परिवर्तन – यह प्रकृत्तिक का नियम भी है और समय की मांग भी!
परिवर्तन - समय की मांग है - व्यक्ति में, स्थिति में, मौसम में, देश मे, राजनीति में, जलवायु में, परिवर्तन होना सुनिश्चित होना है यह प्रकृत्तिक का नियम भी है।
हमदोनों का प्यार राधा-कृष्ण के प्रेम की तरह अटूट, और सच्चा था। बावजूद इसके हम कभी एक न हो सके- चोट मेरे तो दर्द उसके – कराह मेरी तो आंसू उसके – आज जुदा हो कर भी हम ज़िंदा हैं
कहानी
परिवर्तन
जिंदगी में उतार-चढ़ाव हमेशा बना रहता है और जिंदगी में कुछ पल ऐसे भी होते है जब हमें अपनों की सख्त जरूरत होती है।ऐसे जरूरत के समय यदि कोई साथ न हो तो गहरा अकेलापन महसूस होता है जो अवसाद की तरफ धकेलता है।
मैं खुशनसीब हूं कि, मेरे माता-पिता मेरे साथ है मुझे समझते है।
उनकी सोच समय के अनुकूल है, जो मेरे जीवन का बहुत बड़ा सहारा है ।समय के साथ चलना वे अच्छे से जानते है।यही वजह है कि, हरजगह वे मुझे संभाल लेते है।
उन्होंने कभी भी अपनी इच्छा मुझ पर लादने की कोशिश नहीं की। भला बुरा हमेशा मुझे समझाते रहे और जहां भी मैं डगमगाई हाथ पकड़कर मुझे सही रास्ता दिखाते रहें हैं।
छोटी से छोटी , बड़ी से बड़ी हर मुश्किल में इन्होंने मेरा साथ दिया है । मैं बहुत खुशनसीब हूं जो ऐसे माता पिता मुझे मिले हैं । ऐसा परिवार मुझे मिला है जो हर वक्त मेरे साथ खड़ा है। मेरे भाई बहन मेरा परिवार मेरी आन और मेरा सम्मान दोनों है। समय के साथ चलना और परिवर्तन को स्वीकार करना मैंने अपने माता-पिता में बखूबी देखा है ।
मुझे तब भी संभाला जब मैं अपने पहले प्रेम में असफल रही। मैं टूटकर पूरी तरह बिखर चुकी थी, अवसाद ग्रस्त हो चुकी थी ,मगर मेरे माता पिता ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा ।
मुझे इन सब से बाहर निकाल कर खुश रखने का पूरा प्रयास किया।
आज मैं बहुत खुश हूं इतनी खुश कि, मेरे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं।मेरी शादी वैसे खानदान में होने जा रही थी जिस खानदान में आज से पांचसाल पहले बहु बनकर जाना चाहती थी।यदि संजय ने मुझे नही ठुकराया होता तो ,मेरी संजय से शादी हो चुकी होती?
संजय बहुत चाहता था मुझे। मुझसे बेइंतहा प्यार करता था, मैं भी उसपर जान छिड़कती थी। हमदोनों का प्यार राधा-कृष्ण के प्रेम की तरह अटूट, और सच्चा था। तकलीफ मुझे होती थी दर्द उसे होता था। रोती मैं थी और आंसु उसके आंखो से निकलती थी । लगता था जैसे हमदोनों बिछ्ड़कर एक दूसरे के बिना जी नही पाऐगें? पर अफसोस !! हम दोनों जिन्दा है !!
उसने शादी कर ली ?हमारा प्रेम बीच रास्ते में रह गया; इतना प्यार इतनी चाहत होते हुए भी संजय अपने माता पिता से मेरे बारे में बात नही कर सका।संजय ने माता पिता के कहने पर चुपचाप वहां शादी कर ली जहां उसके माता पिता ने कहा;
मुझसे आखिरी बार संजय ने सिर्फ इतना कहां कि, काश तुम मेरी जात की होती ?काश तुम भी ब्राह्मण होती तो मेरे माता पिता तुम्हे स्वीकार कर लेते।
मैंने संजय से कहा भी कि’ तुम अपने माता पिता से बात तो करके देखो?मैं पढ़ी लिखी हूं तुम्हारे साथ तुम्हारी आफ़िस में काम करती हूं ,हमदोनों की तनख्वाह और पोस्ट भी बराबर है फिर क्यों तुम्हारे माता पिता को एतराज होगा?
हां मैं जानता हूं तुम हर तरह से मेरे लायक हो परंतु मेरे माता-पिता नहीं मानेंगे ,उन्हें अपनी ही जाति की लड़की मेरे लिए चाहिए। मेरा बात करना उनसे फिजूल है क्योंकि मेरे माता-पिता जो तय कर लेते हैं इससे एक कदम भी पीछे नहीं हटते है।
तुम सब जानते थे तो फिर क्यों मुझसे प्रेम किया?
क्यों इतने समय तक तुमने मुझे धोखे में रखा?
मेरी भी कुछ उम्मीदे ,मेरे भी माता पिता की भी मुझसे उम्मीदें है,मेरे माता पिता ने तो कोई बंदिश मुझपर नही लगाकर रखी है ,वे इतना ही चाहते हैं कि, मैं समय से शादी कर लूं।
बस अच्छा लड़का मिल जाए चाहे जिस भी जाति का हो।
मेरे माता पिता ने तो कभी भी मुझे इस बात के लिए नहीं रोका तो फिर तुम्हारे माता-पिता क्यों ?
हमदोनों आत्मनिर्भर है किसी को कोई एतराज नही होना चाहिए।
तुम खुशनसीब हो शीला तुम्हारे माता पिता की सोच समय के साथ चल रही है परंतु मेरे माता पिता की सोच समय से काफी पीछे है। मुझे लगा था कि, समय के साथ ये लोग अपनी सोच बदल लेंगे ,परंतु ऐसा नहीं हुआ ।मैं अपनी मर्जी से शादी कर भी लू तो तुम्हारी जिंदगी के साथ अन्याय होगा;
आजीवन तुम्हे छोटी जाती का होने का ताना सुनना पड़ेगा;
मैं अपने माता पिता का इकलौता संतान हूं इसलिए उन्हे छोड़ भी नही सकता।
मैं तुम्हारा गुनहगार हूं तुम जो भी सजा दो मुझे मंजूर होगी।
तुम एक मजबूर, कमज़ोर और कायर इंसान हो, अपनी आन बान और शान के साथ तुम समझौता नहीं कर सकते ?तुम्हें क्या सजा दूं ,
मैं तो नहीं पर वक्त तुम्हें जरूर सजा देगा?
प्यार के नाम पर किसी की भावनाओं से खेलते रहना अन्याय है।
आज इसबात को पांच साल बीत चुके है और एक अरसे बाद मैं खुश हूं ।मेरे लिए मेरे पिता की पसंद सर आंखो पर। वो लड़का कोई और नही संजय का चचेरा भाई सुजल था।
सुजल के माता पिता और सुजल ने खुद मेरे पिता के पास विवाह प्रस्ताव भेजा है ,जिसे मेरे पिता ने स्वीकार कर लिया है।
मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश हूं। मेरी काबिलियत, मेरा ओहदा और मेरा व्यवहार सब सुजल के घरवाले को पंसद आया। उन्होने खुशी खुशी सुजल के लिए मेरा हाथ मांगा।
मैं खुश थी इसबात से की संजय को सजा मिल गई।अब मैं उसके चचेरे भाई की पत्नी कहलाउंगी ।
वो जब भी मुझे देखेगा ,जरूर उसके अंदर कुछ न कुछ टुटेगा ।बीच राह में छोड़ जाने का अफसोस होगा?इससे बड़ी सजा उसके लिए और क्या हो सकती है?
प्यार बगावत नही सिखाता मगर प्रेम को अधूरा छोड़ देना भी कायरता की निशानी है।प्रेम सच्चा हो तो एक न एक दिन सबका आशिर्वाद जरूर मिलता है।जरूरत है तो, बस परिवर्तन को स्वीकार करने की।क्योंकि इंसान की एक ही जाति होती है इंसानियत।
लेखिका -सुनीता कुमारी
बिहार