राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा देसिया और सौरा भाषा में अनुवाद कार्यशाला का आयोजन
आदिवासी भाषा की स्वतन्त्र लिपि नहीं है इसलिए उसकी चुनोतियाँ अधिक हैं।
श्री आलोक अंगुलिया ने कहा कि बचपन मे उन्होंने अपनी दादी से बाहुबली की कहानी सुनी थी जिस पर अब फ़िल्म बनी है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा देसिया और सौरा भाषा में अनुवाद कार्यशाला का आयोजन
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा आदिवासी गवेषणा मंच, कोरापुट के सहयोग से कोरापुट में दो आदिवासी भाषाओं – देसिया और सौरा – में द्विभाषी पुस्तकों के अनुवाद हेतु तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन 03 जनवरी 2023 को डॉ पी.सी महापात्र, निदेशक, जनजातीय शोध संस्थान, श्री आलोक कुमार अंगुलिया, डिप्टी कलेक्टर, श्री श्रीकांत जानी, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी सहित कई गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के निदेशक श्री युवराज मलिक ने ऑनलाइन संबोधित करते हुए सभी अनुवादकों को इस पावन कार्य के लिए बधाई दी और कहा कि मातृभाषा के माध्यम से ही जीवन के मूल मूल्यों से जुड़ सकते हैं। श्री मलिक ने सभी अतिथियों व अनुवादकों को नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के लिए भी आमंत्रित किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री पी.सी महापात्र ने आदिवासी भाषाओं में अनुवाद के अतीत पर प्रकाश डालते हुए इस क्षेत्र की भाषाओं में अनुवाद की सावधानियों पर विस्तार से बात की।
श्री आलोक अंगुलिया ने कहा कि भाषा के साथ उन का ज्ञान, कहानी आदि जो लुप्त हो रही थीं वे अब छप रही हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि बचपन मे उन्होंने अपनी दादी से बाहुबली की कहानी सुनी थी जिस पर अब फ़िल्म बनी है।
श्री श्रीकांत जानी ने अपने सम्बोधन में भाषा से संस्कृति के सम्बंध पर विमर्श करते हुए नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत मूल भाषा में प्राथमिक शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला।
श्री जगबंधु समल ने कहा कि आदिवासी भाषा की स्वतन्त्र लिपि नहीं है इसलिए उसकी चुनोतियाँ अधिक हैं।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के संपादक श्री पंकज चतुर्वेदी ने न्यास की गतिविधियों और भाषा अनुवाद की आवश्यकता पर उद्बोधन दिया। सुश्री कुसुमलता सिंह, संपादक – ककसाड़ ने अनुवाद की आवश्यकता पर जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ राजेन्द्र पाधि ने किया।
इस तीन दिवसीय कार्यशाला में उड़िया – देसिया, अंग्रेजी – देसिया, उड़िया- सौरा और अंग्रेजी- सौरा में 12 पुस्तकों का अनुवाद व सम्पादन का कार्य सम्पन्न हुआ।