कृषि कानून बिलों की वापसी किसानों से सहानुभूति या सियासी चाल*

*कृषि कानून बिलों की वापसी किसानों से सहानुभूति या सियासी चाल*

*विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन*

आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों के सामने घुटने टेक दिये। पिछले 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की चारों बॉर्डर पर डटे किसानों के अथक प्रयासों और परिश्रम की जीत हुई। शुक्रवार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन देते हुए केंद्र सरकार द्वारा लागू किये गए तीन कृषि कानूनों को समाप्त करने की घोषणा की। प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद भले ही किसानों के चेहरे पर खुशी देखने को मिल रही है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे प्रधानमंत्री का एक दांव बता रहे है। कुल मिलाकर किसानों की हुई जीत के बाद आज एहसास हुआ कि जन आंदोलन से आज भी बड़ी से बड़ी लड़ाई को भी जीता जा सकता है। बस आवश्यकता है आपको जनसमुदाय के समर्थन, आपसी समांजस्य और विश्वास की।
*कहीं चुनाव तो नहीं बड़ा कारण*
किसानों और संपूर्ण लोकतंत्र के लिए यह दिन खासा मायने रखता है। क्योंकि अपने नेक इरादों के साथ सड़कों पर जन आंदोलन करने उतरे किसानों के हौंसले को समस्याएं, परेशानियां, ठंड, बरसात, गर्मी, कोरोना संक्रमण का भय भी डगमगा नहीं पाया और देश का किसान सड़कों पर डटा रहा। इसे केंद्र सरकार की हार कहें या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भय। क्योंकि जल्द ही पंजाब में विधानसभा चुनाव होने है। चुनाव के मद्देनजर ही केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। लेकिन यह बिल्कुल गलत है, लोकतंत्र में सरकार इस तरह से अपने हितो को ध्यान में रखते हुए जनता के विश्वास के साथ भला कैसे खेल सकती है।
*प्रधानमंत्री जी इन सवालों का दे जबाव*
देश की एक जागरुक नागरिक और पत्रकार होने के नाते मैं प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहती हूं कि उस समय वे कहां थे जब किसानों के ऊपर पुलिस द्वारा लाठियां बरसाई जा रही थीं। उस समय प्रधानमंत्री जी ने किसानों के प्रति अपनी संवेदना क्यों नहीं दिखाई जब देश का किसान कांपती ठंड और बरसती लू के बीच सड़कों पर जमघट लगाकर इस फैसले को वापस करने की मांग कर रहा था। भला पिछले एक साल में आपके अंदर का इंसान क्यों नहीं जागा।
*हर कोई इसे बता रहा सियासी चाल*
विपक्षी नेता से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिक विशेषज्ञ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले को सियासी चाल बता रहे है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने कहा कि देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सर झुका दिया। अन्याय के खिलाफ ये जीत मुबारक हो। कांग्रेस के महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार ने आज अपना अपराध स्वीकार किया है। अब जनता इस अपराध की सजा तय करेगी। इस फैसले के पीछे भाजपा का यूपी और पंजाब समेत 5 राज्यों में चुनाव हारने का डर दिख रहा है। ममता बनर्जी ने कहा कि उन सभी किसानों को मेरी हार्दिक बधाई जिन्होंने बिना रुके लड़ाई लड़ी और जिस क्रूरता से भाजपा ने आपको ट्रीट किया उससे आप नहीं डरे। यह आपकी जीत है।
*किसान आंदोलन में हुई मौतों का जिम्मेदार कौन*
सुबह से ही कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद से हर तरफ जश्न का माहौल है। किसानों के अलावा इस जन आंदोलन में शामिल लोगों ने भी खुशी जाहिर की है। लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि पिछले एक साल में किसान आंदोलन के कारण हुई सैकड़ों मौतों का जिम्मेदार कौन है। आखिर कौन लेगा इन मौतों की जिम्मेदारी। केंद्र सरकार या फिर किसान नेता। क्योंकि बीते एक वर्ष में लगभग 700 से अधिक किसानों की किसान आंदोलन के दौरान मौत हुई है। मोदी सरकार के अंहकार के चलते एक किसान ने आंदोलन स्थल पर ही आत्म हत्या भी की थी। उसने अपनी मौत का जिम्मेदार मोदी सरकार को माना था। उस किसान की मौत जिम्मेदार कौन लेगा। ऐसे अनेकों किसानों के परिवारों का क्या जिनके घर के पिता, बेटे, भाई और मां की जान चली गई। यदि सच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों से सहानुभूति है तो उन्हें मृतकों के परिजनों को बीते एक वर्ष के नुकसान की भरपाई, जमीन, मृतकों के परिजनों को शासकीय नौकरी और पूरी जिंदगी आर्थिक मदद पहुंचाने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।

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