“आस्था की आड़ में पाखंड”

धूर्त लोग है ,वो किसी न किसी प्रकार के पाखंड रचने में व्यस्त है।

ये पाखंडी और ठग ऐसा मायाजाल बुनते है कि,जिसमें स्त्रियां और बच्चे आसानी से उलझ जाते है। एक बार जैसे ही इनके चक्रव्यूह में फसे इनका बाहर आना मुश्किल हो जाता है।

“आस्था की आड़ में पाखंड”

*लेखिका – *उषा बहेन जोषी पालनपुर गुजरात*

पाखंड या पाखंडी शब्द किसी के भी कान में सुनाई दे..व्यक्ति चौकन्ना हो उठता है। किसी को भी अच्छा नहीं लगता ये पांखडी शब्द!! वैसे तो सदियों से किसी न किसी प्रकार के पाखंड हमारे सामने आते रहे है। वर्तमान समय में जो धूर्त लोग है ,वो किसी न किसी प्रकार के पाखंड रचने में व्यस्त है। भोलीभाली जनता को ठगने और लूटने में ही मस्त/ व्यस्त रहते है।”
किसके साथ, कब,कैसा , क्या पाखंड रचाया जाय!!”किसको कैसे बेवकूफ बनाया जाय, रात दिन इसी पर विचार करते रहते है। ऐसी ओछी मानसिकता के लोग हमारे समाज में भरे परे हैं।
ऐसे ठग और पाखंडी लोगो के झांसे मे ज्यादातर स्त्रियाँ एवं बच्चे फँसते हैं । ये पाखंडी और ठग ऐसा मायाजाल बुनते है कि,जिसमें स्त्रियां और बच्चे आसानी से उलझ जाते है। एक बार जैसे ही इनके चक्रव्यूह में फसे इनका बाहर आना मुश्किल हो जाता है,उसके बाद ये साल दर साल शोषण के शिकार होते रहते हैं।
पाखंडियों के पांखड की शुरुआत में कभी कोई माता जी प्रगट होती हैं, तो कभी कोई देवता?? त़ो कभी हाथ मे से कुमकुम, या राख निकाल के जनता को चकाचौंध कर देते है।कभी कोई चमत्कार का स्वांग रचकर जनता को उल्लू बना देते है और मजे से रूपया ठग लेते है।
ये पाखंडी इतने जुगाड़ जानते है कि, इनके चक्कर से भोली, अज्ञानी लोग फँसते ही है, कभी कभी अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी फंस जाते है ।
वैसे तो पाखंडियों की कोई जाती नहीं होती, वो हर क्षेत्र मे पाये जातें है ।समाज, पोलीटिक्स,और धर्म के नाम से आडंबर रचते रहते है ,और लोगो को लुटते रहते है।
..कईबार पारिवारिक उलझन या सांसारिक संघर्ष,
मानवजीवन को विचलित करतें है,जीवन जगत से जुड़े ऐसे ऐसे प्रश्न हमारे सामने होते है कि, सही क्या है ,गलत क्या है करना क्या है जाना कहां है ,हमारे सामने जो मुश्किल है उसका समाधान कैसे होगा आदि आदि प्रश्न मन को विचलित और परेशान करके रख देते है। कोई रास्ता ही नही दिखता कि, आगे क्या करे।
मानव मन की ऐसे ही स्थिति का लाभ ये पांखडी उठाते है।
मन को छू लेने वाले हर प्रश्न का उत्तर ये देते है। ऐसा लगता है जैसे ये हमारी समस्या का समाधान पलक झपकते कर देंगे??
ये धूर्त सहजता से हमारे मन बात जान लेते है। जैसे ही हम इनपर भरोसा करते है ,वैसे ही हमारा शोषण होने लगता है।
ये धूर्त पांखडी जनमानस के हदय मे श्रद्धा जगाने हेतु नये नये तरीकों आजमाते रहतें है।, अपना नाम और यश बढाने हेतु , कुदरती घटनाओं को चमत्कार का नाम देते है। प्रसार संशोधनो के माध्यम से जूठा दिखावा करते है।
दो तीन किस्से हमारी नजर सामने हुए है ,हमारी पड़ोस मे एक चाची रहती हैं, जो डीलीवरी के समय बिमार हो गई।
एकदिन कमजोरी एवं ठंड की वजह से,कांप रही थी, परिवार को किसी ने बताया की उस पर प्रेत का साँया है, फिर क्या था….उसे कोई पाखंडी,भूवाजी के पास ले जाया गया, भूवाजी ने उन्हें पास बिठा के मिरची का धूँआ किया, कुछ अन्य पदार्थों डाले,चाची के बालों को खुले करवाये, और नगाड़े बजाके चाची पे हंटर मारने लगे कि,उसी समय हमारे पिता जी आ गये, उसको जम के सबक दिया।
चाची का भुवाजी ने बुरा हाल कर दिया था ,मेरे पिताजी चाची क़ो होस्पीटल ले गए, भर्ती करवाया।
डॉक्टर ने कहा, चाची को भारी न्युमोनिया है ,कमजोरी है उसकी वजह से वो कांप रही थी।
एक और किस्से में , मेरी सोसायटी मे एक कुत्ता पागल होकर मर गया था। उसी कुत्ते के छोटे बच्चों को एक लड़की रोज दुध पिलाया करती थी,उसके साथ खेलती थी। अचानक वो बिमार पड़ी ,उसे पानी पिलाने पर वो खुब कांपने लगती थी,एक पाखंडी ने ने आकर बताया कि, उस पर जीन हावी है ,मेरे घर पर उसे ले जाना होगा..!!??
परिवार के लोगों को सबने समझाया की अस्पताल ले जाएं किन्तु वो नहीं माने ।
उसे भूत प्रेत के चक्कर बताकर टोटका किया ,
फिर भी स्वस्थ ना होने पर जब डॉक्टर के पास ले गये, तो डॉक्टर साहब ने उसकी जानकारी ली, और फिर बताया की वो ,पागल कुत्ते के बच्चों के साथ खेलने की वजह से उसे भी पागलपन का दौरा पड़ा है।
समयावधि मे उसकी सुश्रुषा ना करने की वजह से, पाखंडीयोंत के पास जाने से एक मासुम कन्या स्वाहा हो गई??
ये दोनों किस्से हमने देखें है, दिल दहलाने वाले है. ये रोजमर्रा के किस्से हैं । आए दिन ऐसे किस्से हम समाज में देखते सुनते रहते है ,मगर सुनकर मजे लेकर
अनसुना कर देते है,और भोली जनता आर्थिक एवं मानसिक नुकसान सेहती है।
विज्ञान जाथावाले तथा अन्य जाग्रत संस्था ऐसे लोगों को पकड़ कर सजा भी दिलवाते है। एक बार विज्ञान जाथावालो ने सौ स्त्रियों क़ो पकड़ा था,ज़ो बाल खुले रखकर बोलती थी हमारे शरीर मे माताजी आयी है, पकड़े जाने पर वो बोली कि,हमें ऐसा करने से रोज के सौ रुपये मिलते है।
वास्तव मे हमारे अंदर छिपे लोभ, लालच के कारण हमें ये सब दिखाई नहीं देता।, माना, अनपढ तो ठीक, किन्तु अच्छे खासे पढें लिखें भी पाखंडीयों के झांसे मे आके ,मानों अज्ञान के पिंजरे मे कैद होते रहते है। हमारे पास सब कुछ अपने भीतर है।
हमारे भीतर वो दृष्टि है जिससे अनंत वैभव जगमगा उठे। हम नाशवंत चीजों मे अपना सुख खोजने निकलते है।सारा सुख स्वयं के भीतर है।
विज्ञान के मुताबिक कोई चमत्कार नहीं कर सकता, परमात्मा के सिवा।विज्ञान जानेंगे तो हम सब भी ये चमत्कार सकते है।
ऐसे झोलाछाप पाखंडी, गुरु होने का नाटक करते है।मगर सच्चे गुरु तो वानी,वर्तन,विनय से पहचानें जाते है। लोभ, लालच, क्रोध, माया, रागद्वेष से परे होतें है। व़ो चमत्कार नहीं करते, पर अपनी साधना से विश्व कल्याण की सोचते है, पास आने वालों को दीपक की भाँति प्रज्वलित कर देते हे, उनके अंतःकरण मे कोई स्पृहा नहीं होती।।
जनता से मेरा ,दिल.. से अनुरोध हे कि, ऐसे आस्तिन के साँप, बिच्छुओं जैसे धूर्त, पाखंडीयों क़ो जौहरी की नजर से पहचानें, इनसे आप बचें और औरों को भी बचाऐँ। खुद को एवं अपने जाननेवालों को इनसे दुर रखें।
जीवन है तो संघर्ष तो आता जाता रहेगा, हमें परमात्मा की शरण मे रहते सद्व्यवहार, आचरण करना चाहिए ,ईश्वर कोई न कोई रुप मे आकर हमारा जरूर सहयोग करेंगे।।

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