नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और अहमद शम्सी की दोस्ती भी बेमिसाल थी

काको के अहमद दाऊद शम्सी और उनके परिवार का योगदान इतिहास के पन्नों में अमर रहेगा।

सैयद अहमद दाऊद शम्सी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भी घनिष्ठ मित्र थे। उनके बीच का संबंध “हम प्याला और हम निवाला” जैसा था, जो सच्चे दोस्ती के मर्म को दर्शाता है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और अहमद दाऊद शम्सी की दोस्ती का अनूठा अध्याय”

सैय्यद आसिफ इमाम काकवी
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है, उनका नाम न केवल भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है, बल्कि उनकी दोस्ती और संबंध भी उतने ही प्रेरणादायक हैं।
23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी जयंती पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह दिवस उनके साहस और देशभक्ति को दर्शाता है। इस प्रेरणादायक यात्रा में काको गांव के अहमद दाऊद शम्सी का नाम भी गर्व से लिया जाता है।
सैयद अहमद दाऊद शम्सी’ जो काको के प्रतिष्ठित ज़मींदार सैयद अब्दुल अज़ीज़ शम्सी साहब के बेटे थे, न केवल एक आई सी एस अधिकारी के रूप में देश और समाज की सेवा के लिए प्रसिद्ध हुए, बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भी घनिष्ठ मित्र थे। उनके बीच का संबंध “हम प्याला और हम निवाला” जैसा था, जो सच्चे दोस्ती के मर्म को दर्शाता है।
ऐतिहासिक शहर काको में जन्मे और अपना प्रारंभिक जीवन यहीं बिताने वाले अहमद शम्सी आज की भीड़ भाड़ तथा आधुनिक चकाचौंध में गुम से हो गए। आज की पीढ़ी को अहमद शम्सी के बारे में शायद ही पता हो। इसकी एक वजह कम उम्र में इनका इन्तिक़ाल होना भी है।  यह बिहार के पहले आई० सी० एस० थे।
  सैयद अहमद दाऊद शम्सी और नेताजी ने एक साथ आईसीएस (भारतीय सिविल सेवा) की परीक्षा पास की। उनकी मित्रता न केवल व्यक्तिगत संबंधों तक सीमित थी, बल्कि यह उनके व्यक्तित्व के निर्माण और देश की सेवा में भी झलकती थी।
अहमद दाऊद शम्सी ने वायसराय के निजी सचिव के रूप में कार्य करते हुए लॉर्ड ववेल और लॉर्ड लिनलिथगो के संरक्षण में देश की सेवा की। अहमद दाऊद शम्सी के पिता, अब्दुल अज़ीज़ शम्सी साहब, काको गांव के एक बड़े ज़मींदार और समाज सुधारक थे। उन्होंने काको में शिक्षा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए स्कूल और मदरसों का निर्माण कराया। उनके प्रयासों ने काको को ज्ञान और संस्कृति का केंद्र बना दिया। उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि काको ने वली काकवी, अता काकवी, और अरशद काकवी जैसे अद्वितीय साहित्यकार दिए, जिन पर उर्दू साहित्य को गर्व है।
अहमद दाऊद शम्सी की कहानी संघर्ष और सफलता का एक अनोखा मिश्रण है। एक बचपन की गलती ने उन्हें घर और परिवार से दूर कर दिया। सिगरेट पीने के अपराध में उन्हें घर छोड़ना पड़ा, लेकिन इस कठिनाई ने उन्हें मजबूत बनाया। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने आईसीएस परीक्षा पास की और भारतीय सिविल सेवा का हिस्सा बने। 1921 में जब वे लंदन से आईसीएस की परीक्षा पास कर लौटे, तब भारत में गिने-चुने भारतीय ही इस मुकाम तक पहुंचे थे। उनकी यह सफलता काको गांव और उनके परिवार के लिए गर्व का विषय बनी। उनके जीवन ने यह सिखाया कि कठिनाइयों को पार करके भी इंसान अपने सपनों को पूरा कर सकता है। अब्दुल अज़ीज़ शम्सी साहब ने अपने गांव और समाज के लिए जो सपने देखे, उन्हें उनकी संतानों ने साकार किया। अहमद दाऊद शम्सी की कामयाबी ने न केवल उनके परिवार को गर्वित किया, बल्कि काको गांव को भी इतिहास में एक विशेष स्थान दिया।
आज, जब हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, तब हमें यह भी याद रखना चाहिए कि उनकी प्रेरणा और मित्रता ने कई लोगों के जीवन को बदल दिया। काको के अहमद दाऊद शम्सी और उनके परिवार का योगदान इतिहास के पन्नों में अमर रहेगा।
1945 में शिमला सम्मेलन’ के अगले ही दिन उनकी तबियत अचानक बिगड़ी और वहाँ से उन्हें दिल्ली लाया गया जहाँ उनका इंतक़ाल हो गया। उस वक़्त उन की उम्र सिर्फ 44 की थी। जानकारों का कहना है के जिस महल में शिमला सम्मेलन’ हुआ था वह महल अहमद शम्सी का ही था आज़ादी के बाद ह्कूमत हिंदुस्तान ने इस विरासत को अपने क़ब्ज़े में कर लिया उस वक़्त उन के पुत्र अलमा लतीफ़ शम्सी की आयु बहूत कम थी।
अलमा लतीफ़ शम्सी
सैयद लतीफ शम्शी केवल एक इंसान नहीं, बल्कि एक पूरी तहज़ीब थे। उनके किस्से, उनका ज्ञान, और उनकी सोच आज भी काको और उसके लोगों को प्रेरणा देती है।  8 जनवरी 2025 को, सुबह 5 बजे, सैयद लतीफ शम्शी साहब ने अपने पुश्तैनी वतन काको में आखिरी सांस ली।
Leave A Reply

Your email address will not be published.