संपत्ति सब रघुपतिकै आही’ अर्थात भूमि सम्पति सब ईश्वर की है।

यह लेख महाराष्ट्र के वरिष्ठ समाजसेवी और किसान नेता विवेकानंद माथने द्वारा 18 अप्रैल भूदान क्रांति दिवस के अवसर पर देश वासियों को समर्पित है।

यह लेख महाराष्ट्र के वरिष्ठ समाजसेवी और किसान नेता विवेकानंद माथने द्वारा 18 अप्रैल भूदान क्रांति दिवस के अवसर पर देश वासियों को समर्पित है।

संपत्ति सब रघुपतिकै आही’ अर्थात भूमि सम्पति सब ईश्वर की है।

यह लेख 18 अप्रैल भूदान क्रांति दिवस के अवसर पर देश वासियों को समर्पित है।

विवेकानंद माथने
लेखक महाराष्ट्र के वरिष्ठ समाजसेवी और किसान नेता है

आजादी के पहले भारत में जमींदारी प्रथा प्रचलित थी। जिसमें राज्य और किसान के बीच जमींदार वर्ग बनाया गया था। जो किसानों से मनमाना लगान वसूलकर उनका बडे पैमाने पर शोषण किया करते थे। इसके विरुद्ध किसानों के बीच आक्रोश था। किसानों के हित में कांग्रेस ने भूमि सुधार कार्यक्रम अपनाया, उसके लिये वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार की और भारत को आजादी मिलते ही आर्थिक विषमता बढानेवाली और किसानों का शोषण करनेवाली जमींदारी प्रथा समाप्त की गई। राज्योंमें जमींदारी उन्मूलन कानून और भूमि सीमाबंदी कानून बनाये गये। भूदान आंदोलन ने भूमि सुधार अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अहिंसक क्रांति विचार को जन्म दिया। भूदान आंदोलन एक जनक्रांति थी। और आर्थिक समानता की दिशा में जनता द्वारा की गई महत्वपूर्ण पहल थी।
भूदान आंदोलन में 47 लाख 63 हजार 676 एकड जमीन प्राप्त हुई और उसमें से आधे से अधिक जमीन बांटी गई। लाखों किसानों को जुताई के लिये जमीन का हक मिला। प्रेम के आधार पर दान प्राप्त करने की यह दुनियां की अद्भूत घटना थी। भूदान देनेवाले और भूदान लेनेवाले दोनोंनें प्रेम और सन्मान प्राप्त कर मानवता धर्म निभाया। जमींदारी उन्मूलन कानून के कारण लगभग 2 करोड किसानों को जमीनपर हक प्राप्त हुआ। भूमि सीमाबंदी कानून के तहत 68 लाख 53 हजार 624 एकड भूमि अतिरिक्त घोषित हुई, उसमें से 49 लाख 64 हजार 995 एकड जमीन का वितरण किया गया। इन सभी प्रक्रिया में कुछ खामियां रही है लेकिन इसके बावजूद आर्थिक और सामाजिक समानता की दिशा में किया गया यह अदभूत कार्य था। समाज चेतना का जागरण और राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण यह संभव हुआ है।
लेकिन भूमि बंटवारें से ना किसानों की समस्या खतम हुई और नाही आर्थिक विषमता कम हुई, क्योंकि भूमि उत्पादन का एकमात्र साधन नही है। जब लोगों के उत्पादन और आय मुख्य स्रोत कृषि भूमि रहा तब जमीन का न्यायपूर्ण वितरण करके जमींदारी खतम करना जरुरी था। लेकिन अब आर्थिक समानता के लिये उत्पादन के तमाम साधनों से प्राप्त राष्ट्रीय आय का न्यायपूर्ण बंटवारा जरुरी है। भूमी सुधार के द्वारा भूमि के न्यायपूर्ण वितरण के साथ ही संपत्ति के न्यायपूर्ण वितरण के उपायों की जरुरत है। उसके बिना आर्थिक समानता संभव नही। भूदान का अगला कदम संपत्ति दान है। और उस उद्देश पूर्ति के लिये ट्रस्टीशिप कानून और संपत्ति सीमाबंदी कानून की जरुरत है।
आज फिरसे आर्थिक विषमताके विरुद्ध आक्रोश बढता जा रहा है। सरकारें कारपोरेट जमींदारी की तरफ लौट रही है। औद्योगिकरण के साथ ही उत्पादन और वितरण के क्षेत्र में केंद्रीकरण बढता जा रहा है। सभी प्राकृतिक संसाधनों को निजी हाथों में देश की संपत्ति सौपकर उसका बेहताशा दोहन किया जा रहा है। न्यायोचित श्रममूल्य देने के बजाय श्रम कानून में पक्षपाती बदलाव किया जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र निजी कंपनियों को सौपे जा रहे है। व्यक्ति और कंपनियों को अमर्याद संपत्ति धारण करने की शक्ति दी गई है। देश और दुनिया की शोषणकारी नीतियों के कारण मनुष्य और पशु श्रम, प्राकृतिक संसाधन, टेक्नोलॉजी, मशिनीकरण आदी संपत्ति निर्माण के सभी साधनों से प्राप्त संपत्ति का लाभ केवल अमीरों को और कुछ कंपनियों को मिल रहा है।
विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार दुनियां के सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपत्ति का 76 प्रतिशत हिस्सा मौजूद है, जबकि 50 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपत्ति का केवल 2 प्रतिशत है। दुनिया के सबसे धनी 10 प्रतिशत अमीरों का कुल आय में हिस्सा 52 प्रतिशत है, जबकी सबसे गरीब 50 प्रतिशत लोगों का आय में हिस्सा केवल 8.5 प्रतिशत है। भारत में 1 प्रतिशत अमीरों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 21.7 प्रतिशत हिस्सा जाता है। 10 प्रतिशत अमीर कुल आय का 57 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त करते है। जबकि 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से में केवल 13 प्रतिशत आय आती है। भारत में करोडो लोगों के पास कमरतोड मजदूरी के अलावा जीवन यापन करने के लिये आय का कोई साधन नही है। जिनके पास है उनका भी शोषण किया जाता है। यह गुलामी की एक नई व्यवस्था है। इसे बदले बिना आर्थिक समानता संभव नही है।
जिनके पास संपत्ति है वह इसलिये नही की उनपर ईश्वर की विशेष कृपा है या वह विशेष क्षमतायें लेकर पैदा हुये है ताकि वह भोगवादी जीवन यापन कर सके। बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था का परिणाम है कि जिसके कारण श्रम का शोषण और प्रकृति का दोहन कर उससे प्राप्त संपत्ति को धारण करने का नीतिगत और कानूनी अधिकार अमीरों को दिया गया है। उसके लिये नीतियां बनाई गई और कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। इस व्यवस्थागत सुरक्षा को अगर हटा दिया गया तो हम सभी एक जैसे ही है। इस बात का जबरदस्त प्रतिवाद करने की जरुरत है कि अमीरों के टैक्स पर गरीबों का जीवन चलता है। सच्चाई यह है कि व्यवस्था द्वारा दी गई सुरक्षा निकाल दी गई तो श्रम करनेवाले लोग सबसे अमीर दिखाई देंगे। अगर बढती आर्थिक विषमता को समाप्त करने के लिये कोई अहिंसक तरीका नही ढूंढा गया तो आर्थिक विषमता के खिलाफ बढता आक्रोश व्यवस्था द्वारा प्रायोजित हिंसा के विरुद्ध प्रतिहिंसा को जन्म देगा।
हम मानते है कि आर्थिक विषमता मानवता के प्रति अपराध है। करोंडो भूखे, बेघर लोगों को सन्मानपूर्वक जीवन देना हो तो सामाजिक, आर्थिक समानता के लिये ‘संपत्ति सब रघुपतिकै आही’ के तत्व को स्वीकार कर कार्यक्रम बनाना होगा। संपत्ति दान अभियान चलाना होगा। जिस विचार के आधार पर भूमि वितरण कार्यक्रम बनाये गये, उसी विचार पर आधारित कार्यक्रम संपत्ति वितरण के लिये लागू करने होंगे।
1. संपत्ति दान – संपत्ति दान विचार के आधारपर समाज मान्य सीमा से अधिक की संपत्ति पर स्वेच्छा से वार्षिक दान आमंत्रित किया जाये और उसका वितरण लोगों की बुनियादी साधनों के आवश्यकता पूरी कराने के लिये उपलब्ध किया जाये।
2. ट्रस्टीशिप कानून – एक निश्चित मर्यादा से अधिक संपत्ति के लिये संपत्ति धारक को ट्रस्टीशिप कानून लागू कर ट्रस्टी बनाया जाये। जिसमें समाज मान्य सीमा तक संपत्ति रखने का अधिकार हो और उससे अधिक संपत्ति का उपयोग समाज के लिये किया जाये।
3. संपत्ति सीमाबंदी कानून – संपत्ति की अधिकतम सीमा निर्धारित करके उससे अधिक संपत्ति प्राप्त होने पर इसप्रकार टैक्स लगाया जाये ताकि उसकी संपत्ति सीमारेखा की मर्यादा में बांधी जा सके।
इन सभी से प्राप्त धनका उपयोग देश की जनता की बुनियादी आवश्यकता को पूरा करने के लिये किया जाये ताकि कोई अन्न, वस्त्र, आवास के बिना नही रहे। उसे स्वास्थ और शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध किये जाये। रोजगार के साधन उपलब्ध कराये जाये।
इस देश की गरीबी दूर करने के लिये इससे अच्छा कोई उपाय नही है। प्रत्येक व्यक्ति के लिये रोजगार का साधन उपलब्ध कराने या ऐसा व्यक्ति जिसे रोजगार उपलब्ध नही कराया गया, उसे रोजगार का साधन प्राप्त होनेतक बेरोजगारी भत्ता देने की व्यवस्था करनी चाहिये। समता मूलक समाज की दिशा में पहला कदम यही है कि कमसे कम लोगों कि बुनियादी आवश्यकता प्राप्त करने की व्यवस्था सभीके पास हो।
हम प्रतिज्ञा करनी होगी कि जमीन, हवा, पानी, जंगल, खनिज पर किसी की मालकियत स्थापन नही होने देंगे, उन्हे बिकने नही देंगे। बल्कि सभी संसाधनों पर भी निजी मालकियत समाप्त कर समाज की मालकियत स्थापन करेंगे। देश को गरीबी से बाहर लाने के लिये एक मर्यादा से अधिक संपत्ति रखने की अनुमति नही दी जा सकती। जरुरत से अधिक संपत्ति रखना पाप है, मानवता के प्रति अपराध है।
असंभव, अव्यवहारिक, युटोपिया यह सभी आरोप भूमि सुधार के तहत जमींदारी उन्मूलन, भूदान आंदोलन, भूमि सीमाबंदी कानून पर भी लगे थे। लेकिन समाज ने जब निश्चय किया तो एक तुफान खडा हुआ और जमींदारी प्रथा ढह गई, भूमि सीमाबंदी कानून लागू हुआ। भूदान आंदोलन में किसानों ने स्वेच्छा से जमीन दान दी। इतना ही नही भूमि सीमाबंदी कानून ही कृषि भूमि पर कारपोरेटी आक्रमण से किसानों की रक्षा कर रहा है। जो भूमि सीमा बांधने के लिये संभव हुआ, वह संपत्ति की सीमा बांधने के लिये भी संभव है। देश का शोषित समाज जब इस सच्चाई को समझेगा, तब फिरसे एक क्रांति जन्म लेगी। आज भूदान क्रांति दिवस पर आर्थिक समानता के लिये गांधी, विनोबा के विचारों का स्मरण करते हुये उस दिशा में प्रयास करने का संकल्प करते है।
भूदान एक आध्यात्मिक क्रांति का विचार है, जो मनुष्य को आवाहन करता है कि ‘सबै भूमि गोपाल की’ याने सभी भूमि ईश्वर की है। भूमि, हवा, पानी, जंगल ईश्वर के है। इसे व्यापक करते हुये भूदान आंदोलन में ही संपत्ति दान का विचार आगे आया। ‘संपत्ति सब रघुपतिकै आही’। सभी संपत्ति ईश्वर की है। क्योंकि संपत्ति पैदा करने में लगी सभी शक्तियां और साधन ईश्वर के है। बौद्धिक और शारीरिक श्रम, प्राकृतिक संसाधन और अन्य कौशल ईश्वर की देन है। इसलिये उससे प्राप्त संपत्ति भी ईश्वर की ही है। और ईश्वर की संपत्ति पर सभी का समान अधिकार होता है। भूदान के बाद अब संपत्ति दान मांगने का समय है। भूदान आंदोलन के समय एक नारा दिया जाता था, ‘धन और धरती बंट के रहेगी’। धरती तो बंट गई लेकिन धन का बंटवारा अभी बाकी है।

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