गालिब कबीर तुलसी और मीरा भी हैं यहां। रसखान सूर के भी सुनते हैं हम भजन।।

गालिब कबीर तुलसी और मीरा भी हैं यहां। रसखान सूर के भी सुनते हैं हम भजन।।

गालिब कबीर तुलसी और मीरा भी हैं यहां।
रसखान सूर के भी सुनते हैं हम भजन।।
भगत भी सुभाष भी अब्दुल हमीद और।
ज़िंदा थे ज़िंदा हैं ये शहीदाने हमवतन।।

 

डॉक्टर अजय मालवीय बहार इलाहाबादी
1278/1 मालवीय नगर, प्रयागराज।

 गजल १

सबसे हसीन सबसे निराला मिरा चमन।
महके जहान सारा हर शख्स हो मगन।।

सब ही तो प्यार करते हैं तुझको यहां ।
ऐ नाज़नीन ऐ दिल मिरे ऐ दिलरुबा वतन।।

गालिब कबीर तुलसी और मीरा भी हैं यहां।
रसखान सूर के भी सुनते हैं हम भजन।।

भगत भी सुभाष भी अब्दुल हमीद और।
ज़िंदा थे ज़िंदा हैं ये शहीदाने हमवतन।।

गुलशन से प्यार था बलिदानी ग़ज़ब के थे।
कुर्बानियों को याद करें और करें नमन।।

इक सुर में पासबां बनें अपने वतन के हम।
कोई न रोक पाये न माथे पे हो शिकन।।

कैसी फबन है देख चमन में बहार है।
हुब्बे वतन से खिल उठा हर सू मिरा चमन।

ग़ज़ल (२)

अश्क आंखों में लहू बनकर पिघलना चाहिए।
उसके होठों की हंसी से दिल बहलना चाहिए।।

ज़र्द मौसम देखकर घबरा रहा है दिल मिरा।
ऐसा लगता है कि अब मौसम बदलना चाहिए।।

उसने तो फैला दिए हैं अपनी जुल्फें खोलकर।
देखकर काली घटाओं को बरसना चाहिए।।

लड़खड़ाता है यहां पे छोटे बच्चों की तरह।
खार रस्ता है यहां उसको संभलना चाहिए।।

लौटकर आया है बेटा जो गया परदेस था।
मां की तकती आंखों में आसूं छलकना चाहिए।।

हो रही गंदी सियासत आज के इस दौर में।
ऐसे हालातों से अब हमको निपटना चाहिए।।

उसके आने की ख़बर है आज मेरे घर बहार।
फिर चमन में फूलों की खुशबू महकना चाहिए।।

डॉक्टर अजय मालवीय बहार इलाहाबादी
१२७८/१ मालवीय नगर, प्रयागराज।

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