गुजरात के मोरबी में दर्दनाक हादसा, 150 साल पुराना पुल टूटने से 145 लोगों की मौत, लापरवाही, दुर्घटना या साजिश?
मरम्मती के लिये जिसे ठेका दिया गया उस पर अब तक एफआईआर क्यूँ नही?? क्या सरकार ठेकेदारों को बचाना चाहती है?
मरम्मती के लिये जिसे ठेका दिया गया उस पर अब तक एफआईआर क्यूँ नही?? क्या सरकार ठेकेदारों को बचाना चाहती है? वह लोगो कौन थे जिन्हें ठेका दिया गया था।
गुजरात के मोरबी में 150 साल पुराना पुल टूटने से 141 लोगों की मौत, लापरवाही, दुर्घटना या साजिश?
रिपोर्ट एनडीटीवी – सवाल आईना इंडिया का?
एस. ज़ेड. मलिक
मोरबी : मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर 1877 में बने पुल के रविवार शाम टूट जाने से अब तक लगभग 145 लोगों की मौत हो गई। एक निजी कंपनी द्वारा सात महीने तक पुल का मरम्मत कार्य करने के बाद इसे चार दिन पहले ही जनता के लिए फिर से खोला गया था। हालांकि पुल को नगरपालिका का “फिटनेस प्रमाणपत्र” अभी नहीं मिला था। यह जानकारी एक अधिकारी ने दी। मोरबी शहर में एक सदी से भी ज्यादा पुराना पुल शाम करीब साढ़े छह बजे लोगों से खचाखच भर गया।
मोरबी नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीपसिंह जाला ने कहा, “पुल को 15 साल के लिए संचालन और रखरखाव के लिए ओरेवा कंपनी को दिया गया था। इस साल मार्च में, इसे मरम्मत के लिए जनता के लिए बंद कर दिया गया था। 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर मरम्मत के बाद इसे फिर से खोल दिया गया था”।
उन्होंने कहा, ‘मरम्मत कार्य पूरा होने के बाद इसे जनता के लिए खोल दिया गया था। हालांकि स्थानीय नगरपालिका ने अभी तक (मरम्मत कार्य के बाद) कोई फिटनेस प्रमाण पत्र जारी नहीं किया था”।
जिला कलेक्ट्रेट की वेबसाइट पर पुल के विवरण के अनुसार, “यह एक ‘इंजीनियरिंग चमत्कार’ था और यह केबल पुल ‘मोरबी के शासकों की प्रगतिशील और वैज्ञानिक प्रकृति’ को प्रतिबिंबित करने के लिए बनाया गया था”।
सर वाघजी ठाकोर ने 1922 तक मोरबी पर शासन किया। वह औपनिवेशिक प्रभाव से प्रेरित थे और उन्होंने पुल का निर्माण करने का फैसला किया जो उस समय का ‘कलात्मक और तकनीकी चमत्कार’ था. इसके अनुसार पुल निर्माण का उद्देश्य दरबारगढ़ पैलेस को नज़रबाग पैलेस (तत्कालीन राजघराने के निवास) से जोड़ना था।
कलेक्ट्रेट वेबसाइट के अनुसार, पुल 1.25 मीटर चौड़ा था और इसकी लंबाई 233 मीटर थी। इसके अनुसार इस पुल का उद्देश्य यूरोप में उन दिनों उपलब्ध नवीनतम तकनीक का उपयोग करके मोरबी को एक विशिष्ट पहचान देना था।
गुजरात के मोरबी में पुल गिरने से हुए दर्दनाक हादसे में अब तक 145 लोगों की मौत हो गई। और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। इस हादसे के बाद एनडीआरएफ, नौ सेना, थल सेना एयरफोर्स मरीन कमांडोज सभ बचाव-राहत कार्य में जुटे हैं।
अब सवाल उठता है कि यह हादसा या साजिश या फिर लापरवाही?
मोरबी पुल हादसे से जुड़ी 5 बड़े सवाल : –
1 – सात – आठ दिन तक मरम्मती का काम चलने के बाद 4-5 दिनों तक निरक्षण के बाद पुल दर्शन के लिये खोला गया। बावजूद पुल टूट गया।
2 – मरम्मत के बाद बिना फिटनेस सर्टिफिकेट ब्रिज को समय से पहले खोल दिया गया किसके आदेश पर?
3 – दुर्घटना के बाद एनडीटीवी के निरक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 125 की क्षमता वाले इस पुल पर 500 लोगों को जाने की अनुमति क्यूँ दी गई ?
4 – जब 500 लोग उस पुल पर पहुंच गए तो उस पर वह कौन लोग थे ? जो पुल को ज़ोर – ज़ोर से हिलाना शुरू कर दिया और कुछ ही मिनटों में हिलता हुआ पुल के केबल टूट गया और वह हादसे का शिकार हो गया ?
5 – मरम्मती के लिये जिसे ठेका दिया गया उस पर अब तक एफआईआर क्यूँ नही?? क्या सरकार ठेकेदारों को बचाना चाहती है?
6 – वह कौन लोग हैं जिन्हें सरकार ने पुल मरम्मती के लिये ठेका दिया था
सूत्रों ने कहा कि फोरेंसिक अधिकारियों ने संरचना के नमूने एकत्र करने के लिए गैस कटर का इस्तेमाल किया है। सूत्रों ने कहा कि उन्होंने पाया कि लोगों की भारी भीड़ ने केबल ब्रिज की संरचना को कमजोर कर दिया। सोशल मीडिया पर वीडियो में दर्जनों लोगों को पुल पर कूदते और दौड़ते हुए दिखाया गया है, जो मनोरंजन के लिए संरचना को प्रभावित करने का एक जानबूझकर प्रयास प्रतीत होता है।
दिवाली की छुट्टियां मनाने मोरबी पहुंचा परिवार, हाल ही में गिरे मोरबी पुल की दुर्घटना में बाल-बाल बचा .अहमदाबाद के निवासी विजय गोस्वामी और उनके परिवार के सदस्य इस पुल पर रविवार दोपहर में पहुंचे थे लेकिन आधे रास्ते से ही डर कर लौट आए क्योंकि भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने इसे हिलाना शुरू कर दिया था। चार घंटे बाद उनका डर सच साबित हुआ जब पर्यटकों के बीच मशहूर माच्छू नदी पर बना यह पुल शाम साढ़े छ बजे गिर पड़ा और इसमें 145 से अधिक लोग मारे गए।
आजतक की रिपोर्ट के अनुसार – गुजरात के मोरबी में हुए ब्रिज हादसे में अब तक 134 लोगों की मौत हुई है बजकी एनडीटीवी के अनुसार 145 लोगों की मौत हुई। पिछले 15 घंटे से रेस्क्यू अभियान जारी है। रेस्क्यू के लिए सेना, नेवी, एयरफोर्स एनडीआरएफ, फायर ब्रिगेड, एसडीआरएफ की टीमें जुटी हुई हैं। अब तक 177 लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है। ब्रिज का मैनेजमेंट करने वाली कंपनी पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया है। जांच के लिए कमेटी बना दी गई है. कंपनी पर 304, 308 और 114 के तहत क्रिमिनल केस दर्ज किया गया है।
गुजरात के मोरबी में रविवार को केबल ब्रिज गिरने के हादसे (Gujarat’s Morbi Bridge Tragedy) में अब तक 134 लोगों की मौत हो चुकी है। अभी भी रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। इस बीच ब्रिज की मरम्मत करने वाली निजी कंपनी का बयान सामने आया है. कंपनी ने दावा किया था कि ब्रिज की मरम्मत संशोधित तकनीकी विशिष्टताओं के साथ की गई थी। 100 फीसदी काम पूरा हो गया था. ब्रिज कम से कम 8 से 10 साल तक चलेगी।
दरअसल, मोरबी का यह ऐतिहासिक पुल शहर की नगर पालिका के अधिकार में था. नगर पालिका ने इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी अजंता ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज को सौंपी थी. ओरेवा कंपनी से अगले 15 साल यानी 2037 तक के लिए पुल की मरम्मत, रख-रखाव और ऑपरेशन का समझौता किया गया था. पुल पर कंपनी के नाम का बोर्ड तो मौजूद था, लेकिन क्षमता को लेकर दोनों छोरों पर कोई सूचना या चेतावनी नहीं लिखी गई थी।
ओरेवा कंपनी इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों, कैलकुलेटर, घरेलू उपकरणों और एलईडी बल्ब बनाने वाली कंपनी है. ओरेवा ने ही देश में सबसे पहले एक साल की वारंटी के साथ एलईडी बल्ब बेचने की शुरुआत की थी। एक बल्ब बनाने वाली कंपनी को ब्रिज के रेनोवेशन का काम क्यों दिया गया, ये समझ से परे है।
ओरेवा समूह के मैनेजिंग डायरेक्टर ने 24 अक्टूबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था, “अगर लोग संपत्ति को नुकसान पहुंचाए बिना जिम्मेदारी से काम करते हैं, तो यह नवीनीकरण अगले 15 वर्षों तक जारी रह सकता है”, उन्होंने कहा कि पुल का “100 प्रतिशत” रेनोवेशन केवल 2 करोड़ रुपये में किया गया था।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का मोरबी में स्थानीय समाचार पोर्टलों द्वारा सीधा प्रसारण किया गया। स्थानीय पत्रकारों के सवालों के जवाब में ओरेवा के मैनेजिंग डायरेक्टर जयसुखभाई पटेल ने गुजराती में कहा, “जैसा कि हम जानते हैं, पुल का निर्माण ऐसे समय में किया गया था जब बहुत अधिक रेनोवेशन की टेक्नोलॉजी नहीं थी। पुल को बनाने के लिए केवल लकड़ी के तख्तों और बीम का इस्तेमाल किया गया था.” उन्होंने कहा कि कंपनियों (जैसे जिंदल) को इसकी जरूरतों के लिए लिखा गया था और तकनीकी विशिष्टताओं के अनुसार कच्चा माल प्राप्त किया गया था। पटेल ने आगे बताया कि वे पुल में प्रवेश को सीमित करने और भीड़ को प्रबंधित करने के लिए एंट्री फीस लेंगे. उन्होंने कहा था, “हम भी पुल की मजबूती को प्रभावित नहीं करना चाहते हैं। छात्रों के लिए और बड़े समूहों में आने वालों के लिए हम छूट देंगे. मुझे सटीक समझौता याद नहीं है, लेकिन हम इसमें संशोधन करेंगे. अगले सात साल तक एंट्री फीस में हर साल एक-दो रुपये की बढ़ोतरी करेंगे”।
पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ओरेवा ने देव प्रकाश सॉल्यूशंस नाम की कंपनी के एक पार्ट ‘प्रकाश भाई’ को रेनोवेशन प्रोजेक्ट का सब-कॉन्ट्रैक्ट दिया था। क्योंकि उस कंपनी ने 2007 में भूकंप के बाद मरम्मत का काम किया था. पटेल ने कहा कि उनकी कंपनी संचालन और रखरखाव को संभालेगी, जबकि लाइटिंग की जिम्मेदारी अहमदाबाद की एक कंपनी को दी गई थी।
एनडीटीवी द्वारा एक्सेस किए गए मोरबी नगर निकाय और अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड के बीच डील के अनुसार, रखरखाव और मरम्मत के लिए पुल को कम से कम आठ से 12 महीने के लिए बंद करना पड़ा. कंपनी ने नागरिक अधिकारियों से फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया, जिसकी पुष्टि मोरबी नगरपालिका एजेंसी के प्रमुख संदीपसिंह जाला ने रविवार को एनडीटीवी से की। घड़ी बनाने वाली कंपनी अजंता, ओरेवा समूह का हिस्सा है, जिसने पुल के लिए 17 रुपये प्रति टिकट बेचा। आजतक की रिपोर्ट में अनुसार 9 गिरफ्तारियां हुई लेकिन यह गिरफ्तारी वैसे लोगों की हुई जो मरम्मती का काम कर रहे थे जो टिकट काटने के काम मे लगे हुए थे, जो हुकुम के गुलाम थे। यानी लेबर का काम करने वाले लोग थे। अब भाजपा नेता मीडिया के सवालों पर लीपापोती कर रहे हैं।