बीमार उर्दू को स्वस्थ्य बनाने के लिए उर्दू कौंसिल की कोशिश नाकाम – डाक्टरों की पुरानी टीम समाप्त – नई टीम के गठन की पतरिक्षा।

परिषद की सभी गतिविधियां सामान्य रूप से चल रही हैं, कोई भी योजना बंद नहीं की गई है - राष्ट्रीय उर्दू परिषद के बंद होने की खबर निराधार :- प्रो0  शेख अकील अहमद

परिषद की सभी गतिविधियां सामान्य रूप से चल रही हैं, कोई भी योजना बंद नहीं की गई है – राष्ट्रीय उर्दू परिषद के बंद होने की खबर निराधार :- प्रो0  शेख अकील अहमद

राष्ट्रीय उर्दू परिषद के बंद होने की खबर निराधार :
प्रो0  शेख अकील अहमद
राष्ट्रीय उर्दू भाषा परिषद की सभी गतिविधियां सामान्य रूप से चल रही हैं, कोई भी योजना बंद नहीं की गई है, इस वर्ष गवर्निंग काउंसिल की कमी के कारण सहायता अनुदान योजनाओं के लिए आवेदन आमंत्रित नहीं किए गए हैं, हम जल्द ही एक गवर्निंग काउंसिल बनाने का प्रयास कर रहे हैं – प्रो0  शेख अकील अहमद
एस. ज़ेड. मलिक -एमपीएनएन  
नई दिल्ली: – भारत में 90 के दशक के बाद से सरकारी स्तर पर उर्दू को बंद करने की साजिश आरम्भ की जाने लगी – उसका विरोध राजनितिक स्तर पर होने लगा। उस समय तक हिन्दुस्तान के विभिन्न राज्यों में उर्दू को दुसरी भाषा का दर्जा दिया जा चुका का था।  और उर्दू सरकरी महकमे में सुचारु रूप से हंसती खेलती फल फूल रही थी।  विभिन्न राज्यों के महकमों में उर्दू के अनुवादक भी बहाल किय जा रहे थे, और उर्दूभाषिओं में उर्दू को स्वस्थ्य रखने का एक जजुन सा पैदा हो गया था। परन्तु यह जूनून केवल उनलोगों था जो 80 के दशक तक पैदा हुए उनके अंदर ही यह जूनून देखा जाता था अपने आपमें मुसलमान होने की भावनाओं से ग्रस्त थे, वैसे ही लोग मदरसा और अरबी एवं उर्दू को अपनी धरोहर समझ के दुर्भावनापूर्ण मदरसों और मस्जिदों वक़्फ़ संस्थाओं पर क़ाबिज़ रहना चाहते थे। इन जैसे लोगों के कारण नयी नस्लों में एक अलग जनून पैदा हुआ और उनके अंदर भी एक नई भावनाओं ने जन्म लिया और वह भी दुराग्रह के शिकार हुए और उर्दू से किनारा करने लगे उन्होंने अंग्रेज़ी को और हिंदी को महत्त्व देना आरम्भ कर  दिया और फिर नयी नस्लों में उर्दू का शौक़ धीरे धीरे समाप्त होने लगा और उर्दू धीरे धीरे मौत के मुहाने पर जा लगी , मृगे बिस्तर पर जा पड़ी , अब उसके नाम पर बस यूँ समझ लीजिए की फातीहा कराने के नाम पर दक्षणा कहिय या चिरागा कहिये लोग लेने काम कर रहे हैं – जैसे उर्दू परिषद सरकारी एक गुरुद्वारे जैसा है या यूँ कहें लंगर खाना जहां यक़ीदेमंदों या गरीब भूखे बेरोज़गारों को खाना लेने के लिए लाइने में लगना पड़ता है। शायद अब सरकार ने उर्दू परिषद को लंगर चलने के लिए अप्रतीयक्ष अनुदान राशि देना बंद करने की सोंच लिया हो – इसलिए की आकाशवाणी जैसे बड़े महकमे से उर्दू के लगभग सभी बड़े प्रोग्राम समाप्त कर दिए अब वहां उर्दू के नाम पर केवल उर्दू समाचार और उर्दू  सर्विस ही बचा हुआ है वह भी सरकार की मजबूरी है इसलिए की यदि यह भी बंद क्र देगी तो यूएन में भारत सरकार की किरकरी हो जाएगी। चाहे परिषद के संचालक जितनी बह सफाई दें केलिन सच्चाई से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता। अब सवाल है क्या होगा उर्दू के नाम पर सरकारी महकमे से दान लेने वालों का ? हिन्दुस्तान के बड़े मुस्लिम संगठनों के रहनुमा जो सरकार का दिन रात दम भरते हैं क्या वह लोग सरकारी महकमे में उर्दू को बचाने के लिए कोई क़दम उठाएंगे ?
बहरहाल पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर कुछ लोग अफवाह फैला रहे हैं कि भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय राष्ट्रीय उर्दू परिषद को बंद करने जा रहा है।  यह वास्तव में परिषद द्वारा हाल ही में की गई घोषणा का अनुसरण करता है कि इस वर्ष सहायता अनुदान योजनाओं के लिए कोई नया आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह घोषणा इसलिए की गई है क्योंकि गवर्निंग काउंसिल के नहीं होने के कारण पिछले वर्ष प्राप्त आवेदनों को लागू नहीं किया जा सका था, ऐसे में नए वित्तीय वर्ष में आवेदन आमंत्रित करने का कोई औचित्य नहीं है इसलिए काउंसिल ने यह अधिसूचना जारी की है।
परिषद के निदेशक प्रो. शेख अकील अहमद ने इस पूरे मामले पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि परिषद के बंद होने की खबर पूरी तरह निराधार है, न तो परिषद बंद हो रही है और न ही इसकी गतिविधियों पर कोई रोक है।  उन्होंने कहा कि अनुदान और सहायता योजना के तहत केवल पांच से छह करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं और अगर अनुदान और सहायता योजना किसी भी कारण से बंद हो जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि एनसीपीयूएल बंद हो जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि एनसीपीयूएल की सभी योजनाएं सुचारू रूप से चल रही हैं उन्होंने कहा कि इस वर्ष भी सरकार को पिछले वर्ष की तुलना में दस प्रतिशत अधिक अनुदान प्राप्त हुआ है। 
उन्होंने वास्तविक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वास्तव में 4 दिसंबर 2021 से एनसीपीयूएल की गवर्निंग काउंसिल का गठन नहीं किया गया है, जिसके कारण न तो वित्त समिति और न ही कार्यकारी परिषद का गठन किया गया है, क्योंकि गवर्निंग काउंसिल के सदस्यों का गठन नहीं किया गया है।  कुछ सदस्यों को वित्त समिति का सदस्य तथा कुछ को कार्यकारिणी परिषद का सदस्य बनाया जाता है। उर्दू, फारसी, अरबी, कंप्यूटर और कैलीग्राफी आदि के लिए सहायता अनुदान और नए केंद्र खोलने के लिए वित्त समिति और कार्यकारी परिषद से अनुमोदन की आवश्यकता होती है। यहां तक ​​कि एनसीपीयूएल के निदेशक को तीन साल की अवधि के लिए कार्यकारी परिषद द्वारा शक्तियां सौंपी जाती हैं, जिसके बाद निदेशक एनसीपीयूएल के सभी मामलों का संचालन करते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि शासी परिषद का गठन नहीं होता है तो निदेशक कोई नया कार्य या नई योजना या नया केंद्र नहीं खोल सकता है। केवल पुराना खुला केंद्र चला सकते हैं और दिन-प्रतिदिन का काम कर सकते हैं। इसी तरह सभी अनुदान और सहायता योजनाएं जैसे गैर सरकारी संगठनों या संस्थानों को सेमिनार के लिए अनुदान, पुस्तकों की थोक खरीद, ड्राफ्ट का प्रकाशन नहीं दिया जा सकता। नई शोध परियोजनाओं के लिए अनुदान या अनुदान आदि नहीं दे सकते।
शेख अकील ने कहा कि गवर्निंग काउंसिल बनाने का अधिकार केवल शिक्षा मंत्री के पास है। मैं प्रयास कर रहा हूं कि जल्द से जल्द गवर्निंग काउंसिल का गठन कर एनसीपीयूएल की सभी योजनाओं को पहले की तरह चालू रखूं। उन्होंने कहा कि मैं भारत सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के अनुमोदन से सर्कुलर के माध्यम से सभी अनुदान सहायता योजनाओं को लागू करने और पिछले वर्ष प्राप्त सहायता अनुदान से संबंधित आवेदनों को स्वीकृत करने का प्रयास कर रहा हूं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जो अनुरोध हम इस साल नहीं ले पा रहे हैं, हम उन्हें अगले साल मौका देंगे। अर्थात् आगामी वर्ष 2022, 2023 एवं 2024 में प्रकाशित पुस्तकों को थोक क्रय हेतु स्वीकृत करने का प्रयास किया जायेगा, जिससे पूर्व वर्ष में प्रकाशित पुस्त
ZEA
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