मोहम्मद सलीम को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई
जो गांदरपाल की हर कहानी में दोस्ती, करुणा और सहनशीलता का उजला पक्ष देखा जा सकता है और यही उजला पक्ष इंसान को इंसान की क्रूरता से बचा सकता है।
पीएच.डी. निबंध लेखक मोहम्मद सलीम ने “जोगांदर पाल एक फिक्शनिस्ट के रूप में” शीर्षक से अपनी थीसिस डॉ. हफीजुर रहमान खान, पूर्व प्रिंसिपल मिर्जा गालिब कॉलेज, की देखरेख में पूरी की।
मोहम्मद सलीम को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई
पीएच.डी. निबंध लेखक मोहम्मद सलीम ने “जोगांदर पाल एक फिक्शनिस्ट के रूप में” शीर्षक से अपनी थीसिस डॉ. हफीजुर रहमान खान, पूर्व प्रिंसिपल मिर्जा गालिब कॉलेज, की देखरेख में पूरी की।
एमपीएनएन डेस्क
शौक़ की कोई उम्र नही होती – मरगे बिस्तर पे भी कुछ पाने की तमन्ना रखता है। बड़ों की एक कहावत भी सही “न उम्मीदी भी कुफ्र है – हौंसला बुलंद रखना चाहिए, मंज़िल खुद ब खुद चल कर करीब आ जाती है। यह बातें उर्दू विभाग नई दिल्ली के प्रो. मोहम्मद काज़िम साहब पर चिरतार्थ होती है। थीसिस कम्प्लीट करने बाद परीक्षक प्रो.मुहम्मद काजिम, उर्दू विभाग, नई दिल्ली से थीसिस के संबंध में कई प्रश्न पूछे गये, जिनका मुहम्मद सलीम ने पर्याप्त उत्तर दिया।
इस मौके पर उर्दू विभाग के अध्यक्ष डॉ. अबुल लैथ शम्सी के अलावा डॉ. शाहिद रिजवी, डॉ. जियाउल्लाह अनवर, डॉ. तरनम जहां, डॉ. शकीला नागर, डॉ. समी इकबाल, डॉ. अहमद सगीर आदि मौजूद रहे। बड़ी संख्या में हिंदी विभाग, दर्शनशास्त्र विभाग, विभाग ¿संस्कृत के शिक्षक उपस्थित थे। वाइवा के बाद उपस्थित शिक्षकों ने मुहम्मद सलीम को बधाई दी।
जब मैंने गांदर पाल की कहानी के बारे में पूछा तो जवाब में मुहम्मद सलीम ने मुझे बताया।
जो गांदरपाल की हर कहानी में दोस्ती, करुणा और सहनशीलता का उजला पक्ष देखा जा सकता है और यही उजला पक्ष इंसान को इंसान की क्रूरता से बचा सकता है। इसे व्यक्त करने के लिए गंदर पाल द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा और लहजे से मानवीय भावना की सुंदरता और परोपकार की भावना उजागर होती दिखाई देती है।
जब उनसे गांदर पाल के उपन्यास “ख्वाब रू” के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “ख्वाब रू” एक लघु उपन्यास है, जो 1991 में प्रकाशित हुआ था, लेकिन इस उपन्यास की चर्चा आज भी साहित्यिक हलकों में होती है। “ख्वाब रो” एक ऐसे बूढ़े व्यक्ति की कहानी है जो दंगों की त्रासदी के कारण भारत से पाकिस्तान पलायन करने के लिए मजबूर हो गया था, लेकिन इस निरंतर मानसिक यातना ने उसे वर्तमान की चेतना से पूरी तरह से वंचित कर दिया है। यानी खुली आँखों से कुछ देखते हुए भी वह मानसिक रूप से उसी माहौल का हिस्सा होता है जो अतीत में बदल चुका है। अतीत की यादों ने उसके दिमाग पर ऐसा असर किया है कि सब कुछ बदल जाने के बावजूद भी उसे हकीकत का एहसास नहीं हो पा रहा है. पुराने नवाब के वंशज इस व्यवहार से काफी चिंतित हैं। उनकी प्रबल इच्छा है कि बूढ़े नवाब को पर्याप्त इलाज मिले, ताकि वह अपनी लंबी नींद से जाग सकें और खुली आँखों से स्थिति का आकलन कर सकें। लेकिन हजार कोशिशों के बावजूद भी परिवार इस लक्ष्य में सफल नहीं हो पाता है। कभी-कभी वे यह सोचकर संतुष्ट हो जाते हैं कि इस बहाने बूढ़े नवाब को जीवन की कड़वाहट से मुक्ति मिल गई है, अन्यथा यदि उनका इलाज हो जाए और वे वर्तमान स्थिति से भली-भांति परिचित हो जाएं, तो यह दुःख उनसे सहन नहीं होगा कि उनके सारे सपने चकनाचूर हो गए हैं। जिंदगी उनके लिए एक यातना बन जाएगी और बहुत संभव है कि वे इस सदमे को सहन नहीं कर पाएंगे और मौत की तलहटी में शरण ले लेंगे। बस इसी वजह से परिवार पुराने नवाब की निजी जिंदगी में दखल नहीं देता और बूढ़े नवाब अपने सपनों की खूबसूरत दुनिया में खोए रहते हैं। हालाँकि कभी-कभी उनके साथ ऐसा होता है कि चीज़ें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं, लेकिन वे वास्तव में स्थिति की विडंबना से अवगत नहीं होते हैं।