बिहार के परतं प्रधामंत्री महान स्वतंत्रता सेनानी जनाब मुहम्मद यूनुस का नाम बिहार सचिवालय में मुख़्यमंत्रिओं के नाम की सूचि में से गायब
बिहार के राजनितिक इत्तिहास के सब से प्रथम प्रधानमंत्री स्वतंत्र सेनानी बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस का नाम बिहार सचिवालय के में मुख्यमंत्री के नाम की सूचि में से गायब कैसे हुआ ?
बिहार के राजनितिक इत्तिहास के सब से प्रथम प्रधानमंत्री स्वतंत्र सेनानी बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस का नाम बिहार सचिवालय के में मुख्यमंत्री के नाम की सूचि में से गायब कैसे हुआ ? क्या बिहार सरकार ने मुस्लिन स्वतंत्र सेनानिओं की अनदेखी कर रही है ?
बिहार राज्य (एंट्रिम सरकार 1937)
के प्रथम प्रधान महान स्वतंत्रता सेनानी बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस की अनदेखी क्यूँ ?
लेखक (एडवोकेट)एजाज अहमद अध्यक्ष "मुनिस" मॉस यूनियन फॉर नेशनल इंट्रीग्रेशन एण्ड सेल्वेशन
अनुवादक – एस. ज़ेड. मलिक (एमपीएनएन )
बिहार राज्य (एंट्रिम सरकार 1937) के प्रथम प्रधान महान स्वतंत्रता सेनानी बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस की अनदेखी क्यूँ ? का नाम बिहार सचिवालय में मुख़्यमंत्रिओं के नाम की सूचि में से गायब क्यूँ ? क्या सरकार मुसलमानों के साथ जान बुझ कर सौतेलापन रवैया अपना रही है या सरकार की भूल कहा जाए।
बिहार राज्य की प्रसिद्ध हस्तियों में से एक बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस का नाम भी भारत की राजनितिक के इत्तिहास में भारत का प्रथम प्रधानमंत्री से नाम अंकित होना चाहिए न की जवाहरलाल नेहरू का होना चाहिए। बहरहाल हिन्दुस्तान में मुसलमानो से द्वेष और दुराग्रह उस समय से आरम्भ हो गया था जब मुगलों की दौरे हुकूमत में मुसलमानो की आबादी बढ़ने लगी और दलित पिछड़े वर्ग के लोग ब्राह्मणो के अत्यचार से क्षुभ्द बिना भेद भाव के मुसलमानो के साथ बड़े आराम से शांतिपुर जीवन व्यतीत कर रहे थे लेकिन यह बात मनुवादी ब्राह्मणों को हजम नहीं हो रही थी और वह किसी भी तरह मुसलामानों को नीचा दिखाना चाहते थे तभी अँगरेज़ो ने ब्राह्मणो के इस द्वेष और ईर्ष्या का भरपूर लाभ लेते हुए हिन्दू और मुसलमानों बीच दरार पैदा करने के लिए अंग्रेज़ों ने ब्राह्मणों को ही इस काम में लगाया और मनुवादी ब्राह्मणों अंग्रेज़ों की छत्र छाया में दलइतीं और पिछड़ों के बीच नफरत काबिज बोना शुरू कर दिया जिसका नतीजा दिल्ली से मेरठ तक 1857 में मुस्लिम ओल्माओं को अंग्रेज़ों ने हाइवे के किनारे वृक्षों में लटका क्र फांसी दे दिया था जो हिन्दुस्तान की आज़ादी में संसे पहला और सबसे बड़ी क़ुर्बानी मुसलामानों ही इत्तिहास मि अंकित है लेकिन आज भी उसपर पर्दा डाला जारहा है। इन्ही अंग्रेज़ों की छत्र छाया में मनुवादि ब्राह्मणों ने 1925 में जनसंघ नाम की हिन्दू संगठन की बुन्याद रखी और अंग्रेज़ों के ही इशारे पर काम करने लगे। इधर 1935 में बिहार के पटना में गांधी जी के नेतृत्व में नामक तोड़ो क़ानून आंदोलन में भाग लेने के लिए हिन्दू मुसलमान दोनों समुदायों एक साथ लाम बंद होने लगे उन्ही आंदोलन में मुस्लिम समुदायों के मलिक बिरादरी में ज़मींदारों बुद्धिजीवी शिक्षित लोगों में अब्दुल बारी साहब जहानाबाद के कंसुआ और वर्तमान में अरवल जिला के कुर्था के ज़मींदार परिवार के जिनका नाम मलिक वाजुल हक़ जिन्होंने 1942 में थाना पर से ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतार कर हिन्दुस्तान का झंडा फहराया उसी समय ब्रिटिश फ़ौजिओं ने उन्हें गोली मार कर शहीद कर दिया दिया और उन्ही में से एक व्यक्तित्व के धनि भारत के इतिहास और राजनीति में अद्वितीय स्थान रखने वाले इस महान मुजाहिद आज़ादी वर्तमान नई पीढ़ी के बच्चे के लिए एक प्रकाश स्तंभ और प्रेरणा हैं। जिनका आज बिहार मुस्लिम समुदाय 4 मई को योमे पैदाईश मना रहा है। आइये देखते है बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस का इत्तिहास। लेखक (एडवोकेट)एजाज अहमद – अध्यक्ष “मुनिस” मॉस यूनियन फॉर नेशनल इंट्रीग्रेशन एण्ड सेल्वेशन द्वारा प्रस्तुत –
जनाब मोहम्मद यूनुस का जन्म 4 मई 1884 को जिला पटना के नोबतपुर पन्हारा के एक ग्रामीण गाँव में हुआ था। उनके पिता मुख्तार अली हसन के दो बेटे थे, बड़ा बैरिस्टर मुहम्मद यूसुफ और छोटा बैरिस्टर मुहम्मद यूनिस। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से लंदन भेजा गया था। और उन्हें मुहम्मद यूनुस की शिक्षा की चिंता थी, लेकिन उनकी आर्थिक क्षमता के अनुसार, उनके लिए एक ही समय में लंदन में अपने दो बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करना संभव नहीं था, यही कारण था कि श्री मुहम्मद यूनुस ने बहुत विचारशील और परेशान थे, वह एक बहुत ही पवित्र पुत्र थे और अपने पिता की समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ थे।उन्होंने अपनी बुनियादी धार्मिक शिक्षा जहानाबाद के पिला गाँव के बड़े अम्ठवा के आदरणीय शाह साहिब उस्ताज़ से प्राप्त की, क्योंकि उनकी माँ स्वर्गीय ज़ीनत निसा थीं। जब वह काफी छोटे थे तब उनका निधन हो गया था, इसलिए उनका पालन-पोषण जहानाबाद के पेला गाँव में उनके करीबी रिश्तेदार के घर में हुआ था। बचपन से ही वे काफी बुद्धिमान थे, पढ़ने के उनके प्यार ने उन्हें कानून का विशेषज्ञ बना दिया, जब उनके पिता ने उन्हें मना किया। लंदन भेज दो, वे मायूस नहीं हुए, बल्कि उन्होंने अपना हौसला बनाए रखा.बेगम जिनतुन्निसा की अहम भूमिका है।
“बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस”” की पैदाइश 4 मई 1884 इस्वी को बिहार में पटना के करीब “”पनहरा गाव”” में हुआ था, वे दो भाइयों में सबसे छोटे थे! इनके वालिद “मौलवी अली हसन मुख्तार मशहूर वकील थे और उन्होंने लंदन से वकालत पड़ी थी!
स्वर्गीय मुख्तार अली हसन ने अपने पुत्र का विवाह युसुफपुर फतुहा, पटना के एक प्रसिद्ध जमींदार परिवार में किया, उन दिनों श्री मौलवी अब्दुल जब्बार एडवोकेट युसुफपुर फतुहा से मिर्जापुर (यूपी) चले गए और वहीं बस गए।पुत्र मुहम्मद मुजफ्फर इमाम (मुंसिफ) व बैरिस्टर मुहम्मद यूसुफ इमाम मुजाहिद आज़ादी के प्रसिद्ध और प्रसिद्ध व्यक्तित्व रहे हैं। श्री मुहम्मद यूनुस का विवाह मौलवी अब्दुल जब्बार की इकलौती बेटी ज़ीनत निसा से हुआ, विवाह के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखने का फैसला किया। उन्होंने अपनी पत्नी के गहने बेचने और लंदन जाने का फैसला किया और “मध्य मंदिर” से बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की। लंदन। बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस के बड़े भाई मुहम्मद युसूफ पाकिस्तान चले गए, लेकिन श्री मुहम्मद यूनुस अपनी मातृभूमि को छोड़ना नहीं चाहते थे। क्या वे यहां संघर्ष करते रहे?
मुहम्मद यूनुस के केवल दो बेटे (1) मुहम्मद यासीन यूनुस (2) मुहम्मद याकूब यूनुस, मुहम्मद याकूब यूनुस, मुहम्मद यासीन यूनुस के नौ साल बाद पैदा हुए थे, बड़े लड़के मुहम्मद यासीन यूनुस को मुहम्मद यूनुस ने लंदन में पढ़ने के लिए भेजा था।और उन्होंने बैरिस्टर शिक्षा में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की, उन्हें युवावस्था में पटना उच्च न्यायालय का स्थायी वकील बनाया गया और बाद में उन्हें जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया, उन्हें एक बहुत ही घातक बीमारी ने जकड़ लिया और 1947 में रांची में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। मृतक को रांची में दफनाया गया है। श्री मुहम्मद यूनिस ने अपने बड़े भाई मुजफ्फर इमाम मुंसिफ मुंसिफ मिर्जापुर यूपी की इकलौती बेटी रहमानी यासीन यूनिस से शादी की। श्री मुहम्मद यासीन यूनुस अपने पांच नवजात बच्चों को छोड़कर दरफनी से चले गए। बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस जीवन पर्यंत अपने बच्चों का भी अच्छे से ख्याल रखा। उनका दाखिला हुआ, जहां से उन्होंने कानून की पढ़ाई की, लेकिन उनका शौक कुछ असामान्य था, वे फिल्मी दुनिया में अपना नाम बनाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने एक फिल्म में कुछ भूमिकाएं भी निभाईं , वह एक नर्तक और गायक थे।इस कारण से, श्री मुहम्मद यूनिस अपने छोटे बेटे से नाराज रहते थे।
बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस की बेगम ज़ेब-निसा की मृत्यु 19/मार्च 1924 को उनके पिता के घर मिर्जापुर यूपी में हुई, जिसके बाद उन्होंने दूसरी शादी पटना अस्पताल के प्रसिद्ध सर्जन स्वर्गीय हबीबुर रहमान इरकी जहानाबाद की बेटी अतीका खातून से की। उनके करीबी रिश्तेदारों में से एक वो भी थीं, अतीका यूनुस की कोख से कोई औलाद नहीं थी।
बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस ने विभिन्न अदालतों में वकालत की और उन्होंने हर जगह अपनी स्थिति स्थापित की, उन दिनों चूंकि बिहार और ओडिशा एक प्रांत थे, लेकिन यहां कोई उच्च न्यायालय नहीं था, लोगों को अपने मामलों के लिए कलकत्ता जाना पड़ता था और बहुत कुछ झेलना पड़ता था। जब ब्रिटिश सरकार को लोगों की समस्या का एहसास हुआ, तो ब्रिटिश साम्राज्य ने बिहार प्रांत में एक उच्च न्यायालय स्थापित करने का निर्णय लिया, इस प्रकार 1916 में औपचारिक पटना उच्च न्यायालय की स्थापना हुई, तो यह क्या था? बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस। उच्च न्यायालय स्थल, जो उस समय बंजर बंजर भूमि मानी जाती थी, के आसपास की जमीन के मलिकों से जमीन खरीदकर और कलकत्ता के बंगाली बैरिस्टरों और वकीलों के लिए आवासों और घरों के लिए प्लॉटिंग करके अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का अवसर भी मिला। का उन्होंने फ्रेजर रोड, डाक बंगला रोड, जमाल रोड, एक्जीबिशन रोड, पीरमोहनी, चोहता, पटना में खूब जमीन खरीदी और पटना के मध्य में डाक बंगला चौराहे के सामने फ्रेजर रोड पर एक दुर्लभ होटल की स्थापना की, जिसका नाम उन्होंने ग्रांड होटल रखा। बिहार में यह दुर्लभ अंग्रेजी शैली का होटल अंग्रेजी शाही अधिकारियों के रहने का एकमात्र स्थान था, और जब उनके अंग्रेजों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे, तो उन्होंने अपने व्यापार का विस्तार करते हुए मार्टिन कंपनी से बीबी लाइट (बख्तियारपुर बिहार पूर्वी रेलवे) रेलवे खरीदा। उन्होंने दिलारपुर चाय कंपनी की स्थापना की, पटना के मध्य में ओरिएंट बैंक नाम से एक बैंक की स्थापना की। उनकी बुद्धिमत्ता अद्वितीय थी, जब जेडी टाटा ने पहला बोइंग यात्री विमान उड़ाया, तो उन्होंने यह भी सोचा कि क्यों न एक एयरलाइन स्थापित की जाए। इस सपना को पूरा करने के ख्याल से उन्होंने 1952 में लंदन की यात्रा की। यह यात्रा उनके युवा अवस्था की अंतिम यात्रा थी । वहां पहुंचने के कुछ हिन्अ दिनों के बाद चानक कार्डियक अरेस्ट के कारण उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें वहीं दफना दिया गया।
बैरिस्टर यूनुस एक वकील और सियासतदान होने के साथ साथ एक अच्छे कारोबारी, बैंकर, अशाआत (प्रकाशक) भी थे! “बैरिस्टर यूनुस ने पटना में ग्रैंड होटल की भी तामीर करवाया था जो आजादी के पहले बिहार का सबसे जदीद होटल था!
इसी होटल के एक हिस्से में “”मोहम्मद यूनुस”” रहा करते थे, जिसका नाम….(दार -उल- मालिक) था! तब यह होटल उस दौर का सबसे अहम सियासी मरकज हुआ करता था! इस होटल में ठहरने वालो में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु, सुभाष चन्द्र बोस, मौलाना आजाद, जैसे बड़े नेता शामिल थे!
“”बैरिस्टर यूनुस”” ने अपने सियासी (राजनीति) जिंदगी की शुरुआत “”कांग्रेस पार्टी””” से शुरु किया था, लेकिन बाद में वे “महात्मा गांधी” के “”असहयोग नीति”” और दूसरे सियासी वजूहात की वजह से कांग्रेस से अलग हो गए थे।
फिर उन्होंने 1937 में ब्रिटिश हुकूमत की जानिब से कराए गए इंतेखाबात (चुनाव) में “मौलाना सज्जाद” के साथ मिलकर “मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी” बनाई! मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी को 40 में से 20 सीटे मिली, और कांग्रेस को केवल 4 सीटे मिली!
आजादी के बाद बने “”किसान मजदूर प्रजा पार्टी”” के गठन में भी “”मोहम्मद यूनुस”” ने अहम किरदार निभाया था!
13 मई सन् 1952 को बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस” को लंदन के सड़कों पर चलते वक़्त दिल का दौरा पड़ने से इंतेकाल हो गया, लंदन के “ब्रुकवुड मुस्लिम” कब्रिस्तान में आपको दफन किया गया!
लेखक की यह अपनी राय है – इसका पूर्ण दायित्व लेखक की इसमें सम्पादक कोई कोई भूमिका नहीं है।