hunger-and-malnutrition भारत के सामने एक जटिल चुनौती

भूख तब एक गंभीर समस्या में परिवर्तित हो जाती है जब निम्नलिखित कारक सामने आते हैं:

निर्धनता: देश की एक बड़ी आबादी अत्यंत गरीबी में जीवनयापन करती है, जिसके पास गुणवत्तापूर्ण भोजन पर खर्च करने के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं होती।

भूख और कुपोषण: भारत के सामने एक जटिल चुनौती

 

सैयद मुहम्मद शाहिद इक़बाल

भूख मानव शरीर की वह मूलभूत और प्राकृतिक अनुक्रिया है जो ऊर्जा एवं पोषक तत्वों की पूर्ति की मांग करती है। यह एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, किंतु जब यह नियमित रूप से संतुष्ट न हो पाए, तो यह एक विकट सामाजिक-आर्थिक समस्या का रूप धारण कर लेती है। भारत जैसे विकासशील देश के समक्ष यह एक गहन और बहुआयामी चुनौती बनी हुई है।

Addsaudi01

भूख: एक समस्या के रूप में

भूख तब एक गंभीर समस्या में परिवर्तित हो जाती है जब निम्नलिखित कारक सामने आते हैं:

· खाद्यान्न की उपलब्धता में कमी: देश या क्षेत्र विशेष में पर्याप्त मात्रा में भोजन का उत्पादन न होना।

· पोषण का अभाव: भोजन उपलब्ध होने के बावजूद उसमें आवश्यक विटामिन, खनिज और प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों की कमी होना।

· आर्थिक विषमता: गरीबी और आय की असमानता के चलते लोगों के पास पौष्टिक भोजन खरीदने की क्षमता का अभाव होना।

· विपदाएँ और संकट: बाढ़, सूखा, युद्ध या आर्थिक मंदी जैसी स्थितियों में खाद्य आपूर्ति श्रृंखला का बाधित होना।

· असमान वितरण प्रणाली: उत्पादित भोजन का देश के विभिन्न हिस्सों में समान रूप से वितरण न हो पाना।

· तंत्रगत खामियाँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसे सुरक्षा जाल में भ्रष्टाचार और अक्षमता के कारण लाभ का वांछित लाभार्थियों तक न पहुँच पाना।

भारत में व्यापक भूख के प्रमुख कारण

भारत में भूख की स्थिति के पीछे अनेक जटिल और गहन कारण जिम्मेदार हैं:

1. निर्धनता: देश की एक बड़ी आबादी अत्यंत गरीबी में जीवनयापन करती है, जिसके पास गुणवत्तापूर्ण भोजन पर खर्च करने के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं होती।

2. कृषि पर जलवायु की निर्भरता: अनियमित मानसून, सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएँ फसल उत्पादन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

3. योजनाओं का अप्रभावी क्रियान्वयन: कई कल्याणकारी योजनाएँ कागजों तक सीमित रह जाती हैं या फिर उनका लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाता।

4. कुपोषण का दुष्चक्र: अपर्याप्त और असंतुलित आहार के कारण उत्पन्न कुपोषण शारीरिक और मानसिक विकास को अवरुद्ध करता है, जिससे रोजगार पाने की क्षमता प्रभावित होती है और गरीबी बनी रहती है।

5. जलवायु परिवर्तन: दीर्घकाल में जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादकता के लिए एक गंभीर खतरा बनकर उभर रहा है।

6. क्षेत्रीय विषमताएँ: देश के विभिन्न राज्यों और within राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों के बीच विकास की खाई है, जिसके कारण कुछ क्षेत्र अधिक पिछड़े हुए हैं।

7. भ्रष्टाचार: योजनाओं के लिए आवंटित धनराशि का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।

8. शिक्षा एवं रोजगार का अभाव: शिक्षा और कौशल की कमी लोगों को बेहतर रोजगार पाने से रोकती है, जिससे उनकी क्रय शक्ति सीमित रह जाती है।

9. लघु एवं सीमांत जोतों की चुनौतियाँ: देश के लाखों किसान छोटी जोतों पर निर्भर हैं, जहाँ मिट्टी की उर्वरता में गिरावट, सिंचाई की समस्या और बाजार तक पहुँच का अभाव उत्पादकता को सीमित करता है।

10. बढ़ती बेरोजगारी: उच्च बेरोजगारी दर, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, लोगों की भोजन खरीदने की क्षमता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।

11. PDS प्रणाली में कमियाँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार, पात्रता संबंधी त्रुटियाँ और तकनीकी खामियाँ हैं, जिससे अनाज का वितरण प्रभावित होता है।

12. प्रोटीन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का संकट (छिपी भूख): PDS में दालों जैसे प्रोटीन स्रोतों का अभाव और स्कूली भोजन में अंडे जैसे पूरक आहार को शामिल न करना एक बड़ी कमी है। इसके अलावा, आयरन, आयोडीन, जिंक और विटामिन्स की कमी (‘छिपी भूख’) एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।

 

भारत में भूख की स्थिति: एक सांख्यिकीय विश्लेषण

भारत में भूख और कुपोषण की स्थिति अत्यंत गंभीर बनी हुई है। वैश्विक भूख सूचकांक (GHI) 2024 में भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर है, जिसका स्कोर 27.3 ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।

‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति’ (SOFI) 2024 रिपोर्ट के अनुसार:

· भारत में लगभग 19.5 करोड़ (194.6 मिलियन) लोग कुपोषण का शिकार हैं, जो यूके, फ्रांस और जर्मनी की संयुक्त आबादी के बराबर है।

· देश की लगभग 55.6% आबादी (करीब 79 करोड़ लोग) एक पौष्टिक आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ है।

· पाँच वर्ष से कम आयु के 44% आदिवासी बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं।

यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि भारत ने वर्ष 2011 के बाद से आधिकारिक तौर पर गरीबी के आँकड़े जारी नहीं किए हैं। वर्ष 2017-18 का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSSO) रिपोर्ट सरकार द्वारा प्रकाशित नहीं की गई।

एक विरोधाभासी स्थिति यह है कि देश के पास इस संकट से निपटने के लिए संसाधन मौजूद हैं। जिस देश का बैंकिंग तंत्र 15.5 लाख करोड़ रुपये के कॉर्पोरेट ऋणों को माफ कर सकता है और रिजर्व बैंक 16,600 डिफॉल्टरों के साथ समझौता कर लाखों करोड़ रुपये माफ कर सकता है, उसके पास भूख और कुपोषण मिटाने के लिए धन की कमी नहीं है। यह एक प्राथमिकता तय करने का मामला है।

वैश्विक भूख सूचकांक (GHI):

GHI भूख को मापने का एक बहुआयामी उपकरण है। इसकी गणना निम्नलिखित चार संकेतकों के आधार पर की जाती है:

संबंधित खबरें पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें

http://www.mpnn.in

1. अल्पपोषण (Undernourishment): जनसंख्या का वह प्रतिशत जिसे पर्याप्त कैलोरी युक्त भोजन नहीं मिल पाता।

2. शिशु दुर्बलता (Child Wasting): पाँच वर्ष से कम उम्र के उन बच्चों का प्रतिशत जिनका वजन उनकी लंबाई के हिसाब से कम है। यह तीव्र कुपोषण को दर्शाता है।

3. शिशु अवरोधन (Child Stunting): पाँच वर्ष से कम उम्र के उन बच्चों का प्रतिशत जिनकी लंबाई उनकी आयु के हिसाब से कम है। यह दीर्घकालिक कुपोषण का सूचक है।

4. शिशु मृत्यु दर (Child Mortality): पाँच वर्ष की आयु पूरी करने से पहले मरने वाले बच्चों का प्रतिशत, जो कुपोषण और अस्वच्छ परिस्थितियों का प्रतिफल है।

GHI 2024: भारत के लिए चिंता के संकेत

GHI 2024 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों में भारत के लिए कई चिंताजनक बातें सामने आई हैं:

· भारत की 13.7% आबादी कुपोषित है।

· 35.5% बच्चे स्टंटिंग (अवरोधन) के शिकार हैं।

· 18.7% बच्चे वेस्टिंग (दुर्बलता) से पीड़ित हैं।

· 2.9% बच्चे अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले ही मृत्यु का शिकार हो जाते हैं।

इस स्थिति के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों में शामिल हैं:

· पीढ़ीदर-पीढ़ी कुपोषण का चक्र: कुपोषित माताओं के यहाँ जन्म लेने वाले बच्चों का कम वजन के साथ पैदा होना और उनका कुपोषण जारी रहना।

· आर्थिक असमानता: GDP में वृद्धि के बावजूद, प्रति व्यक्ति आय ($2,485) वैश्विक औसत से काफी कम है और आय की खाई अत्यधिक व्यापक है।

· खाद्य मुद्रास्फीति: मौसम की मार और फसलों को नुकसान के कारण खाद्य महँगाई में वृद्धि ने पौष्टिक भोजन की सामर्थ्य को और कम कर दिया है।

· संवैधानिक दायित्व में चूक: संविधान का अनुच्छेद 47 राज्य को लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने का निर्देश देता है। वर्तमान स्थिति इस दायित्व के पालन में एक चूक को इंगित करती है।

समाधान के मार्ग: एक बहु-स्तरीय दृष्टिकोण

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक समग्र और समन्वित रणनीति की आवश्यकता है:

1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सुदृढ़ करना: PDS, PMGKAY और ICDS जैसे कार्यक्रमों की पहुँच और दक्षता बढ़ानी होगी। ‘एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड’ योजना का प्रभावी क्रियान्वयन और तकनीकी खामियों को दूर करना जरूरी है।

2. कृषि में विविधता और निवेश: पोषक अनाजों (जैसे मोटे अनाज) और दालों के उत्पादन को बढ़ावा देकर टिकाऊ खाद्य प्रणाली विकसित करनी होगी। छोटे और सीमांत किसानों पर विशेष ध्यान देना होगा।

3. मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना: गर्भवती महिलाओं और बच्चों के पोषण, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी।

4. पूरक आहार को बढ़ावा: आंगनवाड़ियों और मध्याह्न भोजन में अंडे, दूध, फल आदि को शामिल करके सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करनी होगी।

5. रोजगार और आय सृजन: MGNREGA जैसी योजनाओं को और प्रभावी बनाकर ग्रामीण आय में वृद्धि करनी होगी।

6. लिंग और जलवायु संवेदनशीलता: पोषण पर लैंगिक असमानता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनानी होंगी।

सरकारी पहल

भारत सरकार ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण योजनाएँ शुरू की हैं:

और खबरों के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇👇👇

http://www.ainaindianews.com

· राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: लक्षित समूहों को कानूनी अधिकार देकर सब्सिडीयुक्त अनाज उपलब्ध कराना।

· पोषण अभियान (POSHAN Abhiyan): स्टंटिंग, कुपोषण और एनीमिया को कम करने पर केंद्रित एक व्यापक अभियान।

· मध्याह्न भोजन योजना: स्कूली बच्चों के पोषण स्तर और शिक्षा में नामांकन को सुधारना।

· ईट राइट इंडिया आंदोलन: FSSAI द्वारा संचालित, जिसका उद्देश्य लोगों को सही आहार के प्रति जागरूक करना है।

· खाद्य समृद्धिकरण (Food Fortification): चावल, दूध, नमक आदि में आयरन, आयोडीन, विटामिन्स मिलाकर उनके पोषण मूल्य को बढ़ाना।

· एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS): छह सेवाओं—पूरक पोषण, टीकाकरण, स्वास्थ्य शिक्षा, स्वास्थ्य जाँच, पूर्व-शिक्षा और रेफरल सेवाओं—के माध्यम से मातृ-शिशु कल्याण को सुनिश्चित करना।

अम्मा रसोई: एक सफल मॉडल

तमिलनाडु में शुरू की गई ‘अम्मा रसोई’ योजना एक अनूठी और सफल पहल है, जिसने शहरी गरीबों और दैनिक मजदूरों को अत्यधिक सस्ते दरों (₹5-₹10) में पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया है। इसकी सफलता को देखते हुए अन्य राज्यों जैसे  राजस्थान (‘इंदिरा रसोई’) ने भी इसी तर्ज पर योजनाएँ शुरू की हैं। यह मॉडल सीधे तौर पर तात्कालिक भूख मिटाने में एक कारगर हस्तक्षेप साबित हुआ है।

निष्कर्ष

भूख और कुपोषण की चुनौती केवल खाद्यान्न उपलब्ध कराने तक सीमित नहीं है; यह आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, लिंग-समानता और सुशासन से जुड़ा एक जटिल मुद्दा है। इससे निपटने के लिए आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक न्याय और मानवीय संवेदनशीलता पर आधारित एक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। तभी भारत अपने संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए एक ‘कुपोषण-मुक्त’ राष्ट्र बन सकेगा।

ZEA
Leave A Reply

Your email address will not be published.