14 अगस्त हिंदुस्तान के बंटवारे का वह मनहूस दिन!😢😢😢
मनुवादी ब्राह्मणों के थोड़े से सत्ता स्वार्थ ने हुन्दुस्तान के दो टुकड़े करवा दिए। और आम हिंदुस्तानियों को अपना गुलाम और अंदभक्त बनने पर मजबूर कर दिया।
मनुवादी ब्राह्मणों के थोड़े से सत्ता स्वार्थ ने हुन्दुस्तान के दो टुकड़े करवा दिए। और आम हिंदुस्तानियों को अपना गुलाम और अंदभक्त बनने पर मजबूर कर दिया। जिसका नतीजा हिंदुस्तान की अवाम आज तक भुगत रही है।
14 अगस्त , हिंदुस्तान के बंटवारे एक मनहूस दिन ! 😢😢😢
मोहम्मद ज़ाहिद
हर साल जब भी यह 14 अगस्त आता है मेरे दिल में एक टीस उभरती है और सोचता हूँ कि काश की 14 अगस्त को दुनियाभर के कैलेंडर डायरी और इतिहास से मैं मिटा पाता , क्युँकि इसी दिन ब्राम्हणवादियों ने वह कार्य किया जिसका अंजाम देश का मुसलमान आजतक भुगत रहा है। आज ही के दिन देश का बँटवारा इसलिए किया गया कि हिन्दुस्तान के मुसलमानों की ताकत कमजोर कर दी जाए , जिसमें वह सफल रहे परन्तु देश और देश का मुसलमान ब्राह्मणवादियों के इस षड्यंत्र की कीमत आजतक चुका रहा है।
अंग्रेज़ों ने भारत पर हूकूमत की तो सभी पर जुल्म किया किसी पर इसलिए कम या अधिक ज़ुल्म नहीं किया कि यह हिन्दू है या यह मुस्लिम अथवा सिख , सब पर जब मौका मिला ज़ुल्म किया। हम सब भारत के लोगों ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ जंगे आजादी लड़ी , मरे कटे और खून बहाया , तब किसी मुसलमान ने यह नहीं सोचा था कि गाँधी नेहरू सुभाष भगत चन्द्रशेखर हिन्दू हैं सिख हैं तो हम उनका कहा क्युँ मानें , तब किसी ने नहीं सोचा था कि अशफाकुल्लाह खान , मौलाना अबुल कलाम आजाद , खान अब्दुल गफ्फार खान तो मुसलमान हैं फिर हम उनका कहा क्युँ मानें ? तब हम एक थे और सब हमारे अपने थे।
हम सब तब मिलकर खुश थे जब आज़ादी का ऐलान हुआ , लगा कि हम खुल कर सांस लेंगे और अंग्रेजों की काली छाया से आजाद होकर लगा कि यह अपना मुल्क अपनी मिट्टी अपने लोगों के बीच में हम खुली और ताजी हवा में अपना और अपने देश के मुस्तकबिल को बनाएँगे। अब अंग्रेजों के फरमान और घोड़ों पर बैठे अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों से हमें डर नहीं लगेगा , अब हर खट-खट की आवाज अंग्रेज सिपाहियों के घोड़ों की नाल की तरह हमें नहीं डराएगी। हमारा जो है वह हमारा ही होगा , जितनी फसल होगी हमारी होगी , हमारी मेहनत का मालिक कोई और नहीं होगा।
परन्तु कुछ चंद बेवकूफों ने अपने निजी फायदे के लिए , अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए आपस में फैसला कर लिया और हुक्म सुना दिया और भारत की ज़मीन पर एक लाईन खींच दी कि इस तरफ का हिस्सा इसी हिन्दूस्तान के कुछ लोगों का और उस तरफ का हिस्सा कुछ और लोगों का।
आजादी के बाद सबको सब मिल गया , अंग्रेज भारत लूट कर जाने लगे और कोहिनूर को अपने मुकुट में सजाकर मालामाल हो गये , भारत के और सभी लोगों को आजादी मिली तो नेताओं को गद्दियाँ , और इसी देश के मुसलमानों को मिला “बटवारा” और उसका ज़ख्म जो अंग्रेजों की गुलामी से कहीं बदतर था।
हमारी खुशियाँ पल भर में चकनाचूर हो गईं क्युँकि जब देश आजादी के जश्न में डूबा था हम मुसलमान अपने घरों से बेघर हो चुके थे और हमारे इन नये नये हुक्मरानों ने हमें पाकिस्तान जाने का हुक्म सुना दिया , जिन्हें इतनी भी रहम ना आई कि आज़ादी की खुशियों को चंद दिन इनके हिस्से में तो रहने दो जिन्होंने आज़ादी के लिए खून दिए हैं , पर सत्ता और गद्दी पा लेने की जल्दी में नेताओं को किसी उन लोगों के दर्द का एहसास ना था जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर आजादी हासिल की और उन अपनों ने ही हम मुसलमानों को अपने घर से बेघर कर दिया , गांधी नेहरू ने हमें धोखा दिया , ठगा , हमारे यक़ीन को तोड़ा यह सोच कर हम उनको बुरा भला कहते रहे, सोचते रहे कि इस आजादी से बेहतर तो अंग्रेजों की गुलामी ही थी जिसने कम से कम हमें हमारी मिट्टी और ज़मीन से तो बेघर नहीं किया ।
आजादी का जश्न गायब होकर अचानक अज़ाब बन गया। तमाम लोग इधर से उधर होने लगे और मारकाट शुरू हो गई और इसबार अंग्रेजों ने नहीं अपनों ने ही अपनो को मारा काटा , बहनो बेटियों का बलात्कार किया गया और कैंपों पर गिरोह की शक्ल में आक्रमण कर के इज्ज़त से लेकर जान तक लूट लिया गया ।देश के अन्य धर्मों के लोग अपने मुस्तकबिल को संवारने के लिए लग गये और हम मुसलमान अपने लिए जमीन के टुकड़े को तलाश करने के लिए मरने मारने के चक्रव्यूह में फंस गए और वर्षों बाद एक ठहराव आया।
मुसलमानों पर भगवा ब्रिगेड द्वारा किये जा रहे आक्रमण और पाकिस्तान भगाए जाने के बयानों से दुखी मन लेकर कुछ दिन पहले अपने जन्मभूमि अपने गांव गया और मेरी नानी की एक मात्र 90 वर्षीय जीवित बहन से बैठ कर पूछा कि नानी आप लोग क्यों रह गईं भारत में ? आज के दिन गालियाँ सुनवाने के लिए ? आप लोग भी पाकिस्तान चली गईं होतीं तो गोली की तरह लगने वाली गाली कि “पाकिस्तान भागो” तो रोज सुनने को नही मिलता ? तेज़ और हर दौर की खबरों की जानकारी रखने और रेडियो पर रात्रि के 8 बजे आने वाले बीबीसी लंदन को बिना सुने ना सोने वाली यह नानी मेरा चेहरा देखती हुई बोलीं कि यदि आज जैसे ज़हरीले हालात के होने का सोचा होता तो हम नहीं रहते यह तो सच है , हम पाकिस्तान चले जाते पर तब तो ऐसा कुछ नहीं था और हम तो अपने आसपास के लोगों की मुहब्बत के वजह और अपने घर अपनी ज़मीन को छोड़ने के दुख के कारण रुक गये।
नानी बँटवारे के अनुभव को याद करके बोलती गईं कि देश में 15 अगस्त को झंडा फहराने से पहले ही बँटवारे का ऐलान हुआ था कि मुसलमान भारत की ही जमीन पर खींच दी गयी एक लाईन के उस पार बने पाकिस्तान जाएंगे और हम सब अपने उपर आ गई इस नई मुसीबत से परेशान हो गये , रातों की नींद हराम हो चुकी थी कि अपना घर अपनी मिट्टी अपना खेत अपना गाँव अपने लोगों को छोड़कर हम जाएं तो कैसे जाएं ? कहाँ जाएँ ? अजनबी लोग अजनबी देश में किसके यहाँ जाएँ ? जो हम तब तक दूसरे जिले में कभी नहीं गये तो हजारों किलोमीटर दूर किसी ऐसी जगह जहाँ ना अपनी ज़मीन ना घर ना अपने जानने वाले ना पहचान का कोई और ऐसी जगह हम जाएँ तो कैसे जाएँ ? लोग अपने घरों अपनी जमीनों को देखकर रोते थे कि यह सब छोड़कर जाना होगा उस जगह जहाँ अपना कुछ नहीं , हजारों किलोमीटर दूर वहां जहाँ ना अपनी बोली ना अपनी संस्कृति ।
अजीब सी कशमकस थी अजीब सी बहदवासी , और परेशानी थी अपने शबाब पर , ना तो आज की तरह मोबाइल ना टेलीविजन ना टेलीफोन, न्यूज पेपर कभी कभी आता तो सारी खबर मिलती या फिर रेडियो के बीबीसी हिन्दी या रेडियो सिलोन से समाचार मिलते कि सब लोग भारत छोड़कर पाकिस्तान जा रहे हैं तो डर लगता कि हमलोग वहाँ कैसे जाएँगे।
अजीब सी दहशत थी उस समय की पूरा खानदान लेकर हम पाकिस्तान भी जाएं तो कहां जाएं ? कौन लोग होंगे वहां ? कहाँ रहेंगे हम वहाँ ? सर छुपाने की जगह कैसे मिलेगी एक अंजान जगह ? किस तरफ से जाएँ ? लाहौर की तरफ से या ढाका की तरफ से , घर के सारे मर्द परेशान एक दूसरे से सलाह मशविरा करते रहे कि कौन सी ट्रेन या बस से जाएँ , क्योंकि तब ट्रेन भी एक थी वह भी बनारस या भटनी के लिए और बस का कुछ पता नहीं कि कहाँ से कैसे बदलना होगा और फिर अचानक से खूनखराबे की खबरें आने लगीं पाकिस्तान जा रहे लोगों के परिवारों से लड़कियों की इज्ज़त लूटे जाने की झूठी सच्ची अफवाहों ने चारों ओर से घेर लिया , जो समाचारपत्र आते उनको पढ़कर डर में और घिरते गये और हम इस आजादी की पहली कुछ सुबह में अपने को ठगा महसूस कर रहे थे , नानी स्मरण करती हैं कि कैसे गांव के हिन्दू भाई और उनके परिवार की औरतें आकर बिलखती थीं और बिछड़ जाने के गम में आंसू बहातीं और वह आंसू असली थे क्योंकि तब आपस में मुहब्बत थी लगाव था अपनापन था।
दलित “खिचड़ी बो”(खेतों में काम करने वाले दलित मजदूर खीचड़ी की पत्नी) कैसे आकर लिपट कर रोने लगती है यह भूलकर कि वह अछूत है और कभी इसके पहले चारपाई तक पर नहीं बैठी हमें छूना तो दूर की बात थी, कैसे उन छोटे बच्चों को छाती से लिपटा कर रोती रही जिन्हें घर में आते ही वह दूर से खिलाती थी क्युँकि उसे एहसास था कि वह अछूत है पर उसदिन वह गम में सब भूल चुकी थी और हमें भी कुछ बुरा नहीं लग रहा था ।
नानी बताती हैं कि घर में पंडितटोला , यादव और ठाकुरों इत्यादि के मुहल्ले की सारी औरतें घर पर हर थोड़ी देर में आतीं जिनके आखों में हमेशा के लिए बिछड़ जाने का दुख और आँसू होते और तमाम इसी जाति के मर्द हमारे घर के मर्दों को इत्मिनान दिलाते कि परेशान मत होईये अगर जाना ही आवश्यक हुआ तो हम सब पूरा गाँव आपको वहाँ छोड़कर आएँगे , पूरा घर बसा कर आएँगे । अब जो खेत खलिहान थे उसे औने पौने दाम में बेचने की बात होने लगी , जानवर जो थे घर में वह खेतों में काम करने वालों को दे दिया गया , और अब सब जरूरी सामान समेटे जाने लगे , एक एक पल सदियों की तरह गुजर रहा था और घर को देखकर औरतें और खेतों को देखकर मर्दों के आखों में आँसू आ जाते ।
इसी उधेड़बुन में “बुलई” पंडित आँधी तुफान की तरह दौड़ते हुए हमारे घर आया जहाँ लोगों की चौपाल लगी थी और खुशी से रोते हुए बताता है कि खबरें आई है कि गांधी जी और मौलाना आजाद ने अपील की है कि मुसलमानों पाकिस्तान मत जाओ , यहीं रुको यह देश अब भी तुम्हारा है , “जिसे जाना है जाए जिसे रुकना है रुक जाए” और हम सब को जैसे जिन्दगी मिल गई और गांव में होली दिवाली ईद की खुशियाँ एक साथ आ गईं ।
गांव के वो सभी लोग जो बिछड़ने के गम में आंसू बहाते हुए वापस गये थे वो और अधिक आंसूओं के साथ आकर गले मिले पर तब यह खुशी के आंसू थे ।यादव , पंडित , ठाकुर सब को तब हमारे यहीं रह जाने की खुशियाँ थीं , हमे हमारे भारत से प्यार था , अपनी जमीन से मुहब्बत थी , हमें अपने हिन्दू भाईयों पर यकीन था गांधी नेहरू पर यकीन और बढ़ गया तब हम भारत में रुके थे , हमें हमारे हिन्दू भाईंयों की मोहब्बत ने यहाँ रोका वर्ना हम भी चले ही जाते जैसे कुछ लोग चले गये , तब यह एहसास ही नहीं हुआ था कि आगे जाकर हमें भारत में रोकने वाले हिन्दू भाईंयों की ही औलादें हमारी औलादों को पाकिस्तान के नाम पर गालियाँ देंगी और हर बात पर पाकिस्तान भेजने की बात गाली देकर कहेंगे , अगर ऐसा जरा सा एहसास होता तो हम चले जाते वही बेहतर था , नानी इतना कह कर चुप हो गईं ।
मैं सोचता रहा कि “ये कहाँ आ गये हम यूँ ही साथ साथ चलते”।
Via :- Mohammad Zahid
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