देश प्रति लौहपुरुष सरदार पटेल की त्याग और समर्पण को भुलाया नही जा सकता – रूमसिंह
वर्तमान में भाजपा मनुवाद की कुटिल राजनीति चिंताजनक चिंतन करने की जरूरत है।
सरदार बल्लभ भाई पटेल अंतरिम सरकार के प्रथम गृहमंत्री-उपप्रधानमंत्री ने जमींदारियों को जप्त करके भारत की गम्भीरता को समझकर निदान करने में अहम भूमिका निभाई थी।
- सरदार वल्लभ भाई पटेल आजादी के बाद अंतरिम सरकार में गृहमंत्री उपप्रधानमंत्री की आज जयंती पर उनकी राष्ट्रभक्ति को शत् शत् नमन श्रद्धांजलि देता हूं।
भारत की अखंडता,राष्ट्रभक्ति की त्यागमूर्ति, एकता की मिशाल सरकार बल्लभ भाई पटेल अंतरिम सरकार के प्रथम गृहमंत्री-उपप्रधानमंत्री ने जमींदारियों को जप्त करके भारत की गम्भीरता को समझकर निदान करने में अहम भूमिका निभाई थी।
भारतीय राजनीति के संदर्भ में भाजपा-RSS के लोग एक बात को बार-बार उठाते हैं,कि कांग्रेस गांधी ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। जवाहर लाल नेहरू की जगह सरदार पटेल को प्रधानमंत्री होना चाहिए था।उस समय सरदार पटेल कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, इसलिए नादान नहीं हो सकते, कि प्रधानमंत्री का पद छोड़कर नेहरू को दे देते, यह दलील निहायत घटिया-राजनीति से प्रेरित है, ऐसा मैं समझ नहीं पा रहा हूं,कि इतने मजबूत होने के बाद भी सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रधानमंत्री नहीं बनने के पीछे जवाहर लाल नेहरू, गांधी नहीं? बल्कि मनुवादी मानसिक सोच थी,आज जो सोच भाजपा के साथ हैं। उस समय यही सोच कांग्रेस के साथ थीं। इसी सोच ने उस समय सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। यह पिछड़ी जाति वर्ग जातियों को समझना चाहिए।
आडवानी से मोदी ने प्रधानमंत्री पद छीना इसमें भी मनुबाद-मनुवादी सोच है।कि भाजपा ने एक ऐसे आदमी से प्रधानमंत्री पद छीना जो प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। भाजपा को यहां तक पहुंचाने में आडबानी का बहुत बड़ा योगदान है, कांग्रेस में हर 5 साल में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव होता है। 1945 में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव में यह निर्णय हुआ था। कि जो कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा, वहीं भारत का प्रधानमंत्री बन सकेगा, आजादी की लड़ाई चल रही थी,कांग्रेस की संगठनात्मक प्रक्रिया में के चुनाव निचले स्तर से होते हुए, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव तक जाने की परंपरा रही है,उस समय क्योंकि सभी कांग्रेस के नेतागण आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, इसलिए निचले स्तर से चुनाव न करा कर राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव 15 प्रांतीय अध्यक्षों के द्वारा किया जाना तय हुआ, इस राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद के तीन दावेदार,सरदार पटेल,नेहरू,डॉ राजेंद्र प्रसाद ब्रिटिश भारत में 15 प्रांतीय अध्यक्षों के द्वारा जो वोट डाले गए,उसमें 12 वोट सरदार पटेल को,2 वोट डॉ राजेंद्र प्रसाद,एक वोट नेहरू को मिले,नेहरू जी की इच्छा थी।कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने,लेकिन सरदार पटेल को सबसे अधिक बोट मिले,इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार पटेल चुने गए थे।
जवाहर लाल नेहरू की इच्छा की जानकारी जब गांधी को हुई, तो उन्होंने सरदार पटेल से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने को कहा,सरदार पटेल ने गांधी की बात को मानते हुए,राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद को छोड़ दिया।इस प्रकार नेहरू जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर कांग्रेस ने पार्टी मनोनीत कर दिया। इसके पीछे कारण जो भी हो, लेकिन मनुवादी सोच का दूरगामी नतीजा जरुर है।
सरदार पटेल ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का त्याग करके जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत करने का समर्थन किया।सरदार पटेल के इस त्याग का मखौल भाजपा राजनैतिक लाभ के लिए दुष्प्रचार कर रही है। भारतीय राजनीति में भाजपा का कृत्य निंदनीय है, सरदार पटेल के त्याग को लेबर पार्टी आफ इंडिया कोटि कोटि नमन श्रद्धासुमन अर्पित करती है।
अंग्रेजों ने समझ लिया था, कि निकट भविष्य में भारत को आजाद करना ही होगा। लेकिन सत्ता किसे सौंपी जाए, इस मुद्दे पर अंग्रेजी हुकूमत ने विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिया,कि भारत की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को सत्ता सौंप दी जाए, अंग्रेजों ने भारत छोड़ने के बाद सत्ता कांग्रेस को शासन सत्ता सौंप दीं, कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे, इस लिए -1946- 47 में अंतरिम सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू बनें, बल्कि किसी ने किसी नहीं हटाया, बल्कि मनुबाद की दूरदर्शी सोच का दूरगामी परिणाम है।
भाजपा-आरएसएस उपरोक्त घटनाक्रम को राजनैतिक औजार बना कर बोट की राजनीति में एक वर्ग विशेष झूठ के भ्रमजाल में झूठ को सत्य, सत्य को झूठ में बदलकर भाजपा-पटेल के त्याग का मखौल उड़ाते हुए,पटेलों के बोटों पर भाजपा डकैती, भाजपा मनुवादी कुटिल राजनीति से साबधान रहने की जरूरत है।
सरदार पटेल से प्रधानमंत्री पद छीन कर नेहरू को दे दिया,यहां पर यह बात समझने लायक है। कि हो सकता है, कि नेहरू को यह मालूम हो,कि अंग्रेज जब देश से छोड़कर जाएंगे,तो शासन सत्ता कांग्रेस को सौंप देंगे। तो प्रधानमंत्री कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही बनेगा। इसका आभास सरदार पटेल को नहीं था। यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद का त्याग सरदार पटेल नहीं करते, तो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार पटेल होते, यह सत्य है।कि सरदार पटेल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का त्यागते, तो ही प्रधानमंत्री बन सकते थे। वर्तमान में भाजपा मनुवाद की कुटिल राजनीति चिंताजनक चिंतन करने की जरूरत है।
रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आफ इंडिया
जयभारत जयभीम (88006118)
