विश्व रेडियो दिवस 2023

संयुक्त राष्ट्र में रेडियो की शुरुआत 13 फरवरी 1946 में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो की वर्षगांठ के दिन ही विश्व रेडियो दिवस मनाया जाने लगा।

संयुक्त राष्ट्र में रेडियो की शुरुआत 13 फरवरी 1946 में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो की वर्षगांठ के दिन ही विश्व रेडियो दिवस मनाया जाने लगा।

विश्व रेडियो दिवस 2023

कीर्ति बैद

रेडियो एक सदी से निरंतर संचार माध्यमों की रफ्तार में लोक संस्कृति से जुड़ा हुआ है। विश्व की तमाम भाषाओं, बोलियों के कलाकारों को जितना रेडियो ने समृद्ध किया है शायद ही किसी और माध्यम ने किया है। इस वर्ष विश्व रेडियो दिवस की थीम है ‘रेडियो और शान्ति’ जो दुनिया के सभी प्रसारणकर्मियों के मूल उद्देश्य में निहित है। भारत ने हमेशा से विश्व शान्ति का समर्थन किया है जो इस वर्ष रेडियो विमर्श का भी अभिन्न हिस्सा होगा।

विश्व रेडियो दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 2011 में की गई थी। स्पेन रेडियो अकादमी ने वर्ष 2010 में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस को मनाने का प्रस्ताव रखा था जिसे स्वीकार किया गया और वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी इसे स्वीकार किया।13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने की एक खास वजह है। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र में रेडियो की शुरुआत 13 फरवरी 1946 में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो की वर्षगांठ के दिन ही विश्व रेडियो दिवस मनाया जाने लगा। इस दिन हर वर्ष यूनेस्को विश्व के सभी ब्राॅकास्टर्स, संगठनों और समुदायों के साथ मिलकर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता है। रेडियो की भूमिका पर विश्व भर में चर्चाएं होती है।

भारत में रेडियो ब्रॉडकास्ट की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और वर्ष 1936 में भारत में सरकारी ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई थी। आजादी के बाद ये ‘ऑल इंडिया रेडियो’ यानी आकाशवाणी के नाम से जाना गया। सुभाष चंद्र बोस ने नवंबर 1941 में रेडियो पर जर्मनी से भारतवासियों को संबोधित किया था ,गांधी जी ने 12 नवंबर 1947 में कुरुक्षेत्र के शरणार्थियों को आकाशवाणी से सम्बोधित किया था, वहीं जवाहरलाल नेहरू ने आजाद भारत का पहला संदेश इसी माध्यम से दिया और इसी तर्ज पर आज माननीय प्रधानमंत्री भी मन की बात रेडियो पर ही करते है। यह मात्र संयोग नहीं बल्कि इस माध्यम की ताकत है।

दुनिया निरंतर बदल रही है इसी तर्ज पर रेडियो भी नित नवीन नवाचारों को अपना रहा है, क्योंकि आज भी रेडियो ही एक ऐसा जनसंचार माध्यम है, जिसके जरिए असंख्य लोगों तक सूचना और ज्ञान का प्रसार किया जाता है। खासकर गांव, कस्बों और ऐसी जगहों पर रहने वाले लोगों तक, जहां संचार का कोई और माध्यम पहुंचना आसान नहीं है। इन जगहों पर आज भी रेडियो कम्युनिकेशन का प्रमुख माध्यम है। मौजूदा समय में भी यह सूचना के प्रचार प्रसार का सबसे शक्तिशाली और सस्ता माध्यम है। आज भी आपदा या आपातकालीन स्थिति में रेडियो का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि जब आपदा के समय संचार के अन्य माध्यम ठप हो जाते है तब भी रेडियो से संदेश को आम जन तक पहुंचना संभव है। इस तरह रेडियो ने प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के दौरान लोगों की कीमती जानों को बचाने में मदद की। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सार्वजनिक बहस और शिक्षा के प्रसार में रेडियो के महत्व को समझाने के उद्देश्य से ही विश्व रेडियो दिवस मनाया जाता है। यह निर्णयकर्ताओं को रेडियो के माध्यम से सूचनाओं की स्थापना और जानकारी प्रदान करने, नेटवर्किंग बढ़ाने एवं प्रसारकों के बीच एक प्रकार का अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्रदान करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है और दुनिया भर के युवाओं को रेडियो की आवश्यकता और महत्व के प्रति जागरूक भी करता है। आज रेडियो ने अपनी पहुंच बढ़ाई है। जहां एक तरफ सरकारी रेडियो स्टेशनों के ज़रिये लोगों तक ज्ञान का भंडार पहुंचाया जाता है। तो वहीं प्राइवेट रेडियो स्टेशन भी भारत में मनोरंजन को एक अलग स्तर तक ले जा रहे हैं। रेडियो के विस्तार में भारतीय वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चन्द्र बसु का योगदान भी काफी अहम रहा है। वह पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया था। उन्हीं के इन प्रयासों से आवाज़ की दुनियाँ आज नित नवीन मुकाम हासिल कर रही है।

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