दिल्ली मेयर का चुनाव मामले में दिल्ली मुख्यमंत्री और एलजी फिर आमने -सामने – सीएम ने एलजी से अपील की।

संविधान का अनुच्छेद 243आर साफ तौर से मनोनीत सदस्यों को सदन में मतदान करने से रोकता है, उन्हें सदन में वोट दिलाने की कोशिश असंवैधानिक है- अरविंद केजरीवाल*

संविधान का अनुच्छेद 243आर साफ तौर से मनोनीत सदस्यों को सदन में मतदान करने से रोकता है, उन्हें सदन में वोट दिलाने की कोशिश असंवैधानिक है- अरविंद केजरीवाल*

दिल्ली मेयर का चुनाव मामले में दिल्ली मुख्यमंत्री और एलजी फिर आमने -सामने – सीएम ने एलजी से अपील की।

नई दिल्ली – दिल्ली में नगर निगम का चुनाव समाप्त हुए एक महीने गुज़र गये, आम आदमी पार्टी को बहुमत भी मिल गया जब कि भाजपा को भी बहुमत से 5 पार्षद की कमी रह गयी । बावजूद इसके भाजपा ने चुनाव के तुरंत बाद ही कहा था कि निगम में बहुमत किसी की भी हो मेयर भाजपा ही बनायेगी यह चैलेंज भाजपा ने आखिर क्यूँ किया था ? इस पर विचार क्या किसी ने नहीं किया होगा ? केजरीवाल शायद इस बात से क्या अनभिज्ञ थे कि उन्हें निगम हाउस में उन्हें अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। जबकि भाजपा की फितरत से पूरा देश भली भांति परिचित है। भाजपा की कथनी और करनी में काफी अंतर है वैसे भाजपा की हमेशा , हारेंगे तो हुरेंगे – जीतेंगे तो थुरेंगे वाली नीति रही है – भाजपा साम , दाम, दण्ड , भेद को अपनाती रही उसी पर काम करती है। यह उसकी परंपरा है। बहरहाल मेयर के चुनाव के समय ही भाजपा अपने नौमनेटेड पार्षदों का शपत ग्रहण करवाना क्या आम आदमी पार्टी को डराना या चेतावनी देना जैसी हरकत नही हैं। क्या यह साजिश का हिस्सा नही है?  भाजपा को यदि अपने नौमनेटेड पार्षदों का शपत ग्रहण ही कराना था तो मेयर चुनाव के बाद भी करा सकती थी । मेयर चुनाव के समय ही क्यूँ?? 

 दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने संविधान का हवाला देते हुई पिछले दिनों एलजी को पत्र लिखकर दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दो करोड़ लोगों के सपनों को पूरा करने देने की अपील की है। सीएम अरविंद केजरीवाल ने पत्र के माध्यम से एलजी से कहा है कि मैं और आप बहुत छोटे हैं। यह देश और लोकतंत्र महत्वपूर्ण है। आइए संविधान का सम्मान करें और लोकतंत्र को मजबूत करें। सीएम अरविंद केजरीवाल ने अपने पत्र में पिछले कुछ हफ्तों में एलजी द्वारा गलत तरीके से जारी आदेशों का हवाला देते हुए कहा है कि नियमानुसार, एमसीडी में 10 सदस्यों को दिल्ली सरकार नामित करती आई है, लेकिन इस बार सरकार से बिना परामर्श किए इनको नामित कर दिया। संविधान का अनुच्छेद 243-आर, साफ तौर से मनोनीत सदस्यों को सदन में मतदान करने से रोकता है। उन्हें सदन में वोट दिलाने की कोशिश असंवैधानिक है। संविधान निर्वाचित सरकार को वरिष्ठ पार्षद को पीठासीन अधिकारी नामित करने का अधिकार देता है, लेकिन इसे दरकिनार किया गया। सीएम ने कहा है कि एलजी और चीफ सेक्रेटरी मिलकर समानांतर सरकार चला रहे हैं और चुनी हुई सरकार को दरकिनार कर आदेश व अधिसूचना जारी कर रहे हैं। दुर्भाग्य से दिल्ली की चुनी हुई सरकार की जगह एलजी के पास कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति है। इसलिए अधिकारी गलत आदेश का भी विरोध नहीं करते हैं।

भारत की राजधानी दिल्ली के शासन में अजीब चीजें हो रही हैं। भारत के संविधान के अनुसार, दिल्ली में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है। पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि जैसे तीन ‘आरक्षित’ विषयों को छोड़कर, समवर्ती और राज्य सूचियों में अन्य सभी विषयों पर कार्यकारी नियंत्रण निर्वाचित सरकार के पास है। निर्वाचित सरकार के नियंत्रण वाले विषयों को लोकप्रिय रूप से ‘स्थानांतरित’ विषय कहा जाता है। माननीय एलजी का तीन आरक्षित विषयों पर कार्यकारी नियंत्रण है।

पिछले कुछ हफ्तों में कुछ बहुत ही विचित्र घटनाक्रम देखने को मिले हैं। माननीय एलजी व्यावहारिक रूप से हर विषय पर सीधे आदेश जारी कर रहे हैं, चाहे वह आरक्षित हो या स्थानांतरित हो। भले ही माननीय एलजी के पास ऐसा करने की शक्तियां हों या नहीं। माननीय एलजी सीधे मुख्य सचिव को निर्देश जारी करते हैं, जो निर्वाचित सरकार को दरकिनार और अनदेखा करते हुए उन्हें पूरी तरह से लागू करवाते हैं। कोई पूछेगा कि अधिकारी एलजी के अवैध आदेशों को क्यों लागू कर रहे हैं? क्योंकि नौकरशाही पर माननीय एलजी का पूरा नियंत्रण है। एलजी के पास दिल्ली सरकार के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ स्थानांतरण, निलंबन या कोई अन्य कार्रवाई करने की शक्ति है। दुर्भाग्य से, दिल्ली की चुनी हुई सरकार का कर्मचारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसलिए दिल्ली सरकार के अफसरों में इतनी हिम्मत नहीं है कि एलजी के आदेश पूरी तरह से बेतुके होते हुए भी उन्हें मना कर दें।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने उदाहरण देते हुए पत्र में लिखा है कि दिल्ली नगर निगम अधिनियम के अनुसार, विशिष्ट ज्ञान वाले 10 सदस्यों को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जा सकता है। आज तक, पिछले कई दशकों से, इन 10 सदस्यों को हमेशा दिल्ली की चुनी हुई सरकार द्वारा मनोनीत किया जाता था। इस प्रथा का पालन पिछले उपराज्यपाल श्री अनिल बैजल ने भी किया था। हालांकि, एक सुबह उपराज्यपाल ने 10 नाम तय किए (जाहिर तौर पर सभी भाजपा पृष्ठभूमि वाले) और मुख्य सचिव को अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया। मुख्य सचिव ने निर्देश का अनुपालन किया और चुनी हुई सरकार को अखबारों से पता चला। जबकि यह एक स्थानांतरित विषय है और संविधान के अनुसार, निर्वाचित सरकार के पास इन सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति थी।

इसी तरह, दिल्ली नगर निगम अधिनियम के अनुसार, पहले दिन सभी पार्षदों को शपथ दिलाने और मेयर का चुनाव कराने के लिए पार्षदों में से एक को पीठासीन अधिकारी के रूप में नामित किया जाता है, जिसके बाद मेयर पदभार ग्रहण करता है। परंपरा यह रही है कि सदन के वरिष्ठतम सदस्य, पार्टी संबद्धता के बावजूद, इस कार्य के लिए राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाता है। वहीं इस बार, एक सुबह, माननीय एलजी ने कुछ भाजपा पार्षद का नाम तय किया और मुख्य सचिव को अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया। हमेशा की तरह मुख्य सचिव ने अनुपालन किया। दिलचस्प बात यह है कि नामांकित व्यक्ति वरिष्ठतम सदस्य नहीं है। इसलिए पुरानी परंपरा को भी दरकिनार कर दिया गया। निर्वाचित सरकार पूरी तरह से इस मामले से बाहर थी। हालांकि संविधान निर्वाचित सरकार को पहले पीठासीन अधिकारी को नामित करने का अधिकार देता है, क्योंकि यह एक स्थानांतरित विषय है।

इसी तरह के एक और विचित्र मामले में, एक सुबह माननीय एलजी ने दिल्ली हज कमेटी के नाम तय किए और मुख्य सचिव को अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया। यह भी एक स्थानांतरित विषय है और केवल निर्वाचित सरकार के पास हज कमेटी गठित करने की शक्ति है। लेकिन यहां भी निर्वाचित सरकार को दरकिनार कर दिया गया।

इस तरह की सिर्फ यही घटनाएं नहीं हैं, बल्कि पूर्व में भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। समय के साथ, अब यह एक नियमित अभ्यास बनता जा रहा है। अधिकारियों को सीधे निर्देश जारी करने और अधिसूचना करवाने की यह प्रथा अवैध और असंवैधानिक है। इतने प्रचंड बहुमत से जनता द्वारा चुनी गई सरकार अप्रासंगिक हो गई है। आमतौर पर अधिकारी ऐसे अजीबोगरीब निर्देशों को मानने से इन्कार कर देते। वे निजी तौर पर और मौन स्वर में विरोध करते रहे हैं। वे सभी इन निर्देशों का पालन न करने पर परिणामों से बहुत डरते हैं। पूर्व में कुछ ने विरोध करने पर इनकी नाराजगी का सामना भी किया है। एक तरह से ‘सेवाओं’ के माध्यम से दिल्ली की नौकरशाही पर नियंत्रण का दुरुपयोग किया जा रहा है।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने पत्र के आखिर में लिखा है, मैं और आप बहुत छोटे हैं। यह देश महत्वपूर्ण है। भारत महत्वपूर्ण है। हमारा लोकतंत्र, जो हमें लंबे स्वतंत्रता संग्राम के बाद मिला है, यह महत्वपूर्ण है। आइए, हम सब मिलकर अपने देश और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए काम करें। दिल्ली के दो करोड़ लोगों ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए इतनी प्रचंड बहुमत वाली सरकार चुनी है। चुनी हुई सरकार सीधे जनता के प्रति जवाबदेह होती है। कृपया चुनी हुई सरकार को जनता के लिए काम करने दें। आइए, संविधान का सम्मान करें।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने चिट्ठी को अटैच करते हुए ट्वीट कर कहा है कि मैंने माननीय एलजी को चिट्ठी लिखी है कि कृपया चुनी हुई सरकार को दो करोड़ लोगों के सपनों को पूरा करने दें। आइए संविधान का सम्मान करें। आइए लोकतंत्र को मजबूत करें।

संविधान में निर्धारित भूमि के कानून का हवाला देते हुए, सीएम अरविंद केजरीवाल ने आज एक ट्वीट कर कहा कि संविधान का अनुच्छेद 243आर स्पष्ट रूप से नामित सदस्यों को सदन में मतदान करने से रोकता है और उन्हें सदन में मतदान कराने का प्रयास असंवैधानिक है।

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