हल्द्वानी में सामूहिक बेदखली पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का जमाअत इस्लामी हिन्द ने किया स्वागत
हम न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की इन टिप्पणियों का समर्थन करते हैं कि “रातोंरात 50,000 लोगों को उखाड़ कर नहीं फेंका जा सकता है - प्रोफेसर सलीम इंजीनियर
हम न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की इन टिप्पणियों का समर्थन करते हैं कि “रातोंरात 50,000 लोगों को उखाड़ कर नहीं फेंका जा सकता है
हल्द्वानी में सामूहिक बेदखली पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का जमाअत इस्लामी हिन्द ने किया स्वागत
नई दिल्ली – उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे से भूमि विवाद के कारण बेघर किए जा रहे हज़ारों परिवारों को उनके घरों से बेदखल करने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का जमाअत इस्लामी हिन्द ने स्वागत किया है।
मीडिया को संबोधित करते हुए जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद सलीम ने कहा कि, “जमाअत इस्लामी का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हल्द्वानी में मकानों के ध्वस्तीकरण पर स्टे का आदेश भारतवासियों का न्यायपालिका में विश्वास को मज़बूती प्रदान करेगा।
प्रेस वार्ता में प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा कि, “हम न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की इन टिप्पणियों का समर्थन करते हैं कि “रातोंरात 50,000 लोगों को उखाड़ कर नहीं फेंका जा सकता है … यह एक मानवीय मुद्दा है, कुछ व्यावहारिक समाधान खोजने की ज़रूरत है। यह कहना सही नहीं होगा कि दशकों से वहां रह रहे लोगों को हटाने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात करना पड़ेगा।”
शनिवार को दिल्ली में जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद सलीम के अलावा मीडिया सह सचिव सैयद ख़लीक अहमद और APCR सेक्रेटरी नदीम ख़ान भी मौजूद थे।
इस अवसर पर जमाअत इस्लामी हिन्द ने कई मुद्दों पर मीडिया में अपनी बात साझा की जिनमें मुख्य रूप से हल्द्वानी में ध्वस्तीकरण पर सुपीम कोर्ट की रोक, महिला अपराधों के प्रति समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता, कर्नाटक और अन्य राज्यों में बढ़ती सांप्रदायिकता और साल 2022 के विभिन्न सूचकांक में भारत की स्थिति जैसे मुद्दों पर बात रखी।
जमाअत ने कहा कि वह प्रस्तावित ‘ध्वस्तीकरण’ को अस्वीकार करता है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 4500 घरों, 4 सरकारी स्कूलों, 11 निजी स्कूलों, एक बैंक, दो पानी के टंकी, 10 मस्जिदों, 4 मंदिरों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और दुकानों को ध्वस्त किया जाना है।
जमाअत ने कहा कि, अधिकारियों के पास उत्तराखंड उच्च न्यायालय का आदेश (दिनांक 20 दिसंबर 2022) है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोगों बेघर करके विस्थापित करना पूरी तरह से अमानवीय, न्याय और नैतिकता की सभी कसौटियों खिलाफ है।
इससे पहले जमाअत इस्लामी का एक प्रतिनिधिमंडल इसके राष्ट्रीय सचिव मलिक मोहतसिम खान के नेतृत्व में वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन, नेशनल सेक्रेटरी एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नदीम खान, स्पेक्ट फाउंडेशन के लईक अहमद खान और जेआईएच के सहायक राष्ट्रीय सचिव इनाम उर रहमान खान के साथ हल्द्वानी पहुंचा था और एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट में उचित प्रक्रिया का पालन करने में की जा रही कुछ बड़ी विसंगतियों पर प्रकाश डाला गया है।
जमात-ए-इस्लामी हिंद ने मांग की है कि घर ध्वस्त करने के अभियान को वापस लिया जाए और बातचीत व संवाद के माध्यम से रेलवे अधिकारियों और लोगों के बीच एक सौहार्दपूर्ण समझौता किया जाए।
इसके साथ ही जमात-ए-इस्लामी हिंद ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के प्रति समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता पर चिंता व्यक्त की है, जैसा कि हाल के दिनों में कई मामलों में सामने आया है।
जमाअत ने कहा कि देश की राजधानी में लगभग 12 किलोमीटर तक कार द्वारा घसीटी गई अंजलि सिंह की दुखद मौत, छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक महिला को स्क्रूड्राइवर से 51 बार गोद कर मार दिया जाना, पश्चिमी दिल्ली में स्कूल जाते समय 17 वर्षीय लड़की पर तेजाब से हमला और नई दिल्ली में 27 वर्षीय लड़की की उसके साथी द्वारा कथित तौर पर हत्या कर के उसके 35 टुकड़े कर दिया जाना- सभी मामले एक महिला के जीवन की और उसके निर्माता द्वारा उसे दी गई गरिमा के प्रति समाज की बढ़ती उदासीनता और उपेक्षा की ओर इशारा करते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों का हवाला देते हुए जमाअत इस्लामी ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4.2 लाख से अधिक मामले सामने आए हैं जो पिछले वर्ष की तुलना में 15% अधिक है। महिलाओं का सम्मान करने और इनपर होने वाले अत्याचारों और असंवेदनशीलता को समाप्त करने के लिए लोगों को संवेदनशील बनाना महत्वपूर्ण है सरकार महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करे।
कर्नाटक और अन्य राज्यों में बढ़ती सांप्रदायिकता पर जमाअत इस्लामी हिन्द ने गंभीर चिंता व्यक्त की है. जमाअत ने कहा कि यह इस समय विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और बहुत जल्द राष्ट्रीय स्तर पर भी चुनाव होने हैं।
जमाअत ने कहा कि, कॉलेजों में हिजाब पहनने का विरोध करने, हिंदू त्योहारों और मेलों में मुसलमानों को स्टॉल और दुकानें लगाने से रोकने और ईसाई मंडलियों पर हमला करने तक- कर्नाटक में नफरत और कट्टरता के पैरोकारों पर कोई लगाम नहीं है।
जमाअत ने इस बात पर भी चिंता जताई कि धर्मांतरण विरोधी कानून अपनाने का कदम, बेलगावी विधानसभा कक्ष में वीर सावरकर की तस्वीर का अनावरण और टीपू सुल्तान को बदनाम करना – राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए सांप्रदायिकता का अभ्यास करने का एक निरर्थक प्रयास निरंतर हो रहा है।
बढ़ती साम्प्रदायिक घटनाओं पर चिंता जताते हुए जमाअत ने कहा कि, “मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. उत्तर प्रदेश सरकार से सीख लेते हुए, एमपी प्रशासन मुस्लिम समुदाय के लोगों के घरों के चुनिंदा विध्वंस में सक्रिय हो गया है. रामनवमी पर खरगोन में पूर्व नियोजित सांप्रदायिक हिंसा जैसी घटनाएं एक झांकी की तरह हैं, जिसे चुनाव के समय के करीब आने के साथ फिर से दोहराया जा सकता है ताकि मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके।
इन घटनाओं पर जमाअत ने कहा कि वह ये महसूस करती है कि अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के माध्यम से बहुसंख्यक तुष्टिकरण की यह प्रवृत्ति हमारे राष्ट्रीय हित में नहीं है और यह हमारे लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के लिए खतरा बन जाएगी। यह राजनीतिक दलों और मतदाताओं का कर्तव्य है कि वे इस प्रवृत्ति को बदलें।
जमाअत ने विभिन्न सूचकांक में भारत की स्थिति पर चिंता जताई. जमाअत ने कहा कि विभिन्न सूचकांक में हमें मिली खराब रेटिंग और रैंकिंग जैसे मानव विकास सूचकांक, वैश्विक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक, ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स, ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स, ग्लोबल हंगर इंडेक्स, भ्रष्टाचार सूचकांक आदि में प्राप्त हुई है।
प्रो सलीम ने कहा कि, “सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को क्रमशः 2% जीडीपी और 3.1% जीडीपी के बजटीय आवंटन के साथ अनदेखा करना जारी रखा. हालांकि, भारत के मुसलमानों के लिए, पिछला साल अन्य वर्षों से अलग नहीं था क्योंकि सत्तारूढ़ दल अपने संबद्ध संगठनों, सरकारी एजेंसियों और मीडिया की मदद से मुसलमानों को “राजनीतिक रूप से अदृश्य” बनाने और उनके और उनके धर्म के खिलाफ निराधार आरोप फैलाने पर लगे हुए थे।”
उन्होंने कहा कि, “लोकतंत्र लगातार खतरे में रहा और लगातार सांप्रदायिक माहौल बने रहे। न्यायपालिका ने देश में कानून की सर्वोच्चता में उम्मीद जगाना जारी रखा, हालांकि न्यायपालिका झूठे आरोपों के तहत अन्यायपूर्ण रूप से कैद किए गए लोगों को न्याय देने के लिए और अधिक कर सकता था।”
नए वर्ष पर उम्मीद जताते हुए जमाअत ने कहा कि, “उम्मीद है कि 2023 हमारे देश के लिए बेहतर समय लाएगा। एकजुट रहना और नफरत व कट्टरता की ताकतों द्वारा उठाए गए भावनात्मक मुद्दों के बहकावे में नहीं आना महत्वपूर्ण है। भारत सफलता के शिखर पर तभी पहुंच सकता है जब वह अपने सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर देने के लिए तैयार हो।”