राष्ट्रीय पुस्तक न्यास -भारत सरकार दारा 29वां अिखल भारतीय हिंदी सािहत समेलन का आयोजन।

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास -भारत सरकार दारा 29वां अिखल भारतीय हिंदी सािहत समेलन का आयोजन।

एस. ज़ेड. मलिक

नई दिल्ली – राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, ने राष्ट्रीय स्वाभिमान न्यास और भागीरथ सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान मे 21 नवंबर, 2021 रविवार को भागीरथ पब्लिक स्कूल, गािजयाबाद मे 29वें अखिल भारतीय हिंदी साहित्य समेलन का आयोजन किया गया। जिसमे “भारत के स्वत्गोन्त्रता संग्राम में हिंदी की भूमिका” पर एक संगोष्ठी रखी गई ।

मंच पर उपस्थित विशिष्ट अतिथियों में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपित डॉ. गरीश्वर मिश्र, जाने-माने लेखक प्रो0 ललन पसाद, शिक्षाविद-लेखक डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा ‘अरुण’, वरिष्ठ लेखिका डॉ. मृणाल शर्मा उपिसत थे। सरस्वती वंदना के बाद दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।


स्वतंत्रता संग्राम मे हिंदी भाषा की भूिमका पर लेखिका डॉ. मृणाल शर्मा ने कहा कि भाषा जितनी सरल होगी, उतनी प्रभावशाली होगी। स्वतंत्रता प्राप्त करनेके लिये जो आंदोलन हए, प्रारम्भ मे वे संगिठत नही थे, उन्हें संगिठत करने, जोड़ने का काम हिंदी भाषा ने किया। उस दौरान ब्राह्मण समाज, आर्य समाज समेत कई विश्विद्यालयों ने हिंदी भाषा के पचार-पसार मे अपना योगदान दिया । उन्होंने बताया कि बाल गंगाधर तिलक ने हिंदी मे भाषण देने की परम्परा को स्थापित किया।
डॉ. ललन पसाद ने तीन बिंदुओं पर अपने विचार रखे- पहला, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी भािषयो ने आंदोलन से लोगो को जोड़ने के लिये हिंदी का उपयोग किया। दूसरा, हिंदी पत्रकारिता का उदय भी उसी दौरान हआ। तीसरा, हिंदी काव्य भी इसी काल मे सशक बना, फिर चाहे वह मंगल पांडे, महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद बोस के नारे हो या उस दौरान रचित किवताएँ-गीत, सभी की रचना हिंदी मे हुई।

डॉ. योगेदनाथ शर्मा ने कहा कि जब तक हम किशोरी दास वाजपेयी जैसे नीव के पत्थरों को याद नही रखेंगे तब तक हम इत्तिहास को याद नही रख पाएँगे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी भाषा का उपयोग कर जो महत्वपूर्ण कार्य गैर हिंदी भाषी लोगो ने किया, वह हिंदी भाषी नही कर पाए। इसिलए हमे वरिष्ठ नीव के पत्थरों को याद रखना चािहए।
डॉ. गरीश्वर मिश्र ने कहा कि हिंदी का सुभाव ही ऐसा है कि हर कोई इस से जुड़ जाता है। इसका
व्यापक क्षेत्र है, यह लोक से जुड़ी लोकतांत्रिक भाषा है। गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास ने भी अपने साहित्य मे हिंदी को चुना और स्वतंत्रता आंदोलन मे क्रांतिकारी कवियों की किवताएँ-गीत भी हिंदी मे ही थे।
इसका एक ही कारण है कि हिंदी मे संवाद करने की क्षमता है। इस भूिमका ने उसे स्वतंत्रता आंदोलन का वाहक बनाया। मंच से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की दो पुसको – ‘आकाश मे मुकदमा’ और ‘बरफ का देश अंटार्टिका’ का भी विमोचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन न्यास के हिंदी संपादक श्री पंकज चतुवेदी ने किया।

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