हिंदी पत्रकारिता दिवस बनाम पत्रकार दिवस
बड़े न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्रों को संचालित करने वाले उद्योगपतिओं व पूँजीपतिओं के मालिकों ने पत्रकारों को गुलाम बना लिया और उन्हें मंत्रिओं नेताओं के यहां झुकने पर मजबूर कर दिया। नतीजा आज पत्रकार सत्ता का गुलान और पत्रकारिता पत्रकारों की दासी जैसा चाहे लिखवा लो मन चाहे बुलवा लो।
बड़े न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्रों को संचालित करने वाले उद्योगपतिओं व पूँजीपतिओं के मालिकों ने पत्रकारों को गुलाम बना लिया और उन्हें मंत्रिओं नेताओं के यहां झुकने पर मजबूर कर दिया। नतीजा आज पत्रकार सत्ता का गुलान और पत्रकारिता पत्रकारों की दासी जैसा चाहे लिखवा लो मन चाहे बुलवा लो।
हिंदी पत्रकारिता दिवस-बनाम -पत्रकार दिवस
एस. ज़ेड. मलिक (स्वतंत्र पत्रकार)
भारत के पत्रकारों ने मनाया हिंदी पत्रकारित दिवस – पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए इस पर चर्चा कम रही पत्रकारों की समस्या अधिक रही – चाहे दिल्ली का प्रेस क्लब हो या दिल्ली का गाँधी शांति प्रतिष्ठान हो – सभी जगह पत्रकारिता दिवस मनाया गया – परन्तु मुझे गाँधी प्रतिष्ठान में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ – वहां आल इंडिया रिपोटर्स असोसिएशन ट्रस्ट(रजि) के बैनर से देश के विभिन्न राज्यों से लग-भाग सौ से डेढ़ सौ मंझौले व छोटे स्थानीय समाचार पत्रों और यूटयूब के संचालक उपस्थित हुए जिसमे समाचार पत्रों के संचालकों की संख्या बहुत काम थी परन्तु युटुब चैनल चलाने वालो पत्रकारों की संख्या अधिक देखने को मिली । इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूपमे आमंत्रित शाहदरा पूर्वी दिल्ली के एसडीएम सोनी को ट्रस्ट की ओर से ट्रस्ट की चेयरपर्सन श्रीमती उर्मिला ठाकुर, राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश चोपड़ा महाससचिव तसीन अहमद पत्रकार एवं ट्रस्ट के आधिकारिक सलाहकार अधिवक्ता दिनेश कुमार गुप्ता ने एक ट्रस्ट का एक स्मृति चिन्ह एक शॉवल दे कर सम्मानित क्या गया एवं लगभब डेढ़ सौ पत्रकारों को शवस्थी पत्र दे कर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर लग भग 20 पत्रकारों ने अपने अपने व्क्तव्यों मे अपने जीवन से जुड़े कार्यों की समस्याओं को उजागर करते हुए लगभग सभी की एक ही रोना देखने को मिला की “हम संगठित नहीं हैं” बात सही है – कहीं का भी पत्रकार हो वह संगठन से जुड़ता ज़रूर है पर संगठन के साथ चलता नहीं है। यह भी एक कडवा सच है, जो पत्रकार जितना बड़ा बैनर से जुड़ा है उतना ही अधिक उसके अंदर घमंड देखने को मिलेगा। और बड़े ेखबारों से जुड़े हुए पत्रकार अपने आप में वह चेयरमैन और वह अपने आप को एक संगठन भी समझता है, और रही बड़े न्यूज़ चैनलों की बात तो उसके पत्रकार चाहे मंत्री संतरी के यहां लगे औंधे पड़े रहें परन्तु वह अपने घर परिवार के सदस्यों और आम आदमी के बीच अपने आपको प्रधानमंत्री से बड़ा साबित करने की कोशिश करेगा। बहरहाल इतने पत्रकारों में, पत्रकारिता जो विश्लेषण बिहार से आये वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर चतुर्वेदी ने किया, वह उनके जीवन का सत्य अनुभव था। आज पत्रकार अतिस्वार्थी और पत्रकारिता पूँजीपतिओं और नेताओं की दासी अर्थात गुलाम हो गई है। गुलाम बनाने वाले कोई और नहीं बल्कि बड़े न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्रों को संचालित करने वाले उद्योगपतिओं व पूँजीपतिओं के मालिकों ने पत्रकारों को गुलाम बना लिया और उन्हें मंत्रिओं नेताओं के यहां झुकने पर मजबूर कर दिया। नतीजा आज पत्रकार सत्ता का गुलान और पत्रकारिता पत्रकारों की दासी जैसा चाहे लिखवा लो मन चाहे बुलवा लो। यह है आज की पत्रकारिता। वहीं पत्रकार गुलामी मानसिकता के तहत अपनी पत्रकारिता को भी जाती और समुदायों में विभाजित कर नेताओं की गोदी में खेल रहे हैं।
बहरहाल – मुझे भी बोलने का अवसर दिया गया तो जब मैंने बताया की 30 वर्षों की पत्रकारिता में मैं एक साइकल भी नहीं खरीद पाया वजह मैंने भूका रहना व समाचार पत्र छोड़ना बेहतर समझा परन्तु परिस्थिति से समझौता कभी नहीं किया। यदि किसी ने मेरी पत्रकारिता पर खुश होकर कोई तौफा दे दिया तो उसे नसीब समझ कर खुशी से रख लिया ,यह मेरी कमज़ोरी, बुज़दिली या बेवकूफी समझें मैने कभी जिद नहीं किया। जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया, बहरहाल पत्रकार संगठित हो भी तो कैसे हों , संगठन आज जो भी है वह पेशेवर पत्रकारों का है और पेशेवर पत्रकार अपने बराबरी का साथ निभाते हैं , जिसे वह आंक लेते हैं, यानी जिसे वह समझ लेते हैं, वह उनसे दूरी बनाये रखते हैं। गरीब सत्य की पर आधारित पत्रकारिता करने वाले का कौन संगठन होगा और वह कैसे संगठित होंगे ? न उनका पत्रकार साथ देते हैं और न सरकार – छोटे समाचार पत्रों से जुड़ा पत्रकार यदि वह अपने आपको सरकारी मान्यता लेना चाहेगा तो गरीब के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा है ‘ना राधा के नौ मन होइन्हें – ना राधा नाचिन्हें ” समाचार पत्र के मालिक तो अपने उन पत्रकारों को सरकारी मान्यता दिलवाते जो पत्रकार समाचार पत्र के मालिक को अपना मालिक समझते हैं। यहाँ मैं अपने पत्रकारिता जीवन के उस दौर की भी चर्चा करना चाहूँगा जब मैं भजनपुरा चाँद बाग़ दिल्ली के कमर एक्सप्रेस समाचार पत्र में एक नियमित पत्रकार के रूप में कार्यरत था परन्तु वहां से कोई सेलरी नहीं लिया क्यूंकी समाचार पत्र के मालिक ने मुझ से यह वादा किया था की डीएवीपी के बाद तुम्हारा दिल्ली सरकार से एक्रिडेशन करा देंगे और और जो सरकारी विज्ञापन आएगा उसमे 50 प्रतिशत देंगे इसी वादे के तहत मैंने उस समाचार पत्र को 2003 में सांसद पप्पू यादव से पैरवी लगा कर डीएवीपी करवाया था 3 वर्षों तक उस समाचार पत्रों केलिय अपना खून पसीना एक करके उसे दिल्ली के लगभग सभी केंद्रीय मंत्रालय में सूचीबद्ध कराया केवल यह सोंच कर की समाचार पत्र का मालिक मेरा एक्रीडेशन करा देगा सेलरी मिले न मिले कोई बात नहीं कम से कम सरकार से मान्यता तो मिल जाएगा, लेकिन मालिक ने धोका दिया – समय आया तो मेरी जगह उसने अपने बेटे और अपनी पत्नी का एक्रीडेशन करा दिया। मैं समझता हूँ , ऐसी परिशानियाँ मेरे जैसे और भी कई पत्रकारों ने झेली होगी और आज भी मेरे जैसे पत्रकार दिल्ली जैसे महानगरों में फूटपाथ अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे होंगे। यह अपने अपने करम और अपने अपने नसीब हैं। लेकिन इस परिस्थतियों का सामना कर अपना जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति यदि अपनी पीड़ा किसी मंच से एक प्रेरणा स्वरूप बताना चाहेगा तो उसे कोई मंच पर न जगह देगा और न समय बल्कि ऐसे कार्यक्रम में खड़े होने की अनुमति नहीं होती है। बहरहाल इस कार्यक्रम में उपस्थित एक सज्जन ने बड़े तपाक से मंच पर आते ही कहा की मैं नहीं मानता की पत्रकार आज कोई नहीं कमा रहा होगा आगे उन्हें ने कहा की फिर वह पत्रकार नहीं, उन्होंने कहा “मैं कहीं जा रहा था रास्ते में मुझे भूक लगी और मैं एक छोटे से बाज़ार से गुज़र रहा था तभी मेरी निगाह पुटपाथ पर एक छोटे से होटल पर पड़ी उस पर लिखा था फलाने की मशहूर समोसे की दूकान मैं वहां गया समोसा खाया उसके बाद उससे कहा तुम्हारा समोसा तो बहुत हि घटिया था और तुम लिख रहे हो की मशहूर समोसे वाला भाई तू मशहूर होता हल्दी राम होता – अब ज़रा विचार कीजिये इस महोदय की सोंच पर – जिसका समोसा खाया उसे घटिया बताया दूसरे पत्रकारिता को एक धंधे से जोड़ दिया – पत्रकारिता करने वाले पत्रकार को घटिया साबित कर दिया। तो ऐसे चैनल और समाचार पत्र के मालिक हैं जो ईमानदारी से काम करने वाले पत्रकार को अपने वक्तव्य में एक मिसाल दे कर सभा को घटिया बताने की कोशिश की – यह महाशय इसी संगठन यानी पत्रकार हितैषी ट्रस्ट के शायद एक अभिन्न अंग हैं जो अपने आपको किसी युटुब के चैनल का मालिक के अलावा किसी से बाद में पता चला की वह साब अधिवक्ता भी हैं अब ऐसे मानसिकता वाले लोग चैनल और समाचारपत्र चलाएंगे तो इनकी दृष्टि में पत्रकारिता की अहमियत क्या होगी और पत्रकारो से दलाली के सिवा और क्या करा सकते हैं। ऐसे लोगों ने ही पत्रकारिता को बेसवा बना दिया।
बहरहाल – आज पत्रकार और पत्रकारिता का स्वरूप बदल दिया गया। आज पत्रकार का काम दलाली करना और जितना हो सके नेताओं की प्रशंसा लिखो और करो तथा नेताओं के कहर पर जितना बड़ा हो सके झूठ ऐसा बोलो की समाज में नफरत देश में दंगा भक जाए उसे पत्रकारिता कहते हैं। पत्रकार और पत्रकारिता कास्वरूप आखिर क्यूँ बदल गया ? व्यवस्था पुजिव्वाद के हांथों में चला गया और जनता खामोश रही – मुट्ठी भर दलालों ने बहुसंख्यक आशिक्षित अव्यवस्थित असमाजिक लोगों को संगठित कर दबंगों को सत्ता में बैठा दिया और बुद्धिजीवी शिक्षित जनता खामोश रही अपराध बढ़ता रहा सत्य के लेखकों को समाज में अपमानित पड़ा शिक्षित बुद्धिजीवी खामोश रहे। आज शिक्षित बुद्धिजीविओं की आतमामर चुकी है, वह जीवित मृत एक बे जान शरीर लिए बे काम न क्र सकते हैं न कह सकते हैं। आज बुराई और बुरे लोग संगठित होचुके हैं और आज अच्छाई और अपने आपको शिक्षित बुद्धिजीवी कागने वाले लोग वह ऊपर लिख ही दिया।
अब हमारी सत्यप्रभावी पत्रकारिता को न तो कोई समाचार पत्र छापेगा और न सुनाने के लिए कोई प्लेटफॉर्म ही देगा। ऐसे में हम जैसे लोग सोशल मीडिया का धन्यवाद करते हैं की एक प्लटफॉर्म तो है जिस पर लिख कर अपनी भड़ास मिटा लेते हैं। इसका मुआवज़ा कौन देगा ? यह तो मेरी अपनी साईट है जिस पर प्रमाण के साथ लेख हम छापते रहेंगे।