जीपीएसवीएस की ओर से जलवायु परिवर्तन के लिए दिल्ली में आपात बैठक। 

उत्तर बिहार के विभिन्न ज़िले ऐसे हैं जिनके गांव नदियों के किनारे और नदियों के स्त्रोत में बसे हुए हैं जो सबसे अधिक असुरक्षित हैं, और उन जिलों में हर वर्ष बाढ़, सूखा और भूकंप जैसी आपदाओं से वहां का हर वर्ग हर समुदाय गरीबी का दंश झेलते हमेशा हाशिये पर रहा है।

उत्तर बिहार के विभिन्न ज़िले ऐसे हैं जिनके गांव नदियों के किनारे और नदियों के स्त्रोत में बसे हुए हैं जो सबसे अधिक असुरक्षित हैं, और उन जिलों में हर वर्ष बाढ़, सूखा और भूकंप जैसी आपदाओं से वहां का हर वर्ग हर समुदाय गरीबी का दंश झेलते हमेशा हाशिये पर रहा है।

जीपीएसवीएस की ओर से जलवायु परिवर्तन प्रेरित आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सामूहिक प्रयास के लिए दिल्ली में आपात बैठक। 

एस. ज़ेड. मलिक
नयी दिल्ली – यह प्रकृतिं की विडंबना कहें या जीवों का दुर्भाग्य या मनुष्यों के गलतिओं का नतीजा , इस समय विश्व में बड़ी तेज़ी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है जिस के मद्देनज़र सम्पूर्ण विश्व में हाहा कार मचा हुआ हुआ है, जिसको लेकर विश्व की हर छोटी बड़ी संस्थाएं जलवायु परिवर्तन पर चिंतित है, और अपने अपने जगहों पर जलवायु परिवर्तन के रोकने के लिए लगातार गहन चिंतन मंथन पर बैठकें और सभाएं कर रहीं हैं।  परन्तु नतीजा टायं टायें फ़ीस हैं। कहीं से कोई संभावित बेहतर परिणाम दिखाई नहीं दे रहा है। प्राकृतिक के जलवायु में बढ़ते परिवर्तन के कारण वातावरण लगातार प्रदूषित होता जा रहा है जिसके कारण जीवों का जीना दूभर सा हो गया है। इसी संदर्भ में पिछले दिनों  29 सितंबर 2023 को नई दिल्ली स्थित वीवाईके (विश्व युवा केंद्र) में “घोघरा डीहा  प्रखंड स्वराज विकास संघ” मधुबनी बिहार के द्वारा “एनजीओ/सीएसओ और नेटवर्किंग कार्यशाला” का आयोजन डीप प्रज्वलित कर किया गया, जिस में जलवायु-परिवर्तन और पर्यावरण स्वक्षक जैसे  विभिन्न लगभग 55 संस्थाओं को आमंत्रित किया था, जिसमे से लगभग 35 संस्थाओं ने भाग लिया जिसकी अध्यक्षता जीपीएसवीएस के अध्यक्ष रमेश कुमार सिंह ने की। और मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित आयुष मंत्रालय भारत सरकार का विभाग राष्ट्रीय औषधीय वृक्ष बोर्ड  के  सहायक निर्देशक डॉ, आर. मुर्गेश्वरण ने सभा की अध्यक्षता की। इस अवसर पर उन्होंने आयुष मंत्रालय द्वारा दी जाने वाली योजनाओं  और वेबसाइट की जानकारी साझा किया। 
इस अवसर पर जीपीएसवीएस अध्यक्ष रमेश कुमार सिंह ने संस्था का परिचय देते हुए उत्तर बिहार के प्राकृतिक आपदाओं और सरकार की नीतियों पर चर्चा करते हुए इस कार्यक्रम के आयोजन का मक़सद बताते हुए कहा की, हमारी संगठन एक स्वैच्छिक संगठन है, जो हाशिए पर रहने वाले समुदाय के उत्थान के लिए काम कर रही है।  हम सभी इस बात से भली-भाँती वाकिफ हैं कि उत्तर बिहार के विभिन्न ज़िले ऐसे हैं जिनके गांव नदियों के किनारे और नदियों के स्त्रोत में बसे हुए हैं जो सबसे अधिक असुरक्षित हैं, और उन जिलों में हर वर्ष बाढ़, सूखा और भूकंप जैसी आपदाओं से वहां का हर वर्ग हर समुदाय गरीबी का दंश झेलते हमेशा हाशिये पर रहा है।
 पिछले कुछ दिनों से हम सभी ने महसूस किया होगा की, गर्मी, ठंड जैसी आपदाओं की बढ़ती तीव्रता जैसे लहर, बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली का चमकना और गिरना , ओलागिरना, तेज़ हवायें, अचानक से गर्म हवायें, अचानक गर्मी और आग लग जाना, क्षेत्रों में अक्सरहां सांप का डसना, एवं इसके साथ में ये अप्राकृतिक आपदाएँ जैसे बिहार एवं अन्य राज्यों में सड़क दुर्घटना, रेल दुर्घटना, नाव दुर्घटना हवाई दुर्घटना जैसी आपदाओं से लोग पीड़ित हैं। इन आवृत्तियों के कारण संवेदनशीलता कई गुना बढ़ गई है। इसलिए हमारा माना है की इन प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती तीव्रता और आवृत्ति के पीछे जलवायु परिवर्तन है। सुरक्षित भारत बनाने के लिए हमें व्यक्तिगत, घरेलू, सामुदायिक एवं क्षेत्रीय/राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत और समन्वित हो कर हम को जलवायु लचीलेपन और आपदा जोखिम उठाते हुए संगठित हो कर न्यूनीकरण के प्रयास की आवश्यकता है। 
इसलिए इस मुद्दे पर जीपीएसवीएस विभिन्न हितधारकों (एनजीओ/सीएसओ, सीबीओ, सरकारी अधिकारी) शिक्षाविदों, किसानों, सामाजिक/विकास कार्यकर्ताओं जिनके पास ज्ञान, कौशल, अनुभव साथ में संसाधन से परिपूर्ण हैं जो सभी चुनौतिओं से निपटने के लिए सक्षम हैं  हितधारकों  को मजबूत करने के लिए एक मंच पर  लाने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है।
 सीबीडीआरआर, जलवायु-लचीला कृषि, वॉश, पशुधन प्रबंधन, वृक्षारोपण और स्वास्थ्य सेवा पर प्राकृतिक संसाधन के लिए काम करते हैं और जीपीएसवीएस नियमित रूप से इनकी कार्यशाला/बैठक आयोजित करता रहता है। 
    इस अवसर पर संस्था की और से सभी उपस्थित एनजीओ प्रमुखों को शॉल उढ़ा कर सम्मानित किया गया। वहीँ उपस्थित सभी अपने अपने क्षेत्र और एनजीओ के ज़िम्मेवार और सक्रिय वरिष्ठ समाज सेवी – दीपक शर्मा, परवीन झा,  मो0 उबैदुल्लाह,  विजय रॉय , जगदीश चौधरी, ग्रीड के महा-सचिव शमशुद्दीन ए. के.,अरूण तिवारी, संजय भाई ,रीता महापात्रा, अवंतिका शर्मा, प्रिंयंका ठाकुर, मोमिन त्यागी, www.mpnn.in और www.youtube.com/@mpnn786 के सम्पादक एवं एनजीओ कंसल्टेंट तथा वरिष्ठ समाजसेवी एस. जेड. मलिक (पत्रकार), ने अपने अपने विचार रखे।
लेकिन “धाक के तीन पात” वाली कहावत पर यह भी बैठक आधारित रही, कोई संकल्प नहीं , कोई वादा नहीं ,  बैठक में केवल सभी ने अपने किये की प्रशंसा की , आपदा पर सभी रोये , समाधान सभी को पता है पर फंड के कारण सारी  गतिविधियां टाये टायें फ़ीस हो जाती है – संगठन अकेले अकेले चलाये जा रहें हैं। कोई भी संगठन एक दूसरे के साथ  संगठित नहीं हो पा रहा , और होना भी नहीं चाहता है। सभी की दुकानदारी जो एक दूसरे से पर्दे में रख कर चलाना चाहते हैं , एक दूसरे के बैठक में संगठन इसलिए शामिल होते हैं की एक दूसरे की जानकारी और दूसरे का सम्पर्क हासिल कर सकें , एक दूसरे का सम्पर्क लेते हैं और जो काम का बंदा होता है उसी से अपना हिट साधते है हैं और फिर उसे भूल जाते हैं। यह मनुष्यों द्वारा बनाया हुआ नियम है जो इसका पालन कमो बेस सभी कर रहे हैं। और प्रकृति भी अपने तरीके से अपना काम काम कर रहा है – “मुझे यक़ीन है – इंसानो के बनाये क़ानूनों पर, एक दिन क़ुदरत को ग़ालिब होना है” समझ नहीं रहा है इंसा – बड़ा मासूम है वो – यही क़ुदरत, मौत बन कर एक दिन हावी होना है !!   
नहीं तेरा नशेमन , क़सर सुल्तानी के गुंबद पे- तू शाहिं है , बसेरा कर , पहाड़ों की चट्टानों पे !! 
 बहरहाल – कार्यक्रम की रूपरेखा संस्था केअध्यक्ष रमेश कुमार सिंह, परियोजना प्रबंधक – एमडी अताउल्लाह – कार्यक्रम प्रबंधक-बासुदेब दास – स्वयंसेवक – मो0 ओबेदुल्ला ने तैयार की।         
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