राहुल की महत्वकांक्षी भारत जोड़ो यात्रा आज से

जब भी सरकारें बदलती है, वहां सरकारें अपनी मर्ज़ी के अनुकूल महकमा में अपने सेवक की व्यावस्था कराती है।

चरैवेति चरैवेति! चलते रहो, चलते रहो। चलने से ही अनुभव होगा। अनुभव से ही रास्ते मिलेंगे। कांग्रेस थम गई थी तो उसे यह दिन देखना पड़े।

राहुल की महत्वाकांक्षी भारत जोड़ो यात्रा आज से

शकील अख्तर

राहुल मेन स्ट्राइकर और दिग्विजय सिंह उनके मुख्य सहयोगी। मूव बनाने वाले। बुधवार, 7 सितंबर से शुरू हो रही कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का अगर यही संयोजन रहता है तो आप कुछ बेहतरीन गोल देख सकते हैं। भाजपा का गोल पोस्ट ध्वस्त होते हुए भी। यात्राएं भारत में हमेशा प्रभावित करती रही हैं। चरैवेति चरैवेति! चलते रहो, चलते रहो। चलने से ही अनुभव होगा। अनुभव से ही रास्ते मिलेंगे। कांग्रेस थम गई थी तो उसे यह दिन देखना पड़े।
यात्रा के लिए अगर आप भारत के सम्पूर्ण परिदृश्य पर निगाह घुमाएं तो सर्वाधिक उपयुक्त पात्रों में राहुल नजर आएंगे। यात्रा के लिए और खासतौर से ऐसी लंबी पद यात्रा के लिए सबसे जरूरी चीज होती है उत्साह, उमंग। वह कम नेताओं में ऐसी है जैसी राहुल में नजर आती है। जोश के साथ यात्रा पर निकलना।
ऐसी ही यात्रा इस भारत जोड़ो यात्रा के राष्ट्रीय संयोजक दिग्विजय सिंह ने 2018 में की थी। तख्ता पलट यात्रा। नाम तो नर्मदा परिक्रमा था। मगर काम राजनीतिक किया। 15 साल की मजबूत भाजपा सरकार को मध्य प्रदेश से उखाड़ दिया था। वह तो कांग्रेस है जहां विश्वासघात ही सबसे बड़ा सिद्धांत है। तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उस सिद्धांत का पालन किया और भाजपा को सरकार बेच आए। राहुल गांधी ने अभी यात्रा की तैयारियों के सिलसिले में एक बैठक में कहा था कि बीस बीस करोड़ रुपए देकर विधायक उठा लिए। राहुल को अपनी इस यात्रा में भी सावधान रहना होगा। साथ के लोगों में से ही कुछ आदतन धोखेबाज लोग नकारात्मक खबरें फैलाएंगे। वे ऐसे मीडिया को भी राहुल के आसपास प्लांट करेंगे और खुद भी ऐसी खबरें मीडिया को उपलब्ध करवाएंगे जिससे यात्रा की गंभीरता नष्ट हो और राहुल मजाक बनें। पहली खेप में ही ले जाए गए पत्रकारों में चर्चा है कि उनके साथ कुछ ऐसे लोगों को भी ले जाया गया जिनका मीडिया भी कांग्रेस में प्रतिबंधित था। और उनका नाम लिस्ट में पहले नंबर पर है। लेकिन यह तो कांग्रेस की पुरानी परंपरा है। उदयपुर भी ऐसे बहुत सारे लोगों को ले जाया गया था जिनके अखबार या टीवी चैनल का स्वामित्व ही संघ परिवार या प्रतिक्रियावादी संगठनों के पास है। कांग्रेस को दक्षिणपंथियों से बहुत प्यार है। और प्रगतिशीलों से उन्हें डर लगता है।
आज कांग्रेसी सवाल उठा रहे हैं कि दूरदर्शन ने राहुल गांधी की महंगाई विरोधी रैली नहीं दिखाई। मगर शाम को उसका पोस्टमार्टम करने के लिए उस पर डिबेट आयोजित कर दी। कांग्रेसी यह भूल जाते हैं कि इस दूरदर्शन में उन्होंने जिन लोगों को संरक्षण दिया वही यह काम कर रहे हैं। वाजपेयी सरकार के समय लालकृष्ण आडवानी ने बाकी मीडिया में तो अपने आदमी घुसाए ही दूरदर्शन में भी टाप पोस्टों पर अपने आदमी लगा दिए। उस समय कांग्रेस और लेफ्ट ने प्रेस कान्फ्रेंस करके आरोप लगाया कि बाहर की इन भर्तियों से दूरदर्शन के पत्रकार और अधिकारियों में भारी नाराजगी है। कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं ने नई भर्ती वालों की सेलरी स्लिप भी जारी करते हुए कहा कि इन्हें कितनी ऊंची तनखाओं पर लाया गया है।
मगर 2004 में सरकार बदल गई। यूपीए की सरकार आ गई। जयपाल रेड्डी उस सरकार के पहले सूचना प्रसारण मंत्री बने। जब उनसे पूछा गया कि दूरदर्शन में क्या करेंगे? तो गुस्सा हो गए। बोले क्या मेरा काम यही देखना रह गया है कि कौन लगाया गया और क्यों? मैसेज क्लीयर था। जिसको बने रहना है रहो। मगर एक टीवी पत्रकार जिसे सबसे टाप पर लाया गया था वह छोड़ गया। एक महिला पत्रकार काफी दिनों तक रहीं। और बाद में मीरा कुमार के साथ चली गईं। कुछ आराम से रह गए। पूरे पांच सूचना प्रसारण मंत्रियों के साथ काम किया। सबको खुश रखा। और 2014 में जब सरकार गई तो अखबार में लेख लिखा कि ये कांग्रेस के मंत्री केवल अपना प्रचार चाहते थे। उन दस सालों के दौरान दो बड़े सरकारी चैनल भी लांच हुए। लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी। दोनों में सैंकड़ों लोगों की भर्ती हुई। भर्ती करने वाले कांग्रेस और लेफ्ट के लोग थे और भर्ती होने वालों में से ज्यादातर भाजपा और संघ के लोग। अभी उनमें से एक टीवी हेड ने माना कि हां हमने उनके लोगों को भर्ती किया था। लेकिन अब सावधान रहेंगे। कांग्रेसियों में इस तरह के दिवास्वप्न देखने वालों की कोई कमी नहीं हैं। जैसे उन्हें दोबारा मौका मिलने वाला है। सपने में भी उन्हें कुर्सी ही दिखती है। लेकिन उस पर बैठने के बाद उन्हें फिर कुछ याद नहीं रहता।
इसलिए उन्होंने माना कि 1977 में भी आडवानी ने दूरदर्शन, रेडियो में जो लोग लगाए थे उन्हें हमने नहीं हटाया। 77 की मोरारजी देसाई सरकार में आडवानी सूचना प्रसारण मंत्री थे। उस समय से उन्होंने मीडिया में अपने लोग लगाने की शुरूआत कर दी थी। आज जिसे गोदी मीडिया कहा जाता है वह आडवानी के उसी लगाए बीज की फसल है। जिसे जाने अनजाने में कांग्रेसी भी पालते पोसते रहे। और आज भी पुचकराने की कोशिश करते रहते हैं।
तो राहुल की यात्रा की सफलता के लिए ऐसे लोगों से बचना बहुत जरूरी है। आज खतरा रिपब्लिक टीवी से नहीं है। वह कांग्रेस में पूरी तरह प्रतिबंधित है। मगर जो अर्ध प्रतिबंधित थे कि उनका रिपोर्टर कांग्रेस मुख्यालय में आ तो सकता है मगर प्रेस कान्फ्रेंस में नहीं आ सकता। या प्रेस कांन्फ्रेंस में भी आ सकता है मगर सवाल नहीं पूछ सकता जैसे कांग्रेस के मन भावे मुढ़ी हिलाए वाले चैनलों से उसे ज्यादा खतरा है। मगर इसके लिए कोई कुछ नहीं कर सकता। कांग्रेस के नेताओं को ऐसा ही मीडिया चाहे वह प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक, या यू ट्यूब वाला पसंद है। जो कुछ प्रोफेशनल पत्रकार कन्याकुमारी में हैं उनकी सबसे समस्या यह है कि उनकी तथ्यों पर आधारित खबर तो चलती नहीं और गढ़ी हुई, काल्पनिक खबरें दौड़ जाती हैं। प्रोफेशनल मेहनत करते हैं। चेक, क्रास चेक करते हैं। मगर गोदी मीडिया वाले कोई भी ऐसा एंगल चला देते हैं जो राहुल और कांग्रेस के खिलाफ जाए। और ऐसी खबरें चैनलों को सूट करती हैं। उनके मालिकों को भी करती हैं तो वे छा जाती हैं। अभी राहुल के अपने केरल के लोकसभा क्षेत्र में दिए एक भाषण में उदयपुर कांड मिला दिए जाने का वीडियो जी टीवी ने चला ही दिया था। ऐसे ही अभी टाइम्स नाऊ की नविका कुमार ने महंगाई विरोधी रैली में राहुल के भाषण की एक मामूली जबान की फिसलन को जो राहुल ने उसी सांस में तत्काल ठीक की को बड़ी खबर बनाकर ट्वीट कर दिया था। और उस पर बड़े प्रोग्राम की तैयारी हो ही रही थी कि कांग्रेस ने समय रहते कार्रवाई शुरू कर दी तो न केवल उन्हें अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा। बल्कि राहुल का मजाक उड़ाने के अपने आगे के प्रोग्राम भी रद्द करना पड़े।
हालांकि दिग्विजय सबको जानते हैं। मगर यहां पूरा कंट्रोल किसी के पास नहीं होता। राहुल तक के पास नहीं है। नहीं तो उन्हें क्या 2019 में यह कहते हुए इस्तीफा देना पड़ता कि मेरा साथ किसी ने नहीं दिया। कांग्रेस ने यह बात अपनी नेता इन्दिरा गांधी से नहीं सीखी कि अधिक ढिलाई मुसीबतों की जड़ है। मगर मोदी ने सीख ली। उनके पास पूरा नियंत्रण है। मगर कांग्रेस में सब नियंत्रणहीन। लेकिन उम्मीद करना चाहिए कि यात्रा पूरी तरह नियंत्रित और अपने भारत जोड़ो उद्देश्य में जो इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है, सफल रहेगी।

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