आज भारत मे फिर से ब्राहमणवाद हावी है
ब्राह्मणों ने शूद्र व अतिशूद्र को वापस गुलाम बनाने के लिए 1920 में ब्राह्मण महासभा,1922 में हिन्दू महासभा व 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का गठन किया ।
ब्राह्मणों ने शूद्र व अतिशूद्र को वापस गुलाम बनाने के लिए 1920 में ब्राह्मण महासभा,1922 में हिन्दू महासभा व 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का गठन किया ।
आज भारत मे फिर से ब्राहमणवाद हावी है
चौधरी यतेंद्र सिंह
अंग्रेजों ने जब पूरे देश में रेलवे लाइन बिछाना शुरू किया तो दकियानूसी व पाखंडी ब्राह्मणों ने उसका यह कहकर जबरदस्त विरोध किया था कि अंग्रेज धरती माता को लोहे से बांध रहे हैं। यदि ऐसा हो गया तो अधर्म हो जायेगा,महामारी फैल जायेगी,कोई नहीं बचेगा। कई जगहों पर दिन में लाईन बिछाई जाती थी और रात को उखड़वा दी जाती थी। मंदबुद्धि हिंदुओं को भड़का कर लाईन उखाड़ कर,रातों-रात मन्दिर बनवा देते थे।
यदि आपको इसका प्रमाण देखना है तो गाजीपुर ज़िले में दिल्ली-कोलकाता रूट पर, ‘दिलदार नगर जंक्शन’ स्टेशन पर उखाड़ी लाईन इसका जीता जागता उदाहरण है । वहां पर रातों-रात मन्दिर बनवा दिया था। अंधविश्वासी जनता के जबरदस्त विरोध के कारण अंग्रेज़ मंदिर नहीं हटवा पाएं थे।इसलिए ट्रैक को उन्हें मोड़ना पड़ा। आज़ भी दो ट्रैक के बीचों-बीच यह मन्दिर मौजूद है।
ब्राह्मणों ने रेलवे का विरोध इसलिए किया था कि हम लोग शूद्र के साथ नहीं बैठ सकते हैं। हम लोगों के लिए अलग बोगी,नहीं तों डब्बे में ही अलग से ऊंची सीट ब्राह्मणों के लिए बनाना पड़ेगा,तभी हिन्दू धर्म की पवित्रता बनीं रहेंगी।
इस विरोध के बावजूद अंग्रेजों ने रेलवे के रूप में बहुत बड़ा उपक्रम भारतीयों को दिया । इसके अलावा बहुत सी सामाजिक बुराईयों को खत्म किया जैसे:
शूद्रों की नरबलि दी जाती थी। अंग्रेजों ने इसे रोकने के लिए 1830 में कानून बनाया, सन 1919 ईस्वी में अंग्रेजों ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थी,अंग्रेजों ने कहा था कि इनका चरित्र न्यायिक नहीं होता है, शासन व्यवस्था पर ब्राह्मणों का 100% कब्जा था। अंग्रेजों ने इन्हें 2.5% पर लाकर खड़ा कर दिया था, अंग्रेजों ने अधिनियम 11 के तहत शूद्रों को 1795 ईस्वी में संपत्ति रखने का अधिकार दिया,
देवदासी प्रथा खत्म कराई, इस प्रथा में यह होता था कि शूद्र समाज की लडकियाँ मंदिरों में देवदासी के रूप में रहती थीं, पंडा-पुजारी उनके साथ छोटी उम्र में बलात्कार करना शुरू कर देते थे और उनसे जो बच्चा पैदा होता था,उसे हरिजन कहते थे, सन् 1819 से पहले किसी शूद्र की शादी होती थी,तो ब्राह्मण उसका शुद्धीकरण करने के लिए नववधू को 3 दिन अपने पास रखते थे,उसके उपरांत उसको घर भेजते थे, अंग्रेजों ने इसे बंद करवाया। इसके अलावा अंग्रेजों ने 1835 ईस्वी में कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया था,इससे पहले शूद्र कुर्सी पर नहीं बैठ सकते थे।
यह सब पाखंडियों को हज़म नहीं हुआ और यही वजह है कि ब्राह्मणों ने शूद्र व अतिशूद्र को वापस गुलाम बनाने के लिए 1920 में ब्राह्मण महासभा,1922 में हिन्दू महासभा व 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का गठन किया । साधारण बुद्धि के लोगों को यह दिखाई नही पड़ता।
यह दुर्भाग्य है कि आज भी पढ़े लिखे लोगों को हर पत्थर में भगवान नजर आता है, माँ के रूप में गाय नजर आती है, निर्मल बाबा की लाल हरी चटनी में कृपा नजर आती हैं, आशाराम जैसे ढोंगियों को सन्त समझ लेते हैं, हर संस्कार ब्राह्मण करवाते हैं, जो उपाय ब्राह्मण बताता है उसे आँख मूंदकर मानते हैं, जो मांगता है उससे बढ़ चढ़कर देते हैं, इसलिए यह मान लेना कि आज विज्ञान का युग है अब ब्राह्मण मूर्ख नही बना सकता,सोचना गलत है ।
जिस तरह आज मोदी जी की सरकार टोने टोटके कर रही है और रोजगार मंहगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों की जगह मंदिरों की राजनीति कर रही है और लोग उसमें उलझ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि जैसे आज भी ब्राह्मण का ही युग चल रहा है।
यदि आज हमें एक बहुत बड़े वर्ग के बच्चों को गुलामी से बचाना है तो इस ब्राह्मणवादी विचारधारा के विस्तार को रोकना होगा ।
आने वाली पीढ़ी को मन्दिर नहीं स्कूल चाहिए, रोजगार चाहिए वह धर्म नहीं अधिकार चाहिए।
Comments are closed.