प्राकृति से छेड़-छाड़ के कारण वर्षा के बदल जाते हैं पैटर्न प्राकृति आपदाओं की भी बढ़ जाती है आवृति

ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी बड़ी बर्बादी हुई कैसे?

क्योंकि, पेड़ की कटाई से कई तरह के नुकसान हो रहे हैं। साइंस का मानना है कि पेड़ न रहने के कारण पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु और मानव जीवन पर कई प्रकार के प्रभाव होते हैं।

प्राकृति से छेड़-छाड़ के कारण वर्षा के बदल जाते हैं पैटर्न-प्राकृति आपदाओं की भी बढ़ जाती है आवृति

सोनी, रिसर्च स्कॉलर पीजी डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश एंड रिसर्च सेंटर मगध यूनिवर्सिटी बोधगया।

बिहार में बदलते मौसम के मिजाज से न केवल मनुष्य को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि जानवरों और फसलों के लिए भी खतरे की घंटी बजा रहा है। पिछले दिनों आए आधीं-तूफान और बिजली गिरने के कारण सैकड़ों लोगों की जान चली गई। जानवरों की मौत के साथ ही हजारों एकड़ में लगी फसल का नुकसान हुआ सो अलग। सिर छुपाने के लिए घर की छत पर करकट डालकर रहने वाले गरीबों का छत उड़कर कहां गिरा, ये ढूंढने में भी कई रोज लग गए। अचानक आए आंधी-तूफान ने घर की कमजोर दीवारों और पेड़ों को उसकी जड़ से उखाड़ कर उस जगह को ऐसा समतल कर दिया जैसे कभी यहां पर कुछ था ही नहीं।
ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी बड़ी बर्बादी हुई कैसे? जान और माल के इतने बड़े नुकसान के बाद भी अब तक इस ओर किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया। आज से 20-25 साल पूर्व भी आंधी-तूफान आया करता था। लेकिन, उस समय ऐसे हालात उत्पन्न नहीं होते थे। कभी कभार कहीं-कहीं से एकाध लोगों के ऊपर बिजली गिर जाने की खबर मिल जाती थी। उसके मुकाबले आज बेमौसम बरसात और बेमौसम तूफान का आना आम हो गया है। अगर देखा जाए तो इंसान इस से भयभीत तो हैं परंतु आदत से मजबूर भी हैं। अगर आदत से मजबूर नहीं हैं तो फिर इस आसमानी आफत से बचने के लिए अब तक किसी नए तरीके को जन्म क्यों नहीं दिया। क्यों नहीं, कोई तरीका इजाद किया।
आजकल हमलोग जिस दौर से गुजर रहे हैं, वह दौर बेशक भयानक हो। लेकिन, इस दौर को लाने वाले भी हम खुद ही हैं। अगर इसे धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ईश्वर ने हमें जो दिया, आज हम उसका उपयोग कम और दुरुपयोग अधिक कर रहे हैं। पृथ्वी पर तरह-तरह के अजीबो गरीब कार्य के अलावा उन कामों को भी कर रहे हैं जिस के बारे में ईश्वर ने मना किया था। इसके विपरित अगर साइंस की बात की जाए तो उसके अनुसार भी हमलोग अपने जीवन से खुद खिलवाड़ कर रहे हैं। ये सोचने वाली बात है कि पेड़ों की कटाई, नदी तालाब को भरकर मकान बनाना, पहाड़ों को तोड़ना, जमीन के अंदर पानी न जाए इसके लिए हर जगह पक्का प्लासटर करना। यानी हम नित्य दिन प्राकृतिक से खिलवाड़ करते हैं, और आशा यह रखते हैं कि हम इस तरह के आफत से बच के रह जाएंगे। ऐसा कैसे संभव हो सकता है? जब हम खुद बर्बादी का कारण बने हुए हैं, तो फिर यह आशा करना की सृष्टि के रचयिता हमें हर समय बचा लेंगे, यह संभव नहीं।
बीते दिनों आई आंधी-तूफान और आकाश से गिरी बिजली ने पूरे बिहार में 100 से अधिक लोगों को कल के गाल में समा लिया। उस समय हम चुपचाप उस ईश्वर से क्षमा मांगने के बजाय प्रकृति से छेड़छाड़ करना जारी रखे हुए थे। जरूरी तो यह था कि हम खुद पुराने दौर से कुछ सीख लेते और उसी प्रकार काम करते। लेकिन, आंधी-तूफान जैसे कहर बनकर आए और गुजरे कई दिनों का समय बीत जाने के बाद किसी ने भी पुराने दौर से सीखने की पहल नहीं की। वर्ष 1980-81 से पहले भी बिहार में बरसात हुआ करता था, और आंधी भी आया करती थी। एक अथवा दो दिनों तक ही नहीं, बल्कि लगातार कई दिनों तक बरसात होता था और आंधी भी लगातार आया करते थे। इसके अतिरिक्त आसमान में बिजली भी चमकती थी, परंतु यह गिरते नहीं थे। बल्कि, इसके विपरित फसल को फायदा और मनुष्य को राहत पहुंचाने के बाद समय के अनुसार समाप्त भी हो जाया करता था। यह बरसात का मौसम हुआ करता था। लेकिन, आज हर समय या तो बरसात है या फिर जेठ, जब से मानवों ने पेड़ों की कटाई, नदी-तालाबों की भराई और पहाड़ों की तोड़ाई शुरू की है, तब से हम पर इस प्रकार की आपदा का दौर जारी है, और हम ऐसी आपदा के शिकंजे में लगातार कसते जा रहे हैं। सरकार भी आपदा की सूचना पूर्व में न देकर उस समय देती है जब आपदा का दौर समाप्त हो जाता है। वैसे भी अपनी जिंदगी के लिए सरकार के भरोसे पर कब तक। खुद पेड़ लगाना शुरू कर दें।
क्योंकि, पेड़ की कटाई से कई तरह के नुकसान हो रहे हैं। साइंस का मानना है कि पेड़ न रहने के कारण पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु और मानव जीवन पर कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। पेड़ काटने से मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है, कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है, और जानवरों के आवास नष्ट हो जाते हैं। पेड़ पर्यावरण को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन को मुक्त करते हैं। पेड़ काटने से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है। जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ जाती है। पेड़-पौधे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि वे जानवरों और पौधों के लिए आवास प्रदान करते हैं। पेड़ काटने से जानवरों के आवास नष्ट हो जाते हैं और कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच जाती हैं। इतना ही नहीं, पेड़ मिट्टी को बांधकर रखते हैं। जिससे जमीन का कटाव कम होता है। पेड़ काटने से मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है और जमीन बंजर हो जाती है। पेड़-पौधे जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेड़ काटने से जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ जाती है। जिससे तापमान बढ़ता है, वर्षा के पैटर्न बदलते हैं, और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ती है।
मानव जीवन पर प्रभाव पर भी इसका काफी असर होता है। क्योंकि, पेड़-पौधे मानव जीवन के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि वे हमें भोजन, दवाएं, और ईंधन प्रदान करते हैं। पेड़ काटने से मानव जीवन पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकते हैं। जैसे कि भोजन की कमी, बीमारी, और आर्थिक नुकसान। पेड़ काटने का सबसे बड़ा नुकसान तो यह है कि इसके कारण जमीन में पानी की कमी हो जाती है। पेड़ पानी को अवशोषित करते हैं और इसे जमीन में जमा करते हैं। जिससे पानी के स्तर में वृद्धि होती है। पेड़-पौधों की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि पेड़-पौधे प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेड़ वायु प्रदूषण को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए जरूरी तो यह है कि लोग अभी भी प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करें। अन्यथा आने वाला समय और विकराल रूप ले सकता है,,।

 

सोनी, रिसर्च स्कॉलर पीजी डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश एंड रिसर्च सेंटर मगध यूनिवर्सिटी बोधगया – के अपने विचार हैं, 

ZEA
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