मिल्लत के नाम एक पैगाम 

 मिल्लत के नाम एक पैगाम 

इत्तिलाये बिरादराने मिल्लत – दुनियां में मुसलमानो की गिरती हालात के मद्देनजर आपका तवज्जो चाहता हूं, लेहाज़ा मुझे अल्लाह की ज़ात से उम्मीद है की मेरे इस इरादे पर अमल करें या करें लेकिन एक बार अपने आप मे मंथन ज़रूर करेंगे।
1 – हम सब कहने के लिए ईमान वाले अलमुस्लेमीन वलमुसलमात उम्मते मोहम्मदिया हैं, जैसा की हम अपने बुज़ुर्गों से सुनते आ रहा हैं की हम विशेष कर मलिक जो सैयद बिरादरी में आते हैं और हम अहले बैत भी हैं , यह हम बदकिस्मती कहें या स्वार्थ या मौजूदा हालात के तहत अपने आपको निचले तबके यानी ओबीसी (अन्य पिछड़ी जातिओं के पायदान पर अपने आपको खड़ा कर के बाज़ाप्ते सरकार के यहां पंजीकृत यानी रजिस्ट्रेशन भी करा लिया – इसलिए मेरा मानना है कि क़ौम ए मोहम्मदिया विशेष कर मेरी बिरादरी मेरे मिल्लत के लोग – आज आपस मे न इत्तिफ़ाक़ रखते हैं ना इत्ततिहाद में हैं, रहें भी कैसे,, हमारे  अंदर जो दुनियावी लालच आ गई , अल्लाह का फरमान है हर मोमिन मर्द व औरत को एक दूसरे को फायदे पहुंचाने के लिए पैदा यानी दुनियां पर भेजा है दुनियां में धन जमा करने के लिए नहीं बल्कि आपसे कम अक़ल रखने वालों और बेसहारा गरीब लाचार मजबूर लोगों को मदद करने के लिए लेकिन हम खुदा के एहकाम को भूल कर दुनियाँ कमाने में  अपना क़ीमती वक़्त को लगा रहे हैं , दुनियां में रहना है तो ऐसा तो करना पडेगा ही – इसलिए की हम दुनियाँ की प्रयोगिता में पिछड़ न जायें और इसी सोंच के कारण हमारे अंदर ईर्ष्या , द्वेष ने जन्म ले कर हमें दीनी आइतबार से मुआशरे में हमारे मुजाहादियत को समाप्त कर इतना गिरा दिया की हम मुंसिफ न हो कर मुजरिम हो गये। और हाँथ फैलाने वाले हो गये। जिसकी वजह कर आज हम माशियत के नुख्ते नज़रिया , आर्थिक दृष्टिकोण economically कंडीशन से कमज़ोर हो गये हैं । बावजूद इसके हमारे बिरादरी के अंदर अपने आप में घमंड , जलन , हसद 95 प्रतिशत यानी फीसद में देखने  को मिलता है।  और तो और , इनसब बुराइयों के अलावा खास कर गांव देहातों में खानदान के लोग अपना वक़्त अधिकतर एक दूसरों को नीचा दिखाने और एक दूसरे को गिराने और एक दूसरे को एक दूसरे का रास्ता रोकने में लगाते हैं।  क्या यह आदत सही है ?- जबकि अल्लाह ने मलिक बिरादरी को एक ख़ास रुतबे से नवाज़ा है, जबकि मलिक बिरादरी 80 के दशक से पहले अशिक्षित होने के बावजूद खानदानी विरासती तजुर्बा, ज़मींदाराना हाव-भाव और रईसाना ठाट के साथ साथ एक दूसरे से हमदर्दी और एक दीसरे की मदद करने के लिए सभी के अंदर वह जज़्बा देखने मिलता था – लेकिन ऐसा नहीं है की आज यह जज़्बा लोगों के अंदर से खत्म हो गया गया है – वह जज़्बा आज भी है लेकिन कमी आयी है इसे तस्लीम करना पड़ेगा। कल के बनिस्बत आज बिरादरी के कुछ लोगों के अंदर नयी सोंच के साथ समाज में कुछ नया करने का मन बना है , और लोग कर रहे हैं।  बहुत ख़ुशी और फ़क़्र की बात है।  लेकिन इसी काम को अगर एक इत्तिहाद और इत्तिफ़ाक़ के साथ निज़ाम यानी बेहतर व्यवस्था management के साथ अगर समाज में ज़रूरतनंदों की मदद की जाए तो बेहतर होगा जैसे अभी मेरी नज़र में बिहार अंजुमन और रियाद मलिक वेफेयर सोसायटी रहबर कोचिंग सेंटर जो समाज के उन्नति के लिए काम कर रहे हैं वह सराहनीय है ,, बिहार अंजुमन और रहबर कोचिंग गरीब के टैलेंटेड बच्चों को सेलेक्ट करता है और सरमायादारों से सम्पर्क कर उन्हें उन बच्चों का लिस्ट सौंप देते हैं जो बच्चे इंजिनियर, डॉक्टर, टीचर,आईएएस, आईपीएस के लायक है उन्हें उन सरमायादारों से उन बच्चों के कोर्स के अवधी यानी मेयारी वक़्त तक उनके सलाहियत के मुताबिक़ उनका खर्च उठाने की ज़िम्मेदारी लेने की आजज़ी यानी आग्रह करते है और सरमायादार ऐसा करते है की अपने हस्बे औक़ात एक दो बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाते हैं, जैसे कनाडा के केयरलीक फाउंडेशन, और आतिना केयर फाउंडेशन बिहार शरीफ में गरीब ज़रूररतमन्द लोगों को एक महीने का राशन और दो बच्चों को स्कॉलरशिप दे रही है। इसी तरह हमारी बिरादरी भी चाहे तो हमारे क़ौम में कोई भी इंसान न भिखारी रहेगा और न कोई मोहताज रहेगा, न बेरोज़गार रहेगा अगर हमारे बिरादरी के लोग सवा करोड़ सरदारों के जैसे देने वाले बन जायें तो – भारत में 20 करोड़ हमारी क़ौम अलमुस्लीमीन -वलमुसलमात एक मन बना लें मात्र 1 रुपया एक आदमी पर हर घर में निकालें औसतन हर घर में 3 आदमी मान के चलें – 3 रुपया , 20 करोड़ की आबादी के हिसाब से तीन रुपिया एक घर से निकलता तो 20 गुना 3 रुपया = 60 करोड़ यानी एक दिन में 60 करोड़ इसे 30 दिन से गुणा करें तो 180 करोड़ आपके बैतुमाल में आ जाता है, और 180 करोड़ को 12 महीना से मल्टीपलाई करें तो 2.160 करोड़ रुपया जमा होता है। यानी 2160 करोड़ एक साल में बैतुलमाल में जमा हो जाता है। इसके अलावा जो आपके धर्म के मुताबिक़ फितरा ज़कात, सदक़ा, का पैसा भी उसी बैतूल माल में जमा करें, तो आपके बैतुलमाल में हर साल औसतन 200 करोड़ जमा होता है यानी हर साल आपके बैतूल मॉल में लगभग 25 से 3000 करोड़ जमा होता है. इसमें से आप 1-1 करोड़ रुपया भारत के प्रत्येक नागरिकों को वितरित कर दें – भारत का हर व्यक्ति रोज़गारयुक्त हो जाएगा सबकी बेरोज़गारी दूर हो जायेगी। फिर मुस्लिम क़ौम मुंसिफ हो जाएगी। भारत की जनता का विश्वास मुसलमानो पर होगा। मुसलमान भारत सरकार का पैटर्न यानी सहयोगी होगा आरएसएस और जमात इस्लामी हिन्द , जमात उलमा हिन्द , ज़कात फाउंडेशन जैसी संस्था समाप्त हो जाएगी।

व्यवस्था कैसे करें ?  

निज़ाम अर्थात व्यवस्था यानी management कैसे करेंगे – जैसे हज़रत उम्र बिन ख़त्ताब रज़ि० ने अपने ख़िलाफ़त के  ज़माने में किया था – जहाँ जहां भी मुसलमानो की बस्ती थी , वहाँ वहां उस बस्ती की आबादी के हिसाब से हर बस्ती में बैतुलमाल की व्यवस्था की और बैतूल माल अर्थात बैंक आपके हर एक ब्लॉक में हो और इसका रीज़नल ऑफिस जिला में होना चाहिए। और इस बैतुलमाल का हेड ऑफिस हर राज्य के राजधानी में होना चाहिए और इसका हेड ऑफिस देशकी राजधानी में होनी चाहिए और इस इस बैतूल माल को भारतीय रिजर्ब बैंक से जोड़ना चाहिए ताकि कम्युनिटी का सरकार के हिस्सेदार हो – भारत में होने के नाते और रिज़ेब बैंक से लाभ भारतीय अन्य समाज के हित की खातिर आप इंट्रेस्ट यानी लाभ का कारोबार कर सकते हैं परन्तु अपने समाज के लिए बिना ब्याज के लोन दे कर समय अवधि पर वसूल कर सकते हैं – लेकिन किसी गैर मुस्लिम समाज या व्यापारी समाज से बे झिझक इंट्रेस्ट के साथ कारोबार कर सकते हैं। ऐसे कर्यों से आप सरकार के सहयोगी बन कर पैरलर गोवेर्मेंट चला सकते हैं। इसका अन्य लाभ व ब्याज आप सरकार को देश के विकास में दे सकते हैं जिससे आकार आपकी एक प्रकार से क़र्ज़दार रहेगी। व्यवस्था पर हम मंथन कर उसकी कार्यपालिका तय कर सकते हैं।
एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
9891954102

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