बिहार मल्लिक बिरादरी के इत्तिहास में पहली लड़की यूपीएससी में 193 अंक लेकर कामयाब – समुदायें में खुशी की लहर।

5वीं पीढ़ी से लगातार परम्परागत भारतीय प्रशासनिक सेवा में समर्पित परिवार की बेटी ज़ुफिशां हक़ भी अब भारत को अपनी प्रशासनिक सेवा देने की तैयार।

5वीं पीढ़ी से लगातार परम्परागत भारतीय प्रशासनिक सेवा में समर्पित परिवार की बेटी ज़ुफिशां हक़ भी अब भारत को अपनी प्रशासनिक सेवा देने की तैयार।

बिहार मल्लिक बिरादरी के इत्तिहास में पहली लड़की यूपीएससी में 193 अंक लेकर कामयाब – बिरादरी में खुशी की लहर।

5वीं पीढ़ी से लगातार परम्परागत भारतीय प्रशासनिक सेवा में समर्पित परिवार की बेटी ज़ुफिशां हक़ भी अब भारत को अपनी प्रशासनिक सेवा देने की तैयार।

-Miss Zufishan,

एस.जेड. मलिक

नई दिल्ली – एक दौर ऐसा था जब मुस्लिम समाज मे लडकियां पैदा होती थी तो उसे श्राप समझा जाता था समाज मे उस के मां बाप को कहीं अपमानित होना पड़ता था तो कहीं मजबूरी में अपनी ही लड़की को अपने हांथों हत्या करना पड़ता था। परंतु अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त बड़ा ही मेहरबान है, और वह अपने बन्दे को हर वह अच्छी वस्तु प्रदान कर उसकी धैर्य की परीक्षा लेता है, जिसे मर्द-बन्दा अपने मन-बहलावन खिलौना समझ कर उसका इस्तेमाल करता है उसे उसे बच्चों की तरह का फेकता है तो कभी उसे तोड़ता रहता है, फिर भी अल्लाह उसे देना बंद नहीं करता वह दे दे कर आज़माता रहता है, बाजूद बन्दे यदि नहीं मानते तो फिर अल्लाह स्थिति बदल देता है और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हर दौर मे अपनी लाचार बेबस जीवों की रक्षा करने लिये कोई न कोई अवतार उतारा है और दानवीय उस दौर में भी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने एक अवतार के रूप में अंतिम प्रतिष्ठित सम्मानीय हज़रत मोहम्मद सल्लाहै-वालैहे वसल्लम को अत्यचार रोकने के लिये नबी बना कर भेजा और जब उन्होंने बेटियों को अल्लाह की रहमत अर्थात अल्लाह का दैविक शक्ति की सौगात बताया तो संसार ने भी माना और फिर बेटियों को अल्लाह की रहमत समझते हुए उसे सम्मानित स्वरूप उनकी सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से लालन-पालन एवं समान रूप से बेटे के बराबर का दर्जा दिया जाने लगा। आज उसी का परिणाम है कि बेटियां बेटे से बढ़ कर पुरुस्कृत सम्मानीय कार्य कर रही हैं – फिर आज एक दौर ऐसा आया जहां बेटीयां के लिये विशेष क़ानून बना कर उन्हें आगे बढ़ने के लिये सरकार स्वयं अग्रसर है। भला ऐसे में समझदार बेटियां क्यूँ न आगे बढ़ कर कामयाबी हांसिल करें।

आज हिंदुस्तान के वैभब क्रांतिकारी विचारवानों और आविष्कारकों को जन्म देने वाली धरती बिहार – जहां विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय नालंदा में बनाया गया और उसी ज़िला से उपजा मल्लिक बिरादरी, जिस बिरादरी में लड़कियों को रूढ़िवादी परम्पराओं में जीने के लिये मजबूर किया जाता था आज उसी समुदायें की एक लड़की अपने रूढ़िवादी परम्पराओं के मकड़ जाल को तोड़ कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिये अन्य विकसित समुदायें के साथ दौड़ में आगे निकल गयी जिसकी इस कामयाबी से मुस्लिम सम्प्रदाय के अतिरिक्त मल्लिक बिरादरी में सब से अधिक खुशी की लहर दौड़ रही है एवं बिरादरी आज गौरवान्वित है। मैं समझता हूं की इस लड़की के कामयाबी से मल्लिक बिरादरी की लड़कियों में हौंसला बढ़ेगा और बिरादरी के लोग अपनी बच्चियों को उच्च शिक्षा लेने के लिये प्रोत्साहित करेंगे। ज़ुफिशां की कामयाबी से उन्हें बल मिलेगा वह उत्साहित पूर्वक हर प्रयोगिता में भाग लेने के लिये अग्रसर रहेंगी।

बहरहाल बिहार के ज़िला नालंदा के एक घनी आबादी वाला बड़ा सा गाँव बिरनावां जिसका एक अपना एक इत्तिहास है वहां के एक सुखी-सम्पन्न परिवार की भी अपनी एक दिलचस्प कहानी है उसी परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक सरकारी शैक्षणिक संस्थान से सेवानिर्व्रित महफुजुल हक जिनके पूर्वज 1839 से ही मुगल कालीन में ही चौबेदार जो राजा के साथ साय की तरह रहने वाले एक ज़िम्मेदार पद पर ज़िम्मेदारी के साथ विराजमान रहे। उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी ब्रिटिश हुकूमत में सूबेदार, एवं भारतीय पुलिस प्रशासन में इंस्पेक्टर के पद पर परम्परागत भारतीय प्रशासनिक सेवा में अपने आपको समर्पित रहे। महफ़ूज़ल हक़ साहब के पिता यानी ज़ुफिशां के दादा शहाबुद्दीन साहब 1944-45 बैच के इंस्पेक्टर थे जो 1976 में सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद उसी गाँव से मल्लिक बिरादरी के तीन लोग भारतीय प्रशासनिक के उच्च पद पर पदस्त हुए जिसमे सबसे पहले एम.ए. इब्राहीमी बिरादरी के प्रथम आईएएस बने उनके 40 साल बाद 2021 में उसी गाँव से सम्बन्ध रखने वाले एक युवा शब्बीर आलम आईएएस बने और अब तीसरी 2023 में उसी गाँव बिरनावां की पोती – बेटी और मल्लिक बिरादरी की पहली बेटी ज़ुफिशां अपने छोटे चाचा प्रो. डॉ. आसमी रज़ा के नेतृत्व में यूपीएससी की परीक्षा 193 अंक प्राप्त कर देश, राज्य एवं समुदायें का जहां नाम रौशन किया वहीं बिरादरी की बेटियों को आगे की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करते हुए कामयाबी के शिखर को छूने के लिये प्रोत्साहित किया है। हालांकि उस गाँव मे ज़ुफिशां की न जन्म हुआ और न परवरिश हुई। उनका जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ और उनका लालन-पालन व प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा नार्थ वेस्ट के सिक्किम में हुआ परन्तु आईआईटी पटना से एम-टेक में गोल्ड मेडल हासिल कर 2023 में यूपीएससी के 193 रैंक हासिल कर कामयाबी की शिखर को छूआ।

बहरहाल – महफ़ूज़ल हक़ जिनका कर्मभूमी नार्थ-वेस्ट आसाम और सिक्कम रहा वही से उन्हीने उच्च शिक्षा हांसिल कर वही एक सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य बने और अपेन सुखी सम्पन्न परिवार तीन बेटियों के साथ खुशाल जीवन यापन करने लगे तथा वहीं से अपने बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा – दीक्षा के साथ एक सुंदर वातावरण तैयार किया जिसमें उनकी तीनो बेटीयां उच्चस्तरीय शिक्षा हांसिल कर, बिहार सरकार और भारत उच्च पदों की हक़दार हैं।

 महफूज़ुल हक़ साहब ने तो अपने पैतृक गांव बिरनावां से ही प्रारंभिक शिक्षा हांसिल की लेकिन इसके आगे की शिक्षा हासिल कर नार्थ-वेस्ट इंडिया के सिक्किम के गंगटोक में गंगटोक में एक आसाम के सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक पद तक पहुंचे और उसी पद से सेवानिवृत हुए। जबकि उनके पैतृक गांव बिरनावां में आज भी उनकी काफी प्रोपेर्टी मौजूद है परंतु वह सेवानिवृत के बाद अपने पैतृक गांव बिरनावां में न बस कर वह बिहार की राजधानी पटना के फुवारिशरीफ के हारून कालोनी में अपना एक खूबसूरत सा आशियाना बना कर अपने छोटे से परिवार के साथ सुखी-सम्पन्न जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वही ज़ुफिशां का जन्म तो हुआ परन्तु लालन-पालन  शिक्षा दीक्षा नार्थ-वेस्ट के सिक्किम की राजधानी स्थित गंगटोक शहर के होलीक्रॉस स्कूल से प्राप्त कर सिक्किम के मणिपाल यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की डिग्री हांसिल की और उसके बाद पटना से आईआईटी से एम-टेक में गोल्ड-मेडलिस्ट हुई। उसके बाद दिल्ली के मुखर्जी नगर में अपने चाचा दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रो. डॉ. आसमी रज़ा की निगरानी में यूपीएससी के प्रतियोगिता की तैयारी की और उस  की परीक्षा का अंतिम पड़ाव दिल्ली में साक्षात्कार दे कर अंततः कामयाबी के शिखर को छू लिया।

आपको बताते चलें कि ज़ुफिशां का सम्पूर्ण परिवार सुखी-सम्पन्न, सुदूर-सुभाव, बुद्धिजीवी, शिक्षित एवं उच्च पद पर विराजमान है। ज़ुफिशां के पिता महफूज़ुल हक़ चार भाई हैं उनमें से पिछले साल 2021 में एक मंझले भाई यानी दूसरे नम्बर वाले मंज़ूरुल हक़ का देहांत हो गया वह आईजी (सीआरपीएफ) से सेवानिवृत्त हुए थे। तीसरे नम्बर पर आसमी रज़ा जो दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और चौथे सबसे छोटे भाई तनवीरुल हक़ जो आसाम में एक अच्छे बिजनेसमैन हैं। ज़ुफिशां की माताश्री निकहत हक़ गृहणी है पर वह भी शिक्षित और बुद्धिजीवी हैं।
ज़ुफिशां की कामयाबी पर परिवार के साथ साथ बिरादरी एवं मुस्लिम समुदायें तथा अन्य सगे सम्बन्धियों की ओर से बधाइयों का तांता लगा हुआ है।

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