महाराजा हरिसिंह की 126वीं जन्म जयंती पर पैंथर्स की भावभीनी श्रद्धांजलि
नई दिल्ली – जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के अलावा भारत के सामाजिक एवं राजनीतिक समूहों ने आज महाराजा हरिसिंह के 126वें जन्मदिवस के अवसर पर भावभीनी श्रद्धांजलि अपिर्त की, जिनका जन्म 23 सितंबर, 1895 को अमर महल, जम्मू में हुआ था। महल को हरिसिंह के पिता महाराजा अमर सिंह के नाम पर बनाया गया था, जिन्होंने 1925 में जम्मू-कश्मीर के महाराजा की शपथ ली, जिसमें लद्दाख, गिलगित सहित जम्मू-कश्मीर का 84,000 वर्गमील क्षेत्र शामिल था। जम्मू-कश्मीर की स्थापना 1846 में महाराजा गुलाब सिंह ने की थी, जिसमें कश्मीर, गिलगित और लद्दाख भी शामिल थे ।
महाराजा हरिसिंह के जम्मू-कश्मीर के सिंहासन पर बैठने के बाद राज्य में पांचवी कक्षा तक शिक्षा अनिवार्य की, बाल विवाह पर रोक लगाने वाले कानून पेश किए, जम्मू-कश्मीर में ‘अस्पृश्यता‘ पर प्रतिबंध लगाया और उन सभी जातियों के लिए पूजा स्थल खोले दिया, जिन्हें महात्मा गांधी ने ‘हरिजन‘ कहा था। ब्रिटिश भारत में जम्मू-कश्मीर एकमात्र राज्य था, जिसका अपना संविधान और एक उच्च न्यायालय था, जो 5 अगस्त, 2019 तक जारी रहा। महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत संघ के साथ विलय किया था, जिसे भारतीय संसद ने विलयपत्र आज तक स्वीकार नहीं किया गया है। महाराजा हरिसिंह ने कई उच्च वैज्ञानिक, प्रगतिशील व जनोन्मुखी कानून बनाए।
प्रो. भीम सिंह ने अपने जम्मू कार्यालय में पैंथर्स पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, बुद्धिजीवियों, विचारकों और इतिहासकारों को संबोधित करते हुए महाराजा हरिसिंह को उनके शानदार राष्ट्रीय दृष्टिकोण के लिए बधाई दी। यह महाराजा हरिसिंह थे, जिन्होंने 1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन को संबोधित किया था, जिसकी अध्यक्षता इंग्लैंड की रानी ने की थी, महाराजा ने जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि ‘‘मैं पहले भारतीय हूं और फिर जम्मू-कश्मीर का महाराजा‘‘। इसके जवाब में पीठासीन रानी ने महाराजा से सवाल किया कि उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिए नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि वे जम्मू-कश्मीर के महाराजा थे। महाराजा का यह वाक्य उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा लक्ष्य सूची में लाया गया, जो आज तक जारी है।
कई अन्य वरिष्ठ नेताओं, बुद्धिजीवियों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने महाराजा हरिसिंह के जन्म उत्सव को संबोधित किया।