भाजपा समर्थित आरएसएस भारतीय मुसलमानो को गुमराह कर रही है या सच-मुच पासमन्दा मुसलमानो की ज़रूरत?

क्या अब भाजपा सच-मुच मुसलमानों के बीच अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रही है या गुमराह कर रही है?

यह सवाल इसलिये खड़ा है कि आरएसएस या भाजपा में मुसलमानों की न कोई अहमियत है और न किसी पद पर खड़े होने की जगह ही है,

भाजपा समर्थित आरएसएस भारतीय मुसलमानो को गुमराह कर रही है या सच-मुच पासमन्दा मुसलमानो की ज़रूरत?

क्या अब भाजपा सच-मुच मुसलमानों के बीच अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रही है या गुमराह कर रही है? यह सवाल इसलिये खड़ा है कि आरएसएस या भाजपा में मुसलमानों की न कोई अहमियत है और न किसी पद पर खड़े होने की जगह ही है, इसलिये की भाजपा ने अपने केंद्र सरकार में जो दो दिखावटी मुसलमानो थे उन्हें भी बारी बारी से हटा ही दिया अब भाजपा में कोई भी किसी विशेष पद पर भी नहीं है। और अब जो भाजपा के निचले पायदान पर मुसलमान हैं वह झंडा उठाने वाले या दलाली कर वोट इकट्ठा करने वाले ही भाजपा के पासमन्दा मुसलमान हैं जैसे एससी/एसटी के लोग जो अभी भाजपा में हैं।    पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के बड़े नेता मुस्लिम समुदाय के नेताओं से बड़े जोशो खरोश से मिल रहे हैं। आखिर मक़सद क्या है?

एस. ज़ेड. मलिक

एक ओर भाजपा जहां मुसलमानो की लीडरशीप समाप्त करने का मुहिम चला रही है भारत से मुस्लिम पार्टियों पर अब कोई न कोई आरोप लगा कर उसे बैन कर रही है, वहीं असद उद्दीन ओवैसी अपने आपको भारतीय मुसलमानो का लीडर साबित करने वाले भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा खुलेआम मुसलमानो के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर रही है, तो दूसरी ओर ओवैसी चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़ा कर मुसलमानो के वोट बांट कर मुस्लिम बहुसंख्यकों के वोट को कमज़ोर कर भाजपा को जिताने में मदद कर रहे है तो दूसरी ओर भाजपा के स्थानीय नेता अपने मंच से अपने भाषण में मुस्लमानो को खुल कर गालियां बकते और ज़हर उगलते हुए सोशल मीडिया पर आए दिन किसी न किसी यूट्यूब चैनल पर देखने और सुनने को मिलता रहता है । तब सरकार की आंख भी बन्द रहती है और कान भी बन्द रहता है तथा सभी भाजपाई शीर्ष नेतागण चुप्पी साध लेते हैं।

परन्तु ऐसा क्या है कि इधर आरएसएस के शीर्ष बड़े नेतागण मुसलमानो के पासमन्दा तबक़े को रिझाने की मुहिम चलाने में लगे है, जबकि भाजपा सुप्रीमो रंगा-बिल्ला की जोड़ी, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री, मुस्लिम के उभरते नौजावानो के लीडरशीप को आतंकवादी और देशद्रोही बयान देने के आरोप में जेल में डाल कर उनके जीवन को जैसे कचरे के ढेर पर डंप कर रही है। तो दूसरी ओर कन्हैया जैसे लीडर को हुन्दू और भाजपा को गाली देने कांग्रेस के साथ चलने के लिये छूट दे रही है। वहीं भाजपा शासित प्रदेशों में मुसलमानो के मुहल्ले में उन घरों को आतंकी और देश द्रोही गतिविधियों में लिप्त का आरोपित कर उनके घरों पर बुलडोज़र चलाया जा रहा है। ऐसे में आरएसएस समर्थित भाजपा पासमान्दा और मुस्लिम उलमाओं को जोड़ने का मुहीम चलाने के पीछे क्या मक़सद है यह “बीबीसी” की रिपोटर अपने पड़ताल में कहते हैं कि इससे ये संदेश देने की कोशिश हो रही है कि बीजेपी मुसलमान विरोधी नहीं है। वह खुले दिल से इस समुदाय को गले लगाने के लिए तैयार है।

लोकसभा और विधानसभा में बीजेपी का एक भी मुसलमान सांसद नहीं है। इसे लेकर पार्टी की खासी आलोचना होती रही है।

बीजेपी पर अक्सर ये आरोप लगता रहा है कि वह चुनावों में मुस्लिमों को टिकट नहीं दे रही है। लेकिन पार्टी अब इस नैरेटिव को बदलने की कोशिश में दिख रही है।

लिहाज़ा पार्टी ने अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के बाद अब मुस्लिम वोटरों ख़ास कर पसमांदा मुस्लिमों (पिछड़े, दलित मुसलमान) को अपने पाले में लाने की कोशिश तेज़ कर दी है।

यूपी के पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने के लिए बीजेपी ने रविवार को लखनऊ में ‘पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन’ का आयोजन किया। सम्मेलन में यूपी के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक चीफ़ गेस्ट थे। यूपी सरकार के एक मात्र मुसलमान मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी भी इसमें शामिल हुए.

सम्मेलन में बीजेपी की ओर से राज्य सभा में भेजे गए जम्मू-कश्मीर के गुर्जर मुस्लिम नेता गुलाम अली खटाना भी हिस्सा ले रहे हैं। अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में गुर्जर मुसलमानों की खासी आबादी है। इस लिहाज से सम्मेलन में उनका होना खासा अहम है।

पसमांदा समुदाय के लोगों का दावा है कि भारत की पूरी मुस्लिम आबादी में उनकी हिस्सेदारी 80 फ़ीसदी है।

बीजेपी की नज़र अब मुस्लिमों की इसी बड़ी आबादी पर है। देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम यूपी में हैं। यहां इनकी आबादी लगभग चार करोड़ है। ज़ाहिर है इसमें सबसे ज़्यादा पसमांदा मुसलमान हैं।

पारंपरिक तौर पर यहां मुसलमान आबादी समाजवादी, बहुजन समाजवादी पार्टी, लोकदल और कांग्रेस को वोट देती आई है। पिछले कुछ चुनावों के दौरान बीजेपी ने यहां गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को खुद से जोड़ने में कामयाबी हासिल की है। अब वह पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने का प्रयास कर रही है।

इस्लाम में जाति भेद नहीं है, लेकिन भारत में मुसलमान अनौपचारिक तौर पर तीन कैटेगरी में बंटे हैं।

ये हैं – अशराफ़, अजलाफ़ और अरजाल. अशराफ़ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। इनमें सैयद, शेख़, मुग़ल, पठान, मुस्लिम राजपूत, तागा या त्यागी मुस्लिम, चौधरी मुस्लिम, ग्रहे या गौर मुस्लिम शामिल हैं।

अजलाफ़ मुस्लिमों में अंसारी, मंसूरी, कासगर, राइन, गुजर, बुनकर, गुर्जर, घोसी, कुरैशी, इदरिसी, नाइक, फ़कीर, सैफ़ी, अलवी, सलमानी जैसी जातियां हैं। अरजाल में दलित मुस्लिम शामिल हैं.

ये जातियां अशराफ़ की तुलना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर पिछड़ी हैं। बीजेपी की नज़र अजलाफ़ और अरजाल समुदाय के इन्हीं मुसलमान वोटरों पर है जिन्हें पसमांदा कहा जाता है।

बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिमों को अपने पाले में लेने की जो कोशिश शुरू की है, उसका असली मकसद क्या है? क्या बीजेपी की यह पहल पसमांदा वोटों के लिए है या ये फिर मुस्लिम विरोधी टैग हटा कर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को कोई संदेश देना चाहती है?

इस सवाल पर यूपी में आयोजित पसमांदा सम्मेलन के मुख्य आयोजक और राज्य के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने बीबीसी से कहा, ” पार्टी के विचारपुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय में विश्वास रखते थे। यूपी में पसमांदा यानी पिछड़ा मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है।

मुस्लिम आबादी में 80 फ़ीसदी इन्हीं की हिस्सेदारी है। मोदी और योगी जी के नेतृत्व में चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं के साढ़े करोड़ लाभार्थी इसी वर्ग के हैं। हमारी सोच है मुसलमानों की इस पिछड़ी आबादी के लिए काम किया जाए”।

क्या बीजेपी को पसमांदा मुसलमानों की इस परेशानी में अवसर नज़र आ रहा है।

इस सवाल पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सोशल साइंसेज़ विभाग के डीन असमर बेग बीबीसी बातचीत में कहते हैं, ”अगर आपको लगता है कि आप को वंचित किया जा रहा है। आपसे भेदभाव हो रहा है और ऐसे में कोई आपके ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की कोशिश करता दिखता है तो आपके उसकी ओर जाने की संभावना बनने लगती है।”

वह कहते हैं, ”मुस्लिमों में पसमांदा सबसे ज़्यादा हैं और इस समुदाय के साथ पहले किसी सरकार या पार्टी ने इस तरह का संवाद नहीं किया था। बीजेपी को यहां एक अवसर दिख रहा है. उन्होंने इस समुदाय के कुछ लोगों को खड़ा किया और वे इस तरह का सम्मेलन करने की कोशिश कर रहे हैं.”

यूपी में बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख बासित अली का कहना है कि उनकी पार्टी की इस पहल का मकसद पसमांदा मुसलमानों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक भागीदारी बढ़ाना है।

लेकिन ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रमुख अली अनवर अंसारी बासित अली के इस दावे को सिरे से ख़ारिज कहते हैं।

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ”बीजेपी मुसलमानों को बांटकर उसके एक हिस्से को अपने साथ लाना चाहती है। पसमांदा मुसलमान हिंदू और मुस्लिम सांप्रदायिकता से काफ़ी पहले से लड़ता आ रहा है. 1940 के ज़माने से लेकर जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धांत और सावरकर के हिंदू राष्ट्र की विभाजनकारी राजनीति तक से वह लड़ता आ रहा है. वह बीजेपी के इस छलावे में नहीं आने वाला।”

अली अनवर अंसारी अपनी दलील के समर्थन में एक शेर पढ़ते हैं।

अमीरे शहर की हमदर्दियों से बचके रहना

ये सर से बोझ नहीं सर ही उतार लेते हैं।।

बीजेपी की मुहिम का यूपी की राजनीति पर कितना असर होगा?

इस सवाल पर अली अनवर अंसारी कहते हैं, ”यूपी में जो लोग ये काम कर रहे हैं उनकी कोई ज़मीन नहीं है। इस राज्य का पसमांदा मुसलमान इनके साथ क़तई नहीं जाने वाला. यूपी में गुजरात के बाद सबसे ज़्यादा अत्याचार मुस्लिमों पर हुआ है। ”

अली अनवर आगे कहते हैं, ”कुछ बगैर जनाधार वाले लोग पसमांदा मुसलमानों की नुमाइंदगी करने में लगे हैं. ये लाभार्थियों के नाम पर लोभार्थियों की जमात खड़ी करने में लगे हैं। जो लोग पसमांदा मुसलमानों की नुमाइंदगी करने का दावा कर रहे हैं, न तो उनके पास ज़मीन है और न ज़मीर ”

क्या बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को एक बड़े वोट बैंक के तौर पर देख रही है या फिर उसका कोई और मक़सद भी है।

असमर बेग इस सवाल का जवाब देते हैं। वो कहते हैं, ”बीजेपी दोतरफ़ा रणनीति अपना रही है। बीजेपी या संघ से जुड़े फ्रिंज ग्रुप एक तरफ़ तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ अभियान चलातें हैं। इससे कट्टर हिंदुत्व का समर्थक वोटर खुश होता है और उसका कंसॉलिडेशन होता है। दूसरी ओर वह पसमांदा मुस्लिमों की ख़ैर-ख़बर लेने की कोशिश करते दिखते हैं। इस तरह वह लिबरल हिंदू वोटरों को ख़ुश करना चाहते हैं। इससे उनमें बीजेपी के ख़िलाफ़ नफ़रत कम करने में मदद मिलती है”।

पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने की बीजेपी की रणनीति समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के लिए चिंता पैदा कर सकती है.

असमर बेग कहते हैं, ” रातोंरात तो कुछ नहीं होता. लेकिन इससे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी को वोटों का नुक़सान हो सकता है. अगर पसमांदा वोटरों को लगा कि उन्हें कुछ फ़ायदा हो सकता है तो वह उधर जा सकते हैं”।

बेग आगे कहते हैं, ”राजनीति लेने-देने का खेल है। इसलिए इन दोनों पार्टियों को नुक़सान हो सकता है. यादव यूपी में नौ फ़ीसदी हैं और मुसलमान 17 फ़ीसदी से अधिक ये मुसलमान वोटर समाजवादी पार्टी के समर्थक हैं. इसलिए समाजवादी पार्टी को नुक़सान हो सकता है ”

लेकिन अली अनवर अंसारी इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते हैं।

वह कहते हैं, ”ट्रिपल तलाक के मामले में जिस तरह से मुस्लिम महिलाओं का समर्थन इन्हें नहीं मिला उसी तरह पसमांदा मुस्लिमों का समर्थन भी बीजेपी को नहीं मिलने वाला, भले ही ये भाड़े के लोगों को बुलाकर कोई जलसा कर लें”।

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