हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक, मौलाना आज़ाद को उनके 135वें जन्म दिवस पर सब ने भुला दिया!
हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक, मौलाना आज़ाद को उनके 135वें जन्म दिवस पर हैदराबाद मानू के चांसलर फिरोज़ बख्त वरिष्ठ समाज सेवी भाव-भीनी नम आँखों से श्राद्धाजंलि दी कहा - सब ने भुला दिया!
कांग्रेस ने मौलाना आज़ाद, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री को भुला दिया, वहीं मौजूदा सरकार ने आज़ाद को भारतीय, पाठ्य क्रम की पुस्तकों से पूर्ण रूप से नदारद कर दिया।
हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक, मौलाना आज़ाद को उनके 135वें जन्म दिवस पर सब ने भुला दिया!
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भारत के प्रथम शिक्षामंत्री, स्वतंत्रता सेनानी, दक्ष लेखक व धुआं धार तकरीर करने वाले और हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक मजबूत प्रतीक मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के मजार पर आज उनकी 135वीं जन्म तिथि पर जब उन्हें श्रद्धांजलि देने सिवाय उनके कोई भी नहीं पधारा तो आंखों में आंसू लिए और रूंधे गले से उनके वंशज व मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलाधिपति, फिरोज़ बख़्त अहमद ने कहा, “खेद का विषय है कि हिंदू-मुस्लिम एकता का झण्डाधारी वह व्यक्ति, जिसने एक पत्रकार को इंटरव्यू देते हुए कहा था कि अगर जन्नत से एक फरिश्ता आ कर उन से यह पूछता है कि उन्हें भारत की आज़ादी अधिक प्यारी है या हिंदू-मुस्लिम एकता, तो उनका उत्तर था कि हिंदू-मुस्लिम एकता, क्योंकि आज़ादी तो देर-सवेर मिल ही जाएगी, मगर भारत के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता अत्यंत महत्वपूर्ण है! खेद का विषय है कि भारत के ऐसे हितैशी की निशानियां मिटाई जा रही हैं।” फिरोज़ ने आई सी सी आर का धन्यवाद करते हुए कहा कि, मात्र अब यही अर्ध सरकारी संस्था रह गई है जो 22 फ़रवरी 1958, आज़ाद की मृत्यु के बाद से उनकी जन्म व पुण्य तिथियों पर वर्ष में दो बार उन्हें याद कर लेती है, वर्ना यहां तो उनके जन्म दिवस व बरसी पर सन्नाटा ही रहता है। खेद का विषय है कि पहले राष्ट्रपति और दिल्ली के उप राज्यपाल की ओर से “रीथ” (श्रृद्धा सुमन) इन दोनों अवसरों पर अर्पित किए जाते थे, मगर आज वह भी होता है। जिस प्रकार से देश विदेश से आए विशिष्ट व्यक्तियों को महात्मा गांधी और पंडित नेहरू की समाधियों का दर्शन कराया जाता है, उसी प्रकार से भारत को ही नहीं, विश्व को भी अंतर्धर्म सद्भाव व समभाव और इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले आज़ाद के मज़ार पर भी उनको ले जाना चाहिए। जब आज़ाद के मजार पर कुत्ते लोटते थे और नशेड़ियों की महफिलें जमती थीं तो फिरोज़ बख़्त ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जन हित याचिका दायर कर न केवल उसे सुरक्षित कराया बल्कि वहां उनकी जीवनी दर्शाते हुए हिंदी, उर्दू व अंग्रेज़ी में शिला पट भी लगवाए।
बख़्त ने बताया कि जहां कांग्रेस ने मात्र एक ही परिवार को आगे बढ़ाया और आज तक बढ़ाती चली जा रही है, जहां कांग्रेस ने मौलाना आज़ाद, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री को भुला दिया, वहीं मौजूदा सरकार ने आज़ाद को भारतीय, पाठ्य क्रम की पुस्तकों से पूर्ण रूप से नदारद कर दिया। आई सी सी आर के “गोशा-ए-आज़द” (आज़ाद का कक्ष), में जब उनकी पुस्तकें हटाई जाने लगीं, तो फिरोज़ बख़्त ने इसके अध्यक्ष, विनय सहस्रबुद्ध से शिकयत की तो उनकी वे 8000 पुस्तकें वापस मंगाई गईं, जो आज़ाद के निजि पुस्तकालय का हिस्सा थीं। वैसे भारतीय स्कूली शिक्षा के पाठ्य क्रम पुस्तकों में जिस प्रकार से कांग्रेस ने महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरु के विषय में जीवनियां दी हैं, अच्छा होता कि मौलाना आज़ाद की आपसी भाईचारे की शिक्षा पर भी पांचवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा तक पाठ होते, मगर अफ़सोस, कांग्रेस ने आज़ाद को टिशु पेपर की भांति प्रयुक्त किया और उनका हक उन्हें कभी नहीं दिया।
बकौल बख़्त, अब वे लोग भी नदारद हो गए हैं, जिन्होंं ने बीते लगभग 45 वर्ष मौलाना आज़ाद से अपनी झूठी रिश्तेदारी जोड़ते हुए, विभिन्न राजनीतिक दलों को नाना प्रकार के पद पाकर सरकारी सुविधाओं को भोगा, गनडेरी की भांति चूसा और नीचे से गद्दी निकलते ही, विदेश को ठिकाना बनाया!