“इबारत” की ओर से कमील रिजवी के सम्मान में कविता पाठ का आयोजन

तेरे ख्याल के साहिल से हम उठे ही नही - यहां पर शाम हुई ही नहीं कि घर जाते ।। कामिल रिज़वी

तेरे ख्याल के साहिल से हम उठे ही नही – यहां पर शाम हुई ही नहीं कि घर जाते ।। कामिल रिज़वी

तेरे ख्याल के साहिल से हम उठे ही नही – यहां पर शाम हुई ही नहीं कि घर जाते ।
  “इबारत” की ओर से कमील रिजवी के सम्मान में कविता पाठ का आयोजन
एस. ज़ेड. मलिक
नई दिल्ली: नई पीढ़ी के प्रतिनिधि शायर और अनोखे हाव-भाव के शायर कमील रिजवी के सम्मान में “इबारत” पब्लिकेशन की ओर से एक प्रतिष्ठित काव्य पाठन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता उस्ताद अल-शारा और प्रमुख पत्रकार सलीम शिराजी ने की।  प्रसिद्ध लेखक और आलोचक, समीक्षक जनाब हक्कानी अल-कासिमी सम्मानीय विशेष अतिथि थे, जबकि वरिष्ठ पत्रकार आसिया खान और मुमताज आलम रिजवी भी सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। इस अवसर पर मोईन शादाब ने कामिल रिजवी की कला और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी प्रतिभा की सराहना करते हुए कहा कि कामिल रिजवी की आवाज दूर से ही पहचानी जाती है। शाहीन बाग में आयोजित इस काव्य सत्र में कई अहम हस्तियां मौजूद रहीं। जिया बक डिपो के प्रमुख जियाउर रहमान, ड्रीम्स इंडिया रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक अंबसत राणा, अब्दुल बारी कासमी, शकील अहमद, अलीमुर रहमान, फौजान खान, अरसलान खान आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में सलाम खान ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले शायरों में शाहदंजुम, अरशद नदीम, मोइन शादाब, रहमान मुसवार, वसीम राशिद, जावेद सिद्दीकी, फरमान चौधरी, अनस फैजी और मोनिस रहमान का नाम उल्लेखनीय है। प्रस्तुत है उपस्थित कविओं के कुछ  चुनिंदे शेर:
फिर यूं हुआ कि रौशनी मसलूब हो गई
कुछ दूर तक तो साथ यक़ीनो गुमां चले।।
सलीम शिराज़ी
तेरे ख्याल के साहिल से हम उठे ही नहीं, 
यहाँ शाम हुई ही नहीं की घर जाते ।।
कामिल रिजवी
हम पर कभी वो वक़्त न आये दुआ करो, 
 आँखों से जब तुम्हारी तलब बोलने लगे ।।
शाहिद अंजुम
एक भीड़ थी मैं जिसका तरफदार रहा था – 
अब अपनी हिमायत में अकेला खड़ा हूं ।।
अरशद नदीम
वो आसमानों से उतरें, तो हम बतायें उन्हें –
बुलंदियों की हुनर ​​हमें ख़ाक से आया ।।
मोईन शादाब
तड़के उल्फत की कोई बात कहां की उसने –
ओढ़ रखी है कि दिन से खमोशी उसने !!
रहमान चित्रकार
 दिलों का दिल से अगर वास्ता नहीं होता
क़सम खुदा की कोई हादसा नहीं होता ।।
पीयूष अवस्थी
हो गया रास्ता मेरा रौशन – उसकी आंखों का था दीया रौशन ।। 
जावेद सिद्दीक़ी
इसलिये चले आते ईसके कूचे में – वह चाहता है , हमे यह गुमान बाकी है ।।
वसीम राशिद
एक मुद्दत हुई मील भी नहीं – दो कदम हैम साथ चले ही नही ।।
मुमताज़ आलम रिज़वी 
जो उनकी इनायत वह उनको मुबारक – जो अपनी शिकायत हैं वह करते रहेंगे ।।
फरमान चौधरी
बेवफाई का मुझे या तो दिया जाये सबूत वरना तस्लीम किया जाये वफादार मुझे ।।
मुनीस रहमान
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