भेंट – एक कलाकार के साथ बैठक’ के कार्यक्रम का आयोजन।

"हम सब ड्रामा ग्रुप" ग़ालिब संस्थान की एक सक्रिय शाखा है, जो अब तक दिल्ली के अतिक्त विदेशों में भी लगभग 200 से अधिक नाटकों का मंचन कर चुकी है। 

#”हम सब ड्रामा ग्रुप” ग़ालिब संस्थान की एक सक्रिय शाखा है, जो अब तक दिल्ली के अतिक्त विदेशों में भी लगभग 200 से अधिक नाटकों का मंचन कर चुकी है। #

‘भेंट – एक कलाकार के साथ बैठक’ के कार्यक्रम का आयोजन।

 अनुवादक-एस. ज़ेड. मलिक (सम्पादक)

 जाने-माने नाटककार और निर्देशक श्री सलीम आरिफ ने गालिब संस्थान के ‘हम सब ड्रामा ग्रुप’ द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम ‘एक कलाकार के साथ भेंट’ में भाग लिया।  इस ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रो. मुहम्मद काज़िम ने सलीम आरिफ साहब का परिचय कराते हुए उनकी कला और अनुभवों के बारे में प्रश्न पूछे। 
इस अवसर पर गालिब इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. इदरीस अहमद ने कहा कि “हम सब ड्रामा ग्रुप” ग़ालिब संस्थान की एक सक्रिय शाखा है, जो अब तक दिल्ली के अतिक्त विदेशों में भी लगभग 200 से अधिक नाटकों का मंचन कर चुकी है। 
उन्होंने कहा कि डॉ. रक्षिंदा जलील साहिबा इस समूह के अध्यक्ष हैं और प्रो. मुहम्मद काज़िम साहिबा इसकी उप-समिति के सदस्य हैं। आगे उन्होंने कहा मिस्टर सलीम आरिफ साहब को नाटक और मंच की दुनिया में परिचय कराने की आवश्यकता नहीं है। उनके नाटक विशेष रूप से “गालिब नामा” दुनिया भर में उनकी लोकप्रियता का कारण हैं। मैं आभारी हूं कि उन्होंने हमारे लिए अपने कीमती पलों में से समय निकाला। 
इस अवसर पर श्री सलीम आरिफ ने कहा कि मैंने अपने लिए एक ऐसा रास्ता चुना जिसकी हमारे घर में कोई परंपरा नहीं थी।  मैंने “ग़ालिब” के बारे में बहुत सी पुस्तकें, व लद्यु-कथाएं उनकी कविता पढ़ा है, विशेष कर उनके पत्रों के बारे में।  मुझे लगता है कि सभी ग़ालिब विद्वान इस बात से सहमत हैं कि ग़ालिब के पत्रों के बिना ग़ालिब को समझना संभव नहीं है।  रंगमंच 4000 साल के इतिहास वाला एक माध्यम है, इसलिए मुझे लगता है कि यह शैली हमेशा मौजूद रहेगी।  रंगमंच तब तक चलेगा जब तक मनुष्य जीवित रहेगा।  डॉ मुहम्मद काज़िम ने कहा कि सलीम आरिफ साहब का परिचय कराना बहुत मुश्किल है क्योंकि उनके व्यक्तित्व के कई पहलू हैं।  उन्होंने नाटक आलोचना पर बहुत विद्वतापूर्ण निबंध लिखे हैं और फिल्मों में उनका काम बहुत अलग प्रकृति का है, एक ऐसा काम जिसे लोग आसानी से नहीं जाना चाहते।  यह कार्यक्रम गालिब इंस्टीट्यूट की सोशल मीडिया साइटों पर प्रसारित हुआ और इसे अभी भी फेसबुक और यूट्यूब पर देखा जा सकता है।

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