झुग्गी झोपड़ी में जीवन व्यतीत करने वाले भी बन जाते हैं आईपीएस अफसर !

झुग्गी झोपड़ी में बचपन बीता, पिता चपरासी थे, अपने अथक प्रयास से बेटा बन गया आईपीएस अफसर: नूरुल हसन की दास्ताँ। 

झुग्गी झोपड़ी में जीवन व्यतीत करने वाले भी बन जाते हैं आईपीएस अफसर !

एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

 

झुग्गी झोपड़ी में बचपन बीता, पिता चपरासी थे, अपने अथक प्रयास से बेटा बन गया आईपीएस अफसर: नूरुल हसन की दास्ताँ।

“मेहनत बंद दरवाजे की वह चाबी है, जो तकदीर के किसी भी उलझे ताले को खोल देती है।”
इस कहावत को सच किया है, हमारे देश के यूपीएससी टॉपर लड़के ने। जिसके पिता चपरासी का काम करते थे और इनके परिवार का जीवन झुग्गी झोपड़ियों में व्यतीत हुआ है। इन्होंने अपने मेहनत से यह साबित कर दिया कि अगर हम किसी कार्य को करने के लिए एक बार ठान ले तो यह मायने नहीं रखता कि हम किस जगह से हैं और हमारे माता पिता क्या करते हैं। सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने से हम अपने मुकाम को हासिल कर सकते हैं। तो चलिए पढ़ते हैं उनकी कहानी
नुरुल हसन को अगर हीरा कहा जाए तो यह गलत नहीं है। ऐसा तो हम जानते ही है कि कोयले की खदानों में ही हीरा मिलते हैं। नूरूल हसन के लिए यह “हीरा” का संबोधन बहुत ही अच्छी तरह मैच करता है। यह साल 2015 की यूपीएससी परीक्षा को पास कर सबके लिए मिसाल बने हैं। यह अपने गांव में रहकर ही वहां के सरकारी स्कूल से अपने पढ़ाई पूरी कियें है और वहीं रहकर इन्होंने अपने जीवन के लिए एक सुंदर सा सपना संजोया था। इनके पिता बरेली के एक गवर्नमेंट ऑफिस में चपरासी का कार्य करते थें। नुरुल को यूपीएससी पास कर आईएएस बनने की तमन्ना तो थी, लेकिन सबसे बड़ी बाधा पैसे की थी। अपनी पढ़ाई तो इन्होंने किसी भी तरह पूरा कर लिया। लेकिन जब यह यूपीएससी की कोचिंग करना चाह रहे थे तो इनके पास कोचिंग के पैसे नहीं थे। पैसों के कमी की वजह से किसी कोचिंग संस्थान में दाखिला नहीं ले पाए। इन्होंने बिना कोचिंग किए ही यूपीएससी को पास कर अपने परिवार और खुद की तकदीर पूरी तरह बदल कर रख दी। वर्तमान में नूरुल महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी है।
नूरुल हसन उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि यह यहां पर निवास करते हैं। क्योंकि इनके पिता की नौकरी जब चपरासी के तौर पर हुई तब उन्हें बरेली सरकारी कार्यालय में जाना पड़ा और फिर अपने परिवार के साथ आकर यहां रहने लगे। हालांकि नूरुल ने अपनी शुरुआती शिक्षा उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से ही संपन्न की। इनकी स्कूली शिक्षा कुछ इस प्रकार हुई है कि यह जिस गांव के स्कूल में पढ़ते थे, वहां बरसात के दिनों में बच्चों को बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ता था। अगर बच्चे पढ़ाई के दौरान क्लास में बैठे हैं तो क्लास की छत से पानी टपकता था, जिससे बच्चों को दिक्कत होती थी।
वैसे तो नूरूल के पिता ग्रेजुएशन पूरा कर लिए थे लेकिन पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी इन्हें इनके पढ़ाई अनुसार नौकरी नहीं मिल पा रही थी। कुछ दिनों बाद जब इन्हें बरेली में ग्रुप-डी के तहत चपरासी की नौकरी लगी तो इन्होंने सोचा कि मैं अब यही नौकरी कर और अपने परिवार की देखभाल करुं। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहाल थी इस कारण इन्हें चपरासी की ही नौकरी करनी पड़ी। जब यह नौकरी करने लगे तो इनकी तनख्वाह मात्र 4 हज़ार रुपये ही थी। इस 4 हज़ार से बहुत ही मुश्किलों से इनका जीवन बसर हो रहा था।
हलांकि की बीटेक संपन्न होने के बाद इनकी नौकरी लगी और इस नौकरी के दौरान यह बीएआरसी में Grade- 1 ऑफिसर के रूप में कार्यरत हुयें। इस कार्य से इन्हें अपनी पढ़ाई में बहुत सहायता मिली और उन्होंने अपने यूपीएससी की तैयारी को जमकर किया और आखिरकार सफलता हासिल कर ही लियें। यह वर्ष 2015 में यूपीएससी पास कर आईएएस ऑफिसर बनें।
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