें इसके लोगों के लिए काम करना होगा। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार का मुख्य कारण यह है कि लोग धन प्राप्ति को अधिक महत्व देते हैं।
एक प्रमुख अधिवक्ता अवनी चोकशी ने बताया कि महिलाओं की गरिमा के लिए अनुच्छेद 14,15,42 और 51 प्रत्येक नागरिक को अपमानजनक प्रथाओं को त्यागने का आदेश देता है। लेकिन पूर्व सीजेआई द्वारा बलात्कार के एक मामले के दौरान पीड़िता को आरोपी से शादी करने के लिए कहने जैसी घटनाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता को दर्शाती हैं। हर जगह सामंती मानसिकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान शासन में महिलाओं के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
पुरोमी महिला संगठन की डॉ. सुचरिता ने कहा कि महिलाओं के साथ काम पर या घर पर कहीं भी समान व्यवहार नहीं होता है। अत्याचार करने वालों को सजा नहीं मिलती। इसके लिए महिलाओं को संघर्ष करना चाहिए। संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रति हर महिला को जागरूक होना चाहिए।
एनएफआईडब्ल्यू की महासचिव एनी राजा ने कहा कि यह शर्म की बात है कि आजादी के 75 साल बाद मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी की गई। देश में महिलाएं अब तक की सबसे बुरी समस्याओं का सामना कर रही हैं। नौकरियों में शोषण और मजदूरी में असमानता व्याप्त है। पुरुषों को महिलाओं के मंच में शामिल होने की आवश्यकता है ताकि वे महिलाओं की समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील बन सकें और अपना दृष्टिकोण बदल सकें।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में जमाअत इस्लामी हिन्द की महिला विंग की राष्ट्रीय सचिव रहमतुन्निसा ने जोर देकर कहा कि वेबिनार पुरुषों के खिलाफ नहीं बल्कि अक्षम प्रणाली के खिलाफ है। यदि महिलाओं को जीने का अधिकार एवं सम्मानजनक जीवन व्यतीत करने नहीं दिया जाता है और सार्वजनिक मामलों में शामिल नहीं किया जाता है तो पुरुषों सहित सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ईमानदार और न्यायप्रिय महिलाओं को निर्णयकारी संस्थाओं में साहस के साथ आना चाहिए। इसके लिए शिक्षा पहला कदम है लेकिन सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं की तुलना में मूर्तियों पर अधिक खर्च कर रही है। उन्होंने निष्कर्ष में कहा कि यह सभी की जिम्मेदारी है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए अधिकार, शिक्षित और विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की जिम्मेदारी है।
महनाज़ इस्माइल (कार्यक्रम संयोजक), कासीमा शाहीन, डॉ. ज़ेबैश फिरदौस, तूबा हयात और फ़ख़ीरा तबस्सुम ने भी सभा को संबोधित किया।

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