उच्चन्यायालय के आदेश पर दिल्ली गेट क़ब्रिस्तान के बॉण्डरी से अवैध क़ब्ज़ा हटा
दिल्ली गेट क़ब्रिस्तान के बॉण्डरी से सटे अवैध कब्जे पर दिल्ली उच्च न्यायालय का बुलडोजर, 70 मीडिया दफ्तरों पर चला बुलडोज़र, लगभग 500 परिवार रास्ते पर !!
दिल्ली गेट क़ब्रिस्तान के बॉण्डरी से सटे अवैध कब्जे पर दिल्ली उच्च न्यायालय का बुलडोजर, 70 मीडिया दफ्तरों पर चला बुलडोज़र, लगभग 500 परिवार रास्ते पर !!
उच्चन्यायालय के आदेश पर दिल्ली गेट क़ब्रिस्तान के बॉण्डरी से अवैध क़ब्ज़ा हटा एक गुनाहगार की सजा सैंकड़ो को भुगतना पड़ता है।
दिल्ली गेट क़ब्रिस्तान के बॉण्डरी से सटे अवैध कब्जे पर दिल्ली उच्च न्यायालय का बुलडोजर, 70 मीडिया दफ्तरों पर चला बुलडोज़र, लगभग 500 परिवार रास्ते पर !!
एस. ज़ेड. मलिक (स्वतंत्र पत्रकार)
नई दिल्ली – आईटीओ स्थित इंडियन नेशन बिल्डिंग के पीछे गली में दिल्ली गेट क़ब्रिस्तान के गली वाले गेट पर अमन न्यूज़ वाले अस्लाम बरनी का अवैध कब्जे को हटाने को लेकर वरिष्ठ समाज सेवी अब्दुल अमीर अमीरों से कहा सुनी हो गई और अब्दुल अमीर अमीरों ने सीधे दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाज़े पर दस्तक दे दी और दिल्ली उच्च न्यायालय ने इतना जल्दी संज्ञान ले लेगा यह किसी को उम्मीद नही थी, यह बात हज़म नही हो रही है कि क़ब्रिस्तान का मामला वह भी क़ब्रिस्तान के बॉण्डरी से सटे अवैध कब्जे का मामला वह भी क़ब्रिस्तान के बाहर बॉण्डरी पर? उच्च न्यायालय पर आखिर किसका दबाव पड़ा कि न्यायालय ने आनन फानन में अवैध कब्जे को डिमोलिश आदेश दे दिया और इतना जल्दी बुलडोज़र ने अपना काम दिखा दिया, की देखते देखते इंडियन नेशन बिल्डिंग के पीछे से ले कर पुलिस मुख्यालय के पीछे तक बुकम्प के समान तहस नहस कर दिया। इसी सील सिले में दिल्ली उच्चन्यायालय द्वारा अवैध कब्जे को हटवाने वाले वरिष्ठ समाज सेवी अब्दुल अमीर अमीरों के साथ आईना इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार एस. ज़ेड. मलिक की बात-चीत।
पत्रकार – ऐसा क्या हुआ कि आप ज़िला सत्र न्यालय छोड़ कर आपको सीधे उच्च न्यायालय पहुंच गये? क्या आप स्वयं एक अधिवक्ता हैं या किसी पावरफुल अधिवक्ता के कहने पर आप उच्चन्यायालय अपनी फ़रयाद ले कर पहुंच गये?
समाज सेवी – नही मैं अधिवक्ता हुन और न मैं किसी बड़े अधिकताओं के कहने पर उच्चन्यायालय गया, में एक सामाजिक कार्यकर्ता हूँ, इतनी जानकारी तो रखता हूँ किस काम के लिये कहां जाना चाहिये , कहां नहीं, मेरी समझ मे आया कि जल्द न्याय लेना है तो उच्चन्यायालय में ही जाना चाहिये इसलिये मैं उच्चन्यायालय अपनी फरियाद ले कर गया।
पत्रकार – सबसे बड़ी बात जो जगह पिछले 30-35 वर्षों से मीडिया कर्मियों ने क़ब्ज़ा किया हुआ था उसे हटाने की किसी ने हिम्मत नहीं जुटाई और आपने चैलेंज कर के 70 मीडिया दफ्तरों पर 2 से 3 महीने में बुलडोज़र चलवा कर तहस नहस करवा दिया? आखिर किसने आआपकि दुखती रग पर हाँथ रख दिया और आपने इतना बड़ा कदम उठा लिया?
समाज सेवी – सबसे बड़ी बात की आप यदि जानकार हैं और समाज के बीच रहते और आये दिन समाज के हर अच्छे और बुरे से सम्बन्ध है, और आप समाज के अच्छे बुरे लोगों से आये दिन झुझते रहते हैं तो आपको एक अच्छे अधिवक्ता से अधिक जानकारी हो जाएगी, आपको किसी का खुशामद करने की आवश्यकता नहीं, रही मुझे क़ब्रिस्तान के मामले को अपने हाँथ में लेने की तो अमन न्यूज़ वाले अस्लाम बरनी जो टाइम्स ऑफ इंडिया के बिल्डिंग के पीछे क़ब्रिस्तान के बॉण्डरी गली वाला गेट को ही घेर कर अपना दफ्तर बना लिया था। जब उनसे उक्त गेट को छोड़ने का निवेदन किया तो वह धितकारने लगे और मुझे ही चैलेंज कर दिया कि खाली कर के दिखा दो, जहां वर्षो से हमारे पूर्वजों की क़ब्रे वहां है हमे एक गेट से कब्रों की दूरी काफी हो जाती है, कब्रों के ऊपर चहड़ कर हमें अपने पूर्वजों के कब्रों पर जाना पड़ता है ऐसे में यदि गली वाला गेट खुल जायेगा तो हमे अपने पूर्वजों के कब्रों पर जाने के लिये कम से कम दूसरों कब्रों पर चहड़ कर जाना तो नही पड़ेगा। बात बरनी की थी अब है कि ” जौ के साथ घुन तो पिसा ही जाता है” यह कहावत चिरतार्थ है।
पत्रकार – आप समाज सेवक हैं समाज की कठनाइयों को दूर करने के प्रयासरत रहते हैं, आपको अवैध क़ब्ज़ा हटाने के लिये न्यायपालिका पालिका से शिकायत करते समय आपको एक बार भी यह विचार नही आया कि 70 दफ्तरों पर यदि बुलडोज़र चल जाएगा तो इसमे बे गुनाह लोगों का कम से कम 500 परिवार भी बेरोजगार हो जायेगा? यह लोग कहां जायेंगे, गुनाहगार तो एक व्यक्ति है पर 500 को सजा क्यूँ?
समाज सेवी – जनाब मैन पहले ही कहा कि “जै के साथ घुन भी पीसा जाता है ” यदि जिस दिन बरनी से क़ब्ज़े हटाने को लेकर मुझसे बहंस हो रही थी उस दिन वहां इकट्ठा लोग बरनी को गेट खाली कराने पर दबाव बनाते तो औरों को यह दिन देखना नहीं पड़ता।
यह बात तो सौ फीसदी सत्य है कि बुराई को देख कर हर लोग खामोश हो जाता है नतीजा बुराई सर चहड़ जाती है और सभी के लिये घातक बन जाती है। और फिर लिगों को रोना पड़ता है।
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