नन्हीं दुनियाँ का कोमल सँसार
लेखिका - निवेदिता मुकुल सक्सेनाझाबुआ मध्यप्रदेश*
दिल के साफ होते है नटखट*
*करते है ढेर सारी शैतानियां पर*
*साजिशों की दुनियाँ से ये दूर होते है*
नन्हीं दुनियाँ का कोमल सँसार
लेखिका – निवेदिता मुकुल सक्सेना
झाबुआ मध्यप्रदेश*
*दिल के साफ होते है नटखट*
*करते है ढेर सारी शैतानियां पर*
*साजिशों की दुनियाँ से ये दूर होते है*
2019 से अब तक विश्व कोरोना संक्रमण से लेकर कई चुनोतियो का सामना कर रहा हैं ।वही एक दुनिया जो हमेशा से बस पेट भरने व नित्य कर्म निपटने तक मे ही खुश हो जाती हैं और चहकती किलकारियों से घर गूंजा देती हैं ।कहते है इन निश्चलो में ईश्वर का वास होता हैं ।जी निश्चित हम बात कर रहे नन्हे मुन्नों की ।
जब तब हँसना मुस्कुराना चाहे कोई नाराज हो या गुस्से व साजिशों से भरा सिर्फ इनकी एक निःस्वार्थ मुस्कान पर सब भूला देती हैं। हाँ ये जरूर है कि बड़े होते होते हम स्वयम ही इन्हें अपनी मानसिकता में ढाल कई स्वार्थ भाव इनमे उढेल देते है जहा से शुरू हो जाती हैं ख्वाहिशो का दौर ।
*डिजिटल झरोखा नन्हों का* आज शैशवावस्था में ही ये *डिजिटल दुनियाँ* के दोस्त बन गए है। आंखों का पहरा इनसे हटता ही नही तब तक जब तक नींद आंखों में भर भर कर ये लुढ़क ना जाये । फिर सुबह उठते ही हाथ मे मोबाइल चाहिए वरना रो रो कर हलकान कर देते क्योंकि ये *मोबाइल एडिक्टेड* होते जा रहे बिल्कुल वैसे ही जैसे हम सब बड़े ।हालांकि हम पूर्व समय की बात अब नही कर सकते कि देर नही हुई पर रस्ता आसान भी नही क्योंकि बहुत कम माताएं ही ये वास्तविकता स्वीकार कर पाती हैं कि आने वाले समय मे इन सबसे वह कैसे जूझ पाएंगे।
पहले हम कह देते थे कि जब पढ़ाई का बोझ आएगा तो खुद ब खुद इन सब बातों से दूरी बन लेकिन आज कोरोना संक्रमण की देन से ये दिन आ गया कि जहा मोबाइल से दूरी बनाए रखने की बात किया करते थे वही आज परिस्थितियों ने मोबाइल आवश्यक कर दिया। बस अब इसकी लगाम चलाने वाले के हाथ मे हैं जहां मोबाइल को माता पिता की समझ से अंडर कंट्रोल किया जा सकता हैं। लेकिन भारतवर्ष कहे या विश्व का डिजिटल झरोखा चालीस प्रतिशत से भी कम लोग इस डिजिटल कंट्रोल की जानकारी रखते है।परिणामस्वरूप ये *डिजिटल नन्हों* में बदल गए आस पास की आवाजें , पुकार इन्हें सुनाई नही दे रही।
नन्हों की दुनियाँ आभासी दुनिया से कोई लेना देना नही होता अगर हम जोर से हसकर इनको हँसाये तो ये खिलखिला उठेंगे चाहे ये हमारी हंसी आभासी क्यों ना हो । एक साफ दिल व मन हर बात से बेखबर इस प्रकृति की तरह बिल्कुल वैसे ही जैसे पोधो की देख रेख एक साफ वातावरण व खाद पानी औऱ उचित प्रकाश फिर कैसे हरीतिमा लिए चमकते पत्ते लहलहा उठते है। लेकिन प्रदूषण की मार ही इन्हें नष्ट कर देती हैं। बिल्कुल वैसे ही हमारे नन्हे भी स्वार्थ, खुदगर्जी, व ढोंग , लालच क्या है इन्हें नही पता लेकिन वर्तमान वातावरण की दरकार एक कठिन चुनोती को आवाज दे रही हैं।
वही इस मोबाइल नेटवर्किंग से दूर एक गुमनाम गुमसुम नन्हों की दुनिया जहा मन की चीत्कार को सब नजरअंदाज कर देते वो कोमल आवाज जिसका महत्व कोई समझ नही सकता न ही समझना चाहेगा ।
*देख रेख व संरक्षण नन्हों का*
कई वर्षों से बच्चो के क्षेत्र में कार्य करते हुए उनकी मजबूरियां उनके मनोभाव को पढ़ने से लगा कि *बालको की देख रेख व संरक्षण* पूर्ण अभाव में सैकड़ो नन्हे न्यायिक गलियारे से आज भी दूर है विडंबना है कि वे उस गलियारे में पहुच ही नही पाते और जिम्मेदार लोग चाहे प्रशासन हो समाजिक लोग इन सब बातों को पेपर से पंच फ़ाइल में गुलाबी पैबन्द लगाकर उन नन्हों के हिस्से का निवाला गुपचुप तरीके से डाका डाल कर के अपने घरों की किलकारियों की बेहतरीन देख भाल में लगाते व सम्पत्ति जमा करने में लगा देते ।
*वो जो भटकते रहते है खुशियों की तलाश में*
*शायद उन्होंने नन्हों की किलकारी सुनी नही होगी*
सरकार द्वारा दिये इन नन्हों के नाम का करोड़ो रूपया भ्रष्ट अधिकारी और विकृत मानसिकता वाले नेतागण अपनी फाइलों में बडे ही सिस्टेमेटिक तरीके से एटेच कर लेते हैं। आज भारत विकास क्यों नही कर पा रहा क्योंकि यहां का बच्चा बच्चा सही विकास की छांव में आज भी फलफूल नही पा रहा । नन्हों का आधा अधूरा विकास कैसे स्वस्थ किशोर व युवा का निर्माण करेगा आखिर ये ही तो भारत का भविष्य हैं ओर वर्तमान की कठिन चुनोतियो की ओर इशारा कर रही ।
*जिम्मेदारी हमारी*
* प्रकृति की हवा में इन्हें पलने बढ़ने दे ।
* उचित देख रेख व संरक्षण इनकी प्राथमिकता हैं*
* इनके नाम सरकारी धन रिश्वत में न खाएं*. *बालहित ही राष्ट्रहित*
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