किसानों का प्रदर्शित आंदोलन कितना सार्थक ? ,, देशहित में या किसान स्वयं अपने हित में कर रहे हैं प्रदर्शन?
किसानों का प्रदर्शित आंदोलन कितना सार्थक ? ,, देशहित में या किसान स्वयं अपने हित में कर रहे हैं प्रदर्शन?
सरकार द्वारा बनाया गया क़ानून किसानो के हित में है – नये क़ानून के तहत एसडीएम बाउंड है, अनुबंध तोड़ने पर एसडीएम को कोई पॉवर कम्पनी विरुद्ध फैसला देने का अधिकार है न की किसान के विरुद्ध कोई अधिकार दिया गया है – श्री अशोक ठाकुर ((निर्देशक – नफेड)
इन सवालों का जवाब कुछ समाजिक संगठनो के संचालक और विभिन्न राजनितिक दलों के नेताओं से लेने की कोशिश करेंगे।
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
नई दिल्ली – दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान बीते करीब चार हफ्ते से प्रदर्शन कर नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार अपनी जगह पर अड़ंगीत है और किसान अपनी जगह पर। अब सवाल है की किसानो की मांग कितना सार्थक है ? जबकि एनआरसी और सीएए जैसे शाहीनबाग के आंदोलन जैसा आज यह दिल्ली एनसीआर से लगी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन दिल्ली और एनसीआर के लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। भविष्य में भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा इस मुद्दे पर आईना इंडिया ने विभिन्न समाजिक संगठनों के संचालक एवं कुछ राजनितिक दलों के नेताओं से बात चित कर के स्थिति जानने की कोशीश की प्रस्तुत है सब से पहले नफेड के निर्देशक और भाजपा के सक्रिय कर्मठ नेता श्री अशोक ठाकुर – से सार्थक बात चीत के कुछ अंश – किसानो का आंदोलन सही है। हमारा देश लोकतांत्रिक देश है इसमें देश के सभी नागरिकों को अपनी बात रखने का पूर्ण अधिकार है। सरकार ने किसानों के हित में जो क़ानून बनाएं है वह पूर्णतः किसानों के हित में है। यह अलग बात है की किसान उसे समझ नहीं पा रहे हैं या जानबूझ कर सरकार द्वारा बनाये गए क़ानून की अनदेखी करके सरकार को अपने आगे झुकाये रखना चाहते हैं, किसान और सरकार के बीच पांच बार बैठक हुयी और उसमे सकारात्मक और सार्थक चर्चायें हुई और सरकार ने किसानो की बात सुनी और माना भी, किसान संगठन ने अनुबंधन के मुद्दे पर न्यालय जाने की अनुमति माँगी जो मेरी समझ से किसानो के हित में नहीं है,यदि किसान न्यायलय जाते हैं तो व्यापारिओं को भी न्यायलय जाने का अधिकार मिल जाएगा , व्यापारी तो उनसे अधिक मज़बूत हैं वह उसी संविधान के तहत किसान को न्यायलय द्वारा उनके आवाज़ को दबा देंगे। अनुबंध तोड़ने की स्थिति में एसडीएम को कोई अधिकार नहीं दिया गया है किसान के विरुद्ध कोई कार्रवाई करें। एसडीएम के पास कंपनी के विरुद्ध ही कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है, एसडीएम को कंपनी पर 150 प्रतिशत प्लाण्टी लगाने का अधिकार दिया गया है। इस क़ानून के तहत एसडीएम बॉन्ड है। किसानों को भर्मित किया जा रहा है। छोटे किसानो का कहीं से कोई नुक्सान नहीं हो सकता है बड़े किसानो बिचौलिये को ही इस क़ानून से नुक्सान हो रहा है । इस क़ानून से अन्य किसानों को भर्मित नहीं होना चाहिए बल्कि किसान संगठनों को चाहिए की इस क़ानून पर गहराई से समीक्षा एवं मंथन कर देश हित में फैसला लें।
सरकार कृषि सुधार मुद्दे पर पिछले 5 वर्षों से लगातार काम कर रही है। 1991 से स्वामीनाथन आयोग एवं 2004 से 2006 में भी अन्य आयोग बनाये गए वह सभी तो कृषि संबंधित समस्या के समाधान के लिए ही तो बनाया गया लेकिन उसका क्या हुआ। 1965 में 58 से 60 से अब तक जीडीपी गिरते ही गई जो अब 15 प्रतिशत रह गया। मेरी समझ से अभी देश में और भी बड़ी मंडिया बढ़ाने की आवश्यकता है जो सरकार इसी योजना तहत काम कर रही है। कुलमिला कर विरोध ज़रूरी है लेकिन विरोध ऐसा न हो की किसान अपना ही नुक्सान कर लें।
लेकिन श्री अशोक ठाकुर के विचारों के बिलकुल विपरीत गांधी विचार-धारा विभागाध्यक्ष तिलका मांझी विश्वविधालय भागलपुर बिहार के प्रो० डॉ० विजय कुमार के अनुसार किसान अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहा है , संविधान के अनुच्छेद 9 में लगभग 274 क़ानून हैं जिसमे खेती से संबंधित 250 से अधिक कानून हैं उसी में से 3 क़ानून ऐसे भी है , इसकी शुरुआत 1793 ई० में लावकांवालीस द्वारा बनाया गया है। आज जो दिख रहा है वह हरीत क्रान्ति के कारण ही दिख रहा उसी में से एमएसपी भी निकला अब एमएसपी उनकी मजबूरी बन गई है। तो हरीत क्रान्ति का जो गलत प्रयोग किया है हुकुमरानों ने उसका अब रिज़ल्ट आ रहा है। किसानो की बात सरकार नहीं मानेगी इसलिए की वर्ल्डबैंक की नीतिओं में शामिल है विश्व बैंक सरकार को कहरहा की शहरीकरण तेज़ करो, खेती को फ्री करो निजी हांथों में जाने दो। इसका असर देश पर बुरा असर पड़ेगा। खेती कंपनी में बदल जाएगी बड़े किसान कंपनी के मालिक बन जाएंगे और उनके बच्चे बेरोज़गार नौजवान बन कर अपने ही कंपनी में नौकरी करने पर मजबूर हो जाएंगे। बिहार , बंगाल , उड़ीसा , उत्तरप्रदेश के किसानो को हरित क्रान्ति का लाभ नहीं मिला, यह पंजाब , हरियाणा , दिल्ली , राजस्थान और कुछ पश्चमी उत्तरप्रदेश को इसका लाभ थोड़ा मिला, इन्ही क्षेत्रों के किसानो को थोड़ा लाभ मिला लेकिन जिन्हे लाभ नहीं मिला उन्ही क्षेत्रों के किसान सड़कों पर अधिक हैं वह एनएसपी की मांग कर रहे हैं, एमएसपी पैदा ही हुआ था की हरीत क्रान्ति मची , इस चीज़ को आज खरीदना था भुकमरी मिटाने के लिए तो उस समय एम एसपी का प्रवधान आया , तो वह चाह रहे की ेनेस्टी हमे दे दें , बाकी किसानो के लिए हम क्यूँ सोंचे , 1793 ईस्वी में लोकांवालीस ने खेती को लेकर पहला कानून बनाया जो आज भी संविधान के अनुच्छेद 9 में शामिल है इस अनुच्छेद का मतलब है की इस अनुच्छेद के अनुसार आप न्यालय में चैलेंज नहीं कर सकते , तीन सिस्टम लागू किया गया दक्षिण के क्षेत्र में निजी सम्पत्ति में बदला ज़मीन , निजी माक़ियत कायम हुयी , मध्य के क्षेत्र में माहल्दारी प्रथा शुरू हुयी जिसमे यहां जोत के आकार बढे हैं। बाकी हिस्से जैसे भारत के पूर्वी क्षेत्र बिहार बंगाल उड़ीसा झारखंड इन हिस्सों में ज़मींदारी प्रथा शुरू करवादी, बाद में राज्य सरकारों ने उसे समाप्त किया , तो यह कोशिश 1793 में आरम्भ हुई और हमारे संविधान में वर्णित कर दिया गया , यही कारण है की पक्ष और विपक्ष संविधान की दुहाई दे रहे हैं। यदि पक्ष किसानो के साथ बेमानी कर रहा है तो विपक्ष भी किसानो के साथ हमदर्दी नहीं कर रहे हैं , दोनों ही किसानो को अपने अपने अस्त्र से बेवकूफ कर लूट रहे है ।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री शिव भाटिया द्वारा – सरकार किसानो के मुद्दे पर गंभीर नहीं है किसानो के साथ मज़ाक़ कर रही है – सरकार को यह खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। किसानों का यह आंदोलन अपने आप में सार्थक के साथ साथ दमनकारी सरकारों के लिए एक चेतावनी है। यह किसानो का आंदोलन वर्तमान सरकार को उखाड़ फेकेगा , एमएसपी किसानो का अधिकार है , यह सरकार हर जगह अपनी मनमानी करके अपनी नीति थोप रही है देश जनता और संविधान को खिलौना बना रखा है – किसानो के लिए जो सरकार ने जबरिया क़ानून बना कर किसानों पर थोपने की कोशिश की है यह क़ानून इस सरकार पर भारी पड़ने जा रहा है। यह आंदोलन सम्पूर्ण भारत का है। न की केवल यह पंजाब या हरियाणा का है , यह भरम मीडिया द्वारा भरम फैलाया जा रहा है। किसानो के नेता टिकैत जैसे लोग और उत्तर भारत और दक्षिण भारत के किसानों का संगठन इस समय इस आंदोलन में शामिल हो चुके हैं, किसान माईनस डिग्री ठंढ में सड़कों पर अपना झंडा डंडा गाड़ चुका है। कांग्रेस हर हाल में किसानों के साथ उनके अधिकार की लड़ाई लड़ रही है और लड़ेगी, आंदोलन में एक संत की मृत्यु हो जाती है और प्रधानमंत्री गुरुद्वारा में पहुँच जाते हैं , सरकार आंदोलन समाप्त करना ही नहीं चाहती है सरकार में संवेदनशील लोग हैं और इनकी इतनी छोटी और तुच्छसोंच है की तोमर जैसे एक एक छोटे अस्तित्त्वविहीन मंत्री जो न तो किसान हैं और उन्हें किसानों की समस्याओं की जानकारी है उनको किसानो के साथ समझौते के लिए बैठाते, क्या तोमर जैसे लोगों को किसानो के मुद्दे पर कोई फैसला लेने की अपनी क्षमता है ? वह तो राजनीति का “रा” नहीं जानते हैं , उन्हें तो फिर से राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करनी होगी ? केंद्र की सरकार में बैठे कुछ मनुवादी लोग यह तो देश और देश की जनता तथा किसानों के साथ एक खेलवाड़ , मज़ाक़ कर रहे रहे है , इस आंदोलन का कोई किसी के साथ तुलना ही नहीं किया जा सकता है , यह अपने आप में यह मज़बूत आंदोलन है , यही किसानो ने 1942 और 1947 में जब अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए , 9 महीने में अंग्रेज़ों को अपने क़ानून को वापस लेने पड़े तो इस सरकार की क्या औक़ात है – भारत देखेगा यह सरकार को भी अपने यह सभी काले क़ानून को वापस लेना पड़ेगा। कांग्रेस को किसी से कोई डर नहीं है कांग्रेस किसानो के साथ तनमनधन से खड़ी है। जहां भी यह अत्याचारी सरकार किसानों के साथ जहां यह अत्याचार करेंगे वहां कॉंग्रेसिओं के खून बहेगे । कांग्रेस किसानो के साथ समर्पित है।
डॉ 0 अनुपमा पाटिल – वरिष्ठ समाजिक कार्यकर्ता – किसानो का आंदोलन देश हित में सार्थक है इसलिए की हमारा हिन्दुस्तान कृषिप्रधान देश होने के नाते उनकी स्थिति में सुधार ज़रूरी है – हमेशा किसानो के हित की बात तो की जाती रही है लेकिन उनके हित में कोई सार्थक क़दम नहीं उठाया गया इसलिए यह आंदोलन सरकार के लिए चेतावनी के साथ साथ भविष्य में आने वाली सरकार के लिए मार्गदर्षक भी है। उनकी मांग जाइज़ है सरकार को वह तीनो क़ानून वापस ले लेना चाहिए , किसान को अपने हिसाब से अपने माल को बाज़ार में अपने दाम में बेचने की पूरी छूट होनी चाहिए। सरकार द्वारा बनाये गई क़ानून किसानों को एक दायरे में सीमित कर देता है जो की गलत है। उनका अपना अधिकार है।