संविधान दिवस और हम –

आओ आज संविधान दिवस पर हर राजनीतिज्ञ को समाजसेवी लोकतंत्र बनाने का संकल्प लें।

आओ आज संविधान दिवस पर हर राजनीतिज्ञ को समाजसेवी लोकतंत्र बनाने का संकल्प लें। जिसके कारण शोषित-बंचित किसान मजदूर शिक्षित वेरोजगारों को न्याय मिल सके।

26 नवंबर-1949 को डॉ. बी० आर० अम्बेडकर ने वंचित शोषित पीड़ितों को समानता न्याय के जिंदा दस्तावेज है संविधान

संविधान सभा सौंपा, संविधान निर्माताओं, डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर को शत् शत् नमन, भारत भारतीयों को भी नमन!

रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आफ इंडिया

संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष एवं संविधान निर्माता डा0 बी0 आर0 अंबेडकर जिन्होंने करोड़ों भारतवासी शोषितों एवं गरीब मजदूरों को न्याय दिलाने के लिए संविधान में प्रावधान करके अधिकार दिलाए, आज तक जिन्होंने संविधान से लाभ लिया, लेकिन गरीवों उन्होंने ने कभी नहीं दिया। इसलिए भारत आज तक गरीब अविकसित देश बना हुआ है। भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए मतदाताओं ने कभी अपने विकास के लिए मतदान नहीं किया। इसलिए आज तक शोषित,बंचित किसान मजदूर शिक्षित वेरोजगार पीड़ित शोषित है।संबिधान के अनुच्छेद पड़ने से अधिकतर नहीं मिलते हैं, बल्कि सत्ता हासिल करने से अधिकार मिलते हैं। संविधान को जैसा चाहे वैसा संसद में संशोधन करके अपने पक्ष में निर्णय के तैयार कर सकते हैं। इसलिए संबिधान में आयेदिन संशोधन होते रहते हैं।
संबिधान विरोधियों को समझना होगा,कि बिरोध के कारण जनसंघ, हिंदू महासभा को कभी सफलता नहीं मिली। जब से भाजपा ने मंडल कमीशन विरोध में मंदिर मस्जिद विवाद से गिराने तक से लेकर जो हिंदूराष्ट्र हिंदुत्व धर्म संस्कृति के कार्ड खेला, तबसे बढ़े से बढ़े दिग्गज राजनेता धूल चाट रहें हैं। संबिधान के विरोध से कोई दल कामयाब नही हो सकता, बल्कि लक्ष्य हासिल करने के लिए बहुमत जुटाने के लिए प्रयास करना चाहिए, भाजपा आरएसएस जब तक बिरोध में रही,तब तक कभी सत्ता का स्वाद नहीं मिल पाया।संबिधान एवं संबिधान निर्माता पर किसी प्रकार का दोष लगाकर गलती छिपाने से सत्ता कभी नहीं मिल सकती।यह बहुसंख्यक समाज के संगठन नेतृत्व को जाति-व्यवस्था से दूर संविधान वर्गवाद को महत्व देते हुए, संगठन नेतृत्व तैयार करने की जरूरत है।
आज ही के दिन 26नवम्बर-1949को भारतीय संविधान को डा0अम्बेडकर संबिधान को बनाया, इसलिए विरोध है, यदि किसी और उच्च जाति के आदमी ने बनाया होता, तो भारत में उसकी पूजा और धार्मिक मंदिर बन गये होते। संविधान सभा को ही आज लोकसभा कहते हैं। संविधान सभा के अध्यक्ष को आज राष्ट्रपति कहते हैं। लोकसभा की व्यवस्था में लोकसभा अध्यक्ष को संबिधान सभा के उपसभापति का दर्जा दिया गया है। लोकसभा अध्यक्ष सदन में समितियों का गठन एवं सांसदों को शपथ दिलाने का अधिकार मिला हुआ है। संविधान सभा सभापति ने तत्कालीन समिति अध्यक्षों, अंतरिम सरकार एवं मंत्रीमंडल को भंग करके लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद आजाद भारत की अंतरिम सरकार के निर्देशन में लोकसभा चुनाव हुआ था। चुनाव उपरांत कांग्रेस को बहुमत मिला, सरकार का गठन हुआ था।
संविधान बिरोधी मानसिकता के तहत कहते हैं, कि गरीबों,मजदूरों के हित में संबिधान नहीं है। संपत्ति के संबंध में जो कानून हैं, वह भी हितकर नहीं है। यह सवाल संविधान सभा में भी बाचन के लिए आया था, तभी रिपब्लिकन के साथ सोशलिस्ट शब्द को जोड़ कर प्रस्ताव खारिज कर दिया गया था। सामाजिक परिवर्तन के ढांचे के साथ पूंजीवादी ढांचे दोनों एक दूसरे के परस्पर विरोधी है।जब तक शोषक वर्ग मजबूत रहेगा तब तक वर्ग विहीन समाज नहीं बन सकता।
संविधान की बिरोध साम्यवादी और समाजवादी दोनों पक्ष संबिधान का बिरोध करते हैं। लेकिन अंबेडकरवादी पक्ष संविधान का कभी बिरोध नहीं करते हैं। जो अंबेडकरवादी डा अम्बेडकर को भलीभांति परिचित और समझते हैं, वह यह भी जानते हैं,कि जब तक संसदीय लोकतंत्र में में बहुसंख्यक समाज का बहुमत नहीं होगा।तब संविधान हमारे हितों को मजबूत और सुरक्षित नहीं कर सकता है। यह इसलिए नहीं हो पाया है, कि जो जानकार हैं, वह सभी अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों से संबंध रखते हैं। इनकी कावलियत को धर्म की वाशिंग मशीन में हिंदुत्व रुपी सर्फ डालकर गन्दे पानी की तरह फ़ेंक दिया जाता है। जातिवाद रुपी गन्दे पानी की तरह अलग अलग नालियों में बहा कर अपने बजूद को खत्म कर रहे हैं। यह बात बहुसंख्यक गरीब, मजदूर दिग्भ्रमित-जातियों में बुरी तरह से बंटा हुआ है।
बहुसंख्यक समाज को जातिवादी नेतृत्व के बजूद को खत्म करके वर्ग-वादी एवं अंबेडकरवादी नेतृत्व को पैदा करने की जरूरत है। वर्ग-वादी नेतृत्व को अंबेडकरवादी विचारधारा की पूर्ण जानकारी एवं समाजसेवी भावना डॉ. अंबेडकर जैसी होनी चाहिए, वहीं सच्चा अंबेडकरवादी अनुयाई कहने का हकदार हैं। मनुवादी अंबेडकरवादी सबसे अधिक खतरनाक होता है। जैसा आज देखने में ऐसे अंबेडकरवादी हर जगह मिल जाते हैं। मनुबादी अंबेडकरवादियों से सावधान रहना होगा।
अंबेडकरवाद के बिना सच्चा अंबेडकरवादी कोई नहीं बन सकता, डॉ बी०आर०अंबेडकर का सपना भारत को न्याय,समानता बंधुता उत्तम राष्ट्र एवं समाज निर्माण में समाजसेवी भावना की नियत रणनीति से बनाया जा सकता है। आओ आज संविधान दिवस पर हर राजनीतिज्ञ को समाजसेवी लोकतंत्र बनाने का संकल्प लें। जिसके कारण शोषित-बंचित किसान मजदूर शिक्षित वेरोजगारों को न्याय मिल सके। एक अच्छे समाज निर्माण के लिए सच्चे अंबेडकरवादी की जरूरत है। भारतीय लोकतंत्र को पूंजीवाद से बचाने के प्रयास हर भारतीय को करना चाहिए।
भारतीय लोकतंत्र बहुदलीय एवं निर्दलीय है। बहुदलीय लोकतंत्र तीन प्रकार का है। (1)-संसदीय लोकतंत्र-जिसे लोकसभा की कार्यवाही से संबंध है, इसमें सत्तासीन दल का प्रभुत्व होता है।
(2)- पार्टी संसदीय लोकतंत्र-पार्टी की नीति निर्धारण कमेटी (संसदीय समिति) के पास ही शक्तियां होती है। (3)-जनतांत्रिक लोकतंत्र-मतदान-मतदाताओं का महत्व सबसे अधिक होता है, मतदाताओं को को लोकलुभावन प्रलोभन से लोकतंत्र प्रभावित करने का प्रयास प्रत्याशी,दल करते हैं।
पूंजीवादी लोकतंत्र भारतीय नागरिक मतदाताओं के हित में नहीं हो सकता, क्योंकि साम्यवादी लोकतंत्र अमीरों के हित में और गरीवों मध्यमवर्गीय लोगों के खिलाफ होता है।जिसकी शंका डॉ अम्बेडकर ने संविधान को संबिधान सभा को सौंपते समय उल्लेख किया था। संविधान सौंपने समय के कथन में महत्वपूर्ण,कि संबिधान चाहें जितना खराव हो, यदि चलाने वाले अच्छे तो परिणाम अच्छा आयेगा, यदि संविधान कितना अच्छा हो, यदि चलाने वाले बुरे लोग हैं, तो उसके परिणाम बुरे होंगे।
अंबेडकरवाद जनतांत्रिक लोकतंत्र में समाजिक सुधार न्यास समानता भागीदारी भाईचारा की बात करता है। यह हर अंबेडकरवादी राजनीतिज्ञों को समझने की जरूरत है, परंतु जातिवाद धर्म संस्कृति इतिहास ने भारतीय लोकतंत्र को सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया है,इससे भाजपा को सबसे अधिक लाभ हो रहा हैं। भाजपा गरीब मजदूर,किसानों,बेरोजगारों को न्याय देने की बात करतीं हैं, लेकिन देने के नाम पर धर्म की राजनीति में उलझा कर नौजवानों किसानों मजदूरों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। इसलिए भाजपा के भ्रमजाल शब्दजाल चक्रव्यूह रचना को लोग समझने में नाकामयाब हो रहें हैं,लेबर पार्टी आफ इंडिया भाजपा के भ्रमजाल को समझा रही है।

रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आफ इंडिया

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