मरियम अहमद ने सीबीएससी में 99.4% मार्क्स ला कर अलीगढ़ में टॉप हुई।

यदि आप मेहनत रूटीन और समझदारी के साथ मात्र 8 से 10 घण्टे करेंगे, तो उसका परिणाम कहीं बेहतर होता है।

यदि आप मेहनत रूटीन और समझदारी के साथ मात्र 8 से 10 घण्टे करेंगे, तो उसका परिणाम कहीं बेहतर होता है।

लेडी फातिमा सीनियर सेकेंडरी स्कूल की छात्रा मरियम अहमद ने सीबीएससी में 99.4% मार्क्स ला कर अलीगढ़ में टॉप हुई।

मरियम अपने परिवार के साथ

एस. ज़ेड.मलिक(पत्रकार)

कहा जाता है होनहार “बिरबाई के चिकने पाथ” आज यह बात मरयम पर चिरतार्थ होती है, काको जहानाबाद की नवासी बिहारशरीफ(नालंदा) की पोती मरियम अहमद ने “लेडी ऑफ फातिमा सीनियर सेकेंडरी स्कूल अलीगढ़ उत्तर प्रदेश से 10वीं में 99.4% से उत्तीर्ण हो कर अपने अलीगढ़ में टॉप हो कर न कि केवल अपने स्कूल और अपने गाँव का ही मान नहीं बढाया बल्कि अपने दोनों कुल का मान बढ़ाया, अपने दोनों खानदानों का मान सम्मान ऊंचा किया है।

मरियम अपने टॉप होने से काफी उत्साहित हैं, वहीं वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित भी हैं वह कहती कि आगे वह कार्डियोलोजिस्ट बनने का सपना सहेजे हुये हैं। अल्लाह, ईश्वर, गॉड, उनके सपने को साकार करे – आमीन।
एक बात आज मरियम अहमद के टॉप होने से प्रत्यक्ष रूप से सामने आ गयी कि जिस घर मे यदि माँ शिक्षित होगी उसके बच्चे कभी भी अपने कुल का नाम नीचा नहीं होने देते हैं विशेष कर बेटी,, मरियम की माँ स्वयं एक गृहणी होने के बावजूद,  वह अपने घर के कामो के साथ साथ अपने बच्चों परवरिश पर भी काफी सचेत रहती हैं। और फिर बाप का तो मुख्य भूमिका रहती है है, बावजूद इसके यदि बच्चा गलत राह पर चला गया तो समाज तुरंत बच्चे के बाप को बदनाम करता है, की बाप ही गलत बाप ही सही रास्ते पर नही रहता।

बहरहाल आज मरियम के नाना डॉ, सदाउल्लाह उर्फ डॉ0 सद्दन जो काको मलिक टोला जहानाबाद के निवासी मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं परन्तु जहां उनकी जन्मभूमि है वहां का इत्तिहास है की वह जगह जमींदारों की बस्ती तथा शिक्षा का जखीरा रहा है, जहां आज भी हर घर मे इंजियर और डॉक्टर और अधिकारी ही पैदा होते हैं। और वह स्वयं भी पेशे से होमियोंपैथी डॉक्टर है, और उन्होंने बेटों को जहां इंजीनियर बनाया वही अपने बेटियों को भी उच्च शिक्षा दिलवा कर समाज मे एक अच्छा स्थान दिलवाया।

डॉ सद्दन कहते है, हमे अपने बच्चों के शिक्षा प्रति कभी न कोताहीन को आड़े आने दिया और न कभी शिक्षा के मामले में कोई समझौता किया। शिक्षा के प्रति उनकी आवश्यकताओं को पूर्ति करने में हमेशा अग्रसर रहा।  

वहीं आज उनकी मां और पिता मोहम्मद इम्तियाज़ अपनी बेटी के टॉप होने पर फूले नहीं समा रहे हैं, मां हीना कौसर जो एक कार्डियोलोजिस्ट हैं, और पिता एक इंजीनियर, वे हकते हैं, मेहनत का फल मीठा होता है, हमारी बच्ची ने काफी मेहनत किया, मेहनत तो सभी करते हैं लेकिन एक मेहनत रूटीन के साथ किया जाता है और एक मेहनत 18 घटे भी किया जाता है, परन्तु 18 घण्टे की मेहनत थकान के सिवा और कुछ नहीं देती परन्तु यदि आप मेहनत रूटीन और समझदारी के साथ मात्र 8 से 10 घण्टे करेंगे, तो उसका परिणाम कहीं बेहतर होता है। हमने अपने बच्चों को रूटीन वर्क सीखाया है। आज उसीका परिणाम है।  

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