इंद्रा बनाम पटेल – 31अकटुबर

31 अकटुबर - एक की जयंती और एक का शहादत दिवस ।

वर्तमान सरकार द्वारा स्वर्गीय इंदिरागांधी तमाम किये कार्यों को सरदार पटेल के नाम पर छुपाने की कोशिश – चौधरी यतेंद्र सिंह

इंद्रा बनाम पटेल 

31 अकटुबर- एक की जयंती और एक का शहादत दिवस 

वर्तमान सरकार द्वारा स्वर्गीय इंदिरागांधी तमाम किये कार्यों को सरदार पटेल के नाम पर छुपाने की कोशिश – चौधरी यतेंद्र सिंह

 

31 अक्तूबर को सरदार बल्लभ भाई पटेल की ज्यांति और इंदिरा गांधी का शहादत दिवस । यह संजोग संयोग कहें या प्रयोग जो आज के दिन वर्तमान सरकार सरदार पटेल के नाम पर कई योजनाओं की घोषणा कर  सकती है। जिस तरह 25 दिसम्बर यानी क्रिसमस दिवस को धूमिल करने के लिए Good Governance Day मनाया जाने लगा है इसी तर्ज़ पर इंदिरा गांधी को ढकने के लिए पटेल के नाम पर शोर शराबा होता है। ख़ैर यह अपनी अपनी समझ और एजेंडा है। आज के दिन मैं इंदिरा जी के बारे में संक्षिप्त सा लेख यह बताने के लिए लिख रहा हूँ कि मोदी जी से पहले भी प्रधानमंत्री हुए हैं और वे भी लोकप्रिय रहे हैं, कर्मठ रहे हैं, उन्होंने भी देश और विदेश में ख्याति पाई है। इस लेख के माध्यम से मैंने यह बताने का प्रयास किया है कि व्यक्ति के अंदर समय के साथ बुराइयाँ आती हैं जो उसके पतन का कारण बनता है। फ़रवरी 1959 में इंदिरा गांधी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया तो उस समय नेहरु विरोधियों ने इसे बेटी के लिए प्रधानमंत्री पद की राह आसान करना ठहराया। नेहरू जी के निधन के बाद तमाम वरिष्ठ कांग्रेसियों ने लाल बहादुर शास्त्री जी के हक़ में फ़ैसला लिया और उन्हें प्रधानमंत्री बनाया। शास्त्री जी ने पहली बार मई 1964 में इंदिरा गांधी को मंत्री बनाया और सूचना और प्रसारण मंत्री का भार सौंपा। सितम्बर 1965 में पाकिस्तान ने छम्ब क्षेत्र में युद्ध छेड़ दिया। इसके जवाब में भारतीय सेना ने भी कार्यवाही की और उसने लाहौर की ओर कूँच कर दिया। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए 22 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ ने दोनों देशों के बीच युद्दहबंदी कराई और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी व पाकिस्तान के राष्ट्रपति आयुब खान को संधि के लिए ताशकंद में निमंत्रित किया । समझौते के कारण या किसी अन्य वजह से उसी रात शास्त्री जी की दिल के दौरे पड़ने से वहीं मौत हो गई। कांग्रेस के अंदर काफ़ी विचार विमर्श के बाद 24 जनवरी,1966 को इंदिरा गांधी को शास्त्री जी के स्थान पर प्रधानमंत्री बनाया गया। उस समय उनके सामने अनेक संकट व चुनौतियाँ थीं । देश में उसी साल भयंकर अकाल पड़ा। अकाल के कारण ग्रह युद्ध की जैसी स्थिति बन गई पर इस सब से विचलित हुए बिना इंदिरा जी ने सभी राजनीतिक व सामाजिक चुनौतियों का सामना किया और उनका निराकरण किया। 1967 में उन्होंने लोकसभा चुनाव में भाग लिया और 45 दिन के चुनाव अभियान में 25 हज़ार किमी की यात्रा की। उन्होंने अपना क्षेत्र रायबरेली चुना । इससे पहले उनके पति फ़ीरोज़ गांधी इस क्षेत्र से चुने जाते रहे। 1967 के चुनाव में सभी राजनैतिक दलों व राजा महाराजाओं ने मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस जीत गई । अब फ़ैसले करने की बारी थी। सबसे पहले उन्होंने राजा महाराजाओं का वर्चस्व ख़त्म किया और 14 प्राइवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। ये दोनों फ़ैसले ऐतिहासिक थे जिससे जनता में उनका भरोसा बढ़ा दिया। इसके बाद 1971 में “ग़रीबी हटाओ”के नारे के साथ वे पुनः सत्ता में लौटीं। तब तक इंदिरा जी स्थापित हो चुकी थीं । इसी दौरान उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। इस घटना ने इंदिरा जी को देश ने आखों पर बिठा लिया। पाकिस्तान की इस पराजय पर विपक्ष की प्रथम पंक्ति के नेता अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें दुर्गा की उपाधी से नवाज़ा। पाकिस्तान पर इस विजय के फलस्वरूप राष्ट्रपति वी वी गिरी ने उन्हें भारत रत्न देने की सिफ़ारिश की। सन 1974 में परमाणु परीक्षण किया गया जिससे उनके रूतबे को और बढ़ा दिया । 1975 में उन्होंने सिक्किम का विलय भारत में कराया। इतने लम्बे कार्यकाल में कई विवादास्पद निर्णय लिए गए जिससे उनकी आलोचना भी हुई। 1969 में उनका बेटा संजय गांधी विश्वविख्यात कार निर्माता कम्पनी रोल्स रायस से प्रशिक्षण लेकर आया और उसने सस्ती कार बनाने के लाइसेंस के लिए आवेदन किया तो विपक्ष के तमाम विरोध के बावजूद उन्होंने हरियाणा में इस के कारख़ाने के लिए 15 हज़ार किसानों की 300 एकड़ ज़मीन आबँटित कर दी। संजय की बढ़ती सक्रियता के साथ कांग्रेस में ही एक गुट पनपने लगा और उनकी आलोचना होने लगी। उस समय जयप्रकाश नारायण का राजनीतिक उदय हो चुका था । इसी दौरान एक अनोखी घटना घटी । 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया। इस फ़ैसले के बाद विपक्ष के तेवर तीखे हो गए और उनका चारों ओर विरोध होने लगा। ऐसे कठिन समय में इंदिरा के नज़दीकी सिद्धार्थ शंकर राय ने उन्हें संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगाने की सलाह दी । 25 जून 1975 को ही विपक्ष ने रामलीला मैदान में इंदिरा को हटाने के लिए एक जनसभा का आयोजन किया। इसी बीच राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा बताते हुए आपातकात की घोषणा कर दी । इसके साथ ही विपक्ष के नेता गिरफ़्तार कर लिए गए और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सहित 13 संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया। एक व्यक्ति राम भी है और रावण भी है। उसे अपने सही ग़लत का भी आभास होता है इंदिरा गांधी को भी अफ़सोस हुआ और उसी को ध्यान रखकर जनवरी 1977 में उन्होंने लोकसभा को भंग कर चुनाव की घोषणा कर दी। तमाम राजनीतिक क़ैदियों को रिहा कर दिया गया। आपातकाल के बावजूद उन्होंने वैयक्तिक व राजनीतिक आज़ादी बरकरार रखी । मीडिया ने उनकी ग़लतियों को उजागर किया। उन्होंने देश को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया। यहाँ तक कि उन्होंने कोर्ट के अधिकारों पर कोई दख़ल नहीं दिया । 1977 के चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। इंदिरा व संजय दोनों हार गए । जनता पार्टी की विजय हुई । जनता पार्टी में पुरानी कांग्रेस, भारतीय लोकदल, भारतीय जनसंघ व संयुक्त सोशलिस्ट शामिल थे। एक वैकल्पिक व्यवस्था के तहत सब एक साथ आए थे पर उनके विचारों में कोई तालमेल नहीं था और वैचारिक मतभदों के कारण जनता पार्टी टूट गई। 1980 में पुनः इंदिरा गांधी की वापिसी हुई। अब इंदिरा गांधी पहली वाली नहीं रह गई थीं बल्कि राजनीति में टिके रहने के लिए उन्होंने कई विवादास्पद निर्णय लिए। इसी के चलते 31 अक्तूबर 1984 की सुबह उनके सुरक्षा कर्मियों ने उनकी हत्या कर दी। इंदिरा गांधी हों या कोई और प्रधानमंत्री उनके बारे में लिखने के लिए बहुत कुछ होता है पर मेरे इस लेख के द्वारा मैं यह कहना चाहता हूँ कि अपने समय में सब लोकप्रिय रहे हैं । वर्तमान शासकों के समर्थकों को भी यह समझना चाहिए कि इससे पहले भी देश चल रहा था और इसके बाद भी चलेगा।

Comments are closed.