शेयर बाजार : अदानी शेयर : शेयर होल्डर का डूबता पैसा

नियमों के अनुसार कंपनियों के 25% शेयर पब्लिक के पास रहने चाहिए।

नियमों के अनुसार कंपनियों के 25% शेयर पब्लिक के पास रहने चाहिए। साफ है कि 25 परसेंट शेयर धारक मध्यमवर्ग से हैं। शेयर गिरने से इन शेयरधारकों को भारी नुकसान हुआ है।

शेयर बाजार : अदानी शेयर : शेयर होल्डर का डूबता पैसा

एमपीएनएन – संवादाता 

अदानी ग्रुप दुनिया के पूंजी बाजार में तेजी से दौड़ रहा था। लगातार यह चर्चा गर्म रहती थी कि दुनिया के अमीरों में अडानी किस नंबर पर है। अखबार और टीवी चैनल इस तरह चर्चा करते, देखो देश तरक्की कर रहा है, अदानी कहां पहुंच गया है, हमारे सेठ दुनिया को टक्कर दे रहे हैं। इस चर्चा में एक बार भी यह जिक्र नहीं आता कि अडानी या अन्य किसी सेठ का धन बढ़ने पर देश के गरीब वर्ग का क्या भला होगा या कुछ सेठों के पास धन के भंडार बढ़ने से गरीब अमीर के बीच जो खाई बढ़ रही है, वह बेहद नुकसानदेह है। अमीर और अमीर होता है तो और संपत्ति खरीद लेता है। लेकिन पूरे मीडिया तंत्र को इसके कारण समाज पर पड़ने वाले खराब असर की कोई चिंता नहीं है। ऐसे खुशनुमा माहौल में हिंडनबर्ग रिपोर्ट आती है तारीख 24 जनवरी 2023, 23 जनवरी को अडानी की संपत्ति 121 अरब डालर थी। अधिक संपत्ति शेयर के रूप में चाहिए । रिपोर्ट के प्रभाव से 24 फरवरी तक संपत्ति का मूल्य गिरकर $41 अरब रह गया। ठीक वैसे ही जैसे कि किसी गुब्बारे की हवा निकल गई हो। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में 88 सवाल उठाए गए थे। रिपोर्ट में दावा किया गया कि यह ग्रुप वर्षों से शेयरों में हेरफेर और एकाउंट में गड़बड़ी में शामिल है। इस रिपोर्ट से शेयर खरीदारों का भरोसा टूटा और शेयर लगातार गिरते चले गए। कोई नहीं बता सकता कि यह सिलसिला कब थमेगा। अदानी शेयर मामले का चिंताजनक पहलू शेयर खरीदारों का पैसा डूब जाना है। यह खरीदार वह पब्लिक है जो मध्यम वर्ग का हिस्सा है। नियमों के अनुसार कंपनियों के 25% शेयर पब्लिक के पास रहने चाहिए। साफ है कि 25 परसेंट शेयर धारक मध्यमवर्ग से हैं। शेयर गिरने से इन शेयरधारकों को भारी नुकसान हुआ है। अगर शेयर की कीमत घटने पर 100 करोड़ का कुल नुकसान होता है तो 25 करोड़ का नुकसान इस वर्ग को होगा। इन लोगों ने कंपनी के भरोसे पर पैसा लगाया इसलिए डूबा कि कंपनी द्वारा गलत तरीके अपनाए गए और शेरों का भाव ऊंचे दिखाई देता रहा। सवाल यही है कि यह शेयर धारक शेयर बाजार से पैसा कमाना चाहते थे, सरकार को टैक्स देने को तैयार थे और सेबी नामक संस्था पर भरोसा करते थे जो सरकारी कानून से बनी है और जिसका काम यह देखना है कि कंपनियां सही ढंग से चलें तथा अनुचित व्यवहार न करें। शेयरों का भाव कृत्रिम रूप से नहीं बढ़ सके। अब इन शेयरधारकों के घाटे की भरपाई कौन करेगा ? यह जिम्मेदारी तो सरकार की बनती है क्योंकि कंपनी ने गलत तरीके अपनाए। इसलिए कंपनी की संपत्ति से इन छोटे शेयरधारकों के आर्थिक नुकसान की क्षतिपूर्ति की जाए। यूं तो शेयर बाजार में पैसा लगाना जोखिम भरा है और इस बात को जानते हुए ही लोग पैसा लगाते हैं। लेकिन शेयरों की यह गिरावट वास्तविक होना चाहिए। किसी कंपनी द्वारा हेराफेरी के कारण ऐसा नहीं होना चाहिए।

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