मकर संक्रांति, सूर्य के प्रति आस्था का महापर्व

“श्री सूर्य सहस्रांसो तेजो राशि जगत्पते
अनुकम्प्य माम भक्त्या गृहातुमर्घ्य दिवाकरः”

मकर संक्रांति, सूर्य के प्रति आस्था का महापर्व 

 

लेखिका – सुनीता कुमारी
पूणियां बिहार

“श्री सूर्य सहस्रांसो तेजो राशि जगत्पते
अनुकम्प्य माम भक्त्या गृहातुमर्घ्य दिवाकरः”

सूर्य पूजा का त्यौहार मकर संक्रांति का धूमधाम से पूरे देश के अलग-अलग राज्यों में, अलग अलग नाम से मनाया जाता है । सूर्य पूजा का विधान केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में है ।प्रायः सभी जातियों एवं धर्मों में किसी न किसी रूप में सूर्य की आराधना की
जाती है।
आर्य विशेष रूप से सूर्य की अराधना करने वाले थे एवं आर्य विश्व भर में जहां जहां गए ,वहां वहां सूर्य पूजा की होती है। भारतीय जनमानस में कल्याणकारी प्रकाश के देवता सूर्य की पूजा कई त्यौहार के रूप में होती है।सूर्य की पूजा का विधान आदिकाल से ही है। सूर्य सभी देवताओं के गुरु हैं एवं सभी मुश्किलों से बचाने वाले देवता है ।सूर्य पूजा से हर तरह की समस्या का समाधान हो सकता है ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य पूजा को सर्वोपरि बताया गया है।
हमारे वैदिक शास्त्रों में सूर्योपासना के अनेक आख्यान तथा शास्त्रीय प्रमाण और विश्लेषण मिलते हैं।
वैदिक काल से ही सूर्य पूजा का विधान रहा है, और वैदिक देवता में सर्वोपरि देवता सूर्य ही है ।
वेद में सूर्य को एक पहिया वाले सुनहरे रथ पर सवार होकर गमन करने वाले देवता बताया गया है। सूर्य को वेदों की आत्मा भी कहा गया है। सूर्य को त्रिदेव का प्रतिनिधि भी माना जाता है ,सूर्य प्रातः काल में ब्रह्म, दोपहर में शिव रूप में ,तथा शाम को विष्णु रूप में होते हैं।
सूर्य की पूजा कई माध्यमों से होती है ,सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है एवं प्रतीक के रूप में भी पूजा की जाती है। गरूर,कमल और स्वास्तिक सूर्य के प्रतीक चिन्ह है ।स्वास्तिक सूर्य का सर्वप्रिय प्रतीक चिन्ह है जो किसी न किसी रूप में विश्व भर में पूजा जाता है।स्वस्तिक चिन्ह का महत्व आज भी उतना है ।चाहे कोई भी पूजा या आरती हो स्वास्तिक चिन्ह के बिना हो ही नही सकती है।लोग दरवाजों पर स्वस्तिक चिन्ह बनाते है जिससे घर का वास्तुदोष समाप्त
होता है।
सूर्य की पूजा सिर्फ भारत में ही नहीं पूरे विश्व में भी अलग-अलग नामों से की जाती है। प्राचीन मिस्र बेबीलोन तथा मिस्र की सभ्यता में सूर्य की पूजा के प्रमाण मिले हैं। मिस्र में उगते सूर्य को” होरूस “कहा जाता था ।फारस के लोग सूर्य को मिथरा कहते थे एवं सूर्य की अराधना करनेवाले इन लोगो को मिथराई कहा जाता था एवं मिथराई रोम तक फैले थे।सीरिया, असीरिया ,फिलीपींस के लोगों के भी मुख्य देवता सूर्य ही थे ।
फारसियों के धर्म ग्रंथ जेंदा बेस्ता में सूर्य “हबर” कहा जाता है ,जो स्वर का बदला हुआ रूप है। ग्रीक में सूर्य को अपोलो कहा जाता था। मिथराईयों के अनुसार सूर्य का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। ईसाइयों ने मिथराइयों की धार्मिक मान्यताओं को तो अवश्य ही नकार दिया, लेकिन 25 दिसंबर को क्रिसमस या बड़ा दिन मनाना उसमें आज भी प्रचलित है जो कि, सूर्य पूजा का सबसे बड़ा प्रमाण है।
भारत में वैदिक काल से ही सूर्य की पूजा होती आ रही है ।मकर संक्रांति के साथ-साथ बिहार लोकपर्व व महापर्व छठ भी सूर्य पूजा का ही उदाहरण है।छठ चारदिवसीय त्यौहार है,नहाय खाय जिसे कददूभात भी कहते है ,दूसरा दिन खरना ,तीसरा दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है एवं चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता जाति रहित त्योहार है जिसमें जाति पाती का कोई भेद नही होता है।गायत्री संप्रदाय में भी धूमधाम से सूर्य पूजा की जाती है। समय-समय पर हवन का आयोजन किया
जाता है।
भारत में उड़ीसा राज्य में कोणार्क सबसे बड़ा सूर्य मंदिर है जो बंद पड़ा है तथा पाकिस्तान के मुल्तान शहर में सूर्य मंदिर का अवशेष अभी है ।पाकिस्तान अफगानिस्तान की सीमा पर एक स्थान है काफिरिस्तान जहां आर्यों की आबादी है और वह सूर्य पूजा करते हैं।
हमारी पुरानी कथाओं में सूर्य को माता अदिति और पिता कश्यप का पुत्र बताया गया है ।सूर्य 8 भाई-बहन थे और सूर्य का आकार अंडे के समान था, इस कारण सूर्य को मार्तंड भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है मृत अंडे के समान। बाद में वे आसमान चले गए एवं अपनी विशेषताओं के कारण महिमामंडित हुए।एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार माता अदिति और पिता कश्यप के आठ पुत्रों में सूर्य ने दिन और रात की रचना की ब्रह्मांड का सीजन सृजन किया।
सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ था जिससे इन्हें 3 संतान हुए थी वैस्वस्थ, मनु और यम जिसे यमुना नदी भी कहते हैं। सूर्य का तेज सहन ना करने के कारण संज्ञा ने अपनी छाया सूर्य के पास छोड़ दी और स्वयं लुप्त हो गई ,अश्विनी (घोड़ी) बन गई।
संज्ञा की छाया से भी सूर्य के 4 संताने हुई।
संज्ञा के जाने के पश्चात सूर्य संज्ञा को भूल ना सके और उन्होंने ढूंढते ढूंढते ,घोड़ी बनी संज्ञा को ढूंढ लिया उन्होंने खुद भी अश्व का रूप धारण किया तथा घोड़ी घोड़ी बनी संज्ञा से दो जुड़वा पुत्र पैदा हुए जो अश्वनी कुमार के नाम से जाने जाते हैं जिन्हें देवताओं का चिकित्सक भी कहा जाता है।
सूर्य के संबंध में कई और तथ्य प्रचलित हैं सूर्य की पूजा 12 महीने होती है और प्रत्येक माह में अलग अलग नाम से होती है उसी तरह सविता सूर्य के रूप में हर वस्तु को उत्प्रेरित करती हैं क्योकि, सूर्य से ही पृथ्वी पर जीवन का संचार है।
प्रकृति की पूजा का सबसे सुंदर विकल्प सूर्य की पूजा की पूजा है जिसे भारत में श्रध्दा से मनाया जाता है।

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