दृढ़व्यक्तित्व के धनी थे चौधरी चरण सिंह
चौधरी यतेंद्र सिंह लेखक एवं वरिष्ठ समाज सेवी।
जाति-प्रथा मानवीय इतिहास में परिचित सबसे सम्यक् प्रयत्न है जिसने सामाजिक संबंधों के मार्गदर्शी नियम के रूप में नितांत असमानता प्रारम्भ की है“- किंग्सले, लेखक
दृढ़व्यक्तित्व के धनी थे चौधरी चरण सिंह
चौधरी यतेंद्र सिंह(वरिष्ठ समाजसेवी)
“जाति-प्रथा मानवीय इतिहास में परिचित सबसे सम्यक् प्रयत्न है जिसने सामाजिक संबंधों के मार्गदर्शी नियम के रूप में नितांत असमानता प्रारम्भ की है“- किंग्सले, लेखक
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को मेरठ ज़िले की हापुड़ तहसील (अब ज़िला) में बाबुगढ छावनी के निकट,नूरपुर गाँव में हुआ था। गाँव के परिवेश में पलते बढ़ते हुए उन्होंने किसानों की समस्याओं और ग्राम्य जीवन की कठिनाइयों को बहुत क़रीब से देखा था,और देखा उस शोषण को,जिसके चलते देश का अन्नदाता खुद भूखा नंगा रहने को विवश था । इन्हीं हालात में उन्होंने यह संकल्प लिया कि अब पूरा जीवन समाज के सबसे पिछड़े और दलितजन के अधिकारों की बहाली के लिए ही समर्पित रहना है । चौधरी चरण सिंह की ईमानदारी को उनके विरोधी भी मानते हैं। चौधरी साहब पर जब कोई अन्य किसी तरह का आरोप लगाने की गुंजाइश नहीं मिलने पर उनके विरोधी और जातपांत की राजनीति पर भरोसा करने वाले लोग उन पर जातिवाद होने का आरोप लगाते हैं और इसमें भी ब्राहमण वर्ग ज़्यादा मुखर रहा। ऐसा व्यक्ति जो जीवन भर जाति वाद के विरोध में रहा, उस पर जातिवाद का आरोप लगाना विकृत मानसिकता का परिचायक है।
एक बार मेरठ में नेहरू जी ने चौधरी साहब के ख़िलाफ़ कुछ जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया तो उन्होंने नेहरू जी को लिखे पत्र में कहा कि जब अक्षमता,अयोग्यता,अकर्मण्यता, संभावित अर्थों में चरित्रहीनता,परिश्रमहीनता या आलोकप्रियता के आरोप मुझ जैसे व्यक्ति पर नहीं लगाए जा सके,तब सबसे अच्छा तरीक़ा अस्तित्व समाप्त करने का निकाला गया । छद्म दुष्प्रचार का बिल्ला बिना किसी जाँच पड़ताल के चिपका दो ।
निम्नलिखित उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाएगा कि वे जाति-प्रथा के कितने ख़िलाफ़ थे और उन्होंने इस बुराई को दूर करने के लिए क्या किया । पहला उदाहरण तो यही है चौधरी अजित सिंह के सभी बच्चों की शादी दूसरी बिरादरी में हुई है । आज की तारीख़ में चौधरी साहब की विरासत को सम्भालने वाले जयंत चौधरी का विवाह भी अंतर्जातीय है और वे कहते थे कि इस तरह की शादियों से फ़िज़ूलख़र्ची के अलावा जातियों में आपस सद्भाव बढ़ेगा। चौधरी साहब ने इतिहास से स्नातकोत्तर करने के बाद क़ानून की डिग्री प्राप्त की ।
अध्ययन पूरा करने के तुरंत बाद उन्हें नौकरियों के दो प्रस्ताव आए। एक,बड़ौत ( मेरठ) के जाट कालेज में उप प्रधानाचार्य और दूसरा गुलावठी ( बुलंदशहर) के जाट इंटर कालेज में प्रधानाचार्य पद पर। वेतन और सामाजिक प्रतिष्ठा की दृष्टि से दोनों ही पद महत्वपूर्ण थे। फिर, चौधरी साहब के परिवार की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। इसके बावजूद उन्होंने दोनों संस्थाओं में नौकरी इसलिए नहीं की क्योंकि दोनों ही संस्थाओं के साथ जाति सूचक शब्द जुड़ा था ।
सामाजिक विषमता के इस कारक को समाप्त करने के प्रति चौधरी साहब सदैव संकल्पबद्ध रहे। उनके प्रयासों की गम्भीरता का अंदाज़ा 22 मई 1954 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी को लिखे उस पत्र से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने राजपत्रित पदों पर उन्हीं युवक- युवतियों के चयन का सुझाव दिया था,जो अपनी जाति से बाहर विवाह करने को तैयार हों। इसके अलावा 1967 में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने आदेश जारी किया कि जिन संस्थानों के साथ जाति सूचक शब्द जुड़े हैं, उनका सरकारी अनुदान बंद कर दिया जाएगा। इसका परिणाम यह निकला कि जिन संस्थाओं ने जाति विशेष से अपना नाम संबद्ध कर रखा था,वे रातों रात नाम बदलने को बाध्य हो गए। उनका मानना था कि हमारी बेटियाँ और बेटे जो इन संस्थाओं में पढ़ते हैं, वे धीरे धीरे जन्म पर आधारित ऊँच-नीच के संक्रामक रोग से ग्रसित हो जाते हैं।
चरण सिंह काफ़ी पहले अप्रैल 1939 में कांग्रेस विधायक दल के समक्ष एक प्रस्ताव लाए थे, जिसमें माँग की गई थी कि जो हिंदू प्रत्याशी किसी शैक्षणिक संस्था या लोक सेवा में प्रवेश प्राप्त करे, उससे उसकी जाति की बावत कोई जाँच न की जाए। हाँ, हरिजन है या नहीं, केवल इस बात की जाँच कराई जाए। और यही प्रमुख कारण था कि चरण सिंह के बल देने पर सन 1948 में उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया कि भविष्य में राजस्व विभाग के किसी पट्टे या रिकार्ड में जाति को दर्ज न किया जाए।
जातिवाद की भावना मनुष्य की सहानुभूति को सीमित और समाज को एक ईकाई मानकर उसकी सेवा करने के उद्देश्य में अक्षम घोषित कर देती है। यह एक ऐसा माहैल तैयार कर देती है जिससे एक जाति के निष्ठावान, कर्मठ व्यक्ति के कार्यों का दूसरी जाति के व्यक्तियों द्वारा कोई सम्मान नहीं हो पाता। जन्म पर आधारित जातीय व्यवस्था सदियों से चली आ रही हमारी राजनैतिक-दासता का एकमात्र प्रबल कारण रही है,और इसी के कारण देश का विभाजन तक हुआ।
अध्ययन के प्रति उनकी रूची
चौधरी साहब उन लोगों में से थे जो कर्म के साथ चिंतन और लेखन में भी सक्रिय रहे थे। अनेक विद्वानों जैसे अर्थशास्त्री जे डी सेठी का मत है कि गांधी जी के बाद भारतीय राजनेताओं में चौधरी चरण सिंह ही एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जिनकी अपनी आर्थिक विचारधारा थी। चौधरी साहब की लिखी पुस्तक ( भारत की भयावह आर्थिक स्थिति: कारण और निदान) देश- विदेश में चर्चित रही है। यह पुस्तक अमेरिका के प्रमुख विश्वविद्यालय (हारवर्ड) के अर्थशास्त्र के सिलेबस में शामिल है। उनके निकट सहयोगी रहे व पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय सिंह का कहना था कि चौधरी साहब के अंदर पढ़ने की एक भूख थी,जो जितनी मिटती थी,उतनी ही बढ़ती जाती थी।
चौधरी चरण सिंह द्वारा रचित कृतियाँ
1. Abolition of Jamidari
2. How to abolition jamidari, which alternative system to adopt
3. Agrarian revolution in U.P.
4. उत्तर प्रदेश की भूमि -व्यवस्था में क्रांति
5. हमारी ग़रीबी कैसे मिटे?
6. India’s poverty and its solution
7. India’s Economic Policy: The Gandhian Blueprint
8. Economic nightmare of India : Its cause and cure 9. भारत की भयावह आर्थिक स्थिति: कारण और समाधान
उत्तर प्रदेश में ज़मींदारों के शोषण को समाप्त करने के नज़रिए से 1 जुलाई 1952 को उन्होंने उत्तर प्रदेश में ज़मींदारी उन्मूलन व भूमि सुधार बिल पास कराया। इस प्रक्रिया से प्रदेश के उन सभी काश्तकारों को उन जोतों का ‘सीरदार’ बना दिया गया, जिन पर वे हल चला रहे थे। ऐसे सीरदारों को, जिन्होंने सरकारी मालखाने में अपने लगान की दस गुना रक़म जमा कर दी, भूमिधर बना दिया गया। निर्बल, भूमिहीन किसानों के हक़ में यह एक क्रांतिकारी कदम था।
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