अगस्त क्रांति दोहराने की जरूरत*
नूंह और गुड़गांव में हिन्दुतत्व प्रदर्शनकारियों द्वारा आगजनी और और हिंसा कर चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है और हरियाणा सरकार द्वारा स्थानीय मुसलमानों के सैकड़ों मकान बुलडोजर से तुड़वा दिये। और हम आज़ादी के अमृत महोत्सव मनाया रहे हैं।
नूंह और गुड़गांव में हिन्दुतत्व प्रदर्शनकारियों द्वारा आगजनी और और हिंसा कर चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है और
हरियाणा सरकार द्वारा स्थानीय मुसलमानों के सैकड़ों मकान बुलडोजर से तुड़वा दिये। और हम आज़ादी के अमृत महोत्सव मनाया रहे हैं
*अगस्त क्रांति दोहराने की जरूरत*
*डॉ सुनीलम*
आज जब पूरे देश में 9 अगस्त 23 को अगस्तक्रांति दिवस मनाया जा रहा है, तब यह देखना बेहद दुखदायी है कि देश मणिपुर से लेकर नूंह और गुड़गांव तक सांप्रदायिक हिंसा फैली हुई है । ज्ञानवापी विवाद को लेकर उत्तर प्रदेश को आग में झोंकने की तैयारी स्वयं योगी द्वारा खुले आम की जा रही है।
केंद्र सरकार द्वारा सरेआम लोकतंत्र और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं । देश का सार्वजनिक क्षेत्र अडानी अंबानी के हवाले किया जा रहा है ।
इंडिया नामक विपक्षी गठबंधन के संसद में प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा जारी है। भा ज पा सांसद विपक्ष के सांसदों की औकात दिखाने की धमकी दे रहे हैं।
जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण कह रहे हैं कि जो व्यक्ति पुलवामा करा सकता है, वह राम मंदिर और पीओके पर हमला भी करा सकता है।
प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में सर्व सेवा संघ की 13 एकड़ जमीन नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा संघी साजिश के तहत गांधी, जे पी और विनोबा की विरासत को नष्ट करने और गंगा तट को बर्बाद करने वाले कॉरपोरेट प्रोजेक्ट के लिये जबरजस्ती हथियाने के खिलाफ़ प्रतिरोध सम्मेलन और प्रदर्शन किया जा रहा है।
देश भर में आदिवासी संगठन विश्व पर्यावरण दिवस पर मणिपुर के आदिवासियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते है ,देश भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भले ही अगस्त क्रांति के दौरान जिस तरह भारत की जनता सड़कों पर उतरी थी, उस तरह का वातावरण न बना हो लेकिन विरोध की आवाजों के दबाव में फर्जी मुकदमे में राहुल गाँधी की रद्द की गई संसद सदस्यता बहाल हुई है। पंजाब और हरियाणा के हाईकोर्ट ने नूंह और गुड़गांव में सैकड़ों मकान बुलडोजर से तोड़े जाने की कार्यवाही रोक दी है। मणिपुर में चल रही हिंसा से प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने कम से कम एक कमेटी बनाने की घोषणा कर दी है। मणिपुर की पुलिस अफसर ने मणिपुर के मुख्यमंत्री की ड्रग माफिया से मिलीभगत को उजागर कर दिया है । मुंबई हाई कोर्ट के न्यायधीश आत्म सम्मान से काम करना संभव न होने का कारण बतलाकर खुले न्यायालय में इस्तीफा देने की हिम्मत दिखा रहे हैं।
कर्नाटक की जनता ने भा ज पा की सरकार को परास्त कर दक्षिण भारत में भा ज पा के एंट्री प्वाइंट को बंद कर दिया है। यानी प्रतिरोध के स्वर पूरे देश में सुनाई दे रहे हैं।
9 अगस्त 2023 को अगस्त क्रांति दिवस की 81 वीं वर्षगांठ है। समाजवादी चिंतक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ लोहिया चाहते थे कि 9 अगस्त देश में इतने जोरदार तरीके से मनाया जाए कि 15 अगस्त का कार्यक्रम उसके सामने फीका पड़ जाए लेकिन शासकों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने 9 अगस्त की महत्ता कभी देशवासियों के सामने नहीं रखी। जनक्रांति की जगह उन्होंने राज सत्ता के हस्तांतरण को ही अत्याधिक महत्व दिया।
अगस्त क्रांति देश के ढाई सौ साल के स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा जन आंदोलन था। इस आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी थे जिन्होंने मुंबई के तत्कालीन मेयर, सोशलिस्ट नेता युसूफ मेहर अली के सुझाव पर ‘क्विट इंडिया’ अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देश को दिया था। गांधी जी ने कांग्रेस कार्यसमिति को संबोधित करते हुए कहा था कि आज से हर व्यक्ति खुद को आजाद समझें। उन्होंने अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन करने पर जोर दिया था। गांधी जी ने भाषण में जिस आजाद भारत की कल्पना की थी, उसमें हर किसी के पास समान आजादी और अधिकार होने की बात कही थी। जिसे बाद में भारत के संविधान के मूलभूत अधिकारों में जोड़ा गया, परन्तु आज के सत्ताधीशों ने उस पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। अगस्त क्रांति के आंदोलन की खासियत यह थी कि इस आंदोलन के गांधी जी सहित लगभग सभी जाने-माने कांग्रेस के नेता जेल में थे।
यह सर्वविदित है कि इसी गिरफ्तारी के दौरान ही गांधी जी की पत्नी और महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यु हो गई थी।
सभी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल को लगा था कि अब आज़ादी का आंदोलन धीमा पड़ जाएगा। लेकिन एकदम उल्टा हुआ। देश भर में आजादी की चाहत रखने वाली जनता विशेष कर युवाओं ने खुद इसका नेतृत्व किया था और इसे चलाया था। भूमिगत रहकर इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरूणा आसफ अली, उषा मेहता, एसएम जोशी आदि नेताओं ने किया था। उस समय जे पी जेल में थे लेकिन जे पी ने भी हजारीबाग जेल से भागकर इस आंदोलन का भूमिगत रहकर नेतृत्व किया था। ढाई सौ साल के आजादी के आंदोलन के इतिहास में कोई दूसरा ऐसा जन आंदोलन नहीं है जिसमें पचास हजार आंदोलनकारियों की शहादत हुई हो तथा एक लाख से अधिक क्रांतिकारियों को जेल जाना पड़ा हो।
इस आंदोलन की यह भी खासियत रही कि आंदोलनकारियों द्वारा रेल की पटरियां उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, प्रशासनिक कार्यालयों और पुलिस थानों पर झंडे फहराने के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर किये गए थे। जिसमें हजारों आंदोलनकारी पुलिस की गोलियों से मारे गए लेकिन आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ उनकी जान लेने की दृष्टि से हिंसा नहीं की थी। यह गांधीजी के अहिंसा के प्रति आग्रह का प्रभाव था। यदि भूमिगत क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की हत्या का इरादा बनाया होता तो यह आंदोलन जन आंदोलन नहीं हो सकता था। यह याद रखना जरूरी है कि इस आंदोलन को गांधी जी ने चौरीचौरा आंदोलन की तरह वापस नहीं लिया था। 1942 का आंदोलन आज़ादी0 मिलने तक जारी रहा, सभी कांग्रेस नेताओं को 1946 में छोड़ दिया गया लेकिन अंग्रेज जे पी और डॉ लोहिया को छोड़ने को तैयार नहीं थे। गांधी जी के हस्तक्षेप के बाद उन्हें छोड़ा गया।
इस आंदोलन की यह भी खासियत थी कि इस आंदोलन में हिंदू और मुसलमानों ने एक साथ आकर बड़े पैमाने पर आंदोलन में हिस्सा लिया था। आंदोलन का एक केंद्र बम्बई था।
बम्बई जैसे शहर का मेयर यूसुफ मेहेर अली का चुना जाना, सरदार पटेल द्वारा यूसुफ मेहेर अली को कांग्रेस का टिकट दिलाया जाना बतलाता है कि तब बम्बई में हिन्दू मुस्लिम एकजुटता का माहौल था।
सतारा, बलिया, मिदनापुर आदि जगहों पर तो समानांतर सरकारें गठित की गई थीं।
गांधी जी ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही आंदोलन का समय चुना था । वे दोनों ही पक्षों की हार या जीत के पेंच में भारत की आजादी को नहीं फसाना चाहते थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होते हुए भी वे बार-बार यह कहते थे कि मैं अंग्रेजों से नफरत नहीं करता तथा किसी को भी नहीं करनी चाहिए और ना ही जापान और जर्मनी को प्यार से देखना चाहिए क्योंकि वे गुलामी की अदला – बदली नहीं चाहते थे यानी देश अंग्रेजों से आजाद हो जाए और जापान और जर्मनी का गुलाम बन जाए।
गांधी जी ने 73 वर्ष की उम्र में अपने 2 घंटे के भाषण में अधिकतर समय हिंदू-मुस्लिम एकजुटता की आवश्यकता बतलाने और समझाने में लगाया था। गांधी जी की वह अपील ही देश को बचा सकती है।
अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा देते समय गांधी जी का जो सपना था, वही सपना अगस्त क्रांति दिवस के 81 वर्ष बाद डॉ.जी जी परीख जी आज भी देख रहे हैं।
1942 के आंदोलन में विद्यार्थी के तौर पर शामिल रहे 10 माह की अंग्रेजों की जेल काटने वाले डॉ परीख जो आजादी के बाद से आज तक हर वर्ष मुंबई के चौपाटी से तब के गवालिया टैंक तथा अब के अगस्त क्रांति मैदान तक पैदल मार्च करते हैं। डॉ परीख कहते हैं कि आज का समय तब के समय से भी ज्यादा कठिन समय है क्योंकि आज के जो लोग सत्ता में बैठे हैं वे धर्म के आधार पर भेदभाव कर अंग्रेजों से भी ज्यादा जुल्म कर रहे हैं। वे हिटलर से प्रेरणा लेकर देश में राज चलाने की कोशिश कर रहे हैं ।
डॉ. जी जी परीख चाहते हैं कि देश में फिर अगस्त क्रांति जैसा माहौल बने। 1942 में देश का हर दूसरा, तीसरा नौजवान देश को बचाने के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो। उसी तैयारी की आज जरूरत है। जी जी कहते हैं अब देश को बचाने और बनाने के लिए बड़े पैमाने पर समाजवादियों को जेल जाने की तैयारी करनी है । वही डॉ जी जी परीख की आज सबसे बड़ी चिंता है।देशवासियों की भी यही चिंता होनी चाहिए ।
*9 अगस्त 23 केअवसर पर मुंबई की गिरगांव चौपाटी से अगस्त क्रांति मैदान तक ‘नफरतों भारत छोड़ो , मोहब्बतों से दिलों को जोड़ो शांति मार्च निकाला जा रहा है, जिसका नेतृत्व 1942 के आंदोलन के नायक रहे डॉ जी जी परीख, दत्ता गांधी जी के साथ साथ महात्मा गांधी के प्रपोत्र तुषार गांधी, सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ कर रहे हैं*।
*कभी भी पिछले 81 वर्षों में मार्च* *को नहीं रोका गया है परंतु इस* *बार 8 अगस्त की रात्रि 8 बजे* *मुंबई पुलिस ने डॉ जी जी परीख के घर जाकर लिखित नोटिस देकर उन्हें 9 अगस्त को शांति* *मार्च निकालने पर गिरफ्तार करने की चेतावनी दी है । युसुफ मेहर अली विद्यालय के प्राचार्य और *कई बच्चों के अभिभावकों तक को नोटिस दिया गया है*।
देश के केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा श्रमिक कानूनों की बहाली, निजीकरण पर रोक जैसे मुद्दों को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया जा रहा है ,जिसका नारा है कारपोरेट भगाओ ,देश बचाओ ।
संयुक्त किसान मोर्चा इस आंदोलन का समर्थन कर रहा है।
1942 में हुई अगस्त क्रांति का लक्ष्य किसानों और मजदूरों की मुक्ति हासिल करना था ।
आजादी मिलने के 76 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, परंतु अगस्त क्रांति के शहीदों का वह सपना साकार नहीं हो सका है, जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था या आजादी के आंदोलन के साथ गद्दारी की थी, उनसे कोई भी उम्मीद करना बेकार है।
आइए हम अगस्त क्रांति के शहीदों को याद करते हुए उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें , तन,मन ,धन लगाकर मैदान में उतरें।
आजादी के आंदोलन के मूल्यों, अगस्त क्रांति के मूल्यों, समाजवादी और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा और पुनर्स्थापना के लिए देशवासियों को अगस्त क्रांति के शहीदों से प्रेरणा लेकर सड़कों पर उतरना होगा, तभी देश को बचाया जा सकेगा।
डॉ सुनीलम
अध्यक्ष ,किसान संघर्ष समिति
मो.नं. 8447715810
samajwadisunilam@gmail.com