आज की चुनौतियां और समाधान का गांधी मार्ग
उद्योग, व्यापार, खेती और सेवा क्षेत्र का कारपोरेटीकरण किया जा रहा है। संसदीय लोकतंत्र अब कारपोरेट तंत्र बन चुका है।
प्रशासकीय व्यवस्था भ्रष्ट हो चुकी है। प्रसार माध्यम पूरी तरह से कार्पोरेट्स के नियंत्रण में है। पूरे दुनिया में कारपोरेट राज स्थापन हुआ है।
आज की चुनौतियां और समाधान का गांधी मार्ग
विवेकानंद माथने
आज दुनियां के सामने गांधीजी के समय से अधिक चुनौतियां है। जो मानते है कि गांधी के पास समाधान है, उनके लिये जरुरी है कि वह वर्तमान समय की चुनौतियां और समाधान का गांधी मार्ग समझे और उसके अनुरुप कार्य करें। दुनियां में जिस व्यवस्था के चलते संकट पैदा हुआ है, उस पूंजीवाद, साम्यवाद या समाजवाद के पास उससे उत्पन्न समस्याओं का कोई समाधान नही है। उसका समाधान एक नई व्यवस्था ही दे सकती है। वर्तमान व्यवस्था में बदलाव लाकर ही समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। गांधीजी हिंद स्वराज में नई व्यवस्था की रुपरेखा प्रस्तुत करते है। उसीका नाम सर्वोदय है।
दुनियां की अधिकांश समस्याऐं शोषणकारी साम्राज्यवादी व्यवस्था का परिणाम है। आज साम्राज्यवाद की जगह नव साम्राज्यवाद ने ली है। पूरे दुनिया में कारपोरेट राज स्थापन हुआ है। उद्योग, व्यापार, खेती और सेवा क्षेत्र का कारपोरेटीकरण किया जा रहा है। संसदीय लोकतंत्र अब कारपोरेट तंत्र बन चुका है। न्याय व्यवस्था अमीरोंके अधिन हो चुकी है। प्रशासकीय व्यवस्था भ्रष्ट हो चुकी है। प्रसार माध्यम पूरी तरह से कार्पोरेट्स के नियंत्रण में है।
औद्योगिकरण और बाजार पूंजीवादी व्यवस्था का हथियार है। औद्योगिकरण, टेक्नोलॉजी, यांत्रिकीकरण के कारण कई समस्याऐं पैदा हुई है। केंद्रीकरण बढा है। शोषण और लूट बढ़ी है। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और श्रम का शोषण बढा है। आर्थिक विषमता, गरीबी, बेरोजगारी बढती जा रही है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि का नया संकट पैदा हुआ है। टेक्नोलॉजी मानवता के लिये विनाशक साबित हो रही है। यंत्रों का उपयोग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने रोजगार का नया संकट पैदा किया है। संकुचित राष्ट्रवाद फिर से उभर रहा है। युद्ध में जैविक हथियार का खतरा बढा है। धार्मिक कट्टरपंथी धर्म पर हावी है। सांप्रदायिक तनाव बढ रहा है। हिंसा, युद्ध, प्रतिशोध, कट्टरपंथी सोच, धार्मिक विद्वेष, आंतकवादी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है।
खेती और किसानों के लिये यह सबसे बुरा दौर है। अन्नदाता किसानों का खेती में शोषण बढता जा रहा है। उसे खेती में जीनेके लिये जरुरी आमदनी तो दूर श्रममूल्य भी प्राप्त नही होता। लेकिन सुधार के लिये बुनियादी काम करने के बजाय सरकार खेती को कारपोरेट्स के हवाले करके किसानों को ही खेती से हटाने में लगी है। जिससे खेती पर निर्भर 60 प्रतिशत किसानों का संकट और बढेगा, बेरोजगारी बढेगी और गांवोके पाससे उत्पादन का एकमात्र साधन भी छीना जायेगा। जल, जंगल, जमीन और अन्य प्राकृतिक संसाधन भी कारपोरेट्स के हवाले किये जा रहे है। व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में भी कारपोरेटी व्यवस्था ने छोटे लघु उद्यमों के लिये संकट पैदा किया है।
लोकतंत्र मूलत: हिंसा पर आधारित है। आज लोकतंत्र के नामपर कारपोरेट तंत्र चल रहा है। वह सत्ता पानेके लिये प्रतिशोध पर टिका है। समाज में वैमनस्य बढाता है। धर्म, जाति के आधारपर समाज को बांटता है। आज लोकतंत्र की हालत देखकर हम कह सकते है कि संसदीय लोकतंत्र पराभूत हुआ है। गांधीजी कहते है कि संसदीय लोकतंत्र एक वेश्या और बांझ की तरह है, धन के बल पर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। जिसे आप पार्लियामेंटोंकी माता कहते है, वह पार्लियामेंट तो बांझ और बेसवा है। गांधीजी कहते है कि मैने उसे बांझ कहा क्योंकि अबतक उस पार्लियामेंटने अपने आप एक भी अच्छा काम नही किया। अगर उसपर जोर-दबाव डालनेवाला कोई नही हो तो वह कुछ भी नही करें, ऐसी उसकी कुदरती हालत है। और वह बेसवा है क्योंकि जो मंत्रिमंडल उसे रखे उसके पास वह रहती है। आज उसका मालिक एक है, तो कल दूसरा होगा, परसों कोई तीसरा।
गांधीजी ने हिंद स्वराज में एक नई समाज रचना की रुपरेखा प्रस्तुत की है। वह अहिंसक समाज रचना चाहते थे। पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद की जगह सर्वोदय चाहते थे। सर्वोदय याने सबका भला। सबके भले में अपना भला। हिंसामुक्त, शासनमुक्त, शोषणरहित, बाजार मुक्त, प्रतिस्पर्धा मुक्त, अहिंसक समाज रचना का एक नया विकल्प प्रस्तुत करना चाहते थे। उसके लिये आर्थिक, सामाजिक, नैतिक, राजनैतिक क्षेत्रों में बुनियादी बदलाव लाना चाहते थे।
गांधीजी मानते है कि समाजवाद और साम्यवाद आदि पश्चिमके सिद्धांत हमारे तत्संबंधी विचारोंसे बुनियादी तौर पर भिन्न है। जिनका विश्वास है कि मनुष्य स्वभाव में मूलगामी स्वार्थ भावना है। गांधीजी उसे अस्वीकार करते है। गांधीजी मानते है कि मनुष्य और पशुमें बुनियादी फर्क है। मनुष्य अंतर्हित आत्माकी पुकारका उत्तर दे सकता है, उन विकारोंके ऊपर उठ सकता है, जो उसमें और पशुओं में सामान्य रुपसे पाये जाते है और इसलिये वह स्वार्थ भावना और हिंसासे भी उपर उठ सकता है।
गांधीजी वर्गहीन समाज चाहते है लेकिन वर्ग संघर्ष के द्वारा नही। वह मानते है कि अहिंसा के द्वारा ही वर्गहीन समाज संभव है। गांधीजी मालिकों को स्वेच्छा से न्यासी बनाने की सलाह देते है और आवश्यकता पडने पर उसके लिये कानून बनाने को स्वीकृति देते है। गांधीजी अंग्रेजियत हटाना चाहते है, अंग्रजों को नही। पूंजीवाद को नष्ट करना चाहते है, पूंजीपतियों को नही। जमींदारी नष्ट करना चाहते है, जमींदारों को नही। वह किसी बुराई को नष्ट करने के लिये बुरी व्यवस्था नष्ट करना चाहते थे, उसमें शामिल व्यक्तियों को नही।
गांधी कहते है कि राज्य केंद्रित और संगठित रुपमें हिंसाका प्रतीक है। राज्य एक आत्मा रहित जड़ मशीन होता है, इसलिये हिंसा कभी नही छुड़वाई जा सकती। उसका अस्तित्व ही हिंसा पर निर्भर है। गांधीजी कहते है, राजनीतिक सत्ता का अर्थ है, राष्ट्रीय प्रतिनिधियों द्वारा राष्ट्रीय जीवन का नियमन करनेकी शक्ति। अगर राष्ट्रीय जीवन इतना पूर्ण हो जाता है कि वह स्वयं आत्मनियमन कर ले तो किसी प्रतिनिधित्व की आवश्यकता नही रह जाती। उस समय ज्ञानपूर्वक अराजकता की स्थिति हो जाती है। गांधीजी कहते है कि उनका पक्का विश्वास है कि राज्य हिंसा से पूंजीवादको दबा देगा तो वह स्वयंही हिंसाकी चपेट में फंस जायेगा और किसी भी समय अहिंसा का विकास नही कर सकेगा। गांधी चाहते है कि राज्य के हाथों में सत्ता केंद्रित न करके ट्रस्टीशिपकी भावना का विस्तार किया जाये। क्योंकि उनकी रायमें व्यक्तिगत स्वामित्व की हिंसा राज्य की हिंसा से कम हानीकारक है।
गांधीजी भलेही हिंदुस्थानकी प्रजाकी इच्छाके मुताबिक पार्लियामेँटरी ढंग का स्वराज पाने के लिये काम कर रहे थे, लेकिन हिंद स्वराज में जिस स्वराज्यकी रुपरेखा गांधीजी ने खींची थी, वैसा स्वराज्य पानेके लिये वह लगातार कोशिश कर रहे थे। गांधीजी प्रतिक्रिया से मुक्त होकर स्थापित व्यवस्था के दोषों को दूर कर एक नई व्यवस्था देना चाहते थे, हिंद स्वराज्य की रचना करना चाहते थे। सर्वोदय समाज का निर्माण चाहते थे।
सर्वोदय दर्शन में सभी समस्याओं का समाधान है। सर्वोदय मूलत: समस्याओं के कारणों को दूर करना चाहता है। सर्वोदय विचार में औद्योगिकरण, यांत्रिकीकरण की जगह विकेंद्रित और जीवन विकास पूरक उद्योग और रोजगार की रचना अभिप्रेत है। अत्याधिक श्रम कम करने के लिये ही यंत्र का उपयोग उसे मान्य है। वह मानता है कि कोई काम छोटा बडा नही होता। बौद्धिक श्रम के साथ शारीरिक श्रम मनुष्य के गुणविकास का माध्यम है। समाज निर्माण में सबकी भूमिका है। सर्वोदय विचार में सादगीपूर्ण जीवनशैली का स्वीकार है। स्थानिक संसाधनों के उपयोग का आग्रह है। मजदूर और किसान का जीवन ही सच्चा जीवन है।
सर्वोदय विचार में काम के आधारपर श्रममूल्य का भेद उसे स्वीकार नहीं है। वकील और नाई के श्रममूल्य का भेद उसे मान्य नही है। श्रमिकों को उचित और न्याय्य पारिश्रमिक मिलना चाहिये। उचित और न्याय्य श्रममूल्य और खेती आधारित पूरक रोजगार देकर किसानोंकी आमदनी सुनिश्चित करना चाहता है। औद्योगिकरण की जगह ग्रामोद्योग, हस्तोद्योग के द्वारा हर हाथ को काम की व्यवस्था चाहता है। हर मनुष्य के जीवन जीने की आवश्यकता पूर्ति उसकी प्राथमिकता है।
सर्वोदय विचार ससंदीय लोकतंत्र की जगह एक नये तंत्र की जरुरत महसूस करता है। जिसमें निर्णय प्रक्रिया में सबकी सहभागिता हो, अल्पमत का आदर हो। आज की अंध न्यायप्रणाली की जगह निष्पक्ष पंचो द्वारा संवादी और प्रत्यक्ष न्याय प्रणाली की जरुरत महसूस करता है। सर्वोदय विचार में युद्ध के लिये कोई जगह नही है, वह युद्ध का विरोध करता है लेकिन उससे अधिक जिन कारणोंसे युद्ध होते है, उन कारणों को वह दूर करना चाहते है। वह शोषण और लूट की व्यवस्था का विरोध करता है। दूसरों पर सत्ता स्थापित करने का विरोध करता है।
गांधीजी अर्थशास्त्र का निर्माण नीतिशास्त्र के आधारपर करना चाहते है। गांधीजी मानते है कि अमीरों और गरीबों की बीच की खाई कायम रखकर अहिंसक समाज का निर्माण संभव नही है। ट्रस्टीशिप की संकल्पना वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था को समतावादी व्यवस्था में रुपांतरित करने का प्रयास है। गांधी कहते है कि व्यक्तिगत प्रयत्न ही मानवजाती के प्रयत्नोंकी प्रगती की जड या बुनियाद है। गांधीजी मानते है कि राज्य की हिंसा के मुकाबले निजी स्वामित्व की हिंसा कम हानीप्रद है।
ट्रस्टीशिप क्षमतावान पुरुषों की क्षमताओं में रुकावट पैदा नही करता, बल्कि उनकी क्षमताओं का उपयोग समाज के लिये करने की योजना प्रस्तुत करता है। ट्रस्टीशिप में संपत्ति के व्यक्तिगत स्वामित्व का अधिकार स्वीकार नही है। आर्थिक समानता के लिये अर्जित संपत्ति में समाज मान्य करेंगा उतनीही संपत्ति रखने की अनुमति देता है। अतिरिक्त धन का उपयोग समाज के लिये करने के लिये ट्रस्टी बनने को कहता है। गांधीजी धन का स्वामित्व और उपयोग को कानून के द्वारा नियमन करने का समर्थन करते है। उसके व्यावहारिक रुपमें आर्थिक समानता के लिये एक मर्यादा से अधिक संपत्ति पर टैक्स लगाने के लिये कानूनी प्रावधान करने की सिफारिश करते है। ट्रस्टीशिप भूमि तथा अन्य सभी प्राकृतिक संसाधनों पर समाज का अधिकार स्वीकार करता है। भूदान ट्रस्टीशिप का व्यावहारिक रुप है।
गांधीजी का स्वराज्य याने आत्मशासन या आत्मसंयम। गांधीजी का स्वराज्य याने लोक सम्मति के अनुसार होनेवाला भारतवर्ष का शासन। गांधीजी का स्वराज्य का अर्थ सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के लिये लगातार प्रयत्न करना, फिर वह नियंत्रण विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी सरकार का। गांधीजी का स्वराज्य याने हमारी सभ्यताकी आत्माको अक्षुण्ण रखना। गांधीजी का स्वराज्य याने हमे सभ्य बनाना और हमारी सभ्यता को अधिक शुद्ध तथा मजबूत बनाना। गांधीजी के सपनों का स्वराज्य गरीबों का स्वराज्य है, जीवनकी जिन आवश्यकताओंका उपभोग राजा और अमीर करते है, उसे सभी को उपलब्ध कराने कोशिश है।

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