दिल्ली उपराज्यपाल ज़िद्दी या उनपर केंद्रीय भाजपा सरकार का दबाव  – दिल्ली सरकार को गिराने की योजना तो नही? 

एलजी ने ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अधिकार का गैरकानूनी प्रयोग कर दिल्ली सरकार की कैबिनेट द्वारा 4 साल पहले बिजली कम्पनियों में प्रोफेशनल डायरेक्टर्स की नियुक्ति के फैसले को पलटा जबकि डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ अधिकार का इस्तेमाल केवल विशेष परिस्थितियों में ही कर सकते है - मनीष सीसोदिआ

एलजी ने ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अधिकार का गैरकानूनी प्रयोग कर दिल्ली सरकार की कैबिनेट द्वारा 4 साल पहले बिजली कम्पनियों में प्रोफेशनल डायरेक्टर्स की नियुक्ति के फैसले को पलटा जबकि डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ अधिकार का इस्तेमाल केवल विशेष परिस्थितियों में ही कर सकते है – मनीष सीसोदिआ

दिल्ली उपराज्यपाल ज़िद्दी या उनपर केंद्रीय भाजपा सरकार का दबाव  – दिल्ली सरकार को गिराने की योजना तो नही? 

एस. जेड. मलिक 

नई दिल्ली –  दिल्ली की आमआदमी पार्टी की सरकार पर भाजपा की केंद्रीय सरकार द्वारा ऐसे मनुवादी मानसिकता वाले उपराज्यपाल की बहाली जो सामंत विचारधारा के तहत दिल्ली की सरकार को चलाना चाहते हैं। अब दिल्ली के उपराजयपाल का ज़िद्दीपन कहें या हठधर्मी या सत्ता की सम्मानित पद पर बने रहने की मजबूरी? जो की दिल्ली सरकार के जनहित में लिए गये लग – भाग हर उस फैसले में अड़ंगा लगाया जिसमे दिल्ली का विकास हो या दिल्ली की जनता का जनहित का मामला हो, जब भी दिल्ली सरकार ने सहमति के लिए जो भी फाइल दिल्ली के उपराज्यपाल के पास गई उस फाइल को दिल्ली के उपराजयपाल ने वापस कर दिया या फ़ाइल को पास करने के लिए ”क्यूँ” का प्रश्न चिन्ह लगा कर उसका जवाब माँगते हुए फाइल को रोकने की कोशिश की। जैसा की इस बार फिर से दिल्ली सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपप पर आरोप लगते हुए कहा की  दिल्ली के उपराज्यपाल विनय सक्सेना ने एक बार फिर संविधान और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते हुए गैरकानूनी रूप से केजरीवाल सरकार द्वारा 4 साल पहले लिए गए फैसले को पलटने का काम किया है। एलजी ने असंवैधानिक रूप से अरविन्द केजरीवाल सरकार के कैबिनेट द्वारा 4 साल पहले मंजूर किए गए एक प्रस्ताव को पलटा है। 4 साल पहले मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जी के नेतृत्व में दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने बिजली कम्पनियों में 4 प्रोफेशनल डायरेक्टर्स की नियुक्ति की थी। एलजी ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अधिकार का गैरकानूनी रूप से प्रयोग करते हुए सरकार के इस फैसले को पलट रहे है। एलजी द्वारा नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए चुनी हुई सरकार के फैसलों को पलटने का विरोध करते हुए उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि, एलजी ने जब से अपना कार्यकाल शुरू किया है तबसे वो रोजाना कोई न कोई एक ऐसा आदेश जारी करते है जो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना करता हो और देश के संविधान के खिलाफ हो। एलजी ने डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अपने अधिकार का गैर-क़ानूनी और असंवैधानिक प्रयोग करते हुए 4 साल पहले मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जी के नेतृत्व में दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने बिजली कम्पनियों में 4 प्रोफेशनल डायरेक्टर्स की नियुक्ति को पलटा है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की कैबिनेट और मुख्यमंत्री जी के फैसला लेने के बाद एलजी के पास कोई अधिकार नहीं है कि वो बिजली संबंधी दिल्ली सरकार के लिए गए फैसलों को पलटे।

श्री सिसोदिया ने कहा कि एलजी ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ अधिकार का इस्तेमाल दुर्लभ परिस्थितियों में ही कर सकते है लेकिन एलजी इस विशेष अधिकार का गैर-क़ानूनी रूप से दुरूपयोग करते हुए चुनी हुई सरकार के हर फैसले को पलटने के लिए कर रहे है। क्योंकि एलजी साहब का मानना है कि उनके उपर सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू नहीं होते है। वो संविधान को नकार रहे है। एलजी साहब को ये समझना चाहिए कि वो भारत में ही रहते है और संविधान के आदेशों पर चलते है। उन्हें संविधान को मानना पड़ेगा, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को मानना पड़ेगा और नियम-कानूनों को भी मानना पड़ेगा। एलजी साहब का कहना है कि 4 साल पहले केजरीवाल सरकार ने बिजली कंपनियों में जो डायरेक्टर्स लगाये थे वहां घोटाला हो गया| अगर इन्हें लगता है कि घोटाला हुआ है तो जांच करवाए लेकिन इनके पास ये शक्तियां नहीं है कि वो केजरीवाल जी के सरकार के 4 साल पहले लिए गए फैसले को पलट दे। ये पूरी तरह असंवैधानिक और गैरकानूनी है। एलजी संविधान का सम्मान करें, सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करें और ये ये न समझे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले उनपर लागू नहीं होते है।
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि,”एलजी ने जब से अपना कार्यकाल शुरू किया है तबसे वो रोजाना कोई न कोई एक ऐसा आदेश जारी करते है जो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना करता हो और देश के संविधान के खिलाफ हो। उन्होंने कहा कि एलजी रोजाना कोई न कोई असंवैधानिक आदेश जारी कर ये साबित करना चाहते है कि वो न संविधान को मानते है और न उनके उपर सुप्रीम कोर्ट के आर्डर लागू होते है| इस दिशा में आज एलजी ने एक और आदेश जारी किया है जिसमें न तो वो संविधान को मान रहे है और खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना कर रहे है। उन्होंने साझा किया कि आज उपराज्यपाल ने असंवैधानिक रूप से अरविन्द केजरीवाल सरकार के कैबिनेट द्वारा 4 साल पहले मंजूर किए गए एक प्रस्ताव को पलटा है। 4 साल पहले मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जी के नेतृत्व में दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने बिजली कम्पनियों में 4 प्रोफेशनल डायरेक्टर्स की नियुक्ति की थी। एलजी ने ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अपने अधिकार का गैर-क़ानूनी और असंवैधानिक प्रयोग करते हुए इसे पलट दिया है।  
श्री सिसोदिया ने कहा दिल्ली की कैबिनेट और मुख्यमंत्री जी के फैसला लेने के बाद एलजी  के पास कोई अधिकार नहीं है कि वो बिजली संबंधी दिल्ली सरकार के लिए गए फैसलों को पलटे। उनके पास केवल ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ का अधिकार है। एलजी के पास संविधान में केवल 3 विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार है- एलजी केवल पुलिस, जमीन और पब्लिक आर्डर पर निर्णय ले सकते है। इसके अलावा बाकि सभी चीजों पर चुनी हुई सरकार को निर्णय लेने का अधिकार है और उपराज्यपाल केवल इसमें सुझाव या राय दे सकते है।
श्री सिसोदिया ने कहा कि ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ का अधिकार संविधान ने एलजी साहब को इसलिए दिया है क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है और इसमें आपको विशेष अधिकार दिया है कि आप मंत्रियों के किसी फैसले पर असहमत हो सकते है लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिकार को स्पष्ट करते हुए कहा है कि ये असहमति बहुत ही दुर्लभ परिस्थितियों में होगी। जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस अधिकार का केवल दुर्लभ परिस्थितियों में इस्तेमाल होगा लेकिन एलजी इस विशेष अधिकार का गैर-क़ानूनी रूप से दुरूपयोग करते हुए चुनी हुई सरकार के हर फैसले को पलटने के लिए कर रहे है। क्योंकि एलजी साहब का मानना है कि उनके उपर सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू नहीं होते है| वो संविधान को नकार रहे है।
श्री सिसोदिया ने कहा है कि कानून में साफ़ है कि एलजी ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अधिकार का इस्तेमाल तब करे सकते है जब मंत्री के निर्णय के बाद एलजी के पास कोई प्रस्ताव भेजा जाये और उसपर एलजी असहमत हो। ऐसे में भी एलजी ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अधिकार का सीधे इस्तेमाल नहीं कर सकते है। वो पहले मंत्री को अपने पास  पास बुलाएँगे उस प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और चर्चा के बाद भी दोनों के बीच सहमति नहीं बनती है तो एलजी प्रस्ताव को मुख्यमंत्री के पास भेजेंगे और उस प्रस्ताव पर कैबिनेट में चर्चा की जाएगी। अगर कैबिनेट भी न माने तो एलजी ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अधिकार का इस्तेमाल करेंगे।
सिसोदिया ने कहा कि इन नियमों के बावजूद एलजी साहब नियमों को धज्जियाँ उड़ाते हुए ‘डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे है। वो संविधान को मानते नही है, उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले उनपर लागू नहीं होते। उन्होंने कहा कि एलजी साहब को ये समझनाचाहिए कि वो भारत में ही रहते है और संविधान के आदेशों पर चलते है, उन्हें संविधान को मानना पड़ेगा, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को मानना पड़ेगा और नियम-कानूनों को भी मानना पड़ेगा।
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि, एलजी साहब का कहना है कि 4 साल पहले केजरीवाल सरकार ने बिजली कंपनियों में जो डायरेक्टर्स लगाये थे वहां घोटाला हो गया| उन्होंने कहा कि पिछले 8 सालों में दिल्ली में बिजली सेक्टर में कोई घोटाला नहीं हुआ बल्कि लोगों को फ्री बिजली मिल रही है| उन्होंने कहा कि ये लोग रोज अपनी मनोहर कहानियों के साथ एक नया आरोप लगाते है। सीबीआई, ईडी भेज देते है। अगर इन्हें लगता है कि घोटाला हुआ है तो जांच करवाए लेकिन इनके पास ये शक्तियां नहीं है कि वो केजरीवाल जी के सरकार के 4 साल पहले लिए गए फैसले को पलट दे। ये पूरी तरह असंवैधानिक और गैरकानूनी है।
 सिसोदिया ने कहा कि एलजी संविधान और सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करें इसलिए की वह एक सम्मानीय पद पर बैठे हैं, उनपे भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले लागू  होते है। उन्हें भी सुप्रीम कोर्ट की गरिमा सम्मान करना चाइये। 
वहीं उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रविवार को दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा असंवैधानिक तरीक़ों से की गई हालिया कार्रवाइयों पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि एलजी के आरोप पूरी तरह निराधार और ओछी राजनीति से प्रेरित हैं। एक तरफ उन्होंने दिल्ली सरकार की हर एक फाइल रोक रखी है, वहीं दूसरी तरफ वे सरकार पर पूरी दिल्ली में मंदिरों को तोड़े जाने से जुड़ी फाइलों में देरी करने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि एलजी का यह व्यवहार उनकी प्राथमिकताओं पर संदेह पैदा करता है। एलजी दिल्ली में मंदिरों पर बुल्डोजर चलाने के लिए इतना उत्साहित क्यों है? यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपराज्यपाल इतने संवेदनशील मामले पर राजनीति कर रहे हैं, जो दिल्ली के दर्जनों पुराने मंदिरों से जुड़ा है। जबकि धार्मिक ढांचों में कोई संशोधन करने का निर्णय भी जल्दबाजी में नहीं लिया जा सकता, उन्हें गिराने की अनुमति देना तो बहुत दूर की बात है। क्या एलजी के लिए सरकारी स्कूल के शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फ़िनलैंड भेजने से ज़्यादा ज़रूरी मंदिरों को तोड़ना है? एलजी खुद को दिल्ली का “लोकल गार्जियन” कहते हैं, तो वह जनहित की परियोजनाओं को मंजूरी क्यों नहीं देते हैं?उपराज्यपाल के पास  प्रिंसिपलों, डीईआरसी चेयरमैन, कानूनी सलाहकारों की नियुक्ति के लिए अनुमोदन लंबे समय से लंबित है। एलजी राजनीति करने के बजाय इस दिशा में काम करें।  मैं एलजी से विनती करता हूं कि वो बिना कोई बाधा डाले चुनी हुई दिल्ली सरकार को शांतिपूर्वक काम करने दें।
यह देश का दुर्भाग्य कहें या देश की जनता की विडम्बना ! जो की भारत जैसे विशालकाय लोकतंत्र की जनता को बार बार मनुवादी मानसिकता एवं सामंती विचारधारा वाली पूँजीपतिओं की सरकार को चुनना पड़ता है। चुने भी तो क्यों न चुने  इसलिए की  लोकतंत्र के नाम पर चुनाव में जिन जनप्रतिनिधियों को जनता के समक्ष भेजा जाता है वह किसी राजनितिक संगठनों द्वारा चुने हुए प्रत्याशी होत्ते हैं उन्हें ही चुनावी मैदान में उतारा जाता है वैसे लोगों को अपना मतदान करना भी उनकी मजबूरी हो जाती है। इसलिए की लगभग 70 प्रतिशत जनता स्वार्थी गुलामी मानसिकता की आदि है  और 23 प्रतिशत दलाल मानसिकता के आदि हैं जो 7 प्रतिशत मनुवादी मानसिकता के सामंती विचारधारा वाले हुकूमत चलाने वालों के लिए काम करते है।      
Leave A Reply

Your email address will not be published.