साम्प्रदायिक एकता और महात्मा गांधी

आज मुसलमानों में हज़रत मुहम्मद साहब का सुलह व शांति का पैग़ाम कम नज़र आता है।

आज मुसलमानों में हज़रत मुहम्मद साहब का सुलह व शांति का पैग़ाम कम नज़र आता है – मेरी नज़र में राम और रहीम एक ही हैं-रामराज्य से मेरी मुराद हिन्दू राज नहीं है। गांधी जी

साम्प्रदायिक एकता और महात्मा गांधी

(गांधी जयंती पर विशेष)
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साम्प्रदायिक एकता की तड़प ने गांधीजी की आत्मा को मथ डाला था । हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए उन्होंने कहाः अगर आप मेरा दिल चीर कर देखें तो आप पाएंगे कि मेरे दिल में लगा24 घंटे, चाहे में जागता होऊं या सोता होऊं हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए प्रार्थना और रुहानी कोशिश चलती रहती है। मैं हिन्दू मुस्लिम एकता का प्यासा हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि बिना उसके सच्चा स्वराज्य हो ही नहीं सकता।

*इस्लाम का अध्ययन*
वे लिखते हैं :जब मैं यरवदा जेल में था मैंने मौलाना शिबली की लिखी पैग़म्बर की जीवनी पढ़ी “मैंने उसवा-ए-सहाबा नामक पुस्तक भी पढ़ी” उन्होंने आगे कहा कि मैं निश्चयपूर्वक इस्लाम को एक इल्हामी (ईश्वर प्रेरित ) मज़हब मानता हूं और इस लिए कुरआन मजीद को इल्हामी किताब और हज़रत मुहम्मद साहब को महान पैग़म्बरों में से एक पैग़म्बर मानता हूँ। (गांधीजी और हिन्दू मुस्लिम एकता लेखक बिशम्बर नाथ पांडे पेज 28)

*सच्चा मुसलमान भी और सच्चा ईसाई भी*
एक बार न्यूयार्क पोस्ट के संवाददाता श्री एंड्र फीमेन ने गांधीजी से पूछा :गांधीजी, आप यह कहते हैं कि ईसाईयों ने अपने अमल में ईसा के सिद्धांतों को भुला दिया। क्या इस्लाम के मानने वालों ने अपने पैगम्बर को नहीं भुला दिया? “गांधीजी ने जवाब दिया :” मैंने तो पुकार पुकार कर यह बात कही है कि आज मुसलमानों में हज़रत मुहम्मद साहब का सुलह व शांति का पैग़ाम कम नज़र आता है। हाल ही में एक आम सभा में मैंने कहा था कि अगर मुहम्मद साहब आज हिन्दुस्तान में तशरीफ़ लाएं तो वे ज़रूर ऎलान करेंगे कि जो लोग अपने को मुसलमान कहते हैं उन में बहुत से ऐसे हैं जो इस्लाम के उसूलों पर अमल नहीं करते साथ ही मुझको वो एक सच्चे मुसलमान का ख़िताब देंगे। और साथ ही एक सच्चे अनुयायी की तरह मुझे कुबूल करेंगे”। गांधी और हिन्दू मुस्लिम एकता पेज 30

गांधी जी ने 28 अप्रेल 1946 में बड़ी प्यारी बात कही थी।
“मेरे राम मेरी प्रार्थनाओं को सुनने वाले वो ऐतिहासिक राम नहीं जो अयोध्या के राजा दशरथ के बेटे थे। मेरा राम सदा से और अजन्मा है जिसकी कोई मिसाल नहीं,
मैं केवल उसी की पूजा करता हूं” ।
“मुझे मार दिया जाए तब भी मैं राम और रहीम के नामों का जाप नहीं छोड़ूंगा जो मेरे लिए एक ही खुदा के दो नाम हैं”।
अखबार हरिजन 20 अप्रैल 1947 पेज 118

गांधी जी के नज़दीक रामराज्य का मिसाली हुकूमत हज़रत उमर रज़ि की थी जो न्याय समानता, नैतिकता और आध्यात्मिक पर आधारित थी! गांधीजी के रामराज्य में राजा ग़रीब प्रजा सब बराबर थे।कानून सबके लिए बराबर था।

गांधीजी ने और स्पष्ट किया कि “रामराज्य से मेरी मुराद हिन्दू राज नहीं है। रामराज्य से अभिप्राय परमेश्वर की सत्ता है। मेरी नज़र में राम और रहीम एक ही हैं। रामराज्य का पुराना आदर्श निसंदेह एक सच्चा लोकतंत्र है जिसमें छोटे से छोटा व्यक्ति भी लम्बे चौड़े संघर्ष के बिना तत्काल न्याय पा सकता है “
(यंग इंडिया 19 सितम्बर 1929)

इन बातों से भारतीयों का एक बड़ा तबका अनभिज्ञ है।
आवश्यकता इस बात की है कि हम बिना पक्षपात के उन बिन्दुओं पर विचार करें जिससे देश के सभी नागरिकों का कल्याण हो समरसता, समानता, विश्वास, प्रेम, सद्भावना पैदा हो।
झूठ, कपट, जातिवाद, ऊंच नीच, द्वेष, असमानता, नफरतों से यह देश विश्व गुरु नहीं कहलाएगा। देश की ज़ीनत नागरिक होते हैं। यदि नागरिक असंतोष हों बेरोज़गार हों परेशान हों, महिलाएं असुरक्षित हों तो देश निम्न स्तर पर खड़ा हो जाता है। चाहे हम कितनी ही भौतिक सुख संसाधन में, विज्ञान टेक्नॉलजी में तरक्की कर लें। कभी सम्पन्न नहीं कहलाएंगे।

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