मोहम्मद इब्ने मूसा अल-ख़्वारिज़मी – संसार के सबसे महान गनितज्ञान थे ।

मोहम्मद इब्ने मूसा अल-ख़्वारिज़मी - संसार के सबसे महान गनितज्ञान थे - अल-ख़्वारिज़मी का जन्म 780 ईस्वी के आसपास फ़ारस में हुआ था।

मोहम्मद इब्ने मूसा अल-ख़्वारिज़मी – संसार के सबसे पहले महान गनितज्ञान थे – अल-ख़्वारिज़मी ने ही अलजबरा को जन्म दिया – अल- ख़्वारीज़मी को अलजबरा और खगोलियशास्त्र का ज्ञाता कहा जाता है।

संसार के पहले सबसे महान गणितज्ञ मोहम्मद इब्ने मूसा अल-ख़्वारिज़मी  

यह कहानी – बीबीसी  एवं गूगल से लिया गया। इसी के नीचे उर्दू भाषा मे भी यह कहानी अंकित है।

एस. ज़ेड. मलिक 

अल-ख़्वारिज़मी विश्व के एक ऐसे गनितज्ञान पैदा हुए जिन्होंने संसार मे सब से पहले लगभग 818 ईस्वी दरहम युग मे जिस युग मे मोतियों और कौड़ियों से गिनती की जाती थी उस युग मे उन्होंने हिसाब किताब की दुनियां में एक नए हिसाब का आविष्कार अलजबरा के नाम से किया।

  अल-ख़्वारिज़मी का जन्म लगभग 780 ईस्वी के आसपास फ़ारस में हुआ था और जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, वह मध्य एशियाई देश उज़्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज़्म प्रांत के थे। और वह उन पढ़े लिखे लोगों में शामिल थे जिन्हें, ख़लीफ़ा हारून रशीद के बेटे ख़लीफ़ा अल-मामून के निगरानी में हाउस ऑफ़ विज़्डम में काम करने का मौक़ा मिला था। 

उन्होंने मध्य पूर्व में कई विषयों में महारत हासिल थी। एक पाकिस्तानी बीबीसी रिपोर्टर कहते हैं ” मैंने (जिम अल-ख़लील) पहली बार उनका नाम एक इतिहास निबंध में उस समय सुना था, जब मैं इराक़ के एक स्कूल में शिक्षा हांसिल कर रहा था।

गणित के इस भ्रामक प्रश्न को नौवीं सदी की शुरुआत में लिखी गई एक किताब से लिया गया है। यह सवाल वास्तव में उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति के वितरण में मार्गदर्शन का काम करता है।

कहा जाता है, अलजबरा कल्पना पर आधारित जैसे “मान लें कि एक व्यक्ति बीमारी की स्थिति में दो ग़ुलामों को आज़ाद करता है। उनमें से एक ग़ुलाम की कीमत तीन सौ दिरहम और दूसरे की क़ीमत पांच सौ दिरहम है। जिस ग़ुलाम की क़ीमत तीन सौ दिरहम थी, थोड़े समय बाद उसकी मौत हो जाती है। वह अपने पीछे केवल एक बेटी को छोड़ जाता है। फिर उन ग़ुलामों के मालिक की भी मौत हो जाती हैं और उनकी वारिस भी उनकी इकलौती बेटी होती है। मृतक ग़ुलाम चार सौ दिरहम विरासत में छोड़ जाता है। तो अब विरासत में से हर किसी को कितना हिस्सा मिलेगा?

12वीं सदी में उनकी कुछ कृतियों का लातिनी भाषा में अनुवाद किया गया जिसमें उन्होंने भारतीय अंकों और दशमलव प्रणाली का बखान किया था और इसी से भारतीय अंक पूरी पश्चिमी दुनिया में फैल गए। बहुत दिनों तक उन्हें यूरोप में बीजगणित (ऐल्जेब्रा) का जन्मदाता समझा जाता था हालांकि अब यह ज्ञात है कि उनकी पुस्तकों की सामग्री मूलतः प्राचीन भारतीय और यूनानी स्रोतों से आई थी। उन्होंने टोलेमी की भौगोलिक कृति को भी विस्तृत करके अरबी में अनुवाद किया। अंग्रेज़ी का कम्प्यूटर-सम्बन्धी ‘अल्गोरिद्म‘ (algorithm) शब्द उन्ही के नाम का एक परिवर्तित रूप है। इसी तरह उन्होंने अपनी गणित की किताबों में अक्सर ‘अल-जब्र’ (الجبر) शब्द का इस्तेमाल किया था जिसका मतलब है ‘पूर्व अवस्था में ले जाना’ या ‘बहाल करना’। यह बिगड़कर अंग्रेज़ी का ‘ऐल्जेब्रा’ (algebra) बन गया जिसका हिंदी  में ‘बीजगणित’ का अर्थ होता है।

अरबी भाषा में लिखी गई इस किताब को दुनिया भर में इसके शीर्षक ‘किताब अल-जबर’ के नाम से जाना जाता है। जिसे आज अलजबरा और बीजगणित भी कहा जाता है।

अल-ख़्वारीज़मी नौवीं सदी की शुरुआत में बग़दाद आ गए थे। उस समय, बग़दाद शक्तिशाली अब्बासिद ख़लीफ़ा द्वारा शासित एक विशाल इस्लामी साम्राज्य की राजधानी था।

वह ख़लीफ़ा अल-मामून के लिए काम करते थे। ख़लीफ़ा मामून, जो खुद भी यूनानी किताबों का अरबी भाषा में अनुवाद के तौर पर जाने जाते थे, और इतिहास में वैज्ञानिक अनुसंधान और इसके महत्व को समझने वाले अग्रणी व्यक्तियों में से एक थे।

अल-ख़्वारिज़मी अफगानिस्तान के ख़लीफ़ा के द्वारा बनाई गई ‘बैतउल-हिकमत'(हाउस ऑफ़ विज़्डम) नामक संस्था में काम करते थे। जो एक ऐसी संस्था थी जो सुनने में बिलकुल फ़र्ज़ी लगती थी। परन्तु वह अनुवाद और विज्ञान में मूल शोध का केंद्र था, और यहां एक ऐसे युग के महान विचारक इकट्ठा होते थे, जिन्हें अरबी विज्ञान के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है।

अल-ख्वारिज्मी और खगोल विज्ञान
 मुहम्मद अल-ख्वारिज्मी का एक और तथ्य यह है कि उन्होंने अपने काम को केवल गणित तक सीमित नहीं रखा उन्होंने खगोल विज्ञान का भी अध्ययन किया। उन्होंने अपने शोध के उपरांत 810 या 11 ईस्वी में अपनी खगोलीय शास्त्र की पहली पुस्तक लिखी। जोकि अधिकांश लेख मुस्लिम ज़िजेस पर केंद्रित थीं, जिसमे आकाशीय पिंडों की गणना के लिए जाना जाता है। उस समय उन्होंने अपने शोध में सात ग्रहों को जाना, जबकि उस समय कोई ऐसी शक्तिशाली दूरबीनो का उपयोग नहीं किया जाता था।
 अल-ख्वारिज्मी ने अपनी पुस्तक मुस्लिम ज़िजेस में डेटा टेबल बनाया था। सूर्य, चंद्रमा सहिंत पांच ग्रहों की गतिविधियों को सूचीबद्ध करते हुए, खगोलीय, कैलेंडर और ज्योतिषीय डेटा से भरी ज्यामितीय डेटा की 116 तालिकाओं का विकास किया, जिसमें साइन, कोसाइन और गोलाकार ज्यामिति शामिल हैं। खगोल विज्ञान की उनकी समझ उनके समय के लिए उन्नत थी और संभवतः टॉलेमी जैसे अन्य प्रसिद्ध खगोलविदों के काम से प्रेरित थी। अल-ख्वारिज्मी के सभी कार्यों का लैटिन में अनुवाद किया करते थे जो आज भी जीवित है।

यहां अरबी शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि उस समय अधिकांश पुस्तकें अरबी में लिखी जाती थी, क्योंकि यह न केवल सल्तनत की आधिकारिक भाषा थी, बल्कि मुसलमानों की पवित्र किताब कुरान भी उसी भाषा में है।

अभी इस पर और शोध जारी है –

محمد بن موسیٰ الخوارزمی، دنیا کے پہلے عظیم ترین ریاضی دان

یہ کہانی بی بی سی اور گوگل سے لی گئی ہے۔ اس کے تحت یہ کہانی بھی اردو زبان میں لکھی گئی ہے۔

الخوارزمی ایک ایسی شخصیت جس نے الجبرا جیسے حساب اور زیرو کو جنم دیا اور وہ خد گمنامی کے اندھرے میں گم ہو گیا، لیکن گوگلس نے انہیں گمنامی کے اندھیرے سے نیکال کر دنیاں کے اسکالروں کے بازار میں لاکر کھڑا کر دیا جہاں آج انکا کوئ کمپیٹر نہیں۔ بہرحال،  م   میں  انکی پیدائش تقریباً 780 عیسوی کے فارس ہوئ۔ جیسا کہ ان کے نام سے ظاہر ہے، ان کا تعلق وسطی ایشیائی ملک ازبکستان م یں واقع صوبہ خوارزم سے تھا۔ اور وہ ان پڑھے لکھے لوگوں میں سے تھے جنہیں خلیفہ ہارون رشید کے بیٹے خلیفہ المامون کی نگرانی میں ایوانِ حکمت میں کام کرنے کا موقع ملا۔

انہوں نے مشرق وسطیٰ میں بہت سے مضامین میں مہارت حاصل کی۔ بی بی سی کے ایک پاکستانی رپورٹر کا کہنا ہے کہ “میں نے (جم الخلیل) ان کا نام تاریخ کے ایک مضمون میں اس وقت سنا جب میں عراق میں ایک اسکولم یں پڑھ رہا تھا۔

ریاضی کا یہ الجھا ہوا سوال نویں صدی کے اوائل میں لکھی گئی ایک کتاب سے لیا گیا ہے۔ یہ سوال درحقیقت وارثوں میں جائیداد کی تقسیم میں رہنمائی کا کام کرتا ہے۔ عربی زبان میں لکھی گئی یہ کتاب دنیا بھر میں کتاب الجابر کے عنوان سے مشہور ہے۔ جسے آج الجبرا اور الجبرا بھی کہا جاتا ہے۔

12ویں صدی میں ان کے کچھ کاموں کا لاطینی زبان میں ترجمہ کیا گیا، جس میں اس نے ہندوستانی ہندسوں اور اعشاریہ کے نظام کو بیان کیا، اور اس سے ہندوستانی ہندسے پوری مغربی دنیا میں پھیل گئے۔ ایک طویل عرصے تک انہیں یورپ میں الجبرا کا باپ سمجھا جاتا تھا، حالانکہ اب یہ معلوم ہوا ہے کہ ان کی کتابوں کے مندرجات اصل میں قدیم ہندوستانی اور یونانی ذرائع سے آئے تھے۔ اس نے بطلیموس کے جغرافیائی کام کو بھی وسعت دی اور اس کا عربی میں ترجمہ کیا۔ انگریزی میں لفظ ‘الگورتھم’ اس کے نام کی ایک تبدیلی ہے۔ اسی طرح اس نے اپنی ریاضی کی کتابوں میں اکثر لفظ ‘الجبر’ (الجبر) استعمال کیا جس کا مطلب ہے ‘واپس لانا’ یا ‘بحال کرنا’۔ یہ بگڑ کر ‘الجبرا’ ہو گیا جس کا انگریزی میں مطلب ‘الجبرا’ ہے۔

محمد بن موسیٰ الخوارزمی ایک فارسی ریاضی دان، ماہر فلکیات، نجومی، جغرافیہ دان اور عالم تھے، جو بغداد کے بیت الحکمت۔ house of wisdom     سے وابستہ تھے۔ اس وقت ایوانِ حکمت سائنسی تحقیق اور تعلیم کا ایک مشہور مرکز تھا اور اسلامی سنہری دور کے بہترین ذہن یہاں جمع تھے۔

فرض کریں کہ ایک آدمی بیماری کی حالت میں دو غلام آزاد کرتا ہے۔ ایک غلام کی قیمت تین سو درہم اور دوسرے کی پانچ سو درہم ہے۔ وہ غلام جس کی قیمت تین سو درہم تھی، تھوڑے ہی عرصے کے بعد وہ مر گیا۔ انہوں نے اپنے پیچھے صرف ایک بیٹی چھوڑی ہے۔ پھر ان غلاموں کا مالک بھی مر جاتا ہے اور ان کا وارث بھی ان کی اکلوتی بیٹی ہے۔ مقتول غلام نے چار سو درہم میراث چھوڑے ہیں۔ تو اب سب کو وراثت میں سے کتنا حصہ ملے گا؟”

ریاضی کا یہ الجھا ہوا سوال نویں صدی کے اوائل میں لکھی گئی ایک کتاب سے لیا گیا ہے۔ یہ سوال درحقیقت وارثوں کے درمیان اثاثوں کی تقسیم پر رہنمائی کرتا ہے۔ عربی زبان میں لکھی گئی یہ کتاب دنیا بھر میں کتاب الجابر کے عنوان سے مشہور ہے۔

اس کتاب کے مصنف ہمارے آج کے مضمون کا موضوع ہیں – محمد ابن موسی الخوارزمی۔

انہوں نے مشرق وسطیٰ میں بہت سے مضامین میں مہارت حاصل کی۔ میں نے (جم الخلیل) ان کا نام پہلی بار تاریخ کے ایک مضمون میں اس وقت سنا جب میں عراق میں ایک اسکول میں پڑھ رہا تھا۔

وہ اس کتاب میں الجبرا کے موضوع پر پہلی بار لکھتے ہیں۔ یہ اصطلاح براہ راست اس کتاب کے عنوان سے لی گئی ہے اور اسے خود ریاضی کے ذیلی مضمون کا درجہ دیا گیا ہے۔

خوارزمی 780 عیسوی کے لگ بھگ پیدا ہوئے اور جیسا کہ ان کے نام سے ظاہر ہے، ان کا تعلق وسطی ایشیائی ملک ازبکستان میں واقع صوبہ خوارزم سے تھا۔

ہم ان کی زندگی کے بارے میں بہت کم جانتے ہیں، لیکن ہم یہ جانتے ہیں کہ وہ نویں صدی کے شروع میں بغداد آئے تھے۔ اس وقت، بغداد طاقتور عباسی خلیفہ کے زیر اقتدار ایک وسیع اسلامی سلطنت کا دارالحکومت تھا۔

وہ خلیفہ مامون کے لیے کام کرتا تھا۔ خلیفہ مامون، جو خود یونانی کتابوں کے عربی میں ترجمے کا پرستار تھا، سائنسی تحقیق اور تاریخ میں اس کی اہمیت کو سمجھنے میں پیش پیش تھے۔

الخوارزمی خلیفہ کے قائم کردہ ‘بیت الحکمت’ (حکمت کا گھر) نامی تنظیم میں کام کرتے تھے۔ جو ایک ایسا ادارہ تھا جو سننے میں بالکل جعلی لگتا تھا۔ یہ سائنس میں ترجمہ اور اصل تحقیق کا مرکز تھا، اور اس دور کے عظیم ذہنوں کا گھر تھا جسے عربی سائنس کا سنہری دور کہا جاتا ہے۔

عربی کا لفظ یہاں اس لیے استعمال ہوا ہے کہ اس زمانے میں زیادہ تر کتابیں عربی میں لکھی گئی تھیں۔کیونکہ یہ نہ صرف سلطنت کی سرکاری زبان تھی بلکہ مسلمانوں کی مقدس کتاب قرآن مجید بھی اسی زبان میں ہے۔

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